अर्द्धांगिनी


 ISBN : 978-93-87675-15-5

 

दाम : 251/- (भा.रू.)

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल

चारिम संस्‍करण : 2018 (पहिल संस्करण 2013)

 

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरु मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली

जिला- सुपौल, बिहार : 847452

 

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मोबाइल : 6200635563; 9931654742  

 

प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल)  बिहार : 847452  

 

ARDHANGANI  (अर्द्धांगिनी)

Collection of Short Stories by Sh. Jagdish Prasad Mandal

 

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कथा-सत्तैर

 

ग्राम्यजीवनक सत्यक संवाहक : अर्द्धांगिनी/07

दोहरी मारि/21

केना जीब/28

नवान/33

तिलासंक्रान्तिक लाइ/43

भाइक सिनेह/52

प्रेमी/58

बपौती सम्‍पैत/69

डंका/80

संगी/92

ठकहरबा/101

अतहतह/112

अर्द्धांगिनी/124

ऑपरेशन/137

धर्मनाथ/144

सरोजनी/153

सुभद्रा/162

सोनमाकाका/172

दोती बिआह/180

पड़ाइन/188

केतौ नै/198

 

 

 

 

 

 

 

   

 


 

 


ग्राम्यजीवनक सत्यक संवाहक : अर्द्धांगिनी

डॉ. योगानन्द झा

श्री जगदीश प्रसाद मण्‍डल बहुआयामी रचनाकारक रूपमे मैथिली जगतमे प्रसिद्ध छथि। कथा-कविता-नाटक-उपन्यासादि विधाकेँ ई अपन स्वर्णलेखनीसँ सजबैत रहला अछि। हिनक समस्त रचना हिनका मिथिला-मैथिलक लोकजीवनक प्रत्यक्षदर्शी ओ व्याख्याताक रूपमे प्रस्तुत करैत रहलनि अछि। लोकजीवनक यथार्थकेँ यथावत् चित्रित कऽ मानवीय संवेदनाकेँ उद्बुद्ध करब हिनक रचना सबहक प्रधान विशष्टता रहलनि अछि। प्रतिभा, व्युत्पत्ति‍ ओ अभ्‍यास एहि तीनू कारकसँ सम्बलित हिनक रचनावलीमे मिथिला-मैथिलक समस्‍या ओ तेकर समाधानक दिशा भेटैत अछि। वर्त्तमान जीवनमे होइत नित्य नूतन परिवर्त्तनक खण्‍ड चित्रकेँ यथावत् प्रस्तुत करब हिनक कथाक विषय-वस्तु रहलनि अछि जेकरा ई सहज रीतियें प्रस्तुत करैत रहल छथि।

मण्‍डलजीक कथा सभ मिथिलाक माटि-पानिक कथा छी। हिनक कथा सभमे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आशा-निराशा, सुख-दु:ख, हर्ष-उल्‍लास आ जीवन-संघर्षक व्याख्या भेटैत अछि। मिथिलाक सामाजिक-आर्थिक ओ राजनीतिक जीवनमे होइत परिवर्त्तन सभकेँ सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक विश्लेषण द्वारा ई अपन कथा सभकेँ प्रवाहमयता, रोचकता ओ विश्वसनीयताक संग प्रस्तुत करबामे सिद्धहस्त कलाकारक रूपमे प्रतिष्ठित भेला अछि।

हिनक कथासंग्रह अर्द्धांगिनी बीस गोट कथाक समुच्चय छी। एहि कथा सभमे नोकरिहाराक जीवनक संत्रास, परिश्रमी कृषकक उल्‍लास, सांस्‍कृतिक पावनि-तिहारमे पैसल अन्धबिसवासक प्रति जुगुप्‍सा, ग्राम्य जीवनमे जातीय बेवसायक महत्व, क्रमश: टुटैत सम्बन्ध-बन्ध, सामाजिक जीवनक विभिन्न समस्‍या आदिक सूक्ष्म विश्लेषणपूर्वक लोकमंगलक कामना देखि पड़ैत अछि। युगीन समस्‍या ओ समस्‍याक कारण एवं तेकर समाधानक प्रति चिन्तनशीलता हिनक वस्तु-विन्यासकेँ प्रेरक-प्रभावकारी बनौने रहलनि अछि जइमे परम्परित कथाधाराक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी दृष्टि‍कोण स्पष्ट रूपेँ प्रस्‍फुटित देखि पड़ैछ। मिथिलाक लोकजीवनक उत्‍थानक प्रति सम्वेदनात्मक अभिव्यक्‍ति‍ कौशलक कारणे मण्‍डलजीक कथा सभ हिनका आधुनिक कथाकार लोकनिक अग्रि‍म पंक्‍ति‍‍मे ठाढ़ कऽ देलकनि अछि।

