नबघर (नाटक)

दृश्‍य एक



(स्‍थान- शंकरक घर। शंकरक पत्नी सुनैना। दूटा बेटा। सुन्नर आ खखन तथा दूटा बेटी शान्‍ति आर चानी मंचपर उपस्‍थित अछि। सुनैना परिवारिक दयनीय स्‍थितिक सम्‍बन्‍धमे चिन्‍तामग्‍न अछि। शान्‍ति आर चानी तीती-तीती खेलैए। सुन्नर आर खखन गुल्‍ली–डन्‍टा खेलैए।)

शान्‍ति-        ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था।
चानी-          ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था।
शान्‍ति-        ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। ई हमर राज भेलौ। हमरा राजमे पएर नै दीहें।
चानी-          ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती ती था। ई हमर राज भेलौं। तूँ हूँ हमरा राजमे पएर नै दऽ सकै छें।
शान्‍ति-        (चानीक राजमे जा कऽ) हम एबौ तोरा राजमे। तूँ की करभिन?
चानी-          तूँ हमरा राजमे सँ चलि जो। नै तँ कोनो बाप काज नै देतौ।
शान्‍ति-        नै जेबौ गइ, नै जेबौ।
चानी-          एक दू तीन कहै छियौ मारबौ। नै तँ हमरा राजमे सँ अपना राजमे चलि जो।
शान्‍ति-        मारि कऽ देखही तँ। बापसँ भेँट करा दइ छियौ।
                  (दुनूमे मारि फँसि गेल। दुनू उट्ठम-पटका करैए। सुनैना दौग कऽ आबि दुनूकेँ छोड़ा दू दिस केलक।)
सुनैना-        सरधुआकेँ खाली जनमाबै ले होइ छइ। प्रतिपाल करैमे करौआ लागल छइ। दारू-ताड़ी-गाजा पीऐ ले होइ छइ। मुड़ी मचरूआकेँ एकौटा नीशा नै छूटल छइ। भाँग खाइए। खैनी खाइए, बीड़ी-सिकरेट पीते अछि। जर्दाबला पान खाइते अछि। चाह पीबते अछि। हे मैया सरसत्ती, एहेन घरबला सात घर दुश्‍मनोकेँ नै देबइ।
                  (सुनैना फेर माथा-हाथ दऽ बैस रहली।)
सुन्नर-          (गुल्‍ली फेंक कऽ) ओत्तैसँ पढ़ैत आ।
खखन-        (एक टाँगपर) चैत-कबड्डी, चैत कबड्डी, चैत कबड्डी चैत कबड्डीऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ।
(खखनकेँ रस्‍तेमे साँस टुटि गेल।)
सुन्नर-          सार नै भेलौं, फेर पढ़।
खखन-        (फेर जगहपर जा क) चैत कबड्डी आबए दे, तबला बजाबऽ दे। गीत-नाद गाबए दे, नटुआ नचाबऽ दे ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ। (खखन ठाढ़ भऽ हकैम रहलए।) 
सुन्नर-          फेरो नै भेलौ सार। फेरो जो। पढ़ गऽ।
खखन-        (तुरैछ कऽ) हम नै जेबौ सार। हम हकैम गेलौं हेन। (सुन्नर खखनकेँ एक सटका बैसा देलक। खखन चिचिआ कऽ कानऽ लागल आर हाथ पएर पटकऽ लागल।)
                  माए गै माए, बाप रौ बाप, सार सभ मारि देलक, जे सार हमरा मारलकै ओकरा माएके।
(सुनैना उठि कऽ दौगली। दुनूकेँ एक एक चाट मारि अपना लग लऽ जा कऽ बैसेली। दुनू एक-दोसरपर कन्‍हुआइए।)
सुनैना-        तूँ सभ इसकूल किए ने गेलहीन? घरपर गुल्‍ली-डन्‍टा खेलै छें आर मारि-गारि करै छें।
सुन्नर-          कॉपी छे नहियेँ तँ इसकूल केना जेबै? 
