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Showing posts from February, 2019

मैथिली कहानी

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कौल्हुक सुच्चा करुतेल बात तीन-चारि दसक पूर्वक छी। तहिया हम नवालिके रही। फागुन मास रहै, पछिया हवा रमकैत रहए। रबिया आ बुधना दुनू भाँइ चिमनीपर पजेबाक खेबालमे माटि बनबए गेल रहए। माटि कचैर बना दुनू भाँइ संगे लेढ़ाएले घुमि घर आएल। रौदाएल रहए, पोखैरक महारपर गाछक छॉंहैरमे आबि जिराइत रहए, मन थिर भेला पछाइत पोखैरमे भरि मन देह मांजि नहा कऽ घर विदा भेल। घर पहुँचते मटियाएल देह उज्जर लगबे करए आ चुनचुनेबो करए। दुनू भाँइक रॉंइ-बाँइ देह देख माए बजली- “बौआ, तोरा दुनू भाँइक देह किए एना रॉंइ-बाँइ फाटल लगै छौ! कनी करुतेल किए ने लगा लइ छेँ?” रबिया बाजल- “से तँ ठीके माए, बहुत दिनसँ तेल-कुड़ देहमे नै औंसलौं हेन। घरसँ नीकहा करुतेल नेने आ।” माए बजली- “निकहा तेल तँ बौआ कनियेँ रहए, सेहो कहिया ने सधल। तखन बजरूआ खाँटी तेल कनी अछि से औंस ले।” रबिया-बुधना दुनू भाँइ खूब चपकारि-चपकारि तेल देहमे लगेलक। देहक चमड़ी जे फाटल छल तइमे रबरबाए कऽ तेल लगल आ देहमे लहैर मारए लगल। जहिना मसल्ला पीसैकाल मिरचाइक दाफसँ हाथ लहरैए तहिना समुच्चा देहमे लहैर मारए लगल। बुधना रबियासँ पुछलक- “भैया, बजारक खाँटी करुतेल देहमे लगेलापर एते

हमर गाम (उपन्याससँ)

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1. हमरो गाम मिथिले मे छै हम कोनो पढ़ल-लिखल लोक नहि छी, अपितु यदि कहियै जे हमरा गाममे एकटा केँ छोड़ि कियो पढ़ल लिखल नहि अछि तऽ बेसी उचित होएत। घीच-घाँचि कए कहुना दशमा पास केलहुँ आ चल गेलहुँ दिल्ली रोजगारक खोजमे। शुरुएमे बुझा गेल जे एतए अपनाकेँ दशमा पास कहलासँ लाभ नहि नोकसाने अछि तें एहि बातकेँ नुका रखलहुँ आ जे काज हाथमे आएल से धरैत करैत गेलहुँ। अवसर देखैत काज छोड़ैत पकड़ैत कहुना दस साल बाद लगलहुँ टेम्पू चलबए। ताबत गाम दिश सेहो सड़क सब सुधरि रहल छलैक, फोर-लेन बनब शुरू भऽ गेल रहै तऽ सोचलहुँ जे गामे घुरि चली, ओतहि टेम्पू चलाएब। कने कमो कमाइ हैत तऽ बेसिए लागत कारण गाममे कमसँ कम दिल्लीक सड़लाहा बसातसँ त्राण भेटत। कतबो किछु महग होउ, गाममे एखनहु बसात साफे छैक आ फ्री सेहो कारण एखन तक ओहिपर कोनो मालिक हक नहि जतौलक अछि। हमर नीक कि खराप लति बूझू एतबे जे भोरमे तीन टाकाक एकटा अखबार कीन लैत छी आ टेम्पूपर जखन बैसल रहैत छी तखन ओकरा पढ़ैत रहैत छी। एक दिन एहने अखबारमे पढ़ल जे मिथिलामे नवका चलन एलैक अछि अपना अपना गामक महान विभूतिक वर्णन करैत किताब लिखब। किछु एहने किताब बजारसँ कीन अनलहुँ। देखलहुँ तऽ हर्षो भेल आ