एहि संग्रहक पहिल कथा थिक दोहरी मारि’, एहि कथामे पुरुख पात्र गुलाबक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भेल अछि। अवकाश प्राप्त प्रोफेसर गुलाब कतोक वर्षसँ डाइबीटीज ओ ब्‍लड-प्रेसर सदृश बीमारी सभसँ ग्रस्त छथि। गामक घर-घराड़ी पर्यन्त बेचि शहरमे बनौल मकानमे पति-पत्नी एकाकी रहै छथि। बेटा-पुतोहु परदेशमे रहै छन्हि तँए हिनकालोकनिक सुधि लेनिहार कियो नहि छन्हि। नागर जीवनक चाकचिक्यसँ सम्‍मोहित भऽ ई शहरी जीवनमे बसि तँ गेल छथि, मुदा चोरी-डकैती, लूट-पाट, अपहरण, गन्दगी आदि समस्‍यासँ ग्रस्त शहरी ग्राम्य जीवनक सौहार्दपूर्ण वातावरणक प्रति आकर्षण जगैत छन्हि। हद तँ तखन भऽ जाइत अछि जखन पुत्र द्वारा ई समाद भेटैत छन्हि जे पौत्रक मूड़न घरपर नै भऽ कऽ वैष्‍णो देवीमे हेतनि, जइ लेल हुनकोलोकनिकेँ ओहीठाम एबाक आमंत्रण भेटैत छन्हि आ ओ अपनाकेँ अशक्य बूझै छथि।

एहि कथाक माध्यमे मण्‍डलजी साम्‍प्रतिक जीवनमे उपकल विस्थापनक समस्‍याक कारणे अवस्था दोषग्रस्त बुजुर्ग पीढ़ीक बेथाकेँ अभिव्यक्‍ति‍ प्रदान केलनि अछि। एहि समस्‍याक कारणे नोकरी-चाकरी भेला उत्तर लोक शहरमे बसि ग्राम्यजीवनक सौहार्दसँ तँ वञ्चि‍त होइते छथि संगहि वृद्धावस्थामे जखन परिवारोक लोक हुनक संग छोड़ि दइ छथिन तँ अपनाकेँ वंचित अनुभव करए लगैत छथि।

अही समस्‍याकेँ संग्रहक दोसर कथा केना जीबमे सेहो उठाओल गेल अछि। एकर पुरुख पात्र सेहो अवकाशप्राप्त प्रोफेसर छथि। ई बेटाकेँ पढ़ा-लिखा कऽ विदेश पठयबामे सफल तँ होइ छथि मुदा बेटा विदेशी सभ्‍यता ओ संस्‍कृतिक रंगमे रमि जाइ छन्हि आ हिनकालोकनिक खोजो-पुछारि नहि कऽ पबैत छन्हि। परिणामत: दुनू परानी एकाकी जीवन बितेबाक हेतु बाध्य होइ छथि। एहेन स्थि‍तिमे हिनकालोकनिक लग एकमात्र अवलम्ब बचि जाइत छन्हि- जिजीविषा ओ संघर्ष। यएह जिजीविषा ओ संघर्ष करबाक मानसिकता एहि कथाक युग जीवनक अनुकूल संदेश छी जे एकरा पूर्व कथासँ भिन्न आ स्तरीय बनबैत अछि। एहि कथाक वृद्ध दम्पत्ति‍ कखनो हतास आ निराश नहि देखि पड़ैत छथि।

संग्रहक तेसर कथा ग्राम्य जीवनक परिश्रमी कृषकक गाथा छी जे अपन परिश्रमक बलेँ अपन भाग्‍यविधाता बनल अछि। नवान शीर्षक एहि कथामे मिथिलाक लोक जीवनक विभिन्न खण्‍डचित्र उपस्थि‍त कएल गेल अछि यथा वृक्ष-लतादिक पहिल फड़ देवताकेँ चढ़ाएब, गाए बिआएलापर महादेवकेँ दूधसँ अभिषेक करब आदि। ग्राम्य जीवनमे पसरैत जातीय ओ साम्‍प्रदायिक विद्वेष दिस सेहो एहिमे संकेत कएल गेल अछि। मुदा एहि कथामे मिथिलाक लोकजीवनक आर्थिक स्थि‍तिकेँ बदहाल करएबला जइ समस्‍यापर विशेष दृष्टि‍निक्षेप कएल गेल अछि, से छी बाढ़िक समस्‍या। एहि समस्‍याक कारणे मिथिलाक ग्राम्य जीवनक आर्थिक बेवस्था अस्त-व्यस्त भऽ जाइत अछि। तथापि एहि कथाक नायक आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति अपनाए नव किस्‍मक धान उगबए लगैत अछि, तीमन-तरकारीक नगदी फसिल उपजाबए लगैत अछि आ नूतन नस्‍लक माल-जाल पोसि अपन जीवनकेँ खुशहाल बना लइए‍, वस्तुत: एहि वैज्ञानिक पद्धति द्वारा मिथिलाक कृषक जीवनक समुन्नति भऽ सकैत अछि, से संदेश देब कथाकारक उदेश्‍य छन्हि।