खखन-        हमरो पेन नइए तँ मुड़ी लऽ कऽ जेबै इसकूल?
सुनैना-        बापसँ पाइ मांगए जाइ गेलहीन?
सुन्नर-          मंगलिऐ तँ कहलक- पाइ नै छौ। बुढ़बाकेँ दारू-गाँजा पीऐ ले होइ छै पाइ आर कॉपी ले नै होइ छइ।
खखन-        हरदम बुढ़बा खिसियाएले रहै छइ। हम मंगलिऐ तँ कहक-जो ने कहिऐं माएकेँ।
सुनैना-        हँ हँ, किए ने? हमरा थैली देने छै रखै ले। अपना ले लल आर गोइठा बीछऽ चल। अपना दारू-ताड़ी, गाँजा-भाँग ले पाइए नै होइ छै आर हमरा रखै ले पाइ दइए। एत्तै केतौ नीशाँ केनाइ होइ छइ। बाप रे बा, हरदम नीशेमे चूर। चकेठबा जेतै कहियो चटपटमे। टुनकीबा कमाइ कम नै छइ। मुदा पीऐ ले बेहाल रहै छइ। हम सभ अन्न बेगैर मरे छी। धिया-पुता कुकुर-बानर जकाँ एमहर-ओमहर ढहनाइए। हे भगवान, हे दाता दिनकर, ओकर नेत सुधारहक। नै तँ हमरा सभकेँ मौगैत दऽ दएह।
(सुनैना कानए लगली।)
सुन्नर-          माए गइ, खाइ ले दे। बड़ भूख लागलए।
खखन-        (कनैत) केतए सँ देबौ। की देबौ? घरमे किच्‍छो नै छौ।
शान्‍ति-        खाइले दे नऽ माए। हमरा बड़ भूख लागलए।
चानी-          (कनैत) खाइले दे नऽ गइ। खाइ ले दे नऽ गइ।
सुनैना-        (खिसिया कऽ) खाइ जाइ जो नऽ हमर देह। नोचि ले हमर देह आर खाइ जाइ जो।
(सुनैना कानऽ लगली। झूमैत-झामैत शंकरक प्रवेश।)
शंकर-         की भेलै हन? सुन्नर माए किए कनै छें? शान्‍ति, की भेलौ हेन माएकेँ? 
शान्‍ति-        खाइ ले मंगलिऐ तँ कानऽ लागल।
शंकर-         सुन्नर माए, तूँ कनलें किए? हमरा कहितेँ। खाइक जोगार हम करितिऐ।
सुनैना-        आबो की भेलै? दहक पाइ। कीन आनै छी।
शंकर-         (जेबी- ढट्ठामे ताकि कऽ) पाइ कहाँ छौ जे देबौ? पाइ तँ छेलै हन। की भेलै? लगैए केतौ खसि पड़लै। अच्‍छा जो, आइ केकरोसँ उधारी आनि लीहें।
सुनैना-        जा नऽ तूँही। आनि दहक नऽ। हमरा कोइ उधारी नै दइए। सभकेँ धरने छिऐ। सभ खोंखिया कऽ दौगैए। तूँही आनि दहक।
शंकर-         तूँही जो। हमरा तँ आओर कोइ नै दइए। तूँही जो। तोरा दऽ देतौ। तूँ  मौगी छिहीन।
सुनैना-        हम नै जाएब, हम नै जाएब, हम नै जाएब। हम मुँह नोचबै ले जाउ गऽ।
शंकर-         (खिसिया कऽ) तोरा जाए पड़तौ। हमर कहल करए पड़तौ। नै तँ देखा देबौ।
सुनैना-        हम नै जाएब। हमरा कोइ उधारी नै दइए। अपने जा।
शंकर-         (खिसिया कऽ) हमर कहल नै करभिन तँ देखही हमर खेल।
(शंकर सुनैनाकेँ अनधून मारऽ लागल चारू धिया-पुता कानऽ लागल। सुन्नर आर शानति शंकरकेँ अपन-अपना दिस घीच कऽ छोड़बऽ लागल आकि सभ धियो-पुताकेँ अनधून मारऽ लागल। सभ कियो जोर-जोरसँ चिचियाए लागल- माए गै, बाप रौ। अन्‍तमे सुनैनाकेँ मारऽ लागल। सुनैनाक मुहसँ खून खसैत देख शंकर भागल।)
पटाक्षेप।


