मैथिली कहानी
बासाक प्रथम अनुभव
प्राय: जीवनमे अनेकानेक अनुभव होइत गेल अछि, मुदा पटनामे अवस्थित बासाक अनुभव चिरस्मरणीय रहत। ऐ अनुभवकेँ लिपिबद्ध करबाक निआर बहुतो दिनसँ कऽ रहल छेलौं। आखिर आइ लिखि पाठक आ श्रोताक मध्य प्रस्तुत कऽ रहल छी। यद्यपि अतिश्योक्तीओ नै अपितु सत्यक आधार आ विनोदपूर्ण विषयक निरूपण करबाक चेष्टा कएल अछि, ताकि सुधीजन ऐ हास्यपूर्ण कथाक त्रुटिपर धियान नै दऽ उत्साहित करथि, यएह हमर आशा आ आकंक्षा।
बासाक अनुभव प्राप्त हेबाक कारण छल रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनीसँ भूगोल विषयमे स्नातक प्रतिष्ठा सहित उत्तीर्णता प्राप्त कऽ अग्रिम पढ़ाइक हेतु पटना गेल रही। आेइ समैमे पटना आ राँची दुइए ठाम भूगोल विषयमे एम.ए.क पढ़ाइ सम्भव छल। बिहार अधि राज्यमे अन्यत्र नहि। आब तँ नवको विश्व विद्यालयमे भूगोलमे एम.ए.क पढ़ाइ होमए लगल छै, मुदा हमरा लोकनिकेँ भूगोल पढ़लासँ जे पापर बेलए पड़ल से भगवतीसँ प्रार्थना कएल जे भावी पीढ़िक छात्रकेँ एहेन पापर नै बेलए पड़न्हि।
गौरवक बात नै मानल जाए तँ हम ओइ श्रेणीक विद्यार्थी रही जे विज्ञान, कला आ वाणिज्य संकायमे बढ़ियाँ कऽ सकैत छेलौं, भाग्यक विडम्बना कहू वा पिताजी अनपढ़ रहथि संगहि कियो सलाह कर्त्तो तेहेन नै रहथि जे भविष्यक मूल्यांकन कऽ विषयक अंगिकार करबाक हेतु उत्प्रेरित करितथि। कला संकायमे जाइ विषयकेँ अपनेलौं तइमे उत्तम अंकक प्राप्ति होइत गेल। यएह कारण छल जे भूगोल प्रतिष्ठामे बिहार विश्व विद्यालयमे नवम् स्थान प्राप्त भेल तँए पटना विश्व विद्यालयमे नामांकनक सुयोग प्राप्त भेल।
पहिल बेर पटना गेल रही। राजधानीक चप्पा-चप्पा देखबाक लौल लगि गेल छल। घुमैक चसक बढ़ले जाए। सभ वस्तु हमरा आकर्षित करैत छल। आ सभठाम नवीनता प्रतीत होइत रहए। नव धाहीक कारणेँ गोलघरपर तँ अनेको बेर चढ़ल-उतरल होएब। चिड़ैया पूलपर जाएब सेहो बढ़ियाँ लागए। कौलेज परिसरसँ बाहर भेलापर पद-यात्रा अनिवार्य भऽ गेल रहए। चतुर्दिक्षा भ्रमण करैत रहलौं। विश्व विद्यालयक आवासमे जगह नै भेल छल तँए अव्यवस्थित जीवन रहए। परिचितक डेरापर भोजनक प्रावधान नै रहलासँ, होटलक शरण लेमए पड़ल छल। प्लेटक प्रकोपसँ भरि पेट भोजन नै करैत रही किएक तँ पैसाक पिशाच माथमे पैसि भूखक ज्वालाकेँ शांत कऽ दैत रहए।
राजधानीमे किछुए दिन रहलापर भाँज बैसल जे बासामे अढ़ाइ टाकामे भरि पेट भोजन करा देल जाइ छै। ई बात जानि प्रसन्नता भेल जे आब पेट पूजा नीक जकाँ करब। अधिकांश दिनसँ प्लेटक दरपर खेलासँ अघाएल रहबे करी तँए आइ जी भरि खाएब आ तेतेक खाएब जे तीन साँझक मोजबड़ा एक-साँझक चार्यमे पूरा कऽ लेब।
ठीक कौलेजसँ एलाक बाद दूपरहरमे पटना चारिक दू मंजिलापर अवस्थित बासा पहुँचलौं। आइ जीवनमे पहिल बेर बासामे खाएब, केना खाएब? की सभ पदार्थ खाएब? आदि प्रश्न मोनेमे उठैत रहल आ से ताबत काल धरि यावत काल सीढ़ीक पौथानपर चढ़ैत गेलौं। आखिर ऊपर पहुँच गेलौं। भावनाक हिलकोर हृदैकेँ हिलबैत रहल जे कहीं कहि ने दिअए जे ई केवल माड़वारी समाजक हेतु बासा थिक। साहस बान्हि भोजन कक्ष तक जाए देखए लगलौं तँ शंकाक समाधान भऽ गेल जे बासक नामकरण जातीय आधारपर नै, बल्की बासक चलेनिहारक आ भोजन सामग्रीक आधारपर कएल गेल अछि।
