हमर गाम (उपन्याससँ)

1. हमरो गाम मिथिले मे छै
हम कोनो पढ़ल-लिखल लोक नहि छी, अपितु यदि कहियै जे हमरा गाममे एकटा केँ छोड़ि कियो पढ़ल लिखल नहि अछि तऽ बेसी उचित होएत। घीच-घाँचि कए कहुना दशमा पास केलहुँ आ चल गेलहुँ दिल्ली रोजगारक खोजमे। शुरुएमे बुझा गेल जे एतए अपनाकेँ दशमा पास कहलासँ लाभ नहि नोकसाने अछि तें एहि बातकेँ नुका रखलहुँ आ जे काज हाथमे आएल से धरैत करैत गेलहुँ। अवसर देखैत काज छोड़ैत पकड़ैत कहुना दस साल बाद लगलहुँ टेम्पू चलबए। ताबत गाम दिश सेहो सड़क सब सुधरि रहल छलैक, फोर-लेन बनब शुरू भऽ गेल रहै तऽ सोचलहुँ जे गामे घुरि चली, ओतहि टेम्पू चलाएब। कने कमो कमाइ हैत तऽ बेसिए लागत कारण गाममे कमसँ कम दिल्लीक सड़लाहा बसातसँ त्राण भेटत। कतबो किछु महग होउ, गाममे एखनहु बसात साफे छैक आ फ्री सेहो कारण एखन तक ओहिपर कोनो मालिक हक नहि जतौलक अछि।
हमर नीक कि खराप लति बूझू एतबे जे भोरमे तीन टाकाक एकटा अखबार कीन लैत छी आ टेम्पूपर जखन बैसल रहैत छी तखन ओकरा पढ़ैत रहैत छी। एक दिन एहने अखबारमे पढ़ल जे मिथिलामे नवका चलन एलैक अछि अपना अपना गामक महान विभूतिक वर्णन करैत किताब लिखब। किछु एहने किताब बजारसँ कीन अनलहुँ। देखलहुँ तऽ हर्षो भेल आ ताहिसँ बेसी इर्ष्यो आ ग्लानि भेल। हर्ष एहि लऽ कए जे पहिल बेर बुझलहुँ मिथिलामे एहन महान विभूति सब भेलाह आ इर्ष्या आ ग्लानि एहि लेल जे हमरा अपन गाममे एहन कोनो विभूति किएक नहि भेलाह।
हमरा चिन्ता भेल- की सत्ते हमरा गाम मे कोनो विभूति नहि भेला? किछु बूढ़ पुरान सँ गप कएल। एक गोटे पूछि देलनि-
“खाली पढ़ले लीखल लोक विभूति होइ छै की?”
हम सोचए लगलहुँ। ठीके, से रहितै तऽ  सिनेमा स्टार आ कि खिलाड़ी सब कें कियो चिन्हबे नहि करितै। हमरा बुझा गेल जे आन गामक विभूति सन तऽ नहि, तैयो एतेक जरूर जे हमरा गामक विभूति सब एक हिसाबें कतबो विचित्र रहथु मुदा ओहो लोकनि अपना समय मे गामक नाम कोनो तरहें उजागर करबे केलनि ।
सेहन्ता भेल जे हमहूँ अपना गामक बारेमे किछु लीखी। मुदा की लीखब? लिखबाक लुरियो तऽ नहि भेल। तैयो हम ठानि लेल जे लिखबे करब। विभूति लोकनि जे छलाह, जेहन छलाह, भेलाह तऽ मिथिलेक सुपुत्र/सुपुत्री ने। आ हमरो गाम जेहने अछि, अछि तऽ ओही माटिपर कमला बलान कोशीसँ घेराएल, रौदी दाही भोगैत अशिक्षा आ गरीबीमे उबडुब करैत। तें हम निश्चय कएल जे हिनका लोकनिक कीर्तिक गाथा लीखल जाए। एखुनका युगे विज्ञापन आ प्रचारक छिऐ, से गामक नुकाएल छिड़िआएल रत्न सबकेँ बहार करबाक चाही। हम गौआँ भऽ कए यदि नहि लिखबनि तऽ अनगौआँकेँ कोन मतलब छैक?
ओना तऽ लिस्ट पैघ बनि गेल मुदा हम बहुत पुरान लोककेँ पहिने छाँटि कए मात्र दसटाक वर्णन एतए प्रस्तुत करए जा रहल छी। एहिमे पहिल नौटा छथि हमरा गामक नवरत्न आ दसम भेलाह विशिष्ट अतिथि रत्न। आशा करैत छी गौआँ लोकनि हमर एहि प्रयासक प्रशंसा करबे करताह। यदि किछु अनगौआँ मैथिल समाजकेँ हमर गामक एको गोटेक कीर्ति नीक लगलनि तऽ हमर प्रयास खूबे सफल बूझल जाएत। नहि तऽ कमसँ कम किछु लिखित तऽ रहिए जाएत जे एखनुक बूढ़ पुरानक दिवंगत भऽ गेलाक बाद नवका पुस्तकेँ पूर्वजक यशक किछु ज्ञान देतैक।
हमर लिखल वस्तु सबकेँ मटिकोरबा गामक मिडिल स्कूलक हेडमास्टर साहेब बहुत कटलनि छँटलनि आ शुद्ध केलनि ताहि लेल हुनका बहुत धन्यवाद। बिना हुनकर सहयोग के ई अपने सबकेँ पढ़बा योग्य नहिए भेल रहैत। हम अपना गामक विभूतिक फोटो नहि छापि रहल छी। एकर कारण अपने सब पूरा पुस्तक पढ़लाक बाद बुझिए जेबैक।

विनीत

रामलाल परदेशी
(गामक एक उत्साही युवक)
गाम : खकपतिया
डाकघर : मटिकोरबा
जिला : मधुबनी। 

2. बीए
मूल नाम : राम किसुन सिंह
पिताक नाम : अजब लाल महतो
जन्म तिथि : 1 जनवरी 1940। ई हुनकर सर्टिफिकेटमे लिखल छनि, मुदा हुनक पिताक अनुसार ओ तीन चारि बरख जेठ जरूरे छथि। जखन ओ मटिकोरबा गामक मिडिल स्कूलमे नाम लिखौलनि तऽ हेडमास्टरकेँ जे बूझि पड़लै से लीख देलकै। हुनकर जन्म तऽ भरदुतिया दिन भेल छलनि।
शिक्षा : यथा नाम, माने ओ बी.ए. पास छथि। ओ गौरवसँ एखनहुँ लोककेँ सुनबै छथिन जे मैट्रिक, आइ.ए. आ बी.ए.मे लगातार ओ तृतीय श्रेणीमे पास केलनि। संगहि मैट्रिकमे दू बेर, आइ.ए.मे तीन बेर आ बी.ए.मे चारि बेर फेल केलनि।
उपलब्धि : हुनक सबसँ पैघ उपलब्धि छनि हमरा गामक पहिल आ एखन तक के अन्तिम ग्रेजुएट भेनाइ। पछिला करीब पचास बरखसँ एहि रेकॉर्डकेँ पकड़ने छथि। ओहू पुरान जमानामे ग्रेजुएट भैयो कए हुनका जखन दस साल तक कतहु नोकरी नहि भेलनि तखन ओ हारि कए पुस्तैनी काज, खेती,मे लागि गेलाह।
एहन नहि जे सत्ते कतहु नोकरी नहि भेलनि। पुर्णियामे एक ठाम हाइ स्कूलमे अध्यापक भेलाह मुदा पहिले दिनक हिनक पढ़ाइ देखि कए ओतुका विद्यार्थी सबकेँ हिनक योग्यताक बेस अन्दाज लागि गेलैक आ ओ सब हड़तालपर बैसि गेल। एमहर साँझमे हिनका जे मच्छर कटलक से बोखार भऽ गेलनि। दोसर दिन स्कूल जाइ के काजे नहि पड़लनि। कहुना एक हप्तापर गाम घुरि एलाह। विद्यार्थी सबकेँ विचारल बात विचारले रहि गेलैक। फेर दोसर बेर एहन योग्य शिक्षकसँ भेँट नहिए भेलनि हुनका सबकेँ।
स्वस्थ भेलाक बाद ओ नियारलनि जे मास्टरी हुनका बुते पार नहि लगतनि। चल गेलाह कलकत्ता भाग अजमबै लेल। कलकत्तामे एखनहु बीए पैघ योग्यता बूझल जाइत छलैक। ओना जाहि समय बीए बीए केलनि ताहि समय बिहारक परीक्षा पद्धतिक चर्चा आन आन ठाम शुरू भऽ गेल छलैक आ किछु लोक बिहारी बीएकेँ ओकर उचित हक देबा लेल तैयार नहि छल। कलकत्तामे मटिकोरबा गामक एक गोटे कोनो सेठक ड्राइवर छल। ओ हिनक पैरवी केलक सेठ लग। किछु बेसिए बढ़ा चढ़ा कए कहि देलकै सेठकेँ। फल ई भेल जे सेठ हिनका बिना कोनो पूछताछ के अपना गद्दीपर मनेजर बना देलकनि। ई बहुत खुसी भेलाह।
मुदा भाग्यकेँ किछु दोसरे रस्ता देखेबाक छलैक। तेसर दिन सेठक एकटा मित्र आबि गेल आ ओकरा अनुपस्थितिमे ओहिना हिनका संग गपसप करए लागल। ओकरा मोनमे कोनो दुर्भाव नहि छलैक मुदा समस्या छल घेघ कतहु नुकाएल रहए ! सेठक मित्रकेँ बीएक असली घिबही बीए हेबापर कने सन्देह भऽ गेलै आ एकर चर्चा ओ साँझमे अपना मित्र लग केलक। अगिला दिन जखन बीए गद्दीपर बैसलाह तखन सेठ आबि कए हुनका पछिला तीन दिनक हिसाब किताब पूछि बैसल। बीए घबरा गेलाह। ओना ओ कोनो गड़बड़ी नहि केने छलखिन मुदा हिनका ई बात सिखले नहि छलनि जे यदि किओ हिसाब किताब पूछत तऽ उत्तर कोना देल जाए। एखन तक ओ खाली किताबी प्रश्नक उत्तर रटैत आएल छलाह। व्यावहारिक काजक उत्तर देब सिखबे नहि केलनि। से एतए ओ गड़बड़ा गेलाह। फल जे ओही दिन दुपहरियामे गामक गाड़ी धेलनि।
एहिना ओ पटना, दिल्ली मुम्बइ आदि कतेको छोट पैघ शहरमे सेहो भाग्य अजमौलनि मुदा भाग्य तऽ हुनका गाम घीचऽ चाहैत छलनि से पुर्णिया रहओ कि पटना, लखनउ कि लुधियाना, सब ठाम कोनो ने कोनो एहन परिस्थिति भइए गेलनि जे दू चारि दिनसँ बेसी नहि टिक सकलाह।
बीए सौंसेसँ बौआ कए गाममे खेती करए लगलाह। खेतीमे खूब नाम कमौलनि। दस किलो के मूर आ सात किलो के बैगन हुनके खेतमे उपजल छलनि। हमरा गाममे गुलाब आ गेंदा फूलक खेती हुनके शुरू कएल छिएनि। एखन हमर गाम एकर नीक व्यवसाय कऽ रहल अछि। आब तऽ देखादेखी अगल बगलक गाम सबमे सेहो फूलक नीक खेती भऽ रहलै अछि। एहि प्रयास लेल हुनका गामक पंचायतसँ विशेष पुरस्कार भेटलनि।
बीएक सबसँ पैघ उपलब्धि भेलनि गामक लोककेँ स्कूली आ कौलेजिया पढ़ाइक प्रति अविश्वास करौनाइ। तकर बाद कियो अपना धीया-पूताकेँ स्कूल कौलेज नहि पठौलक। मात्र साक्षर बनै लेल मटिकोरबाक मिडिल स्कूल तक। हमहू जे दशमा पास केलहुँ से एही कारण सम्भव भेल जे बाबूजी गुजरि गेला आ माएकेँ हम कहियो ई बूझऽ नहि देलियै जे हम कतए जाइ छी आ की करै छी।
दस साल तक विभिन्न शहर सबमे घुमैत ठोकर खाइत बीएकेँ किछु नीक बुद्धि तऽ भैए गेलनि। एकर उपयोग ओ केलनि गाममे झगड़लगौनाक रूपमे। हुनकर विशेषता अछि जे हुनका संग जे लोक पाँचो मिनट बैसि गेल आ हुनकर देल एक खिल्ली पान खा लेलक ओ अपना दियादी आ कि पारिवारिक झगड़ामे जरूर फँसत। आ ओहि झगड़ाक पंचैतीमे बीए जरूरे रहता। बेसी झगड़ा गामक पंचैतीसँ उपर नहिए जाइ छैक। किछुए एहन घटना भेलैक जे बीए बादमे सम्हारि नहि सकला आ मोकदमा भऽ गेलै। कतबो माँजल ओझा गुणी रहथु, किछु भूत हुनको हाथसँ छुटिए जाइ छनि ने। तहिना बूझू।
हमरा गामक सीमामे जे चारू कातक चारि पाँच गामक लोकक जमीन जाल छैक ओहो सब एहि झगड़लगौना प्रेतक चक्करमे फँसिये जाइत अछि। सबकेँ बूझल छैक जे बीए संग बैसनाइ आ हुनकर पान खेनाइ माने भेल कपारपर दुरमतिया सवार। मुदा कहाँ कियो बचि पबैत अछि? बीएक मधुर सम्भाषणक आगू सब फेल।
बीए एहि लूड़िसँ कोनो कमाइ नहि करैत छथि, ई तऽ मात्र हुनकर मनोरंजन छिएनि। एहन उदार चरित्रक लोक परोपट्टामे नहि भेटत। एहि किताब लिखबाक क्रम मे एक दिन हम पूछि देलिएनि-
“एखन तक कतेक लोकक बीच झगड़ा लगा देने हेबै?”
ओ तऽ सबटा लीख कए रखने छला। एकटा पैघ लिस्ट हमरा आगू पसारि देलनि। हम चकित भऽ गेलहुँ। बीए तऽ नारदोक कान कटलनि मुदा किनको बूझल नहि। जरूर एकरा एक बेर गिनीज बुक अथवा लिमका बुक मे छपबैक कोशिश करबाक चाही। से भऽ गेला सँ अहीं कहू हमर गाम अपना जिला आ कि प्रदेश मे नाम करत की नहि?



3. खुरचन ठाकुर
मूल नाम : किसुनलाल ठाकुर, प्रसिद्धि खुरचन ठाकुर
पिताक नाम : तिरपित ठाकुर
जन्म तिथि : अज्ञात
मृत्यु : सन उनैस सौ सतासी सालक बाढ़िमे
उपलब्धि : खुरचन ठाकुरक प्रसिद्धि खुरचने लऽ कए भेल। हुनका लेल अस्तूरा बेकार छल। अनेरे लोक टाका खर्चा करत। ओ खुरचनकेँ पिजा लैत छलाह आ केहनो बढ़ल केस-दाढ़ी रहओ, काटि दैत छलाह। ओहीसँ नह सेहो काटि दैत छलाह। जखन केश छँटबैक प्रचलन बढ़लै तखन खुरचन ठाकुर अपन ओही औजारसँ केश छाँटब सेहो शुरू केलनि। केशमे ककबा सटा दैत छलखिन आ ओहि उपरसँ खुरचन चला दैत छलखिन। देखनिहारकेँ चकचोन्ही लागि जाइ छलनि जे बिना कैंची के केश कोना एतेक सुन्दर छँटा जाइत छलैक।
आ केहनो फोरा-फुन्सी रहओ खुरचन ठाकुरक डाकदरीक आगू सब जेना सरेंडर कऽ दैत छल। फोराक डाकदर रूपमे खुरचन ठाकुर परोपट्टे नहि दश कोसमे नामी छलाह। कहियो कए तऽ हुनका दूरापर लोकक लाइन लागि जाइत छल। खुरचन ठाकुरक खुरचनक स्पर्श होइतहि लोककेँ आरामक बोध होमए लगै छलै।
बीए जखन एक बेर कोनो शहरसँ घुरलाह तऽ खुरचन ठाकुर हुनका देखलक ओतुका सैलूनमे केश छँटेने। बीएकेँ एखनहुँ मोन छनि खुरचन ठाकुरक हुथान। आ ओहि ‘अलूरि’ नापितक लेल प्रयोग कएल गेल अपशब्द सब जे बीए हमरा सुना तऽ देलनि मुदा लिखबासँ मना कऽ देलनि।
पूरा गाममे खुरचन ठाकुर एकसर, सौंसे गाम हुनकर जजमान। मुदा मात्र एकटा औजार, खुरचन, आ गाम नेहाल। एहन छलाह रत्न हमर खुरचन ठाकुर।



4. टहलू दास
मूल नाम : सियाराम मण्डल
पिताक नाम : जगदेव मण्डल
जन्म तिथि : अज्ञात
मृत्यु : अकालक वर्ष (सम्भवतः उनैस सौ छियासठि)
उपलब्धि : टहलू टहलैत तऽ कमे छलाह मुदा हुनक चालिमे बड़का बड़का हारि जाइत छल। बूढ़ लोक सब खिस्सा कहैत छथि जे एक बेर ककरो सार साइकिलपर चढ़ि कए हमरा गाम एलाह। हुनकर गाम करीब सात-आठ कोस (एखुनका लोक लेल बूझू चौबीस-पचीस किलोमीटर) दूर। साइकिल ओहि समय ककरो ककरो रहैत छलै, हमरा गाममे ककरो नहि छलै से बूझू सौंसे गाम जमा भऽ गेल साइकिल देखबा लेल।
टहलू हुनका पूछि देलखिन-
“कतेक समय लागल साइकिलसँ हमरा गाम अबैमे?”
ओ गर्वसँ बजलाह-
“इएह गोटेक घंटा बूझि लिअऽ।”
ओहो अन्दाजे बजलाह कारण हाथमे घड़ी तऽ छलनि नहि आ ने टहलूएकेँ बूझल छलनि जे एक घंटा कतेक समय होइत छैक। टहलू हुनका दूसैत बजलाह-
“एतेक कालमे तऽ हम पएरे चल जाएब आ घुरि कए चलो आएब, आ यदि इन्तजाम कएल रहत तऽ अहाँक घरपर भोजनो कऽ लेब।”
सारकेँ भेलनि जे अनगौआँ बूझि कने डींग हँकैत छथि। ओहुना लोक गाममे आएल ककरो सारक संग हँसी मजाक कऽ लैते छल। एहनो कतहु भेलैए जे लोक साइकिलसँ दूनोसँ बेसी चलि लेत? मुदा एकर फरिछौहटि कोना होअए? ओ जमाना तऽ मोबाइल टेलीफोनक छलै नहि जे तुरत्ते ई ककरो खबरि कऽ दितथिन गाममे जँचै लेल जे सत्तेमे टहलू ओहि गाम पहुँचलाह कि नहि।
योजना बनल जे बड़की पोखरिक चारू कात दूनू गोटे घुमता। सार साइकिलसँ आ टहलू पएरे। पोखरिक चारू कात रस्ता साइकिलो चलबै लेल नीके छलैक। जेना कि ओहि समय सब ठाम रहैत छलै, कच्चिए मुदा समतल आ पीटल-पाटल। जतेक तेज अपन चलि सकथि से चलथु। यदि टहलू सत्तेमे बड़ तेज चलैत छथि तऽ चक्कर लगबैमे कमे समय लगतनि। ओ चक्कर लगबैत रहताह जाबत सार महोदय साइकिलसँ एक चक्कर पूरा नहि कऽ लेथि। यदि सारे महोदय पहिने एक चक्कर लगा लेताह तऽ ओहो ताबत तक चक्कर लगबैत रहता जाबत टहलू एक चक्कर पूरा नहि कऽ लेथि। अन्तमे जे जतेक बेसी चक्कर लगौने रहत से ततेक सौ टाका जीतत। माने भेल जे एक चक्कर के समयमे यदि कियो दू चक्कर लगा लेत तऽ एक चक्कर बेसी भेलैक ताहि लेल एक सौ रुपैया जीतत। यदि आधा चक्कर बेसी लगाओत तऽ पचास रुपैया जीतत। एहिसँ कम भेलापर दूनूकेँ बरोबरिए बूझल जाएत।
गौआँ जमा भऽ गेल देखबा लेल। सारक बहिनोकेँ कहल गेलनि हुनके पक्षमे रहै लेल जे कोनो तरहक बेइमानीक गुंजाइस नहि रहै। खेला शुरू भेल। जतेक ताकत छलनि ततेक पैडिलमे लगबैत सार महोदय साइकिल दौड़ेलनि। मुदा टहलू तऽ निपत्ता। जाबत ओ एक मोहार टपथि ताबत टहलू एक चक्कर पूरा कऽ लेलनि। साइकिल आ पएरे दौड़ चलैत रहल। अन्तमे सार महोदय पूरे तीनसौ टाका हारि गेलाह।
ओ जे हमरा गामसँ पड़ेला से फेर घुरि कए कहियो नहिए एला। टहलू दासक एहि गुणक जानकारी गामोमे बहुतो लोककेँ नहि छलैक। आब तऽ हिनकर गुणक बखान सबतरि होमए लागल। डाक विभाग हिनका दौड़हाक नोकरी देबा लेल तैयार भऽ गेल आ एहि आशय के चिट्ठी सेहो हिनका पठा देलकनि। मुदा ई अस्वीकार कऽ देलखिन।
“उत्तम खेती, मध्यम बान, अधम चाकरी, भीख निदान”
बला फकरा जे रटने रहथि। ओ कोनो दशामे चाकरी नहि करताह। नहिए केलनि।
एहन महान छलाह टहलू दास।



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