दृश्‍य दू



(स्‍थान- समूदायिक भवन। शंकर आर खट्टर दारू पी रहलए। दुनू गोरे दोस छैथ। दुनू चखनो खा रहलए।)
शंकर-         रौ बैंह खट्टरा, औझका दारू बड़ सुअदगर छौ। आइ भरि मन, भरि छाँक पीबौ।
खट्टर-          शंकर सार, आइ मटराक दोकानक ताला तोड़ै के छइ। छेनी, मरिया आर रीन्‍च लऽ लीहें।
शंकर-         लै के कोन जरूरी छइ। संगेमे छइ।
(फाँड़सँ निकालि खट्टरकेँ देखौलक।)
खट्टर-          सार, तूँ पहुँचल फकीर छें रौ।
शंकर-         तब नऽ मलफै उड़बै छिऐ। 
(एकटा तेरह बर्खक सुन्नैर लड़िकी मीना बस्‍ता लऽ कऽ गुजरली।)
खट्टर-          रौ सार शंकर, किछु देखबो केलही?
शंकर-         कथी रौ?
खट्टर-          समान। चारा।
शंकर-         कथी कहै छिहीन रौ? खोलि कऽ बाज नऽ।
खट्टर-          एगो लड़की इसकूल जाइ छेलै। उ छेलै कमाल के।
शंकर-         चल नऽ कनी देखिऐ। सुनसान हेतै तँ देखबै।
(शंकर आर खट्टर अन्‍दर गेल। मीना जोर-जोरसँ माए गै, बाप रौ चिचिआ रहलए। कनीकालक पछाइत मीना दम तोड़ि देली।)
खट्टर-          (अन्‍दरसँ) रौ सार शंकरबा, तोरा बुते मरलै।
शंकर-         (अन्‍दरेसँ) रौ बैंह खट्टरा, तोरा बुते मरलै।
खट्टर-          लऽ चल एकरा। केतौ सड़क कातमे फेंक देबै।
शंकर-         जल्‍दी चल। विद्यार्थी सभ अबै छइ। पकड़ा जाइ जेबें।
(शंकर आर खट्टर मीनाकेँ उठौने प्रवेश केलक। शीघ्र दुनू गोरे मीनाकेँ मंचपर पटैक भागि जाइ गेल। राजीव आर रौशनक प्रवेश। दुनू विद्यार्थी मीनाक लाश देख डरि कऽ चौंकल।)
राजीव-        रौ रौशन, उ तँ मीना छै। अपने इसकूलमे पढ़ै छइ। इसकूलक डरेशो पहीरने छइ।
रौशन-         राजीव, हमरा बड़ डर होइ छौ। भाग एतए सँ। जल्‍दी चल, इसकूलमे सरकेँ कहबै।
(राजीव आर रौशनक तेजीसँ प्रस्‍थान। कनियेँ कालक पछाइत दूटा पुलिस केदार सिंहआ बदरी सिंह अपन दूटा चौकीदार रघुनाथ आर देवनाथक संग प्रवेश केलैथ। चारू गोरे लाशकेँ देखलैथ।)
केदार सिंह-  रेहे चौकीदार, लाश को लादो गाड़ी में।
बदरी सिंह-   सर, ई लड़की इसकूल जा रही थी। रस्‍ता मं मौका पाकर कोइ दारूबाज इसका जान ले लिया। साला निशेवाज सभ, हरामी बच्‍चा ऐ भोली-भाली बच्‍ची को लगत काम करके मारकर फेंक दिया।
केदार सिंह- रेहे चौकीदार सभ, मुँह का देखता है? जल्‍दी लादो लाश को गाड़ीमे।
(रघुनाथ आर देवनाथ लाशकेँ उठा कऽ अन्‍दर लऽ गेलैथ। दुनू पुलिस सेहो पाछू-पाछू अन्‍दर गेलैथ। कनैत-कनैत मटराक प्रवेश।)
मटरा-         (छाती पीटैत) माए गै माए, बाप रौ बाप। जुलुम कऽ देलक चोरबा जनमल सभ। हमर बाल-बच्‍चा आब केना जीयत? बाप रौ बाप। सार चोरबाकेँ पकैड़तिऐ तँ टेंगारीसँ कुट्टी-कुट्टी काटि दैतिऐ।
(रघुनाथक प्रवेश।)
रघुनाथ-       की भेलह हन मटरा भाय?