संग्रहक चारिम कथा छी तिलासंक्रान्ति‍क लाइएहि कथामे ग्राम्यजीवनमे पसरल अन्धबिसवासपर प्रहार कएल गेल अछि। तिलासंक्रान्ति‍क एकटा एहन पर्व छी जे सोत्साह मिथिलाक घर-घरमे मनौल जाइत अछि। एहि दिनसँ सुरूज उत्तरायण भऽ जाइत छथि आ क्रमश: शीत ऋृतु वसन्त आ गृष्‍म दिस बढ़य लगैत अछि। मिथिलाक प्रशस्त भोजन चूड़ा-दही एहि दिन गरीबो-गुरबा धरि खाइते अछि। चूड़ा ओ मुरहीक लाइ, तिलबा आदि देवताकेँ चढ़ाय प्रासाद रूपमे ग्रहण करब एहि पावनिक कृत्य होइत छैक। शीत ऋृतु रहलाक बादो मिथिलाक ग्राम्यजीवन एहि पर्वक ओरियौनमे मास दिन पूर्वहिसँ लगि जाइत अछि। मुदा एहि पर्वक प्रसाद ग्रहण करैक हेतु प्रात: स्‍नान जरूरी बुझल जाइ छैक। मिथिलामे ई अपवाद सेहो पसरल छैक जे एहि दिन जे कियो भोरे नदी वा पोखरिमे डुम दइत छथि हुनका नदी-देवता तत्‍काले लाइ धरा दइत छथिन। अही अपवादपर बिसवास कऽ गोपला नामक एकटा नेना बारहे बजे रातिमे नदीमे डुम देबए चलि जाइत अछि आ ठंढसँ ग्रस्त भऽ जाइत अछि। ग्राम्यजीवनक अन्धबिसवासी समाजकेँ एहि कथाक माध्यमसँ ई संदेश देल गेल अछि जे वस्तुत: ई पावनि प्रकृति-परिवर्त्तनपर आधारित अछि आ एहिमे बिनु पाखण्‍ड कएने लोककेँ अपन सामर्थ्‍यक अनुसार समयपर स्‍नान करैक चाही, नै कि अन्धविश्वासमे पड़ि रोगग्रस्त भऽ जेबाक चाही। हर्ड़ीवालीक उक्ति‍-

अहाँ जकाँ रातिमे कुकुर घिसियौने छेलौं जे भोरे नहा कऽ पाक हएब।अन्धविश्‍वासक प्रति बेस प्रहार कएलक अछि। कथामे एहि पावनिक तैयारीमे जुटल लोकजीवन अत्यन्त सुन्दर चित्र भेटैत अछि।

पाँचम कथा भाइक सिनेहभाए-भैयारीक आपसी कलह ओ आर्त्‍यानक प्रेमक कथा छी। शिष्टदेव आ विचारनाथ दुनू भाँइ एक दोसराक प्रति अगाध श्रद्धा, भक्‍ति ओ बन्‍धुत्वक भाव रखैत छथि मुदा देयादिनी लोकनिक बीच खट-पटसँ परिवारमे भिन्न-भिनाउज भऽ जाइत छन्हि। भिन्न-भिनाउजक मूलमे अर्थसत्तापर कबजा रहैत अछि। मुदा जखन दुनूक मनमे परस्पर प्रेमक भाव जगैत छन्हि तँ दुनू एक-दोसराक दु:ख बँटबाक हेतु तत्पर भऽ जाइत छथि। एहि कथामे कृषक जीवनमे पारस्परिक सहयोग, सद्भाव ओ शक्‍ति‍क अनुकूल श्रमपर आधारित संयुक्त परिवारक उपयोगिताक परम्परित अनुगायन देखि पड़ैछ।

संग्रहक छठम कथा प्रेमीवस्तुत: प्रेमकथाक रूपमे लिखल गेल अछि मुदा एहि कथामे रचनाकारक उदेस सामाजिक जीवनमे व्याप्त दहेज प्रथाक कुरीतिकेँ समाप्त करैक संदेश सएह अभिव्यक्त भेल अछि। पक्षधर आ ज्ञानचन दू गामक छथि। दुनूमे प्रगाढ़ दोस्ती छन्हि। ज्ञानचनक पौत्र परीक्षा देबाक हेतु पक्षधरक गाम अबैत छथिन जेतए परीक्षावधि धरि ज्ञानचनक पौत्र लोचन आ पक्षधरक पौत्री सुकन्याक बीच संवाद होइ छन्हि आ दुनू परस्परानुरक्त भऽ जाइ छथि। लोचनकेँ विदा करैक क्रममे सुकन्या ओकरे संग ओकरा घर धरि चलि जाइत अछि जे ओइ‍ गाममे गुलञ्जरक वस्तु भऽ जाइ छैक। विजातीय रहलाक बादो पक्षधर आ ज्ञानचन पारस्परिक मैत्रीकेँ सम्बन्धमे बदलि एकटा आदर्शक स्थापना करैत छथि। पक्षधरक उक्‍ति‍-

