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श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक उद्बोधन-

प्रस्तुत अछि श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक उद्बोधन अवसरि- शकुनतला-भुवनेश्वरी मैथिली-संस्कृत संवर्द्धन न्यास, हैदराबाद द्वारा आयोजित पुरस्कार वितरण समारोहक आयोजन दिनांक 24.11.2022क दिनक अढ़ाइ बजेसँ आरम्भ भ’ साँझक साढ़े छह बजे सम्पन्न भेल। ई समारोह जगन्नाथपुर (पुर्णिया) मे देसिल वयनाक सम्पादक श्री चन्द्रमोहन कर्णजीक निज आवासपर आयोजित छल। कार्यक्रमक विवरण निम्न अछि- पुरस्कार वितरण समारोह :- मुख्य अतिथि : श्री बुद्धिनाथ झा विशिष्ट अतिथि : श्री जगदीश प्रसाद मण्डल पुरस्कार विजेता : डॉ. महेन्द्र, डॉ. शिवशंकर श्रीनिवास, श्री अशोक, डॉ. उमेश मण्डल तथा श्री अरुण कुमार झा ‘अरूण’ निर्णायक मण्डल : श्री लक्ष्मण झा सागर, श्री चन्द्रेश एवं श्री केदार कानन मंच- संचालन : श्री किसलय कृष्ण कार्यक्रमक रूप-रेखा- गोसाउनिक गीत उपर्युक्त सभ अतिथि लोकनिक पाग-डोपटासँ स्वागत दीप प्रज्जवलन श्री केदार कानन द्वारा स्वागत भाषण मुख्य न्यासी श्री चन्द्र मोहन कर्णक उद्बोधन पॉंचो पुरस्कार विजेता लोकनिकेँ प्रशस्ति-पत्र द्वारा सम्मानित करब श्री चन्द मोहन कर्णक काव्य संग्रह ‘माँ-बाबूजी’क लोकार्पण आ श्री कर्णक पोथी-सम्बन्धी उद्गा

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल

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श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक जन्म मधुबनी जिलाक बेरमा गाममे 5 जुलाई 1947 इस्वीमे भेलैन। मण्डलजी हिन्दी एवं राजनीति शास्त्रमे एम.ए.क अहर्ता पाबि जीवि‍कोपार्जन हेतु कृषि कार्यमे संलग्न भऽ रूचि पूर्वक समाज सेवामे लागि गेला। समाजमे व्याप्त रूढ़िवादी एवं सामन्ती व्यवहार सामाजिक विकासमे हिनका वाधक बुझि पड़लैन। फलत: जमीन्दार , सामन्तक संग गाममे पुरजोर लड़ाइ ठाढ़ भऽ गेलैन। फलत: मण्डलजी अपन जीवनक अधिकांश समय केस-मोकदमा , जहल यात्रादिमे व्यतीत केलाह। 2001 इस्वीक पछाइत साहित्य लेखन-क्षेत्रमे एला। 2008 इस्वीसँ विभिन्न पत्र-पत्रिकादिमे हिनक रचना प्रकाशित हुअ लगलैन। गीत , काव्य , नाटक , एकांकी , कथा , उपन्यास इत्यादि साहित्यक मौलिक विधामे हिनक अनवरत लेखन अद्वितीय सिद्ध भऽ रहलैन अछि। अखन धरि दर्जन भरि नाटक/एकांकी , पाँच साएसँ ऊपर गीत/काव्य , उन्नैस गोट उपन्यास आ साढ़े आठसाए कथा-कहानीक संग किछु महत्वपूर्ण विषयक शोधालेख आदिक पुस्तकाकार , साएसँ ऊपर ग्रन्थमे प्रकाशित छैन। मिथिला-मैथिलीक विकासमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक योगदान अविस्मरणीय छैन। ई अपन सतत क्रियाशीलता ओ रचना धर्मिताक लेल विभिन्न संस्थासभक द्

