घरक खर्च, कथाकार जगदीश प्रसाद मण्डल

सात-आठ बर्खसँ रतनेसर काकाकेँ दुनू बापूतक बीच गुमा-गुमी चलैत आबि रहल छैन। आने परिवार जकाँ, जेना समाजक बीच परिवारक रूप-रेखा बनलो अछि बनियोँ तँ रहले अछि। दुनू बापूतक बीच परिवेशक अनुकूलता सोभाविके अछि। तही अनुकूल रतनेसर काका आ जुगुतलालक बीच सेहो चलिये आबि रहल छैन। अपन-अपन विचारो आ परिवेशोक प्रभाव पड़ने दुनू बापूतक बीच गुमा-गुमी सोभाविक प्रक्रिया छीहे। कहब केना छी? परिवारक संचालन कर्ताक रूपमे रतनेसर काका छैथ जखन कि जुगुतलालकेँ सात-आठ बर्ख कौलेजसँ पढ़ाइ समाप्त केला भेल अछि?

जखन जुगुतलाल हाले-सालमे कौलेजसँ आएल छल तखन जएह जीवन कौलेज अवस्थामे छेलै, माने परिवारसँ निफिकीर जीवन, ओ पढ़ाइ समाप्त केलाक पछातियो जुगुतलालमे ओहिना छल जहिना पढ़ाइक समय छेलइ। रतनेसर काका ऐ ताकमे छला जे नव उमेरक जुगुतलाल अछि तहूमे कौलेजसँ पढ़ि कऽ आएल अछि ओ तँ अपन जीवन अपने निरधारित करैत ने जीवन निरधारण करत आकि हमरा कहलासँ हेतइ। तहूमे देखते छी जे विचार भेद, सम्बन्धक कमीक स्वर आ अधिकार भेद केते उजागर भऽ गेल अछि। सभ अपनाकेँ अठारह बर्ख पुरिते वा चोरा-नुकाकऽ चौदहो-पनरह बर्खक अवस्थाकेँ अठारह बर्ख बना अपन अधिकारकेँ प्रयोग करैत सोझा-सोझी समाजक बीच बिआहो करए लगल अछि आ भोँटो खसैबते अछि। शुरूमे, जखन जुगुतलाल कौलेजसँ आएल छल तखन अपन विचार बढ़बैत पिताकेँ कहने रहैन-

बाबू, आमक एकटा तेहेन गाछी लगाउ जे भलेँ ओ रकबा हिसाबसँ छोटे किए ने होइ, मुदा बारहो मास आम हुअए।  

जुगुतलालक विचार सुनि रतनेसर कक्काक अपनो मन डोललैन। डोललैन ई जे बहुत रंगक फल अपना ऐठाम अछिए जे बारहो मास होइए, मुदा आम सन अमृत फल किए ने हएत। ओना, रतनेसर काकाकेँ बुझले छैन जे अपन पूर्वज बरहमसिया आमक गाछ हमरा सभकेँ देने गेल छैथ, मुदा देलाक पछातियो अछि नहि। जँ से रहैत तँ बरहमसिया आमक गाछियो रहैत आ आम खाइक चलैन सेहो रहैत। से तँ जहिना गाछी नहि अछि तहिना खाइक चलैनियोँ तँ नहियेँ अछि। खाएर जे अछि, तइसँ रतनेसर काकाकेँ कोन मतलब छैन। बेटाक विचारकेँ प्रोत्साहित सुझाव बुझि शिरोधार्य केलैन मुदा अपन पसरल जीवनसँ शेष समय बँचल नहि देख गाछी दिस धियान नहि देलैन। रतनेसर कक्काक अपन जीवन अपना रूटिंगमे बान्हल छैन तँए बेटोकेँ, माने जुगुतलालकेँ किछु ने कहै छैथ। कहबो केना करता, जे सभ तरहेँ समरथवयस्कमानि दुनियाँमे ठाढ़ अछि ओ तँ अपने ने दुनियाँ देख अपन दुनियाँ गढ़ैक सूत्र-पात करत आकि विधाता आबि मुँह-कान गढ़ि देथिन।

अपन मनक मस्तीमे रतनेसर काकाकेँ तुलसी बाबाक विनय पत्रिकाक पाँती- केसव, कही जात किछु कहियो। देखत जब रचना विचित्र, समुझि मने-मन रहिये केसव, कही न जात किछु कहियो..।किछु-किछु मोन पड़लैन।

