जगदीश प्रसाद मण्डलजीक व्यक्तित्व ओ कृतित्वक दिग्दर्शन
श्री जगदीश प्रसाद
मण्डलक जन्म 1947 इस्वीमे 5 जुलाईकेँ बेरमा गामक एकटा किसान परिवारमे भेलन्हि। ‘बेरमा’
मिथिलांचल अन्तर्गत मधुबनी जिलाक झंझारपुर अनुमण्डल स्थित लखनौर
प्रखण्डक एक पंचायत अछि जे उत्तरी-पच्छिमी कोणक अन्तिममे पड़ैत अछि। तीन पीढ़ीसँ मण्डलजीक
परिवार एकपुरुखियाह रहलन्हि। श्री जगदीश प्रसाद मण्डल कहैत छथि-
“दिनांक
5-7-1947 इस्वीमे जन्म भेल। भरल-पुरल परिवार। तीन पीढ़ीसँ एकपुरुखियाह परिवार चलि
अबै छल। जहिना बाबा तहिना पिता छला। घर लग पोखैर-इनार रहने पानिक सुविधा रहल।”[i]
श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल जखन तीनियेँ वर्षक अवस्थामे रहथि तँ हुनक पिता कालकवलित भऽ गेलखिन। मण्डलजी
आगाँ कहैत छथि- “पिताक मृत्युक किछुओ नै यादि अछि, सिरिफ गाछीमे जरैत अछिया
टा...। जखन तीन बर्खक रही। दू भाँइक भैयारीमे छह बर्खक भैया रहैथ। पिताजी करीब एक
मास बीमार रहला। इलाजोक नीक बेवस्था नहि, ताबत दरभंगा
अस्पताल नै बनल छेलइ। झाड़-फूकसँ लऽ कऽ जड़ी-बुटीक इलाज समाजमे चलै छल।”
श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक
पिता स्व. दल्लू मण्डल अगुआएल विचारक लोक रहथिन्ह। “एक तँ वंशगतो आधारपर आ दोसर
जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पितोक ऊपर परिवारिक-समाजिक प्रभाव पड़ल छेलैन जइसँ किछु
अगुआएल विचार रहैन।”[ii]
पाँच-छह वर्षक अवस्थामे
जगदीश प्रसाद मण्डलजी लोअर प्राइमरी स्कूल (बेरमा) जाए लगलाह। 1956 इस्वीमे
प्राइमरीसँ उत्तीर्ण भऽ 1957 इस्वीमे अपर प्राइमरी स्कूल (कछुबी) मे नाओं
लिखेलन्हि। तकर पछाति 1960 इस्वीमे
केजरीवाल (झंझारपुर) उच्च विद्यालयमे नाओं लिखौलन्हि। आवागमनक असुविधा रहने पएरे
झंझारपुर जाइत-अबैत रहलाह।
1965 इस्वीमे हायर
सेकेण्ड्रीसँ उत्तीर्ण भेलाह। पहिने जनता कॉलेज, झंझारपुर पछाति सी.एम. कॉलेज, दरभंगामे नामांकण करौलन्हि। हिन्दी ओ राजनीति शास्त्र विषयसँ एम.ए. कए
मण्डलजी अपन जीविकोपार्जन हेतु कृषि कार्यकेँ अपनौलन्हि। एहि प्रसंगमे मण्डलजी
स्वयं अपन पहिल औपन्यासिक कृति- ‘मौलाइल गाछक फूल’मे ‘दू शब्द’मे लिखनहुँ छथि।
यथा- “जहिया एम.ए.क विद्यार्थी रही तहिए नोकरीसँ विराग भऽ
गेल। आठ बीघा जमीन रहए। खेतीसँ जीवन-यापन करैक बिसवास भऽ गेल।”[iii]
मण्डलजीकेँ
खेती-किसानी कार्यसँ लगाव केर कारण की? एहि प्रश्नक उत्तरमे दू गोट महत्वपूर्ण बात सोझामे अछि। पहिल, आत्मनिर्भरताक संस्कार आ दोसर परिस्थितिवश। परिस्थिति ई जे
जगदीश प्रसाद मण्डल जखन तीनियेँ वर्षक छलाह तँ हुनक पिता मरि गेलन्हि। ई बात लगभग
1950-51 इस्वीक थिक। मुदा ई गुण रहलन्हि जे पितेक अमलदारीसँ दू भाँइ पिसियौत रहैत
छलखिन। (कोसीक उपद्रवसँ भागल पीसा बेरमे माने सासुरेमे रहि गेल रहथिन।) तत्काल
गार्जनी हुनके दुनू भाँइपर छलन्हि। मुदा ओहो लोकनि अर्थात् दुनू “पिसियौत भाए 1960
ईस्वीमे अपन गाम ‘हरिनाही’ चलि गेला।”[iv]
मण्डलजीक परिवार बिनु पुरुष गार्जनक भऽ गेलन्हि। मण्डलजी कहैत छथि- “दुनू भाय,
श्री कुलकुल मण्डल 1954 इस्वीमे आ हम 1957 इस्वीमे गामक स्कूलसँ
निकैल अपर प्राइमरी स्कूल कछुबीमे नाओं लिखौने रही। 1960 ईस्वीसँ परिवारक बोझ
पड़ल।”[v]
स्पष्ट अछि जे तेरहे वर्षक अवस्थासँ मण्डलजीक लगाव पारिवारिक क्रिया-कलापसँ,
खेती-बाड़ीसँ छन्हि। अर्थात् उपरोक्त प्रसंगक ईहो एक महत्वपूर्ण
कारण थिक।
ओना, जगदीश प्रसाद
मण्डलजीक माए (मकोवती देवी) साहसी ओ शिक्षाक घोर प्रेमी रहथि। ओहि परिवारक रहथि,
जाहि “परिवारमे मामा 1942 ईस्वीमे अंग्रेजक गोली खा चुकल छला।”[vi] “अपन गहना, जमीन बेच देल बच्चाकेँ पढ़बै खातिर।”[vii] अत: जगदीश प्रसाद मण्डलजी एम.ए.क अहर्ता सेहो प्राप्त कएलनि।
श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल संवेदनशील व्यक्ति छथि। हिनकापर पिताजीक प्रभाव सेहो छन्हि। स्वतंत्रता
संग्रामक समयमे सामाजिक-आर्थिक स्थितिसँ उपजल विडम्बनाक प्रति साकांक्ष आ मंथनक
प्रवृतिक व्यक्ति छथि। 1947 इस्वीमे स्वतंत्र भेल भारत मुदा ई स्वतंत्रता आधा
स्वतंत्रता अछि- ई विचार हिनका छात्र जीवनहिसँ उद्वेलित करैत रहलनि अछि। समाजक
स्थितिपर हिनकर मन सदैव उद्वेलित होइत रहलन्हि। “सामन्ती सोच आ सामन्त मजगूत छल, जइसँ
आम-अवामक बीच आक्रोश पनपए लगलै। राजा-रजबारे जकाँ शासन पद्धति चलए लगल।”[viii]
..खेतमे काज करैबला बोनिहारोक स्थिति बद-सँ-बदत्तर छल। समस्यासँ ग्रसित राज्य सभ
छलैहे तेँ भूदान आन्दोलन सेहो उधियाएल।”[ix]
समस्याक प्रति सजग
व्यक्तित्व जगदीश प्रसाद मण्डलपर सामाजिक अवस्थाक प्रभाव पड़लन्हि आ 1967 इस्वीक
चुनावी दौरमे जनवरी 1967मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीक सदस्यता ग्रहण कएलनि। 1967
इस्वीमे कामरेड भोगेन्द्र झा संसद सदस्य भेला पछाति हुनकर पहिल आम सभा सकरीमे भेल
छल जाहिमे पन्द्रह-बीस व्यक्तिक संग लाल झण्डा लऽ जगदीश प्रसाद मण्डलजी सेहो गेल
छलाह। “अढ़ाइ-तीन घन्टाक पछाइत सभा विसर्जन भेल। सभामे भाग लेनिहार चारूकातक लोक
चलि गेला। ..स्टेशनेपर भोगेन्द्रजीसँ पहिल भेँट भेलन्हि।”[x] ई
क्रम मण्डलजीक कम्युनिस्ट पार्टीसँ लगावक पहिल स्तंभ अछि। मण्डलजी ओहिना
कम्युनिस्ट दिसि अग्रसर नहि भेलाह। एकरा पाछू समाजक दीर्घ समस्या सभ छलन्हि जकर
क्रमवार परिचय निम्न तरहेँ अछि।
सृजनकर्त्ता
संवेदनशील होइत छथि। ओ कतेको तरहेँ अनुभव करैत छथि- ‘पोथीसँ’,
‘प्रकृतिसँ’, ‘समाजसँ’ आ
‘समाज-देशसँ उठैत समस्यासँ’, सुरुजक
सौन्दर्य आ तापक अनुभव सभ व्यक्ति करैत अछि। मण्डलजी समस्याकेँ नीक जकाँ अनुभव
कएलनि आ ओहि समस्यासँ प्रेरित होइत रहलाह। यएह प्रेरणा हिनक धरोहर बनलनि।
किसानक समस्या- बाढ़िक समस्यासँ
किसान त्रस्त होइत छल। ऊचगर जमीनपर बसब आ खेती लेल जंगल-झाड़केँ साफ कए उपजाऊ जमीन
बनाएब किसानक कार्य। बाढ़िसँ गामक गामकेँ घेरा जाएब आ फसलक बर्बादीसँ उपजल कष्टसँ
परित्राणक आकांक्षा जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ जोर मारैत रहलन्हि। “मधुबनी जिलाक
सीमा-कातमे हरिनाहियो आ हर्ड़ियो गाम बसल अछि। तइ बीचमे एकटा मरना धार अछि जे
हरिनाहियो आ हर्ड़ीओ दुनू गामकेँ उपटौने छल।”[xi]
चुनावमे धान्धली- स्वतंत्रता प्राप्तिक
पछाति सत्तापर कब्जा कए सुख-भोगक प्रवृत्तिक उदय भेल। ताहि लेल चुनावमे धान्धली
पसरल- “चुनावमे जिला भरिक बूथपर खूब धाँधली भेल। ओना, जहिना खूब
धाँधली भेल तहिना गामे-गाम मारियो-पीट खूब भेल आ केसो-मोकदमा खूब बढ़ल।”[xii]
..पूर्व बिहार सरकारक छह गोट मंत्रीक विरुद्ध अय्यर साहेब रिपोर्ट देने छलाह।
करोड़ोक लूट साबित भेल छल। द्रष्टव्य अछि हुनक शब्दमे- “बैद्यनाथ राम ‘अय्यर’, सुप्रीम कोर्टक जज छला। दक्षिणक छैथ। करीब
पनचानबे-छियानबे बर्खक छैथ। जीविते छैथ। पूर्व बिहार सरकारक छहटा मंत्रीक विरूद्ध
अपन जाँच रिपोर्ट दऽ देलखिन। करोड़ोक लूट साबित कऽ देने रहथिन।”[xiii]
सामन्ती प्रथा टुटि रहल छल। देशमे लोक सभा आ विधान सभाक चुनाव लाठी हाथे शुरू भेल।
जकरा जतेक हँसेड़ी ओकर जीत निश्चित होइत रहय। दलित आ कमजोर वर्गकेँ भोँट खसबैये ने
देल जाइत छल। मालिकक हुकुम ईश्वरक हुकुम मानल जाइत छल। एतबहि नहि, गिनतीमे धान्धली होइत रहल- “बहुमत अल्पमतमे नामो बदैल देल जाइ छल।”[xiv]
एहि प्रकारेँ देशमे
राजनीतिक पराभव भेल। एहिमे स्वार्थ आ जाति भेद मुख्य आधार बनल। विशेष रूपसँ
सामन्तवादी प्रथाक नव रूप सोझाँ आएल।
खेतीसँ लगाव- 1960 इस्वीमे जगदीश
प्रसाद मण्डलजी खेती दिसि अग्रसर भेलाह। हिनकर अधिकतर कथा, उपन्यास,
नाटक, एकांकी तथा पद्य-रचनामे सेहो प्रकृति
प्रदत्त पानि, रौद, मेघ, बाढ़ि आ गाछ-बिरीक्षक वर्णन अछि। कुशल ज्ञानवेता सदृश समस्त प्राकृतिक
उपादानक वर्णन ओकर लाभ-हानि सभ किछु हिनका रचनामे अछि। कोन मासमे कोन फसल हएत। जौं
फसल बाढ़िमे भॉंसि गेल ताहि बीचमे कोन फड़ कोन जड़िमे भेटत, जकरा
खाकऽ जीवन निर्वाह हएत, एकर पूर्ण ज्ञान मण्डलजीकेँ छन्हि।
खेतीसँ जीवनमे कोना परिवर्तन होयत आ कोन फसिल नगदी हएत आ कोन पारम्परिक, तकर विशद् वर्णन हिनक रचना सभमे छन्हि। हिनकर ई ज्ञान अनुभवसँ उपजल अछि।
हिनक सम्पर्क कामरेड भोगेन्द्र झासँ रहनि। हुनकर विविध देश-विदेशक ज्ञानसँ जगदीश
प्रसाद मण्डलजी लाभान्वित भेलाह- “जगदीश प्रसाद मण्डल खेतीसँ थोड़-बहुत जुड़ि गेल
रहैथ। मिरचाइ, भट्टा, कोबी, अल्लू इत्यादि खेती शुरू केलैन। धान, मरूआ, रब्बी-राइक खेती जने हाथे हुअ लगलैन।”[xv]
..भोगेन्द्रजीक सम्पर्कमे एला पछाइत जगदीश प्रसाद मण्डलजीक खेतीक प्रति आरो
जिज्ञासा तेज भेलैन। तेज ऐ दुआरे भेलैन जे जर्मनी, जापानक
खेतीक बात ओ मनमे बैसा देलखिन। हिसाब जोड़ैथ तँ दस कट्ठा खेत एक परिवारक (पाँच
गोरे) लेल बेसीए बुझि पड़ैन।[xvi] एक
तँ अपन हाथक पूजी खेत, दोसर जखन राजनीतिसँ जगदीश प्रसाद
मण्डलजी जुड़ि गेलैथ तखन तँ काजो बढ़ि गेलैन। ..पूसा मेलासँ खेती-बाड़ीक किताब
कीनि-कीनि आनए लगला। तैसंग किसानक जे कार्यक्रम होइ तइमे सेहो जाए-आबए लगला।”[xvii]
विस्तृत अनुभवक उपयोग कए मण्डलजी खेती करय लगलाह।
जातिवादी प्रथा- जगदीश प्रसाद मण्डलजी
समरस समाजक समर्थक छथि। हिनक रचनामे जातिगत विद्वैष नहि देखल जा सकैछ। सभक प्रति
नम्र आ आदरपूर्ण व्यवहार देखल जा सकैछ। तखन तँ पूर्वसँ जकड़ियाएल समाज अछि। एकाएक
मलेरिया-रोग जकाँ दवाइसँ भगाओल नहि जा सकैछ। हिनक रचनामे जातिगत स्वार्थक आकलन
अछि। एहि वर्णनसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजी समाजकेँ सावधान करैत छथि। ओतहि टुटैत
जाति-प्रथाक समर्थन सेहो करैत छथि-
“जगदीश प्रसाद
मण्डलजी सभ विचार केलैन जे समाजक उत्थानमे जातिक कट्टरपन बाधा छी। ओना, जौं जातिक
बीच कथा-कुटुमैती होइत अछि तँ ओ दू समाजक बीचक प्रश्न बनि जाइत अछि। मुदा समाजक
बीच जातिक छूआ-छूत बहुत नमहर खाधि बनबैए...।
तँए महिनामे एकबेर
बैसार करब आ ओ करब टोले-टोल घुमि-घुमि, ई सबहक विचार भेलैन। बैसारमे कोनो
बेसी जोगारक प्रश्न नहि, मुदा टोलबैयाक विचारसँ, जौं ओ सभ खाइ-पीबैक बेवस्था करैथ तँ सेहो बढ़ियाँ, सभ
खाएब, ई सबहक विचार भेलैन।”[xviii] ई
विचार समरसता आ जाति प्रथाकेँ तोड़बाक हेतु एकगोट सुलभ तरीका खोजलन्हि जे मण्डलजीक
समरस विचारक द्योतक थिक।
बटेदारी प्रथा- पुरातन कालसँ
जमीन्दार गरीब लोककेँ जमीन बटाइपर दैत रहल अछि। जमीन्दारक ओहि जमीनपर खेती करत
बटेदार। ऊपजामे बाटल जाएत। उपजा बाँटक भिन्न-भिन्न प्रथा। जमीन्दारक शोषण कायम
रहल। समाजमे ई भावना उठए लागल रहैक जे ‘कमाइबला खाएत’ मुदा
जमीन्दारक शोषणसँ आहत बटाइदारमे रसे-रसे विद्रोहक भावना उठल, जकरा दबाबय लेल लठैत हँसेड़ीक प्रचलन चलल। ‘जकर लाठी
तकर भैंस’, एहि तथ्यकेँ श्री जगदीश प्रसाद मण्डल एहि रूपे
वर्णन कयने छथि- “हल्ला सुनिते-देरी जे जेत्तै रहए से तत्तैसँ लाठी लऽ कऽ दौगल।
टोल आ दोकानक बिच्चेमे मारि फँसि गेल। जबरदस मारि भेल। केते गोरेकेँ कान-कपार
फुटल। केस-फौदारी आ जहलक भय समाप्त भऽ गेल छेलइ। एकतीस दिनक भीतर अट्ठाइसो मुदालहक
जमानत भऽ गेलैन। जमानतक पछाइत जमीनक दखल-दिहानी शुरू भेल। गड़बड़ भऽ गेल रहै जे,
जे असल बटेदार रहै ओ केस नै केलक आ जे बटेदार नै रहै ओ केस केलक।”[xix]
बटाइदारी कानूनक पछातियो समाजमे ई प्रथा रहल जे अवसानक करीब-करीब पहुँचि चुकल अछि।
छूआछूत सेहो समाप्त भऽ चुकल अछि। सुलभ शौचालयमे सभ वर्णक लोक काज करैत अछि।
स्वरूचि भोजनमे परसयबलाकेँ जाति नहि पुछल जा रहल अछि।
भूदान आन्दोलन- विनोबा भावेक द्वारा
चलाओल आन्दोलन सामन्तक कौर भऽ गेल रहय। जकरा पाइ-जमीन रहैक ओकरो भूदानक जमीन दिअ
लगलय। घूसक कुप्रथा लागू भऽ गेल रहैक। जगदीश प्रसाद मण्डलजी एहि कुप्रथाकेँ अपना
सोझमे देखने छथि। हिनकापर एकरहु प्रभाव पड़लन्हि- “भूदानी आन्दोलन अपन स्वरूप
बिगाड़ि पाइक अड्डा बनि गेल, जइसँ मामला आरो ओझरा गेल। ओझरा ई गेल जे एक्के
जमीनक पर्चा तीन-तीन गोरेकेँ भेटल। जइसँ जमीनबलाक झगड़ा जमीन लेनिहारोक बीच फँसि
गेल।”[xx]
भ्रमण एक अनुभव- जगदीश प्रसाद
मण्डलजीक बेसी जिनगी गामे-घरमे बीतल छन्हि। एकर नीक लाभ ई भेलन्हि जे हिनक
अनुभूति-अनुभवक संसार पैघ छन्हि। कोन पावनि कहिया हएत, कोन मासमे
कोन फसल लगाओल जाएत, कोन गाछक की उपयोगिता छैक, कोन गाछक रोगक की उपाय होयत आदिक संग गाम-घरक दंगा-फसाद, जमीनक झंझटि-विवाद इत्यादि हिनक अनुभावात्मक संसार
छन्हि, जकर क्षेत्रफल बहुत पैघ छन्हि। एकदिन मण्डलजीक मनमे
एलन्हि जे कोन राज्य कतय अछि? एहि हेतु ओ एटलस बहार कए ताकय लगलाह। एहिसँ हिनका मनमे
भ्रमणक इच्छा जगलन्हि आ बहरा गेलाह भ्रमणक हेतु। हैदरावाद, त्रिपुरा, अगरतला, असम आ बंगालक भ्रमण कएलनि। भ्रमणेटा नहि कएलनि बल्कि
ओतुक्का संस्कृति, भाषा, परिवेश, लोकरंग
इत्यादिकेँ सेहो एक जिज्ञासु सृजनकर्त्ताक रूपमे दर्शन कएलनि।
“असामक उत्तर-पूबसँ
लऽ कऽ दच्छिन धरि मेघालय,
त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर,
अरूणाचल, नागालैंड राज्य अछि। ट्रेनक रस्ता
थोड़ेक आगू धरि अछि। ऐठामक मुख्य सवारी बस-ट्रक छी। जंगल-पहाड़सँ भरल इलाका। हजारो
किस्मक गाछ-बिरीछ। उपजाऊ जमीन कम। ओना, जैठाम रंग-रंगक
गाछ-बिरीछ अछि तैठाम खाइबला फल सेहो हेबे करतै। ठढ़िया साग बाध-बोनक घास जकाँ
उपजल।”[xxi]
“पूर्वांचल (असाम, मेघालय,
मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा,
अरूणाचल, नागालैंड आ सिक्किम) मिला अपने-आपमे
एक देश छी। जंगल, पहाड़, झील, नदी घाटीक समूह। भाषाक दृष्टिसँ सेहो बहुभाषी अछि। अपन-अपन क्षेत्रक भाषा
सेहो छइ। मोटा-मोटी बंगला, अंगरेजी, हिन्दी,
खासी, गारो, ककवार्क,
मणिपुरी, मिजो, आओ,
कोंयक, अंगामी, सेमा,
लोथा, मोंपा, अका मिजू,
शर्दुकमेन, निशि, अपतनी,
हिलमिदि, तगिन, अदी,
इदु, दिगारू, मिजिखम्री,
सिंगफू, तंगला, नोक्टे,
वांचू, लोपचा, भोटिया,
नेपाली लिंबू इत्यादि।”[xxii]
एहि प्रकारेँ जगदीश
प्रसाद मण्डलजीकेँ आन-आन क्षेत्रक भौगोलिक, सामाजिक, आचार
व्यवहार आ प्राकृतिक रूपकेँ दर्शन भेलन्हि।
मण्डलजीकेँ अपन पैघ
अनुभवसँ अप्रत्यक्ष रूपे कम्युनिस्टक आकर्षण बढ़ैत गेलन्हि। वस्तुत: क्रिया रूपमे
जखन अएलाह तँ पार्टीक मिटिंग, कार्यक्रममे सम्मिलित होइत रहलाह। गाम-घरमे जमीनक
विवादसँ लऽ कऽ आनो-आन कतेको तरहक सामाजिक मुद्दासँ सम्बन्धित केस-मोकदमा लड़लाह।
कतेको बेर जहलक यात्रा करय पड़लन्हि। “1999 ई. अबैत-अबैत आशा-निराशाक बीच संक्रमणक
स्थिति बनए लगलैन। 1998 ई.मे दफा 307क केसमे सजाए भऽ गेल रहैन। हाइ कोर्ट अपील
होइमे 20-25 दिन लागि गेलैन। तइ समयमे रामपट्टी जेलमे रहैथ। मने-मन आश्चर्य होनि
जे बिना किछु केनौं जहलमे छैथ। तहियो आ अखनो मन नै मानि रहल छेलैन जे कोनो गलती
हुनकासँ भेल हुअए। खाएर, अपील भेल, जमानत
भेलैन।”[xxiii]
2000 इस्वी धरि जगदीश
प्रसाद मण्डलजी समाज सेवामे संलग्न रहलाह। रूढ़ि एवम् सामन्ती व्यवहारक खिलाफ
लड़ाइ लड़ैत रहलाह,
केस-मोकदमा, जहल यात्रादिमे हिनक लगभग चारि
दसक समय बीति गेलन्हि, पछाति साहित्य लेखनमे एलाह।
एहि प्रसंगमे मण्डलजी
स्वयं अपन पहिल औपन्यासिक कृति- ‘मौलाइल गाछक फूल’क ‘दू शब्द’मे लिखनहुँ छथि- “पैंतीस
साल धरि समाज सेवा केला पछाइत अपन हहरैत शरीर देख किछु लिखै-पढ़ैक विचार जगल।”[xxiv]
श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक पहिल रचना औपन्यासिक
कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’ थिकन्हि जे 2004 ईस्वीमे लिखलाह।
2008 इस्वी धरिक अवधिमे पाँच गोट उपन्यास, एक नाटक तथा किछु
कथादि लिखि चुकल छलाह। मुदा कोनहु पत्र-पत्रिकादिमे एकहु गोट रचना प्रकाशित नहि
भेल रहनि। तथापि हिनक कलम, लिखबाक क्रम जारी रहलन्हि-
प्रस्तुत अछि एहि प्रसंगमे हुनकहि लिखल बात-
“मौलाइल गाछक
फूल 2004 ईस्वीमे लिखल पहिल उपन्यास छी। अखन धरि पाँचटा उपन्यास आ किछु कथा,
लघुकथा, नाटक सभ अछि। छपबैक जे मजबूरी बहुतो
रचनाकारकेँ छैन से हमरो रहल। मुदा तइसँ लिखैक क्रम नै टुटल। ‘भैंटक लावा’ कथा सेहो दू-हजार चारिक पहिल कथा छी।”[xxv]
8 नवम्बर 2008 मे
मिथिलाक प्रसिद्ध ‘सगर राति दीप जरय’क 64म कथागोष्ठी
डॉ. अशोक अविचलक संयोजकत्वमे हुनक गाम- रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे आयोजित भेल छल
जाहिमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी उपस्थित भऽ ‘भैंटक लावा’ कथा
केर पाठ कएलनि। एहि गोष्ठीमे भाग लेबाक आग्रह डॉ. तारानंद ‘वियोगी’
कयने रहनि। ओना, सगर राति दीप जरयक गोष्ठीमे
भाग लेबए लेल आयोजक/संयोजकक हकार अनिवार्य नहि होइछ। कोनहु माध्यमसँ पता चलल वएह
थिक हकार। ‘वियोगीजी’सँ जगदीश प्रसाद
मण्डलक पहिल भेँट 2008 इस्वीमे मधुबनीमे भेल छलन्हि।
साहित्य क्षेत्रमे
जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पहिल मञ्च रहुआ संग्राम 64 सगर राति दीप जरय कथागोष्ठीकेँ
कहल जा सकैछ। जाहिठामसँ हुनक रचना सार्वजनिक हएब शुरू भेल। ओना, पहिने बेरमा
पंचायत आ रहुआ संग्राम, दुनू मधेपुर ब्लौकक अन्तर्गत पड़ैत
छल। जे कि जगदीश प्रसाद मण्डलजीक कर्म क्षेत्र रहल छन्हि। समर्पित समाजसेवीक
क्रिया-कलाप रहल छन्हि। 8.11.2008 लक्ष्मीनाथ गोसाँइक स्थानमे कार्यक्रम भेल छल।
ओना, केतेक बेर राजनीतिक मञ्चपर रहुआमे बाजि चुकल छलाह,
कर्म क्षेत्र छलन्हि तँए कथा वचैमे संकोच नइ भेलन्हि।[xxvi]
2008 इस्वीसँ पूर्व
जगदीश प्रसाद मण्डलजीक एकहु गोट रचना सार्वजनिक नहि भेल छलन्हि। कोनहुँ
पत्र-पत्रिकादिमे प्रकाशित नहि भेल छलन्हि। पहिल रचना ‘घर बाहर- पटना’सँ प्रकाशित भेलन्हि। जाहि कथाक पाठ रहुआ संग्राममे कयने छलाह, आ प्रशंसा भेल छलन्हि। एहि प्रसंग मण्डलजीक वानगी निम्नांकित अछि-
“डॉ. रामानन्द
झा ‘रमण’जी ओ कथा मांगि लेलैन। किछुए
मासक उपरान्त ‘घर बाहर’ पत्रिकामे
प्रकाशित केलैन। सिद्ध पुरुषक स्थानमे प्रतिष्ठा भेटल। डायरी-कलम भेटल। गमछा-पाग
भेटल। लक्ष्मीनाथ गोसाँइक मुर्ति सेहो भेटल।”[xxvii]
घर-बाहरमे एक आर रचना
(कथा) प्रकाशित भेलन्हि। पछाति ‘मिथिला दर्शन- कोलकाता’मे ‘चुनवाली’ नामक कथा प्रकाशित भेलनि। चुनवाली, भैंटक लावा आ बिसाँढ़, कथा प्रकाशित होइतहि ‘विदेह’क सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरजीसँ सम्पर्क
भेलन्हि। तकर बाद मण्डलजीक रचना सभ पुस्तकाकार रूपमे प्रकाशित हुअ लगलन्हि। एहि
सन्दर्भमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी ‘अप्पन बात’मे लिखलन्हि अछि- “घर बाहरमे भैंटक लावा आ बिसाँढ़
छपल आ फेर मिथिला दर्शनमे ‘चुनवाली’ कथा
पढ़िते अनेको बधाइ फोन आएल जेना- पञ्जीकार विद्यानन्द झाजीक। एकटा महत्वपूर्ण फोन
श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक रहल। हिनकर फोन सुनिते जिनगीक ओहन चौबट्टी टपि गेलौं जे
चौबीस घन्टाक खुशी मनमे आबि गेल।”[xxviii]
मिथिला सांस्कृतिक
समन्वय समिति- गुवाहाटी द्वारा आयोजित ‘अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन- 2011’ केर अध्यक्षता श्री जगदीश प्रसाद मण्डल कयने छलाह। उक्त अध्यक्षीय
उद्बोधन यथावत अछि- “सभसँ पहिने ऐ पर्व समारोहक सहयोगी आ मिथिला सांस्कृतिक
समन्वय समितिकेँ धन्यवाद दइ छिऐन जे मिथिला आ कामरूपक बीच युग-युगसँ प्रवाहित
होइत जीवन धाराकेँ जीवित रखने छैथ। संगे आगूओ अहिना लहराइत धाराकेँ जीवित रखता,
से आशा करै छी।
कामरूप आ मिथिलाक बीच
सम्बन्ध कहियासँ शुरू भेल,
एकर निश्चित तिथि तँ नै बुझल अछि, मुदा
सहस्रो सालसँ जीवन धारा बनि प्रवाहित होइत आबि रहल अछि, ई
कहैमे कनियोँ मनमे संकोच नै अछि। जे कामरूप कहियो प्राग्ज्योतिष कहल जाइत छल
भरिसक तहियेसँ। ओना इतिहासक विद्यार्थी नै रहने इतिहास पढ़लो नै अछि। भऽ सकैत अछि
जे जहिना मिथिलाक सम्पूर्ण इतिहास लिखिनिहारक अभाव रहल अछि तहिना भाषोक हुअए।
मुदा दुनूक बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध बनल चलि आबि रहल अछि, ऐमे
केतौ दू-राय नै अछि। जखन बच्चे रही तहियो बुढ़-बुढ़ानुसक मुहेँ सुनैत रही जे फल्लाँ
कामरूपक सीख छैथ। तेतबे नै मिथिलावासीक लेल कामरूप कामाख्या, अदौसँ तीर्थ-स्थल बनल चलि आबि रहल अछि, आगूओ चलैत
रहत। जहिना बंगालक गंगासागर, दक्षिणेश्वर, उड़ीसाक कोणार्क आ जगरनाथ, मद्रासक श्वेत बान्ध
रामेश्वर, कन्याकुमारी, गुजरातक
द्वारिका, राजस्थानक पुष्कर, पंजावक
स्वर्ण मन्दिर, कश्मीरक वैश्णोदेवी, अमरनाथ,
उत्तरांचलक बद्रीनाथ, हरिद्वार, उत्तर प्रदेशक काशी, विन्घ्यांचल, मथुरा-वृन्दावन इत्यादि रहल अछि। जइ समय गाड़ी-सवारीक अभाव छल तहू समय सम्बन्ध
छल।
गंगा-ब्रह्मपुत्र
मैदानक बीच बसल मिथिलो आ कामरूपोक रहने उपजा-बाड़ीसँ लऽ कऽ जिनगीक आनो-आनो सम्बन्ध
सहज अछि। जहिना कामरूप तलहटी मैदानसँ लऽ कऽ पहाड़-पठार, वनक संग
प्रवाहित होइत जलधारासँ सम्पन्न अछि तहिना मिथिलो अछि। बंगालक खाड़ीसँ उठैत
मानसुनसँ जहिना कामरूपक भूमि सिंचित होइत तहिना मिथिलांचलोक। ओना मुँहपर पड़ने
कामरूपमे अधिक बरखा आ जेना-जेना पछिम मुहेँ ससरैत तेना-तेना कम बरखा होइत जाइत,
मुदा दुनूक बीच नजदीकी रहने बहुत बेसी अन्तर नै पड़ैत।
गंगा-ब्रह्मपुत्रक एक तलहटी रहने माटियो आ माइटिक सुगंधोकेँ एकरंगाह बनौने अछि।
उत्तरी पहाड़सँ निकलैत (नदी धारा) जल धारो एक-रंगाहे रहल अछि। जैठाम जेहेन
माटि-पानि तैठाम तेहन उपजा-बाड़ी। जैठाम जेहेन उपजा-बाड़ी तैठाम तेहने खानो-पान आ
आचारो-विचार। जैठाम जेहेन खान-पान, आचार-विचार तैठाम तहिना
कला-सांस्कृतिक सम्बन्ध। जे दुनूक बीच अदौसँ रहल अछि। ओना, खेती-बाड़ीमे
एक-रूपतो अछि आ भिन्नतो। अधिक मध्यम बर्षा भेने, पनिसहू
फसिलो आ फलो-फलहरीमे अन्तर होइत, से ऐछो। जइ कामरूपमे नारियल,
सुपारी, चाहक बहुतायत अछि ओ मिथिलांचलमे कम
अछि। ओना मिथिलांचलमे सिरिफ आम हजारो किस्मक अछि। मुदा पटुआ आ धान जहिना कामरूपक
मुख्य फसिल अछि तहिना मिथिलोक। मुदा जहिना नीलक नब अविष्कार भेने नीलक खेती मारल
गेल तहिना पोलीथिनक आगमनसँ पटुआक खेती प्रभावित भेल अछि।
मिथिलाक उर्वर भूमि।
जहिना माटि-पानि तहिना स्वच्छ हवो। जइसँ सभ कथूक वृद्धि। चाहे ओ खेती हुअए आकि
जीवन पद्धति हुअए आकि कला-संस्कृति। मिथिलांचलक चिन्तन धारामे सिरिफ ऊँच्चकोटिक
मनुष्ये नहि, ऊँच्चकोटिक समाज आ समाजिक-पद्धतिक सेहो दिशा-दर्शन रहल अछि। जन-गणक नगर
जनकपुर आ जनकपुरक राजा जनक। जनिक कन्या जगत जननी जानकी। एक-सँ-एक चिन्तक, तत्त्ववेत्ता, दार्शनिक मिथिला भूमि पैदा केने अछि।
जेकर वानगी इतिहास-पुराण जीवित अछि।
जहिना सौंसे देश
गुलामीक शिकंजामे हजारो बर्खसँ रहल तहिना देशक उत्तर-मध्य बसल मिथिलो अछि। ओना
मिथिला दू देशमे बँटल अछि। साठि-पैंसैठ बरख पहिने भारत स्वतंत्रताक साँस लेलक जहन
कि नेपालक मिथिला हालमे साँस लेलक। जहिना अभावी परिवारमे अभावक चलैत जीवनक सभ किछु
प्रभावित होइत, तहिना भेल। जीवन-पद्धतिमे खोंट अबैत-अबैत खोंटाह होइत गेल अछि। जेकर असर
अधलाह पड़ैत गेल। मुदा तैयो मिथिलाक वएह भूमि छी जे अदौसँ रहल।
मिथिलांचलक उर्वर
भूमि रहने मनुष्योक बाढ़ि सभ दिनसँ रहल, अखनो अछि आगूओ रहत। कतबो मिथिलावासी
पड़ाइन (पलायन) केलैन, दुनियाँक कोन-कोनमे बसला अछि,
तैयो मिथिलाक जनसंख्या पर्याप्त ऐछे। जइसँ गरीबी रहल अछि। एक
दृष्टिये देखलासँ जहिना पर्याप्त जनसंख्या अछि तहिना प्रचुर सम्पैतो अछि। मुदा
दुनूक संयोगमे भिन्नता अछि। जइसँ दुनूक बीच भारी खाधि बनि गेल अछि। जिनकर गाम
तिनकर सम्पैत नै आ जिनकर सम्पैत तिनकर गाम नहि। जइसँ मुट्ठी भरि लोक पूर्ण सम्पैत
हथियौने छैथ। जेकर ज्वलंत उदाहरण पड़ाइन (पलायन) अछि।
गरीबीक चलैत
मिथिलावासी आइए नै पूर्बेसँ नेपाल, बंगाल, आसाम धरि
रोजी-रोटीक लेल जाइत रहल छैथ। पटुआ काटब, धान रोपब, धान काटब हुनका सबहक मुख्य कार्य छेलैन। सालक छह मास ओ सभ कमाइ छला। मुदा
ओइसँ पैघ-पैघ उपलब्धि सेहो भेटल। अपना संग अपन भाषो, कलो-संस्कृति
लेनौं अबैत छला आ लैयो जाइत छला जइसँ दुनूक बीचक सम्बन्धमे प्रगाढ़ता अबैत रहल।
एकठाम रहने दुनूक बीच सभ तरहक सम्बन्ध बनैत रहल आ अखनो प्रवाहमान धारा सदृश्य बहि
रहल अछि। तँए ऐ पावन अवसरपर समन्वय समिति संग विद्योपतिकेँ कोटिश: नमस्कार!
पूर्वांचल आ मिथिला, दुनूक बीच
व्यापारिक सम्बन्ध सेहो अदौसँ रहल अछि। गाए-महींसिक व्यापार चलैत रहल अछि। संग-संग
कलाकारक संग कलाक आदान-प्रदान सेहो चलैत रहल अछि। अखनो मिथिलाक श्रमिकक बीच जेते
पूर्वांचलक भाषा पसरल अछि ओते मध्य आ उच्च परिवारक बीच नै अछि।
विद्यापति पर्व
समारोहक ऐ पावन असवरपर विद्यापतिकेँ सिरिफ मिथिले-मैथिल कहब हुनका संग अन्याय करब
हएत। हुनक आत्माकेँ ठेस पहुँचतैन। ओ युग-पुरुष छला। भाषा-साहित्यक अपन धारा अछि।
जइ धाराक मध्य ओ अखनो ठाढ़ छैथ। वैदिक भाषा जखन जन-गणक बीच अपन साहित्यिक धारा
पकड़लक, तहियेसँ समाजमे एक नब समाज उठि कