मैथिली कहानी
कौल्हुक सुच्चा करुतेल बात तीन-चारि दसक पूर्वक छी। तहिया हम नवालिके रही। फागुन मास रहै, पछिया हवा रमकैत रहए। रबिया आ बुधना दुनू भाँइ चिमनीपर पजेबाक खेबालमे माटि बनबए गेल रहए। माटि कचैर बना दुनू भाँइ संगे लेढ़ाएले घुमि घर आएल। रौदाएल रहए, पोखैरक महारपर गाछक छॉंहैरमे आबि जिराइत रहए, मन थिर भेला पछाइत पोखैरमे भरि मन देह मांजि नहा कऽ घर विदा भेल। घर पहुँचते मटियाएल देह उज्जर लगबे करए आ चुनचुनेबो करए। दुनू भाँइक रॉंइ-बाँइ देह देख माए बजली- “बौआ, तोरा दुनू भाँइक देह किए एना रॉंइ-बाँइ फाटल लगै छौ! कनी करुतेल किए ने लगा लइ छेँ?” रबिया बाजल- “से तँ ठीके माए, बहुत दिनसँ तेल-कुड़ देहमे नै औंसलौं हेन। घरसँ नीकहा करुतेल नेने आ।” माए बजली- “निकहा तेल तँ बौआ कनियेँ रहए, सेहो कहिया ने सधल। तखन बजरूआ खाँटी तेल कनी अछि से औंस ले।” रबिया-बुधना दुनू भाँइ खूब चपकारि-चपकारि तेल देहमे लगेलक। देहक चमड़ी जे फाटल छल तइमे रबरबाए कऽ तेल लगल आ देहमे लहैर मारए लगल। जहिना मसल्ला पीसैकाल मिरचाइक दाफसँ हाथ लहरैए तहिना समुच्चा देहमे लहैर मारए लगल। बुधना रबियासँ पुछलक- “भैया, बजारक खाँटी करुतेल देहमे लगेलापर एते...