ओना, परिवारमे रतनेसरो काका छैथ आ जुगुतलालो अछि जे आने बाप-बेटा जकाँ सेहो छथिए, मुदा एक परिवार रहितो दुनूक दुनू रूपमे देख रहला अछि। रतनेसर काका परिवारमे समा समैयक संग परिवार संचालित करैमे भरि दिन लागल रहै छैथ, मुदा जुगुतलाल नाटकक बनल पात्र जकाँ परिवारकेँ बुझि रहल अछि। ओना, समाजक जे विचारधारा चलि रहल अछि तइमे दुनू विचारधाराक मंत्र सेहो चलिये रहल अछि। किछु गोरेक मंत्र छैन, ‘मनुक्खकेँ अपना केलासँ किछु ने होइ छै, भगवानक देलासँ सभकिछु होइ छै। जँ से नहि होइत तँ जे भरि दिन सड़कपर ईंटा-पाथरक काज करैए ओकरा जेते मजूरी भेटै छै तइसँ हजारो गुणा कमाइ बैसल-बैसल लोककेँ कमीशनसँ नहि भेटै छै सेहो बात नहियेँ अछि। सेहो तँ अछिए। खाएर जे अछि, मुदा एहेनो मंत्र समाजमे अछिए जे जे किछु हएत तँ ओ अपना केलासँ हएत। भगवान हाथ-पएर बला मनुख जकाँ नेतघटू थोड़े छैथ। जे केकरो गरदैन कटता आकि खून चुसता। ओ सभकेँ एक्के नजैरसँ देखबो करै छैथ आ अपन ऊर्ज शक्तिसँ ऊर्जवानो तँ बनैबते छैथ। तँए ने कखनो काल गीतो गबिते छैथ जे जे बगुला जकाँ लटकलहापर लक लगौने रहत ओ लटकलक लटकले रहि जाएत।

साल भरिक पछाइत जुगुतलाल पुन: पिता लग दोहरबैत बाजल-

बाबू, आमक गाछीपर धियान नइ देलिऐ?”

जुगुतलालक तगेदा सुनि रतनेसर कक्काक मनमे एकसंग अनेको प्रश्न, सौनक मेघ जकाँ टकरा गेलैन। मुदा कोन प्रश्नक उत्तर ऐठाम उपयुक्त हएत.? मने-मन रतनेसर काका सोचलैन- ओना, जुगुतलालक इच्छाकेँ हम कद्र करै छी; जे मास दिनक फल सालो भरि खाइक इच्छा रखैए। यएह ने भेल जीवन जे लूटि आनि कुटि खाइ, भिनसर भने फेर जाइ। आकि टीनक टीन घी घरेमे राखब आ घर-आँगन घीबाएल-महकाएब.! आमक गाछीपर पुन: रतनेसर कक्काक मन घुमिकऽ एलैन। जुगुतलालक इच्छा ठीके साधना पक्षक इच्छा जकाँ अछि, मुदा इच्छा तँ तखन ने इच्छित भेल जखन इच्छित भेल विचार मनमे रखि इच्छित कर्ममे अपनाकेँ बान्हि इच्छित दिशा दिस बढ़ब। तखन ने साधनाक इच्छा इच्छित फल दइबला इच्छा भेल। नहि तँ अनिच्छा भेल। खाएर जे अछि ओ जुगुतलाल जानए। अपनो चूक तँ जरूर भेले अछि जे तीन किस्मक तीनटा बरहमसिया आमक गाछ गाममे छल, जँ तीनू आमक गाछक जोगार केने रहितौं तँ एकटा गाछी भइये गेल रहैत। भलेँ आजुक जे परिवेश बनि गेल अछि ओ अन्नसँ लऽ कऽ फल आ तीमन-तरकारीक खेतीक उजाड़िक भयावह स्थिति अछि। जे मनुखसँ लऽ कऽ चिड़ै-चुनमुनी, कीड़ी-फतिंगी, जन-जानवर तक उपद्रव करिते अछि। ओना, पहिनौं छल मुदा ओ छल दोसर रूपमे...।

लगले रतनेसर कक्काक मन अपने कहलकैन जे जइ दिनक जे भविष्य छल ओ भूत बनि भूमे विलीन भऽ गेल। जँ छोड़ै-जोकर छल तँ नीक भेल आ जँ छुटै-जोकर नहि अछि तखन आइयो तँ ओकर जोगार कएले जा सकैए। ..पोखरिक पानिमे डुमकुनियाँ काटि जहिना कियो भुक-दे पानिक ऊपरमे उठैए तहिना रतनेसर कक्काक मनमे जुगुतलाल उठलैन। बजला-

हौ जुगुत, धियानेपर सँ उतैर गेल। पहिलुका गाछी-कलम तँ आब रहल नहि जइसँ गाछ लगा अखनो रोपि लइतौं। दोसर कोनो रस्ता तेहेन नजैरपर नहि आएल तँए मनसँ सेहो उतैर गेल।

पिताक विचार सुनि जुगुतलाल बाजल किछु नहि मुदा मनमे कचोट लगबे केलइ। जहिना रतनेसर कक्काक बात सुनि जुगुतलालकेँ कचोट लागल तहिना जुगुतलालक विचारसँ रतनेसर काकाकेँ पहिनहिसँ कचोट लागि चुकल छेलैन। मुदा परिवारक निसचित समैयक संचालनकर्ताक रूपमे अपनाकेँ देख मने-मन विचारकेँ मनेमे रखि लेलैन। अपने मनमे उठलैन जे जुगुतलाल पढ़ल-लिखल, माने बी.ए. पास अछि आ परिवरोमे अछि, दूटा बालो-बच्चा छइहे, मुदा कोन नोकरीक आस लगौने ओहिना अखनो अछि जहिना पढ़ै-लिखैक समय गुजारलक.? ओना तँ एहनो तपस्वी सभ धरतीपर भेबे केलाह जे क्षणे-पलमे अपन तपस्या पुड़ा लेलैन, मुदा पाँच बर्खसँ चौदह बर्ख धरिक तपस्याक संख्या बेसी अछिए। रामो चौदह बर्ख बनवासमे बितौलैन। तैठाम अट्ठारह बर्खक तपस्याक जीवनमाने पढ़ै-लिखैक समय–जुगुतलालो बितौनहि अछि, तइमे मानवीय जीवनक ओकरा की सूत्र भेटलै.? एकाएक रतनेसर कक्काक मन असथिर भेलैन। किछु बिलमला पछाइत रतनेसर कक्काक मनमे जेना समाजक एकटा दृश्य सामने एलैन। नोकरी तकै पाछू लोक अपन सम्पूर्ण जिनगी बिता रहल अछि, जइमे ने अपन जिनगी बँचै छै आ ने नोकरी भेटै छै। अपन क्रियमान शरीरक शक्तिकेँ ओहिना-क-ओहिना मृत्युक आगिमे भष्म करैए। जुगुतलालो तँ नोकरियेक आसमे बैसल अछि जइसँ गाम-परिवारक काजसँ जे अनुरक्त हेबा चाही से नहि भेने विरक्त अइछे..।

मुदा जे संस्कार समाजक बीच पसैर रहल अछि ओइ अनुकूल अपन रूआबमे जुगुतलाल पिताकेँ कहबो केने छल आ दोहरा कऽ तगेदो केने छेलैन। ऐठाम अनुरक्त आ विरक्तक आध्यात्मिक बात नहि, ऐठाम किसान परिवारक जीवनक विचार मात्र अछि। रतनेसर काका पहिने अपनापर नजैर उठौलैन जे अपन आकर्षण केना परिवार आ समाजपर पड़ल जे ने गाम छोड़ैक मन कहियो भेल आ ने परिवारकेँ कहियो अपनासँ अलग बुझलौं। सभ किछु अप्पन छी, एहेन विचार मनमे शुरूए-सँ रहल। जखन कि जुगुतलाल एकटा साधारण काज, ‘बरहमसिया आमक गाछी; लगबैले बेर-बेर कहलक अछि मुदा अपन इच्छा अपने पुरौत, से पुरै छै कि नहि ओ अखनो धरि नहि बुझि रहल अछि। ओना, इच्छा अनन्त अछि, हेबो चाही।

जुगुतलालक अखन धरिक जे जीवन रहल तइमे समा रतनेसर काका विचार करए लगला जे जुगुतलालकेँ किछु कहिऐ वा ओहिना छोड़ि दिऐ। अखन ओकर उमेर छबीस-सत्ताइस बर्खक अछि। ओहुना पनरह बर्खक पछाइत जुआनीक रंगो-रूप आ चिष्टोचार शरीरमे अबए लगैए, तैठाम जुगुतलाल छबीस-सत्ताइस बर्खक उमर पार कऽ रहल अछि आ अखनो धरि ओकर चेतना ओहिना-क-ओहिना किए सुतल छै?

..अपन जीवनक जे दायित्व रतनेसर कक्काक छेलैन, माने बच्चा जन्मसँ जीवन धारण करबैत, पढ़बैत-लिखबैत, बिआह-दान करैत परिवार तक पहुँचा दैक, तैठाम एकटा पढ़ल-लिखल बेटा जुगुतलाल सनक, केँ की दायित्व बनैए? मनुक्खक जीवन आ धारक पानि तँ सदैत प्रवाहित होइबला छी, तैठाम जँ जिनगी ठमकैए तँ केतौ-ने-केतौ कर्ताक कर्ममे कमी अछिए। मने-मन रतनेसर काका जुगुतलालक जिनगीकेँ पछुअबैत जखन विचारधारा लग पहुँचला कि एकाएक जुगुतलालक असल चेहरा नजैरिक सोझमे नाचि उठलैन। जइसँ मनमे प्रश्न उठि गेलैन जे जीवनमे विचारधारा की?