बेटीक अपमानपर एक नजैर आ जीवन संघर्ष

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बेटीक अपमानपर एक नजैर  मैथिली साहित्‍यक एकटा वि‍धा नाटक अछि। जे वि‍धा सभ दिन रौदियाहे सन रहल। गिनल-चुनल नाटककारक किछु नाटक जे ऑंगुरपर गनल जा सकैत अछि, दोगा-दोगी कोनो पुस्‍तकालयक शोभा मात्र बढ़ौलक। एकटा समय छल जइमे नाटककार जे नाटक लिखलैन तइमे वाक्-पटुता नै रहबाक कारणे वा शुद्ध-अशुद्ध उच्चारण नै भेने वा समुचित वाद-संवादक संग समदियाक अभाव सभ दिन देखल गेल। चूकि ओना, हम जेते-जे ढकि ली मुदा एकटा सत्‍यकेँ स्‍वीकार करए पड़त जे हम मैथिल छी। हमरालोकैनक मातृभाषा मैथिली भेल। मुदा माएकेँ माँ कहैत कनीको लाज वि‍चार नै होइए। जेना कि आँखिसँ लाजक पानि खसि पड़ल। तात्‍पर्य मैथिल होइतों दोसर भाषाक दासताकेँ शि‍कार भेल छी आ ओकर भोग भोगि रहल छी। बुझाइत अछि जेना मैथिली लेल ऐठामक माटिए उसाह भऽ गेल अछि। जैपर गदपुरनि मात्र उपैज सकैए। मुदा ओहेन उसाह माटिपर “बेटीक अपमान आ छीनरदेवी” लिखि नाटककार बेचन ठाकुर, चनौरागंज, मधुबनी, मैथिली नाट्य जगतमे एकर सफल मंचन कऽ महावीरी झंडा गाड़ि मैथिली, समस्‍त मैथिल आ मिथिलाक मान-सानकेँ मात्र बढ़ेबे टा नै केलैन अपि‍तु चारि-चाँद लगा देलैन। ऐ लेल ठाकुर जीकेँ समस्‍त मैथिली भाषी आ न

मैथिली कहानी

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बासाक प्रथम अनुभव प्राय: जीवनमे अनेकानेक अनुभव होइत गेल अछि, मुदा पटनामे अवस्थि‍त बासाक अनुभव चिरस्मरणीय रहत। ऐ अनुभवकेँ लिपिबद्ध करबाक नि‍आर बहुतो दिनसँ कऽ रहल छेलौं। आखिर आइ लिखि पाठक आ श्रोताक मध्‍य प्रस्‍तुत कऽ रहल छी। यद्यपि अतिश्‍योक्‍तीओ नै अपितु सत्यक आधार आ विनोदपूर्ण विषयक नि‍रूपण करबाक चेष्टा कएल अछि, ताकि सुधीजन ऐ हास्‍यपूर्ण कथाक त्रुटिपर धियान नै दऽ उत्‍साहित करथि, यएह हमर आशा आ आकंक्षा।  बासाक अनुभव प्राप्‍त हेबाक कारण छल रामकृष्‍ण महाविद्यालय मधुबनीसँ भूगोल विषयमे स्‍नातक प्रतिष्ठा सहित उत्तीर्णता प्राप्‍त कऽ अग्रि‍म पढ़ाइक हेतु पटना गेल रही। आेइ समैमे पटना आ राँची दुइए ठाम भूगोल विषयमे एम.ए.क पढ़ाइ सम्‍भव छल। बिहार अधि राज्यमे अन्‍यत्र नहि। आब तँ नवको विश्व विद्यालयमे भूगोलमे एम.ए.क पढ़ाइ होमए लगल छै, मुदा हमरा लोकनि‍केँ भूगोल पढ़लासँ जे पापर बेलए पड़ल से भगवतीसँ प्रार्थना कएल जे भावी पीढ़ि‍क छात्रकेँ एहेन पापर नै बेलए पड़न्‍हि‍।  गौरवक बात नै मानल जाए तँ हम ओइ श्रेणीक विद्यार्थी रही जे विज्ञान, कला आ वाणि‍ज्य संकायमे बढ़ि‍याँ कऽ सकैत छेलौं, भाग्यक विडम्बना क

नबघर (नाटक)

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दृश्‍य एक ( स्‍थान- शंकरक घर। शंकरक पत्नी सुनैना। दूटा बेटा। सुन्नर आ खखन तथा दूटा बेटी शान्‍ति आर चानी मंचपर उपस्‍थित अछि। सुनैना परिवारिक दयनीय स्‍थितिक सम्‍बन्‍धमे चिन्‍तामग्‍न अछि। शान्‍ति आर चानी तीती-तीती खेलैए। सुन्नर आर खखन गुल्‍ली–डन्‍टा खेलैए।) शान्‍ति-        ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। चानी-          ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। शान्‍ति-        ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। ई हमर राज भेलौ। हमरा राजमे पएर नै दीहें। चानी-          ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। ई हमर राज भेलौं। तूँ हूँ हमरा राजमे पएर नै दऽ सकै छें। शान्‍ति-        (चानीक राजमे जा कऽ) हम एबौ तोरा राजमे। तूँ की करभिन ? चानी-          तूँ हमरा राजमे सँ चलि जो। नै तँ कोनो बाप काज नै देतौ। शान्‍ति-        नै जेबौ गइ , नै जेबौ। चानी-          एक दू तीन कहै छियौ मारबौ। नै तँ हमरा राजमे सँ अपना राजमे चलि जो। शान्‍ति-        मारि कऽ देखही तँ। बापसँ भेँट