जइ समाजमे मनुक्खक खरीद-बिक्री गाए-महींस, खेत-पथार जकाँ होइए, की ओइ‍ समाजकेँ पंच-तत्त्वक बनल मनुक्ख कहल जा सकै छइ? जँ से नहि तँ हमर कियो मालिक नइ छी। कियो ओंगरी देखौत तँ ओकर ओंगरी काटि लेबइ। आइए दोस्तक ऐठाम जाइ छी आ देखि-सुनि अबै छी।मे दहेज प्रथाक समर्थक ओ प्रेम-बिआह, विजातीय बिआहक अवरोधक तत्त्वपर प्रहार कएल गेलैक अछि।

संग्रहक सातम कथा बपौती सम्‍पैत‍‍ कृषक जीवनमे जातीय व्यवसयक महत्तवक अवधारणापर आधारित अछि। सम्‍प्रति कृषक-मजदूरक पलायनसँ जे गामक अर्थ-बेवस्था चरमरा गेल अछि तकरा सुधारबाक हेतु एहि कथामे चिन्तनक एकटा दिशा भेटैत अछि। कथानायक गुलटेन अपन पिताक सिखौल बेवसायसँ नीक जकाँ परिवारक परिपालन करबामे सक्षम अछि। तँए कथाकारक उदेश्‍य ग्राम्य स्‍वावलम्बनकेँ पुन: स्थापित करैक हेतु मार्गदर्शन करब बुझना जाइत अछि।

आठम कथा डंकालोकजीवनक अवमूल्यनकेँ रेखांकित करैत अछि। एकर मुख्‍य पात्र भैयाकाका गामक रक्षा करैक संकल्‍प लऽ अपनो गाममे अखड़ाहाक प्रचलन शुरू करैत छथि जइसँ पास-पड़ोसक गाम किंवा जमीन्‍दारक पहलमान हुनकालोकनिकेँ अबल बुझि प्रताड़ित नहि कऽ सकनि। एहि तरहेँ समस्त समाजक हितकामनाक प्रति हुनका व्यग्रता छन्हि मुदा साम्‍प्रतिक जीवनमे स्‍वार्थक प्रवेशसँ ओ ई जानि विचलित भऽ जाइ छथि जे आब गाम-घरक लोकक कल्याणक गप्प तँ दूर, लोक अपनो सर-संबन्‍धीक खोज-पुछारि करबासँ कतरेबाक मूल्य रहित संस्‍कार पालए लगल अछि। हिनक उक्‍ति‍-माए-बाप, भाए- बहिन सबहक सम्बन्ध आ शिष्टाचार एहि रूपेँ नष्ट भऽ रहल अछि जे साधना-भूमिकेँ मरुभूमि बनब अनिवार्य...।मे समस्त कथासार अभिव्यक्त भऽ जाइत अछि।‍

नवम कथा संगीशिक्षा जगतमे भेल अद्य:पतनक कथा छी जइमे स्कूल-कौलेजमे शिक्षाक बेवसायीकरणक फलस्वरूप सामान्‍य जनसँ छीनल जाइत शिक्षाक समस्‍यापर विमर्श भेल अछि, जेकर समाधानक हेतु दूटा संगी पारस्परिक परिणयपूर्वक क्रान्ति‍क शंखनाद करैत देखि पड़ै छथि। कथाक घटनाक्रम आकस्‍मि‍कताक दोषसँ ग्रस्त बुझना जाइछ, जे प्रभावान्‍वतिकेँ कमजोर करैत अछि।

ठकहरबा पूर्णत: राजनीतिक कथा थिक। एहिमे स्‍वातंत्र्योत्तर भारतमे पुलिस ओ नेतालोकनिक भ्रष्ट चरित्र, मतदानमे गड़बड़ी आदिक चित्रण करैत लोकजगतमे क्रमश: पसरैत भ्रष्‍टाचारक अतिरेकक चित्रण भेल अछि जइसँ कोनो वस्तुक विश्वासनीयतापर प्रश्नचिन्ह लागि गेल अछि। ई कथा लोकतंत्रमे लोक आ तंत्र दुनूक स्‍खलनपर सोचबाक हेतु विवश करैत अछि।

अतहतहमे मिथिलाक वैवाहिक प्रथामे बरियाती पक्ष द्वारा सरियाती पक्षकेँ देखार करैक हेतु खाद्य वस्तुपर जोर देबाक परिष्‍कारक रूपमे सरियाती पक्ष द्वारा तेकर बदला लेबाक कथा कहल गेल अछि। एहि कथामे बरियाती पक्षकेँ पानिक संग दबाइ पिआ ओकरा सभकेँ देखार करैक प्रयास कएल गेल अछि जे लोकसंस्‍कृतिक प्रतिकूल होएबाक कारणे प्रतीयमान नहि भऽ सकल अछि। अवश्‍ये एहिमे बर पक्षमे शराब पीब‍ कऽ बरियाती जेबाक आधुनिक प्रचलनक विरुद्ध आक्रोशक अभव्यक्‍ति‍ भेल अछि। मण्‍डलजीक ई कथा कन्यादान-वरदानमे दुहू पक्षक सम्‍मान रक्षाक पारस्परिक दायित्वक प्रति कान्तासम्मि‍त उपदेश दैत अछि।

बारहम कथा अर्द्धांगिनीएहि पोथीक नामकरणक अधार बनल अछि। एहि कथामे अवकाशप्राप्त शिक्षकक अत्यन्त सूक्ष्म मनोविश्लेषण भेल अछि। अपन कमाइक बलें ओ आजीवन अपन पत्नीक दासीसँ आगू बुझबाक हेतु तैयार नहि होइत छथि मुदा जखन नोकरी समाप्त भऽ जाइ छन्हि तखन पत्नीक आवयकतापर धियान जाइ छन्हि आ अर्द्धांगिनीक महत बुझि पबैत छथि। लेखक नारीक सेविका स्वरूपकेँ मर्यादित कऽ ओकरा पुरुखक समानान्तर मूल्य प्रदान करैक पक्षपाती छथि, जेकर अभिव्यक्‍ति‍ एहि कथाक लक्ष्‍य बुझना जाइत अछि।

तेरहम कथा छी ऑपरेशनएहि कथामे मइटुग्गर नेनाक सामाजिक स्थि‍तिपर विमर्श कएल गेल अछि। जखन कोनो नेनाक माए असमय कालकवलित भऽ जाइ छै, तँ समाज ओकरा अलच्छ करि कऽ बूझए लगैत छैक आ केकरो ओकर शारीरिक ओ मानसिक विकासक चिन्ता नहि रहैत छैक। मुदा जौं ओइ‍ बच्चाक पिता दोसर बिआह कऽ ओकर प्रतिपालनक हेतु स्थानापन्न माताक बेवस्था करैत छथि तँ वएह समाज बेर-बेर ई जनबाक प्रयास करैत अछि जे सतमाए ओकर पालन नीक जकाँ कऽ रहल छैक वा नहि। समाजक ई बेवहार ओकर क्रूर मानसिकताक परिचय दैत अछि जइसँ नेना आ ओकर पिता आहत होइले बाध्य होइत छथि। लेखक समाजक एहि विरूपित मानसिकतापर व्‍यंग्‍य करब एहि कथाक उदेश्‍य रखलनि अछि। अही माध्यमसँ अस्पतालक दुर्व्‍यवस्था तथा प्राइवेट प्रैक्‍टि‍सक कारणपर सेहो विमर्श कएल गेल अछि।

चौदहम कथा धर्मनाथढहैत जमींदार परिवारक गाथा छी। एहिमे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनक हेतु सामाजिक जागरण कथाकारक उदेश्‍य बुझना जाइत अछि। एकर नायक धर्मनाथ जमीन्‍दार परिवारक छथि आ पिताक अमलदारीमे धरि हुनक परिवार देहेजक संतोष्‍क रहल अछि आ खेत बेचि-बेचि कन्यादान करैत अपन कुलाभिमानक रक्षा करैत रहल अछि। मुदा ई मिथ्‍याभिमान जमीन्‍दारी उन्‍मूलनसँ क्षत-विक्षत भऽ गेल छै आ धर्मनाथ एहि स्थि‍तिमे नहि रहि पबैत छथि जे पुत्रीक बिआह जमीन्‍दारे परिवारमे करैक हेतु धन जुटा पाबथि। अन्तत: ओ प्रोफेसर रामरतन सन दहेजविरोधी व्यक्‍ति‍क सहायतासँ एकटा कर्मयोगी बालकसँ अपन बेटीक बिआह ठीक कऽ लैत छथि आ मिथ्‍या प्रतिष्ठाकेँ चुनौती दैत छथि। परिणामत: हुनक पिता अपन कुलाभिमानपर प्रहार होइत देखि मृत्युकेँ प्राप्त कऽ लैत छथि। धिया-पुताक थपड़ी बाजा-बजा ई कहब जे-

“‍बाबा मुइला पुड़ी-जिलेबीक भोज खाएब।वस्तुत: परम्परा आ अन्धविश्वासँ जकड़ल सामाजिक बेवस्थाक विनाशक प्रति उत्सव थिक जे दहेज प्रथाक उन्‍मूलनकेँ संकेतित करैत ई ईंगित करैत अछि जे जौं लोक मिथ्‍याभिमानक तियाग नहि करता आ दहेज देब-लेबकेँ सामाजिक प्रतिष्ठाक मानदंड बनौने रहता तँ अद्य: पतन अवश्‍यम्‍भावी अछि।

सरोजनीप्रेम बिआहपर आधारित कथा थिक। नायिका सरोजनी जमीन्‍दार घरक कन्या छथि। हिनक भाय हृदयनारायण बिलैतिन कन्यासँ प्रेम बिआह कऽ लेने छथिन। ईहो अपन बालसखा रमेशक संग बिआह कऽ लइ छथि। रमेश हिनके नोकर घूरनक शिक्षित पुत्र छथि। आर्थिक ओ सामाजिक दुनू स्तरपर असमान लोकक विजातीय बिआहक समर्थनक ई अधार जे अपन मालिक हम स्वयं छी। हुनको बुझैबैन‍। पुतोहु इसाइ भेलैन‍ से बड़ बढ़ियाँ। अखन धरि जातिक पहाड़ जे समाजमे बनल अछि ओकरा मेटाएब। जे समाज भूखलकेँ पेट नै भरैए‍, नाँगैटकेँ वस्त्र नै दऽ सकैए‍, बेघरकेँ घर नै बना सकैए‍, मूर्खकेँ पढ़ा नै सकैए‍, लुटैत इज्जतकेँ बँचा नै सकैए‍, ओइ‍‍ समाजकेँ विरोध करैक कोन अधिकार छइ?”

उपदेशात्मक ओ असहज तथा सिने जगतक वस्तु जकाँ असहजतासँ प्रभावित बुझना जाइत अछि। तथापि कथाकार जातीय बेवस्थापर आधारित वैवाहिक पद्धतिकेँ गुण ओ प्रेमपर आधारित करैक समर्थन कऽ एहि प्रथामे युगानुरूप परिवर्त्तनक आकांक्षी बुझना जाइत छथि। विश्रृंखलित होइत वैवाहिक बेवस्थाक प्रति समाजक ध्‍यान आकृष्ट करब एहि कथाक उदेश्‍य बुझना जाइत अछि। संग्रहक सोलहम कथा सुभद्राविधवा बिआहक समस्‍यापर आधारित अछि। दैवयोगसँ सुभद्राक पतिक देहान्त हवाइ दुर्घटनासँ भऽ जाइत छन्हि। ओ अभिशप्त जीवन बितेबाक हेतु बाध्य भऽ जाइत छथि। एकर कारण ई अछि जे ओ जाहि जातिसँ अबैत छथि तइमे विधवा बिआहकेँ मान्‍यता नहि छैक। कथाकार रूपलाल बाबा नामक एक गोट गाँधीवादी चरित्रक अवतारणा करैत छथि जे नारी समुत्‍थानक प्रति समरपित छथि। हिनक मान्‍यता छन्हि जे जहिना पत्नीक मुइला उत्तर पतिकेँ दोसर बिआह करैक अधिकार छैक तहिना पतिक मुइला उत्तर पत्नियोकेँ दोसर बिआहक अधिकार भेटबाक चाही। रूपलाल बाबा सुभद्राक पिताकेँ मानाय सुशील नामक युवकसँ ओकर बिआह सम्पन्न करबैत छथि। एहि तरहेँ समाजमे विधवाकेँ मान्‍यता भेटैत छैक। आदर्शवादी संकल्‍पनापर आधारित ई कथा वस्तुत: एहि सामाजिक समस्‍याक प्रति कथाकारक प्रगतिवादी मूल्यकेँ उद्घाटित करैत अछि।

सोनमाकाकाएहि संग्रहक सतरहम कथा छी। ई कथा मानव धर्मपर आधारित अछि। एकर प्रधान पात्र सोनमाकाका स्वयं पत्नीक बीमारीसँ त्रस्त छथि। ओकर इलाज करा जखन गाम घूमैत छथि तँ रामकिसुन नामक एकटा बिगड़ल बेकतीक मृत्युक समाचार भेटैत छन्हि। ओ व्यसनक चक्रमे पड़ि तेतेक निर्धन भऽ गेल छल जे ओकरा कफनो धरिक उपाय नहि छेलैक। सोनमाकाका समाजक सहायतासँ ओकर संस्‍कार करबैत छथि आ ओकर अनाथ बालककेँ अपन बेटीक संग बिआह करा ओकर जीवनकेँ सामान्‍य बनेबाक प्रयत्न करैत छथि। कथाकार एहि आदर्श पुरुखक स्थापना कऽ ई सिद्धकरए चाहैत छथि जे जौं समाज चाहए तँ केहनो पैघ समस्‍याक निदान भऽ सकैत छैक।

