#मौलाइल_गाछक_फूल

 #मौलाइल_गाछक_फूल : ‘मौलाइल गाछक फूल’ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पहिल औपन्यासिक कृति छियनि। एहि उपन्यासक लेखन 2004 इस्वीमे कयने छथि। लेखन कार्यक आरम्भक सन्दर्भमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी अपन मंतव्य व्यक्त करैत उक्त उपन्यासक ‘दू शब्द’मे लिखने छथि- “मौलाइल गाछक फूल 2004 ईस्वीमे लिखल पहिल उपन्यास छी। अखन धरि पाँचटा उपन्यास आ किछु कथा, लघुकथा, नाटक सभ अछि। छपबैक जे मजबूरी बहुतो रचनाकारकेँ छैन से हमरो रहल। मुदा तइसँ लिखैक क्रम नै टुटल। ‘भैंटक लावा’ कथा सेहो दू-हजार चारिक पहिल कथा छी।”

प्रस्तुत उपन्यास, ‘मौलाइल गाछक फूल’क पहिल संस्करण 2009 इस्वीमे ‘श्रुति प्रकाशन’, न्यू राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली- 110008 सँ प्रकाशित अछि। वर्तमानमे पाँचिम संस्करण ‘पल्लवी प्रकाशन’, तुलसी भवन, जे.एल. नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली, जिला- सुपौल, बिहार : 847452 सँ प्रकाशित छन्हि।
03.04.2010क जनकपुर (नेपाल) मे ‘सगर राति दीप जरय’क 69म कथागोष्ठी आयोजित भेल छल। जाहिमे ‘मौलाइल गाछक फूल’ उपन्यासक लोकार्पण प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. रामावतार यादव, डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’, डॉ. राजेन्द्र ‘विमल’ ओ श्री राजाराम सिंह ‘राठौर’ तथा मञ्चस्थ अन्य विद्वान लोकनिक द्वारा भेल अछि।
उपन्यासकारक समर्पण भाव विराट रूपमे अङ्कित भेल अछि। निम्नांकित हुनक समर्पण भावकेँ देखल जाए-
“मिथिलाक वृन्दावनसँ लऽ कऽ बालुक ढेरपर बैसल फुलबाड़ी लगौनिहार तथा नव विहान अननिहार लेल...।” ई पोथी समर्पित अछि।
एहि उपन्यासमे 13 गोट पड़ाव अछि। ‘मौलाइल गाछक फूल’ उपन्यासमे उपन्यासकार सम्पूर्ण समाजक चित्र प्रस्तुत कएलनि अछि। जाहि लेल 65 गोट पात्रक खगता उपन्याकारकेँ पड़लन्हि। क्रमश: सभ पात्रक नाओं निम्नांकित अछि- 1. बौएलाल, 2. रूपनी, 3. रधिया, 4. अनुप, 5. नथुआ, 6. मुसना, 7. रमाकान्त, 8. शशि शेखर, 9. हीरानन्द, 10. अतिथि (मटकन) 11. सोनेलाल, 12. सोनेलालक बहिन, 13. सोनेलालक सारि, 14. फुद्दी, 15. सुगिया, 16. ड्राइवर, 17. झाड़ूबला, 18. डॉक्टर बनर्जी, 19. कम्पाउण्डर, 20. रमापति दास, 21. गंगा दास, 22. बुचाइ दास, 23. जुगेसर, 24. डॉक्टर महेन्द्र, 25. डॉक्टर रविन्द्र, 26. श्यामा, 27. डॉक्टर सुजाता, 28. डॉक्टर जमुना, 29. रमेश, 30. ब्रह्मचारीजी, 31. सुमित्रा, 32. रोगही, 33. कबुतरी, 34. बेंगबा, 35. राम प्रसाद, 36. टिकट मास्टर, 37. पैटमेन, 38. टमटमबला, 39. सुबुध, 40. सुकन, 41. मुनमा, 42. प्रधानाध्यापक, 43. विवेक बाबू, 44. राजिन्दर, 45. गुलबिया, 46. मंगल, 47. नवानीवाली, 48. किशोरी, 49. बुधनी, 50. सोमनी, 51. बौका, 52. लखना, 53. बिलटा, 54. श्रीचन, 55. रूदल, 56. भज्जु, 57. झोली, 58. कुशेसरी, 59. मंगल, 60. एकटा ढेरबा बचिया, 61. ललबा, 62. सितिया, 63. जोखन, 64. भालेसर, 65. सोनमा।
