होनी (साहित्यकारक विवेक)
“कौलेजक बैच माने विद्यार्थीक संग शिक्षक धरि, टूर प्रोग्राममे पुष्कर गेल छल। पता लागल जे पाँच जोड़ी बिआह ओइठाम सेहो भेल। ओहीमे एक जोड़ी अपनो गामक, माने श्याम आ रूक्मिणीक, पुष्करक जे दछिनबरिया घाट अछि, जैठाम ब्रह्माजीक मन्दिर छैन, माने ई जे राजस्थानमे झीलनुमा पुष्कर अछि, ओकर चारू महारमे ब्रह्माजीक मन्दिर अछि, ओही मन्दिरक पुजारीक आगूमे दुनूक बिआह भेल। वएह दुनू गाम आएल अछि।”
ओना, तत्काल समाजपर सँ नजैर हटि गेल तँए बजा गेल- “ई तँ बढ़ियाँ भेल, समाजक दहेज पनचैतीसँ नहि ने मेटाएत, परिवर्तनसँ मेटाएत। पछाइत की भेल?”
उचितलाल भाय बजला-
“गाम आबि रूक्मिणी अपन माए-बाप ऐठाम नहि गेल आ श्यामे ऐठाम रहैए। ओना, गाममे तना-तनी बनले अछि, हमहूँ सभ विचारसँ श्यामकेँ मदैत कइये रहलिऐ हेन।”
बजलौं- “कोनो अप्रिय घटनाक सम्भावना नइ ने अछि?”
उचितलाल भाय बजला-
“दुनू दिस समकश अछि, तँए कोनो अप्रिय घटना नइ घटत। विचारसँ सभक समाधान भऽ जाएत।”
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साभार : साहित्यकारक विवेक, 2022, श्री जगदीश प्रसाद मण्डल, पल्लवी प्रकाशन, पृष्ठ संख्या- 87
कथाक शीर्षक- 'होनी'
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