मटरा-         बाप रौ बाप, जुलुम भऽ गेलह हौ चौकीदार। डिल्‍लीसँ कमा कऽ एलौं। एक लाख पूजी लगेलौं। किराना दोकान खोललौं। महिनो नै कमेलौं। साला चोरबा ताला तोड़ि देलक। सभटा समान लऽ गेलऽ। आब कथी हम बेचबऽ? धिया-पुता कथी खेतऽ? आब हम की करबै हौ चौकीदार? हमरा किछु नै फुराइ छह हौ चौकीदार।
रघुनाथ-       ई गप तूँ थानामे इन्‍ट्री करा दहक।
मटरा-         हमरा माहुरो खाइले पाइ नै छह। तँ थानापर केना जेबै? तूँही मदैत करऽ ने?
रघुनाथ-       छोड़ि दहक। हमहीं बाड़ा बाबूकेँ कहि देबैन।
(रघुनाथक प्रस्‍थान)
मटरा-         लगैए, शंकरबा सार लऽ गेल समान। मुदा हम देखलिऐ तँ नहि। जौं पकैड़तिऐ तँ सारकेँ टेंगारीसँ कुट्टी-कुट्टी काटि ओतै राखि दैतिऐ।
पटाक्षेप।


दृश्‍य तीन



(स्‍थान- सामूदायिक भवन। शंकर आर खट्टर दुनू दोस चखनाक संग ताड़ी पी रहल अछि। दुनू मस्‍तीमे अछि।)
शंकर-         सार खट्टर, तूँ अनाड़ी छें। कनियेँ ले रातिमे बाँचि गेलें। नहि तँ दुनू गोरे धरा जैतें। चौकीदर अबै छेलै हन।
खट्टर-          सार शंकर, तूँही अनाड़ी छें। केहेन-केहेन पुलिस हमरा पकैड़ नै सकल। ई चौकीदरबा कोन माल-मे-माल छइ। बेसी एमहर-ओहमर करतै तँ ओकरो घरमे चोरि कऽ लेबै। लैत रहत गदहाबला।
शंकर-         औझका की प्रोग्राम छौ से कह सार खट्टरा।
खट्टर-          औझका हमर विचार ई जे बहुत परदेशी सभ फगुआमे गाम अबैत हेतै दिल्‍ली-पैंजाब-मुम्‍बइसँ कमा कऽ सभ लग बहुत-बहुत पाइ हेतइ। होशियारीसँ सबहक जेबी मारि लेबै। चल आइ टीशनेपर।
शंकर-         ठीक विचार छौ। चल टीशनेपर। जेबी नै सुतरतै तँ बैग-एटैची सुतरतै नऽ। मुदा जाइसँ पहिने गाँजा पी कऽ मूड बना ले।
सट्टर-          हमरो तँ सएह मन छेलौ। जेबी मारनाइ आकि बैग-एटैची पार केनाइ भीड़ेमे बढ़ियाँ होइ छइ।
                  (दुनू गोटे गाँजा पीलक। फेर दुनू गोरे सिकरेट धरा कऽ पीबैत टीशन दिस विदा भेल।) 
शंकर-         रौ बैंह खट्टरा, टीशनपर छौड़ी-मौगी सभ बड़ रहै छइ। एक-पर-एक सुन्नैर सभ रहै छइ। अपना सभकेँ जएह किछु तँ संतोख हेतइ।