कालक्रमे सभ तरहक लोक ओइठाम अबैत-जाइत देखल गेला। अधिकांश लोक हमरे सन आबथि जे अढ़ाइ टाकामे भरि पेट भोजनक भावना पल्लवित केने रहथि। बातो तँ सत्य छल। बासाक मालिक अढ़ाइ टाकामे पेट भरक ठीक्का लेबाक हेतु गद्दीपर आसन लगौने रहथि। गल्लाक बाकस बेश चिक्कन आ भड़कदार रहनि तइ ऊपर भगवान ओ भगवतीक तस्वीर टाँगल छल, जेतए सुगंधित अगरवत्ती अबाध गतिसँ जरैत छल। हमरा तँ भेल जे ई देवी-देवता बासक मालिकक निवेदनपर भोक्ताक भूखकेँ मारि कहीं अरूचिक शक्ति ने प्रदान करथि! तँए हमहूँ अपन ईष्ट देवीकेँ मोने-मोने गोहराबए लगलौं ताकि हमर क्षुधा तीव्रतर होअए।
हाथ मुँह धोइ पीढ़ीपर बैसलौं। ओना तँ टेबुल-कुर्सीक सेहो इन्तजाम रहैक। बहुतो भोक्ता अकास भोजने करैत देखल गेला, मुदा हम अकास-भोजनक अपेक्षा भूमि आशनेकेँ पसिन केलौं। संगे भोजनक थारीक प्रतीक्षा करए लगलौं तखन गो. तुलसीक पाँतिक स्मरण भऽ आएल-
“अगहन की बदली ओ भादव की धूप।
तुलसी सहा न जात है पत्ते पर की भूख।।”
ज्यों–ज्यों देरी भेल जाइ त्यों-त्यों व्यग्रता बढ़ल जाइत छल, आखिर देखैत-देखैत स्टीलक थारी, बाटी आ गिलास आगाँमे रखि कऽ नोकर चलि गेल। खाली थारीसँ विविध तरहक शंका हुअ लगल परन्तु झका-झक करैत थारी, बाटी मोनकेँ हुलसगर कऽ देलक। आब प्रथम दर्शन मक्षिका पात:क बलाय टरल आ उत्तम भोजनक आशा करए लगलौं।
किछुए कालक बाद परसनिहार झब्बाबला सिकंजामे लगल बाटीसँ तीन तरहक तरकारी, चटनी थारीमे आ तरकारी बाटीमे रखि चलि गेल। दोसर लोक गरम-गरम फलका जेकरा हमरा लोकनि सुहारी कहैत छी से मोड़ि कऽ थारीमे रखि देलक। एक एहेन तरकारी सेहो छल जेकर नाओं कढ़ी छेलै। पिअर रंग किछु अगताह सुआदबला। जेकरा माड़वारी लोकनि ठोर सट्टा कऽ गट-गट कऽ पीवि लेथि। सभ सभ तरहक विन्यास देलाक बाद मालिक नोकरसँ कहलखिन-
“छौंका लगा देना भई।”
चट भनसिया लाल करौंछमे डलडा दऽ ऊपरसँ मरचाइक बुकनी पुष्टगर कऽ बाटीक दालिमे छन-छन-छना कऽ देल आब तँ छह-छह दालि आ बाटीक सचार सासुरक स्मरण करबए लगल। मुदा किछु उदासीन हेबाक कारण भत-रोटिया प्रथा छल जे सम्प्रति बासाक विशेषता कहल जा सकैत छल। आखिर फलका आ तरकारीकेँ मुँह-दाँतक सहयोग पाबि युद्ध करए लगल। ऐ तरहेँ एक दर्जन फल्का आ एक-आध मिसा रोटी तक तँ गिनती ठीक रहल तत्पश्चात ठेकान नै रहल जे केतेक सामग्रीकेँ उदरस्थि कएल। पानिक जगह दालिसँ पूरा कएल, मुदा कढ़ी करीब छह कटोरी पीवि गेल होएब। हमर ऐ तरहक खेबाक रफ्तार देखि आ परसनिहारक तबाही देखि अगल-बगलक भोक्ता लोकनिक दृष्टि ओहिना हमरा ऊपर केन्द्रित होमए लगलनि जेना चोरक ऊपर पुलिसक रहैत। खैर! हम निर्वाध रूपसँ कण्ठक निच्चाँ उतारैत गेलौं। हमर देखा-देखी आनो भोक्ता बढ़ियाँ जकाँ मीटर उठबए लगला। बासाक मालिक हमरा दिस ओहिना देखैत छला जेना कसाइ दिस गाए देखैत अछि। हुनक कुपित मुद्राक थाह पाबि गेलौं मुदा बासाक मर्यादाक पालनार्थ ऊहो सामग्रीक जुटानमे त्रुटि नै होमए देलनि। नोकर सभ विवशताकेँ व्यक्त नै कऽ संतुष्ट करबाक समग्र चेष्टा करैत रहल।
अन्तमे पूछल गेल- “क्या महाराज चाबल चलेगा?”