साहित्यकारक विवेक (कथा संग्रह)क होनी कथासँ (जगदीश प्रसाद

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#होनी #जगदीशप्रसादमण्डल ****************************** सात दिनक पछाइत पटनासँ आएले रही। हाथो-पएर नइ धोने रही। तेते दौड़-बरहा भेल रहए जे देहक संग मनो चुरम-चुर भऽ गेल छल। देहक चुरम-चुर भेल दौड़-बरहामे देहक थकान आ मनक चुरम-चुर भेल जे जइ काजे गेल छेलौं, काजक सभ जोगार केलौं आ हाइ कोर्टक फैसला दिन काज लसैक गेल, आ तीन मास आगूक तारीक पड़ि गेल। एक तँ ओहुना देखै छी, आनक कोन बात जे अपन जीवनमे घटल एकटा केस माने चारि-साए-छत्तीस, सैंतीस बर्खमे फड़ियाएल आ दोसर तीन-साए-सात, एकतालीस बर्खमे। ओना, पत्नी मनक रोहानीसँ बुझि गेली जे भरिसक काजक लड्डू सनेस लऽ कऽ घुमला अछि। लड्डू सनेस भेल काज नइ हएब। मुदा काजक फरिछौठ भेला पछाइत लड्डू प्रसाद नइ बाँटल जाइए सेहो बात नहियेँ अछि, सेहो अछिए। तखन तँ भेल जे बुधियारकेँ इशारा काफी। जे मन मानैन सएह बुझौथ। मुदा तैयो बेचारी (पत्नी) अपन मान-सम्मान निमाहैत बजली- “तबघल पानि पीब नीक नहि हएत, तँए पहिने किछु खा लिअ।” मन अपना काजसँ चिन्तित छल जे तीन हजार रूपैआक काज आगूमे आबि गेल। कहब जे तीनियेँ हजार रूपैआक काज ले मन किए चिन्तित भऽ गेल? पाइक इज्जत तखन ने होइए जखन ओकर सदुपयोग होइए

होनी (साहित्यकारक विवेक)

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  “कौलेजक बैच माने विद्यार्थीक संग शिक्षक धरि, टूर प्रोग्राममे पुष्कर गेल छल। पता लागल जे पाँच जोड़ी बिआह ओइठाम सेहो भेल। ओहीमे एक जोड़ी अपनो गामक, माने श्याम आ रूक्मिणीक, पुष्करक जे दछिनबरिया घाट अछि, जैठाम ब्रह्माजीक मन्दिर छैन, माने ई जे राजस्थानमे झीलनुमा पुष्कर अछि, ओकर चारू महारमे ब्रह्माजीक मन्दिर अछि, ओही मन्दिरक पुजारीक आगूमे दुनूक बिआह भेल। वएह दुनू गाम आएल अछि।” ओना, तत्काल समाजपर सँ नजैर हटि गेल तँए बजा गेल- “ई तँ बढ़ियाँ भेल, समाजक दहेज पनचैतीसँ नहि ने मेटाएत, परिवर्तनसँ मेटाएत। पछाइत की भेल?” उचितलाल भाय बजला- “गाम आबि रूक्मिणी अपन माए-बाप ऐठाम नहि गेल आ श्यामे ऐठाम रहैए। ओना, गाममे तना-तनी बनले अछि, हमहूँ सभ विचारसँ श्यामकेँ मदैत कइये रहलिऐ हेन।” बजलौं- “कोनो अप्रिय घटनाक सम्भावना नइ ने अछि?” उचितलाल भाय बजला- “दुनू दिस समकश अछि, तँए कोनो अप्रिय घटना नइ घटत। विचारसँ सभक समाधान भऽ जाएत।” ******************* साभार : साहित्यकारक विवेक, 2022, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, पल्लवी प्रकाशन, पृष्ठ संख्या- 87 कथाक शीर्षक- 'होनी'