खट्टर-          शंकरबा सार, हमरा ओत्तै नै पढ़ा। हम अपने ओइ सभसँ रिटाइर छी। भीड़मे केत्तेकेँ हम की नै करै छी। चल, चल। जल्‍दी चल। गाड़ीक समए भऽ गेलै हन।
(दुनू गोरे टीशन जा रहलए। दुनू गोरे क्षणिक समए ले अन्‍दर गेल। क्षणिक पटाक्षेप भेल। अन्‍दरमे रामनाथ, प्रभु दयाल, नन्‍द किशोर आर प्रियंका ट्रेन पकड़ै ले तैयारअछि। शंकर आर खट्टर मंचपर आएल। शीघ्र पर्दा हटल। यात्री चारू गोरे कुरसीपर बैसलए। शंकर दुनू गोरे घुमि रहलए।)
शंकर-         गाड़ी आबि रहल अछि। पॉकीटमार सँ सावधान। (यात्री चारू गोरे उठलैथ। प्रभुदयाल जेबी टटोललैथ। शंकरसहैट कऽ प्रभुदयाल लग आर खट्टर प्रियंका लग गेल। शंकर दुनू गोरे पॉकेट मारऽ लागल आकि धरा गेल। चारू आदमी शंकर आर खट्टरकेँ मारि रहलए। मार सार के- मार सार केँ हल्‍ला भऽ रहलए। केदार सिंह आर बदरी सिंह प्रवेश कऽ दुनूकेँ अनधुन मारऽ लागल। शंकर दुनू गोरे ओंघरा रहलए। बदरी सिंह शंकरकेँ आर केदार सिंह खट्टरकेँ मारि रहल छैथ।)
अनुवोधक- (अन्‍दरसँ) यात्रीगण कृपया ध्‍यान दें। जयनगर से चलकर नई दिल्‍ली को जानेवाली गरीब रथ एक्‍सप्रेस प्‍लेटफॉर्म नं. १ पर आ रही है।
(अनुवोधक ऐ गपकेँ दू बेर कहलैथ।) चारू यात्री अन्‍दर गेल। दुनू पुलिस शंकर दुनू गोरेकेँ मारनाइ छोड़ि देलैथ। दुनू उठि कऽ हाथ-पएर झाड़लक।)
बदरी सिंह-   ला साला, माल-पानी।
शंकर-         आइ नै देब सर। आइ बड़ मारलौं हन।
केदार सिंह- तूँ बड़ी चौंसठ बा। बहोत माल मारता है। लाउ एक हजार।
खट्टर-          आइ किन्नौं नै देब। अहाँ बड मारलौं हन।
केदार सिंह- ना मारी तँ पब्‍लिक कैसे बुझी। पब्‍लिक के बुझाना हाय जे हम पुलिस हाय। कुछ शो भी करना पड़ता हाय नऽ। जो ही कुछ देना है दे दऽ। 
खट्टर-          आइ हम किन्नौं नै देब। हमरा दवाइ कराबऽ पड़त। 
केदार सिंह- जाउ साला सभ, जाउ। आज छोड़ देते हैं।
(शंकर आर खट्टर लड़खड़ाइत-लड़खड़ाइत अन्‍दर गेल।)
बदरी सिंह-   केदार भाय, एगो गप बुझलिऐ हन की नहि, दारूक सम्‍बन्‍धमे?