मोन तँ रहबे करए। हामी भरैत कहलियनि-
“अवश्य चलाइए।”
भातक परातसँ चम्मच लऽ देमए लगल अन्तमे खिसिया कऽ परातक भात उनटा देलक। हमहूँ नहु-नहु सभ भात-तरकारी-दालि आ चटनीकेँ चट कऽ देल। अन्तमे सेदलाहा पापर खेलौं पानिक गुंजाइश होमएबला नै तथापि आध गिलास जल पीवि उठि गेलौं। अविलम्ब भोजनक चार्य चुकती कऽ निच्चाँ मुहेँ चलि देलौं। किछु गोटे हमरा बिलमाबए चाहलनि मुदा अति भोजन केलासँ अफसियाँत रही, साँसो लेब कठीन होइत छल। यएह कारण रहल जे सीढ़ीपर सँ नहु-नहु अतरए लगलौं। चारि-पाँच सीढ़ी निच्चाँ आएल होएब आकि एक हल्लुक ढेकार भेल आ भीतरक खुण्डसँ अर्द्ध चिबाएल अन्न हठात् बहार भऽ गेल! संयोग नीक छल जे सीढ़ीक निच्चाँ नाली छेलै जाइमे बोकारकेँ स्थान भेट गेलै।
कनी मोन हल्लुक भेल। मुँह पोछि निच्चाँ अगल-बगलक सर्वे केलौं जे कियो देखि तँ लेलक। मुख्य सड़कपर एलौं आकि पुनश्च हिक्का भेल जइसँ मुख्य सड़कक नालीमे भीतरसँ औंढ़ मारि कऽ दू किलो बहार भऽ गेल। कहुना अपनाकेँ सम्हारि मुँह पोछि एक खिल्ली पानि खा डेरा तक एलौं। राति भरि कछ-मछ कऽ बिताएल, मुदा पेटमे जे वायुक निर्माण भेल से पूर्ण आवाज कऽ लगातार बहराइत गेल। अधोवायुक निकासी भेलासँ कोठरीक लोक हास्य-परिहास्य करैत रहला। एतए तक जे ‘पड़रूक डिरियाएब बन्द करू’ सन छल। अति भोरे शौचालय गेलौं। शौचालयमे बासाक मसालादार तरकारी जखन बहार होमए लगल तखन असल भक-भक्की ओ लहरबसँ मर्मान्तक पीड़ा होमए लगल। फेर बासामे खाएब गोनू झाक बिलाड़ि सदृश हमरा लेल प्रतीत भेल। ओना तँ बासाबला खुएबो नहियेँ करैत। दिन भरि भोजनसँ बंचित रहए पड़ल। नेबो पानिक बलपर समए बितबैत गेलौं। उदेसक पूर्ति तँ भेल मुदा शरीरक जे दुर्दशा भेल तेकर वर्णन करब संदिग्ध अछि।
दू सालक बाद पुनश्य ओइ बासापर जेबाक अवसरि भेटल। बासाक मालिक हमरा देखिते व्यंगपूर्ण नमस्कार केलक जेकर अर्थ छल ओ चिन्हि गेल। हमरा कहैसँ पहिने कहि देलक-
“महाराज अब प्लेट का निअम है, सब्जी दाल का ऊपर से दाम लगेगा। पचीस पैसे रोटी है।”
ई बात सुनिते पएर तरक माटि ससरि गेल आशापर तुषाशपात भऽ गेल। आखिर घूमि कऽ आएब प्रतिष्ठाक विरूद्ध बूझल तँए मर्यादाक पालनार्थ एक प्लेट भात खा संतोष कएल। आइ तँ रिक्शोक भाड़ा व्यर्थ बुझना गेल। पएरे नहु-नहु चलि देलौं। कहुखन बासक मालिकक व्यंग्यसँ आत्म ग्लानिक अनुभव हुअए। खैर! हारल जुआरी जकाँ मखन टोल तक एलौं। आइ ओ प्रसन्नता नै छल किएक तँ अपन पराजय स्वयं जेना सम्हारए पड़ल हो। एतबे नै माड़वारी बासाक प्रथम अनुभव समस्तीपुर, फारबीस गंज आदि ठाम पूर्ण धोखामे रखलक अछि।
अन्तमे अपन ऐ अनुभवक उद्घोष कऽ विदा लैत छी।
Adbhut ....... Utkrisht sansamamr...
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