विचारक समूहेक प्रवाहक नाम ने भेल विचारधारा। जइसँ जीवनक धारमे मनुक्ख अपन देहसँ लऽ कऽ परिवार-समाज, देश-दुनियाँक बीच प्रवाहित होइत सदैत प्रवाहमान बनल रहैए। जेकरा जीवनधाराक संग विचारधारा सेहो कहै छिऐ। एकाएक रतनेसर कक्काक मन जीवनक ओइ सीमापर पहुँच गेलैन जैठाम क्रियासँ हटि मात्र ज्ञान दिस बढ़ए लगैए। की ऐठाम शिक्षण-संस्थाकेँ दोष देल जाए वा परिवारकेँ..? किसान परिवारक ब्रह्मचारी–माने  विद्यार्थी–जीवन जे ज्ञान-शक्तिसँ लऽ कऽ कर्म-शक्ति धरि अर्जन करैए। तैठाम कोदारि-खुरपीकेँ छुअब लाजक काज बुझब केते उचित हएत। एहेन संस्कार बच्चामे पनैप केना रहल अछि? की माता-पिता चौबीसो घन्टा पठने-पाठन ले बेटा-बेटीकेँ छोड़ि रहला अछि वा परिवारक आचार-विचार सेहो सिखा रहला अछि? तैठाम ईहो परीक्षा लेब आवश्यक अछिए किने जे बच्चा परिवारसँ जुड़ल केते चलैए आ टुटल केते चलैए। अखन धरिक समाजक बीच जे दीक्षा देबक चलैन अछि ओ अपूर्ण अछिए। शिक्षा भेटला पछाइत दीक्षा भेटब उचित वा पहिने दीक्षा पएब उचित, ई तँ अनिर्णित विचार अछिए। जेना विश्वविद्यालय सभमे पढ़ाइ पूर्ण भेला पछाइत दीक्षान्त समारोह होइए। मुदा समाजक बीच एहेन नहि अछि जे पहिने दीक्षे नहि देल जाइए। पहिने कियो यएह बजैए जे हमरापर बिसवास अछि किने?’ बिसवास मुँहक मधुर बोल थोड़े छी, ओ तँ आशाक फल छी। जइ परिवारक सदस्य जेते क्रियाशील भऽ अपन परिवारक प्रति कर्तव्यनिष्ट छैथ ओइ परिवारमे ओ ओते बिसवास पात्र बनले छैथ, जइले हुनका थोड़े कोनो पैरवी-पैगाम परिवारमे करए पड़तैन। भेल तँ एतबे ने जे पियासल छी वा भूखल छी वा बिमार छी तँ एक लोटा पानि वा भोजन वा बिमारीक दबाइ वा सेवा तुकपर, माने उचित समयपर भेट जाइन तँ किए ने लोकक बिसवासो, जिनगियो आ परिवारोसँ विश्वस्त बनल रहता। ओना, ईहो कहले जा सकैए जे तखन लोक अपने परिवारसँ आक्रोशित भऽ आत्महत्या किए करैए? ..आत्महत्याक विचार मनमे अबिते एकाएक रतनेसर कक्काक मनमे विचार ठमकलैन।

किछु समय ठमकला पछाइत रतनेसर कक्काक चेतनशक्ति अपने जगलैन। जगिते दूटा विचार मनमे उठि गेलैन। पहिल उठलैन आत्महत्या आ दोसर उठलैन परिवारक विषम स्थिति। आत्महत्या तँ यएह ने भेल जे आत्माक हत्या। आत्माक हत्या शरीरकेँ फँसरीए लगा मुइने वा पटरीपर गाड़ीसँ कटबक संग जहर-माहूर खेने वा बिजलीमे सटि मरबे तँ नहि छी। ऐठाम आत्माक जे वास्तविक रूपो आ अर्थो अछि ओ सोल्होअना झँपाएल अछि। प्राणक आत्मा संग आत्मा आचारो-विचार आ जिनगियोसँ जुड़ल अछि, जे शरीरसँ अलग रूपमे बास करैए, तैठाम आत्महत्याक जे रूप लोकक बीच चलनसारि अछि ओ आध-अधुरा भइये जाइए। दोसर, जइ परिवारक गठन हजारो बर्खसँ भेल आबि रहल अछि, जे मनुक्खक जीवनक उच्च कोटिक संस्था सेहो बनले अबैत रहल अछि, अखनो अछि, तइ परिवारमे जीवनसँ एतेक घृणा मनुक्खमे केना पैदा लइए जे अपन शरीरकेँ जघन्य-सँ-जघन्य मृत्युक जगहपर धकेल दइए।

आठ बर्खक पछाइत, माने जुगुतलाल सत्ताइस बर्खमे पहुँच गेल, अखन तक रतनेसर काका गुमे-गुम सभकिछु देख रहल छला जे एकटा पढ़ल-लिखल नौजवानकेँ जीवनक प्रति की गतिविधि बनि रहल अछि। जुगुतलालक प्रति रतनेसर कक्काक आक्रोश जगलैन। आक्रोश ई जगलैन जे जे नवजुवक सात बर्ख पूर्व कौलेजसँ शिक्षा पेब गामो, परिवारो आ जीवनोमे मरल मुरदा जकाँ बनल अछि, ओकरा मनमे कनियोँ विचार नइ उठै छै जे अधवयसू माता-पिता अछि, पत्नीक संग दूटा बच्चो अछि..!

उत्तेजित मन रतनेसर कक्काक रहबे करैन तँए एहेन विचार मनमे एलैन। मुदा सुचित लोक जकाँ अपनाकेँ सचेत करैत विचारलैन जे परिवारो आ समाजोक बीच जे जीवनक जाल-महजाल जकाँ लागल अछि ओकरो महत्व तँ अछिए। जघन्य-सँ-जघन्य अपराधीकेँ परिवारोमे आ समाजोमे भौजाइ वा मित्रवत सम्बन्धक जे छैथ ओ हँसियो कऽ तँ कहबे करै छैन जे अहाँ एहेन अपराधी छी। भलेँ ओ हहासक हँसियापर किएक ने चढ़ल हुअए।

एकाएक रतनेसर कक्काक अपन मन ओइ सीमापर पहुँच गेलैन जेतए अपन चूक बेटाक प्रति देखए लगला। अपन चूक ई देखए लगला जे अखन तक जुगुतलाल जिनगीक बीस बर्ख स्कूल-कौलेजमे बितौलक। जखन ओ हाइस्कूल टपल, माने हाइस्कूल तक जुगुतलाल घरेपर सँ आबि-जाए पढ़लक, तेकर पछाइत ने परिवारसँ हटि बाहर गेल। मुदा तइसँ पहिने, जखन परिवारक बीच रहि पढ़लक तखन ओकरा परिवारसँ जेहेन साटिकऽ राखबक जरूरत छल से अपने नइ कऽ पेलौं। ओना, तइमे अपन ओते दोख नहि अछि जेते माइक दोख भेल। किए तँ अपने अपन परिवारक पाछू, जीवनक पाछू बेहाल रहलौं जइसँ धिया-पुतापर ओते नजैर नहि पड़ि सकल, जेतेकक खगता छल, तँए अपनो दोखी छीहे। खाएर जे भेल ओ तँ भऽ गेल। भुताएल कहियौ आकि भोथियाएल, ओ तँ बीत गेल। मुदा आइ तँ आइ छी, जँ आबो नहि चेतैत चेतनशील बनब तँ ऐगला जिनगी आरो बेसी गरुगर बनबे करत...। जिनगीक भविष्य देख रतनेसर काका दरबज्जापर बैस पत्नियोँ आ पुतोहुओकेँ बजबैत जुगुतलालकेँ सेहो बजा पुछलैन-

बौआ, नोकरीक की आशा छह?”

आने-आन नवजुवक जकाँ जुगुतलाल बाजल-

बाबू, अखन तकक जे आयु नोकरी लेल निर्धारित अछि ओ तँ समाप्त भऽ गेल, मुदा पाँच बर्ख आरो आगू बढ़ैबला अछि।

जुगुतलालक नोकरीक आशा देख रतनेसर कक्काक मन भीतरे-भीतर तरैंग गेलैन। तरैंग ई गेलैन जे एकटा पढ़ल-लिखल नौजवानमे ई शक्ति नइ छै जे अपन दुनियाँ गढ़ि बास करत। आ नोकरीक पाछू अपन जिनगी चौपट कऽ लेत.! ..मनक तरंग रतनेसर कक्काक विचारक तरंगकेँ तरंकित केलकैन। ओही तरंगित वेगमे रतनेसर काका बजला-

आ जँ नोकरीक आयु नहि बढ़त, तखन की करबह?”

पिताक विचार जुगुतलालकेँ बिसाएल तीर जकाँ करेजमे लगल। ओना, ऐठाम सुसाएल तीर जकाँ सेहो लगि सकै छल मुदा ओ तँ जीवनानुकूल बनैए। कहैले तँ सभ मनुक्खे छी, लेकिन मनुक्खक बीच मनुक्खतामे भेद नहि अछि सेहो केना नइ कहल जाएत। कहैले गुरु शब्द एकटा छी, मुदा दुनियाँ तँ गुरुए-सँ भरले अछि। तइमे अपने ने खोजी बनि खोजब जे कोन गुरुकेँ पकैड़ शिष्य बनी जे जिनगीक धार पार कऽ सकब। गुरुसँ दुनियाँ ई भरल अछि जे जेते रंगक जीवन अछि ओइ जीवनक अनुसंधान नहि भेल अछि सेहो बात नहियेँ अछि। हँ, एते जरूर भऽ रहल अछि जे नव-नव जीवन सेहो उठि-उठि ठाढ़ भऽ रहल अछि। ओ तँ भेले अछि, भलेँ ओ जीवित हुअए आकि हेरा गेल हुअए। जँ जीवित अछि तँ आँखिक सोझमे अछि नहि जँ हेरा गेल अछि तँ ओकरा जीवनक्रियासँ तकले जा सकैए। मुदा से जुगुतलालकेँ नहि भेल, बिसाएल वाण जहिना शरीरक भीतर प्रवेश करैत ओरो विष पैदा करैए, तहिना भेल।

अखन तक जे जुगुतलालक जीवन रहल तइ अनुकूल ओकर निर्माण भेबे कएल। सबहक होइ छै। जाबे तक हाइस्कूलमे जुगुतलाल पढ़लक ताबे तक भविष्यक जीवन दिस धियाने ने गेलै आ जखन कौलेजमे आइ.ए.सँ आगू बढ़ि बी.ए.मे गेल तखन जीवन दिस नजैर पड़लै। नजैर पड़ैक कारण भेलै जे अखन तक, माने आइ.ए. तक, आगूमे बी.ए. ठाढ़ रहल अछि, जेकरा प्राप्त भेला पछाइत जिनगीक अनेक नव-नव जगह भेटैक आशा लोकक मनमे रहिते छै, तहिना जुगुतलालक मनमे सेहो बनले छल जे बी.ए. केलाक पछाइत हाइस्कूल तक शिक्षकक रूपमे वा कार्यालयमे चपरासीसँ अफसर बनैक योग्य भइये जाएब, जइसँ केतौ-ने-केतौ ठौर भेटबे करत। जेकर दोसर पक्ष परिवेशक अनुकूल ई भेबे कएल जे जहिना आन-आन नोकरिहारा अपन परिवारो आ परिवारक संग मातो-पितासँ विमुख भेल जा रहल अछि तहिना जुगुतलालकेँ सेहो मनमे घर केनहि अछि। जइसँ गाम-समाज आ परिवारक किरियो-कलापक दूरी बनिते जा रहल छेलइ। दूरी बनने किसान परिवारक किसानी जीवन गौण भइये रहल अछि। किसानी जीवनक प्रति अरूचि बढ़ने विचार-सँ-बेवहार धरिक दूरी बनियेँ रहल अछि। जे जुगुतलालकेँ सेहो भेल। जँ से नहि भेल रहैत आ माता-पिताक संग परिवारो आ गामो-समाजक जे सम्बन्ध जीवनक लेल अनिवार्य अछि ओ गौण केना भऽ गेल.?

रतनेसरो काका आ जुगुतोलालो एक परिवारमे पिता-पुत्रक रूपमे रहितो बेवहारो आ विचारोसँ दूर भइये गेल छैथ। जे सोभाविको अछि। रतनेसर काका जहिना परिवारो आ समाजोक संग संवेदनशील छैथ तहिना जुगुतलाल ओइसँ दूर अछि। जखने विचारमे दूरी बनैए तखने बेवहारोमे दूरी बनिते अछि। तहूमे जुगुतलालक मनमे अखनो यएह गरल छै जे केतौ-ने-केतौ नोकरी हेबे करत आ अपन परिवारक, ऐठाम परिवारक माने अपने, पत्नी आ बाल-बच्चा धरि सीमित अछि, संग नीक जकाँ जीवन-यापन करबे करब...। जुगुतलाल बाजल-

हमरा आयुसँ अहाँकेँ कोन मतलब अछि।

बेटाक बात रतनेसर कक्काक मनमे ठाँहि-दे लगलैन। ठाँहि-दे ई लगलैन जे जेकरा सत्ताइस बर्खक जीवनक सोल्होअना भार अपना कन्हापर उठा पार लगेलौं, तेकरा जँ एहेन विचार मनमे पनैप गेल अछि, तखन अपन जीवनक जे अन्तिम अवस्था, वृद्धावस्था औत, शरीरमे अखुनका जकाँ शक्ति नइ रहत, तखन एहेन बेटापर केतेक बिसवासक संग जीब सकै छी। एकाएक रतनेसर कक्काक मनमे विराग उठलैन। विराग उठिते विचारए लगला जे केकरोपर अपन आशा रखी आ ओ जँ आशाकेँ भग्न कऽ दिअए तखन की करब? तखन तँ यएह ने हएत जे अपटी खेतमे प्राण जाएत। रतनेसर काका अपन मनक प्रश्नकेँ अपने विरागशील मने संतोषजनक उत्तर देलकैन। बुदबुदेला-

दुनियाँमे केकरोपर आशा करब नादानी अछि। किएक तँ जखन दुनियेँ असार अछि माने नाशवान अछि, तखन तँ दुनियाँक सभ किछु ने असारे भेल। तखन असारकेँ सार बुझबे ने नदानी भेल।

अपन नदानीपर नजैर पड़िते रतनेसर कक्काक मन आगू बढ़लैन कि बुझि पड़लैन जे अपनेटामे नदानी अछि आकि आरो सभमे छइ? सभ बुझै छी जे जिनगीक अन्तिम अवस्था वृद्धावस्था भेल। जहिना जनमौटी बच्चाक सेवा माता-पिता नहि करता तँ ओ बच्चा दुनियाँमे नहि रहि सकैए। मुदा वृद्धावस्था तँ से नहि छी, अपन पूर्ण जिनगीक एक समत्वरूप छी जे अनेको जीवनकेँ देखियो कऽ आ अपन जीवनकेँ बनाइयो कऽ अनुभव प्राप्त केने छैथ। तहूमे जीवनक संग रोगो-वियाधि आ आफदो-असमानी सबहक समस्या छीहे, तैठाम ओहन समस्याक भयसँ जीवनक विचारधारासँ विमुख भऽ जाइ सेहो तँ पुरुषपन जीवन नहियेँ भेल। एकाएक रतनेसर कक्काक मन ठमकलैन। ठमकल मनमे उठलैन तखन? तखन तँ यएह ने नीक हएत जे अखन तक जे मने-मन गुम रहि, माने चुप रहि अपन विचारकेँ दबने रहलौं, तेकरा निकालि किए ने जुगुतलालक सोझामे रखि दिऐ...। सचेत पिता जकाँ रतरेसर काका बजला-

बौआ, परिवारकेँ कोन नजैरिये देख रहल छह, तेकरा अपने आँकि कऽ बाजह ते?”

चोटाएल गहुमन साँप जेना फुफकार कटैए तहिना फुफकारि जुगुतलाल बाजल-

की ओहिना कौलेज खाली डिग्री दऽ देलक आकि जीवनक संग आरो किछु देलक?”

कोनो विचारकेँ डारि-पात मोड़ि बाजल जाइए आ कोनो विचारकेँ ठाँहि-पठाँहि बाजल जाइए, मुदा रतनेसर काका एते सचेत रहला जे ऐठाम पिता-पुत्रक प्रश्न अछि। ओना, एहेन प्रश्न दुनियोँक संग उठि सकैए मुदा ओकर रस्ता किछु भिन्न हएत। फेर अपने मन कहलकैन जे अंगक धर्मक पालन जरूर करब मुदा सिर गाड़िकऽ नहि तानिकऽ, आखिर पिता किछु होथि मुदा ओ साधारण जन्मदाते टा नहि छैथ, दुनियाँक प्रथम गुरुक संग बच्चाक भाग्य-विधाता सेहो छैथ। मुदा तँए कि पिताकेँ एतबो अधिकार नहि छैन जे बेटाकेँ जीवन निर्माणक बात पुछैथ। विचारक प्रवाहमे प्रवाहित होइत रतनेसर काका बजला-

बौआ, एना नइ बुझक जे हम तोरा ई कहै छिअ जे तूँ सर्टिफिकेट कीन अनलह आकि कौलेजक पढ़ाइक समय शिक्षकक अभावमे तूँ सिनेमा देखै छेलह। हम तोरा ई पुछै छिअ जे पढ़ला-लिखला पछाइत अपन केहेन जीवन निरमाबए चाहै छह।

अखन तक जे समाजक विचारधाराक मत रहल जे मनुक्खक भाग्य-विधाता अपनासँ इतर अछि, माने भाग्य विधाता कियो छैथ, यएह विचारक संस्कार मनुक्खक चेतनक्रियाक दिवार[i] बनि जड़िकेँ नष्ट केबो केने अछि आ कइयो रहल अछि। मुदा से जुगुतलाल किए बुझत, आखिर डिग्रीयोक तँ अपन मर्यादा अछिए। आत्मबलक सृजनकर्ता छीहे। सृजनकर्ताक रूपमे जुगुतलाल बाजल-

दुनियाँक जे परिवेश अछि तइ अनुकूल जँ अपनाकेँ बना नहि चलब तँ एको दिन जीब सकै छी।

जुगुतलालक विचार सुनि रतनेसर काका मने-मन विचारलैन जे जुगुतलाल पानिक तरक भुन्ना तँ छी नहि, छी तँ घाट परक चेलबा, तँए किए ने ओहने सूतक जाल फेकी। रतनेसर काका बजला-

बौआ, घरक आमद-खर्च की छह से बुझि रहलह अछि? अहीपर घरक उत्थान-पतनक जीवन-मरण अछि।

सीनपर पकड़ल चोर जहिना अपन बुइधिक अन्तिम सूत्र दाउपर लगा बँचए चाहैए तहिना जुगुतलाल बाजल-

अहाँ तँ अपने गारजनीक लोभसँ अपना हाथ-मुट्ठीमे सभकिछु रखने छी। बड़ माश्चर्य हमरापर रहैत तँ कहितौं ने जे बौआ सन्दूकक कुँजी लाए।

जुगुतलालक विचार सुनि रतनेसर काका दिग्भ्रमित नहि भेला, विचारकेँ ढंगसँ पकैड़ तहियबैत बजला-

बौआ, पिता-पुत्रक बीच ऑफिसक हाकिम वा आने-आन स्टाफ जकाँ एक-सँ-दोसर हाथ कुंजीक आदान-प्रदान नहि करैए, ओ परिवारक गति-विधिमे अपनाकेँ सन्निहित करैत अपने कुंजी अपना हाथमे लऽ लइए। तइले तोरा मनमे एते दुख किए छह। मुदा कुंजियोक तँ अपन-अपन जगह अछि। एके कुंजीसँ ने सभ ताला खुजैए आ ने सभ तालाक कुंजीए सभकेँ रहिते छइ।

अधमरू साँप जकाँ जहिना कखनो फुफकार कटैक वायु जगै छै आ लगले चोटसँ चोटाएल दर्दसँ कराहि सेहो उठै छै तहिना जुगुतलालक मने सेहो उठए लगल। आजुक जे परिवेश बनि रहल अछि ओ दिशाहीन बनि रहल अछि, तेकर कारण सभसँ पैघ अछि जे मनुक्खमे मनुक्खपनक कमी जे दिनानुदिन बढ़ि रहल अछि। मतिछिन्नू जकाँ जेना-जेना जिनगीमे सुविधा आबि रहल अछि तेना-तेना भोगक भूख बढ़ि रहल अछि। सोभाविको अछि। मुदा तेकरा जीवनसँ हटि जँ आँकल जाए तखन आक्रोश जगिते अछि। अखन तक जहिना जीवनक जड़ि तक पकैड़ नेने अछि जे मशीने जकाँ लोकक बुधियो तेज होइ, मुदा मनुक्खक संग मनुक्खक संसार जुड़ल अछि, तेकरो ने देखब अछि। भरि रौतुका सपनामे सात सीमा मशीनक निर्माणमे टपि जेबइ, मुदा मनुक्खक जे जाल अछि, ओकरो ने नजैरमे रखैत देखबै। ईहो ने देखबै जे मनुक्खकेँ अपन स्वतंत्र देशक स्वतंत्र विचारो आ बेवहारो कोन सीमा धरि पहुँचल अछि। जीवन-मरणक, जीवन-मरणक माने ऐठाम अछि अधमरू जीवनसँ, बीच पड़ल जुगुतलालक अक-बक बन्न भऽ गेल। मुदा विचारोक तँ अपन प्रवाह छै, जइमे सइयो कि हजारो छिन्ना अछिए। छिन्ना कटैत मतिसून जकाँ जुगुतलाल अपन पिताकेँ कहलक-