केदार सिंह- नहि, की भेलै से?
बदरी सिंह-   दारू बन्न भऽ गेल। हम भोरे पेपरमे पढ़लौं। हेन सरकार चाहै छैथ जे देवराज्‍यकेँ नीशा मुक्‍त करी। कारण ऐ सँ राज्‍यमे अनेक तरहक घटना दुर्घटना भऽ रहलै हन। जेना- चोरी-डकैती, छीनरपनी, बैमानी, लूट-पाट, बलत्‍कारी इत्‍यादि। ऐ सभ तरहक शिकाइत सरकारकेँ बहुत भेलै हन। तही दुआरे सरकार नीशाँ मुक्‍तिक करगर कदम उठेलक हन। (दुनू पुलिस कुरसीपर बैसलैथ।)
केदार सिंह- कदम जदी सफल भऽ जेतैन तँ देवराज्‍य सरकारकेँ दुनियाँमे नीक प्रतिष्‍ठा भेटतैन। मुदा भाय, अपना सभकेँ बड़ दिक्कत भऽ जाएत।  कारण ओइ बेगैर अपना सभकेँ एको दिन नै निमहत। अपना सभ ले सरकार किछु जोगार करतै, की नहि?
बदरी सिंह-   उम्‍मीद कम आर भरोस ज्‍यादे। ओना पेपरमे दारू, ताड़ी, गाँजा, भाँग, खैनी, बीड़ी, सिकरेट, पान इत्‍यादिपर रोक लगाएल गेल हन। कारण सभ मे नीशा छै आर उ नीशा कोनो-ने-कोनो रूपमे देहक लेल नोकसानदायक अछि। जेना खैनीमे निकोटीन पएल जाइए जइसँ कैंसरक सम्‍भावना रहैए। ओही खैनीसँ बीड़ी, सिकरेट, पान मशाला इत्‍यादि बनैए। सोभाविक छै उ समान अपना सभकेँ नोकसान करत। दारूसँ फेफड़ा जरै छै, कीडनी फेल करै छै। गाँजासँ फेफड़ा जरै छै, दम्‍मा होइ छइ। ऐ तरहें हम कहि सकै छी जे प्राय: सभ नीशाबला पदार्थ देहक लेल खतरनाक अछि जेकरा तियागने स्‍वास्‍थ्‍यक रक्षा हएत।
केदार सिंह- भाय बदरी, सरकारकेँ जे करबाक हो, से करौ। मुदा हमरा ले दारूक जोगार सरकार करैत रहौ।
बदरी सिंह- अहाँ बताह जकाँ गप करै छी भाय। अहाँ आब दारूसँ छातीपर मुक्का मारि लिअ।
केदार सिंह- भाय, हमरा ओइ बेगैर नै बनत। 
बदरी सिंह-   किए नै बनतै? मनकेँ जेत्ते चसकेबै, मन ओते चसकतै। मन जेते काबूमे रहत, ओते मानवतामे धनिक रहब। मने सभ किछु छिऐ। कोनो शायर कहने छथिन- मन ही देवता, मन ही ईश्वर, मन से बड़ा न कोय। मन उजियारा जब जब फैले, जग उजियारा होइ। 
केदार सिंह- भाय, अहाँ केँ अध्‍यात्‍मिक ज्ञान बड़ अछि यौ।
बदरी सिंह-   हमरा अध्‍यात्‍मिक ज्ञान सूइयाक नोको बरबैर नै अछि। ओना, समए निकालि कखनो-कखनो कोनो-कोनो अध्‍यात्‍मिक पोथी पढ़ि लै छी। सरकारक नीशा मुक्‍ति कदमक स्‍वागत करैत हम आइ संकल्‍प लै छी जे हम कोनो नीशा नै करब, नै करब, नै करब।
पटाक्षेप।

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