प्रस्तुत उपन्यासक सन्दर्भमे प्रसिद्ध साहित्यकार एवम् ‘विदेह’ ई पत्रिकाक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुर अपन चर्चित पोथी- ‘प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना’ (भाग-२) मे लिखलन्हि अछि- “जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘मौलाइल गाछक फूल’ गामक, गामसँ पड़ाइनक आ गलल व्यवस्थाक पुनर्जीवनक लेल समाधानक उपन्यास अछि।”
प्रसिद्ध रचनाकार स्व. जीवकान्त एहि उपन्यासक भाषाक विषयमे प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना (विदेह-सदेह- 10)मे लिखलन्हि अछि-
“पोथीक भाषा खाँटी लोकक भाषा थिक, किताबी भाषा नहि‍‍ थिक। सेहो एकटा विशिष्ट आ महत्वपूर्ण बनबैत छैक। साहित्यमे एहेन घर-आँगनक पात्र नहि आएल छल, से सभ प्रवेश कएलक अछि।”
प्रसिद्ध समीक्षक/आलोचक डॉ. योगानन्द झा एहि उपन्यास तथा उपन्यासकारक सन्दर्भमे लिखलन्हि अछि- “श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘मौलाइल गाछक फूल’ उपन्यासमे भाषाक कुशल ओ रचनात्मक प्रयोग भेल अछि जाहिसँ वर्णनमे सटीकता, सहजता, बिम्बधर्मिता, स्पष्टता ओ मनोवैज्ञानिक विश्लेषणक क्षमता प्रदर्शित होइत अछि। अपन गुणक कारणेँ मण्डलजीक कथा संसारमे विश्वसनीयता देखि पड़ैत अछि आ ओ अपन प्रौढ़ विचार ओ अनुभूतिकेँ पाठकीय मानसमे स्थानान्तरित करबामे सफल भेल छथि। अन्तत: महेन्द्रक उक्ति- ‘समाज रूपी गाछ मौला गेल अछि, ओहिमे तामि, कोड़ि, पटा नव जिनगी देबाक अछि जाहिसँ ओहिमे फूल लागत आ अनवरत फुलाइत रहत’मे उपन्यासक उद्धेश्य स्फुट भेल अछि। स्वभावत: मण्डलजी एहि कृतिक माध्यमे ग्राम ओ ग्रामेतर जीवनक संगहि व्यक्ति, परिवार, समाज ओ राष्ट्रक अभ्युन्नतिक हेतु एकर प्रत्येक इकाइकेँ त्याग ओ समर्पणक भावनासँ ओत प्रोत रहबाक आदर्श जीवन पद्धति अपनेबाक संदेश देलनि अछि। हिनक ई संदेश ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:खभाग भवेत्’क भावनाक पुन: उपस्थापन थिक।”
एही कड़ीमे प्रसिद्ध समीक्षक श्री दुर्गानन्द मण्डल अपन ‘चक्षु’ पोथीमे उक्त उपन्यासक परिचय एहि तरहेँ प्रस्तुत कयने छथि-
“मौलाइल गाछक फूल उपन्यासमे सहजता, समरसता, यथार्थवाद, आदर्शवाद, धर्मभिरूता, एकल एवम् संयुक्त परिवारक रूप-रेखा खींच एकटा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण रूपमे उपन्यासकार हमरा लोकैनक मध्य उपस्थित छैथ। हुनक ई विधासँ उपन्यास जगतमे एक्केठाम सभ तरहक सुख, आनंदक अनुभव होइत छैन। आजुक समाज जे सभ तरहेँ मौलाएल अछि। अपना उपन्यासक मादे उपन्यासकार मात्र एक आदमी रमाकान्तबाबूक हृदय परिवर्त्तन कऽ समाजमे एकटा नवका फूल खिलेबामे शत्-प्रतिशत सफल भेला अछि। रमाकान्त बाबू द्वारा अपन दू साए बीघा जमीन- सबहक माथपर एकहक बीघा खेत अर्थात् जेकरा सात गो बेटा ओकरा सात बीघा दऽ सभकेँ एकटा नव जिनगी प्रदान करैत छैथ। एक नव जिनगी जे पूर्णत: मौलाएल छल ओइमे फूल खिला दैत छैथ। हमरा आशा नै अपितु विश्वास अछि जे जगदीश प्रसाद मण्डलजी सन उपन्यासकार होथि आ रमाकान्तबाबू सन नायक तँ अपन समाज रूपी मौलाएल गाछ, मौलाएल नै अपितु फूलसँ लदि सकैत अछि।”

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