अहाँ हमर की केलौं अछि।

जुगुतलालक रोड़ भेल, जहिना कोनो दालि रोड़सँ भूजि बनौल जाइए, होइए, तहिना रतनेसर कक्काक मनमे उठलैन मुदा लगले अपने विचार रोकलकैन। रोकैत विचार देलकैन जे हर मनुक्खक अपन-अपन सीमा अछि, धरतीपर जन्म लेला पछाइत लोक दुनियाँ अपन अनुकूल अपना, अपन दुनियाँ गढ़ैए। तइमे जे जेहेन कलाकार रहल ओकर दुनियाँ ओहन कलाकारीसँ सजल होइए, जइले अनेरे अपन जीवन रोकि जंजालमे पड़बो उचित नहियेँ अछि। मुदा अपने मन माने रतनेसर काकाकेँ दोसर मन चेतबैत कहलकैन, किए ने जुगुतलालकेँ अपने दुनियाँसँ परिचय करा दिऐ। यएह सोचि रतनेसर काका बजला-

बौआ, पढ़ल-लिखल नवजुवक छह, समाजमे केकरो नीक कएल नइ हुअए तँ अधलो नहियेँ करिऐ। ओना, जेहेन ओकाइत रहए तइ अनुकूल नीक जरूर करैत चली। मुदा से अखन नहि। अखन एतबे कहह जे घरक खर्च बेकतीगत तोरापर केते अछि, आ जेकरा तूँ परिवार बुझै छह तइमे केते खर्च छह। ई केतएसँ औत? तोहीं कहह।

आजुक जेहेन समाजिक परिवेश बनि रहल अछि ओ संक्रमणक स्थितिमे अछि। मुदा तइमे बहुत बेसी दूरीक सीमा बनि रहल अछि। माने ई भेल जे कोनो इलाका हुअए आकि कोनो गाम, ओकर अपन जे जीवन-शैली छै, ओइमे अपन क्रमिक विकासक परिवेश आ आजुक जे गामसँ लऽ कऽ साधारण कसबाक संग मध्यम बजार होइत, पैघ-पैघ महानगरक संग आनो-आनो देशक बीच लोकक बास भइये रहल अछि, तैठामक जे परिवेशक दिशा हएत ओ तँ नव सिरासँ मोड़ लेबे करत। तही अनुकूल जुगुतलाल बाजल-

सभ अपन भाग-तकदीर लऽ कऽ जन्म लइए आ जीवन बितबैए।

जुगुतलालक विचार सुनि रतनेसर कक्काक अपने मनमे उठलैन जे समाजक बीच परिवारक विचार एते कुत्सिततासँ भरि गेल अछि जे समसँ बिल्कुल विषम भऽ गेल अछि। मुदा रहबोक तँ अही समाजमे अछि। ओना, जुगुतलालक बात सुनि रतनेसर कक्काक मन भीतरे-भीरत हँसि रहल छेलैन जे वाह रे आजुक नव शक्ति.! रतनेसर काका बजला-

बौआ, तोरा देख दुख एकेटा अछि जे जहिना तोरा लोक बैसल देख हँसैत हेतह तहिना ने हमरो दोखी बनबैत हएत।

महींसक आगू जहिना बौसली बजौने खुशी होइए तहिना जुगुतलालकेँ सेहो भेल। करूआएल शब्दमे बाजल-

कियो अपन करनीक फल पबैए।

जुगुतलालक विचार सुनि रतनेसर कक्काक मन जहिना हलसलैन तहिना तलसबो केलैन। हलसलैन ई जे अपने केलहा सभ तँ पबिते अछि मुदा तलसलैन ई जे अपनो काज तँ रंग-बिरंगक अछिए। सभ रंगक काजक फल एकेरंग हएत आकि सभरंग। मुदा बजला किछु नहि।

चुप-चाप अपन चुप्पी साधि रतनेसर काका अपन जीवन शक्तिमे उत्साह भरए लगला।  

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शब्द संख्या : 3732, तिथि : 19 दिसम्बर 2020



[i] माने एक तरहक कीड़ा, जे माटिमे रहि सभ किछुकेँ मटियबैत रहैए

 

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