अठारहम कथा दोती बिआहपरित्यक्‍ताक पुनर्विवाहपर आधारित अछि। एकर प्रमुख पुरुख पात्र उमाकान्त छथि जे पचास वर्षक आयुमे पत्नीक देहावसानक कारणे एकाकी जीवन जीबाक हेतु बाध्य छथि। जीवन संगिनीक अभावमे हिनक दिन काटब पहाड़ भऽ गेल छन्हि। दोसर दिस यशोदिया नामक एकटा युवती छथि जनिक पति दिल्‍लीमे नोकरी करैत छेलखिन मुदा शहरी चाकचिक्यमे पड़ि यशोदियाकेँ परित्यक्त कऽ कतौ पड़ा जाइत छथि। निस्‍सहाय यशोदिया गाम घुमि अबैत अछि आ हरिनारायण नामक एक गोट सम्‍भ्रान्त बेकतीक आश्रममे रहि जीवन-यापन करए लगैत अछि। हरिनारायण उमाकान्तक स्थि‍तिकेँ परखि हुनका यशोदिया संग बिआह करा दैत छथिन जइसँ दुनूकेँ अवलम्ब भेटैत छन्हि आ दूटा उजड़ल परिवार बसि पबैत अछि। एहि कथाक माध्यमे कथाकारक ई उदेश्‍य स्पष्ट होइत छन्हि जे मानव जीवनकेँ सन्‍तुलित रखबाक हेतु पति-पत्नीमे कियो जौं एकाकी जीवन जीबैत अछि, तँ ओ अनेक प्रकारक मानसिक बेथामे पड़ल रहैत अछि जेकर निदानक हेतु समतूल युगल बनयबाक हेतु प्रयत्न होएबाक चाही।

उनैसम कथा पड़ाइनग्राम्य जीवने पसरल अराजकताक कथा छी जेकरा कारणे बलगर लोक निर्बलकेँ सता कऽ ओकरा गामसँ उपटयबापर लगल रहैत अछि। एहि कथाक पात्र चेथरू महाजनी अत्याचार, खेत-पथारमे बेइमानी-शैतानी, चोरि, बलपूर्वक दोसरक जताति नष्ट करब आ माए-बहिन‍क इज्जतक संग खेलवाड़ करब आदिसँ त्रस्त भऽ गाम छोड़ि दैत अछि आ नेपाल जा कऽ बसि जाइत अछि। ओतए परिश्रमपूर्वक अर्जित धनसँ सम्‍पैत‍‍शाली बनि नीक जकाँ गुजर करए लगैत अछि। एहि कथामे कथाकारक उदेश्‍य ग्राम जीवनक किछु समस्‍या सभकेँ इंगित करब बुझना जाइत अछि मुदा आधुनिक परिप्रेक्ष्‍यमे एहिमे स्‍वाभाविकताक अभाव बुझना जाइत अछि।

केतौ नैकथा संग्रहक अन्ति‍म कथा छी जे वस्तुत: यात्रा-वृत्तान्त छी। एहिमे जनकपुर यात्राक वर्णन आएल अछि। गामक एकटा टोली जनकपुरमे बिआह पंचमीक मेला देखबाक हेतु प्रस्थान करैत अछि मुदा बिआह पंचमी दिन ई लोकनि धनुषा दर्शन करैक हेतु जाइत छथि आ ओतए गाड़ी खराब भऽ जेबाक कारणे बिआह पंचमीक रातिमे पुन: जनकपुर घुमि नहि पबैत छथि जइसँ हुनकालोकनिकेँ जनकपुरक कार्यक्रम देखबाक अवसर नहि भेटि पबैत छन्हि। अन्तत: हारि-थाकि कऽ सभ सोचैत छथि जे केतए एलौं तँ केतौ नहि। दुर्योगवशात् मनोरथपूर्त्तिमे बाधा होएबाक एहि कथामे वस्तुत: जनकपुर यात्राक एक गोट मनोरम वृत्तान्त भेटैत अछि।

एहि तरहेँ अर्द्धांगिनी कथा संग्रह मिथिलाक ग्राम्य जीवनक विभिन्न आयाम ओ समस्‍या तथा तेकर समाधान सबहक आदर्शोन्‍मुख यथार्थवादी व्याख्या छी।

एहि संग्रहक कथा सभ वर्णन-प्रधान देखि पड़ैत अछि। कथाकारक शैली एहेन छन्हि जे ओ कोनो घटनाकेँ प्रस्तुत करबासँ पूर्व ओकर पूर्ववीठिकाकेँ ततेक सघन कऽ दैत छथि जे पाठक तइमे तल्‍लीन भऽ जाइत छथि। एहि प्रकारक वर्णन-विन्यास हिनक औपन्यासिक वृत्ति‍केँ स्पष्ट करैत अछि जइमे वर्णनक हेतु पयाप्त अवसर रहैत छैक।

मनोविश्लेषण मण्‍डलजीक कथा सबहक अन्‍यतम विशिष्टता छियनि। ई जाहि कोनो पात्रकेँ प्रस्तुत करैत छथि तेकर अन्तस्तलमे प्रेवेश कऽ ओकर भावराशिकेँ अभिव्यक्त कऽ दैत छथि जइसँ पात्रक चरित्र स्वत: स्‍फुट हुअ लगैत अछि। उदाहरणार्थ बपौती सम्‍पैत‍ कथामे गुलटेनक मानसिक स्थि‍तिकेँ अभिव्यक्त करैत ई पाँती द्रष्टव्य अछि-

मनमे उठलै पुरने कपड़ा जकाँ परिवारो होइए। जहिना पुरना कपड़ाकेँ एकठामक फाट सीने दोसरठाम मसैक जाइ छै तहिना परिवारोक काजक अछि। एकटा पुराउ दोसर आबि जाएत। मुदा चिन्ता आगू-मुहेँ नै ससैर रूकि गेलइ। चिन्ताकेँ अँटैकते गुलटेनक मनमे खुशी एलइ। अपनापर ग्लानि भेलै जे जइ धरतीपर बसल परिवारमे जन्म लेबाक सेहन्ता देवियो-देवताकेँ होइ छैन ओकरा हम माया-जाल किए बुझै छी? ई दुनियाँ केकरा-ले छइ? केकरो कहने दुनियाँ असत्य भऽ जाएत? ई दुनियाँ उपयोग करैक वस्तु छी नइ कि उपभोग करैक...।

मण्‍डलजी कथाक भाषामे मैथिलीक गमैया बोली-वाणीक सहज स्वरूप अभिव्यक्त भेल अछि। ई पात्रानुरूप भाषाक प्रयोग केलनि अछि जइसँ प्रत्येक पात्रक बौद्धि‍क ओ सामाजिक स्थि‍ति स्पष्ट होइत चलि जाइत अछि। हिनक कथा सभमे कथाकारक भाषा सेहो मैथिलीक लोकजगतक भाषाहिक अनुगमन करैत अछि जइमे सहजता अछि। कनेको कृत्रिम प्रयोगसँ ई बँचैत रहल छथि। हिनक भाषामे तद्भव ओ देशज शब्दक प्रचुर प्रयोग भेल अछि। युग्म शब्दक प्रयोग हिनक भाषाकेँ लालित्य प्रदान करबामे आ ओकर प्रवाहमयतामे सहायक रहलनि अछि। उदाहरणक हेतु माल-जाल, लेब-देब, दोकान-दौरी, चट्टी-बट्टी, ताड़ी-दारू, छहर-महर, चोरी-डकैती, बाल-बोध, बेटा-पुतोहु, भोज-काज, अन्हड़-बिहाड़ि, दार-मदार, सुक-पाक, भूखल-दुखल, चीज-वौस, घुसका-फुसका आदिकेँ देखल जा सकैछ।

मण्‍डलजी कथा भाषाक ई अन्‍यतम विशिष्टता छी जे ई कोनो स्थि‍तिकेँ पाठकक समक्ष अभिव्यक्त करैक हेतु चमत्‍कारिक उपमानक प्रयोग करैत छथि जाहिसँ वस्तुस्थि‍तिक स्पष्ट चित्र पाठकक सोझाँ आबि जाइत अछि यथा-

जहिना खढ़हाएल खेतमे हरबाहकेँ हर जोतब भरिगर बुझि पड़ैत तहिना सुशीलक मन समस्याक वोनाएल रूप देखलक। कौलेजकेँ बीचमे देखि नजैर सीमा दिस बढ़ौलक। एक सीमा सर्वोच्च शिक्षण दिस पड़लै तँ दोसर गामक टटघरबला स्कूलपर। जहिना पहाड़सँ निकैल अनवरत गतिसँ चलि नदी समुद्रमे जा मिलैए तहिना ने टटघरोक ज्ञान उड़ि कऽ सर्वोच्च ज्ञानक समुद्रमे मिलत।आदि।

एतावता कहल जा सकैछ जे मण्‍डलजीक कथा वर्णनक दृष्टिएँ मिथिलाक ग्रामजीवनक यथार्थवादी चित्र, घटनाक दृष्टिएँ आदर्शक प्रति अभिभूत, सूक्ष्म मनोविश्लेषणक प्रति प्रतिबद्ध तथा उदेश्‍यक दृष्टि‍एँ लोक मंगलकारी अछि। मैथिलीक आधुनिक कथा लेखन हिनक रचना सभसँ सम्बलित भेल अछि आ एकर समाजोपयोगी तत्त्व सभ अनन्त-काल धरि मिथिलाक लोकजीवनकेँ प्रेरित-प्रभावित करैत रहत।

-डॉ. योगानन्द झा

कबिलपुर, लहेरियासराय

दरभंगा- 846001 (बिहार)

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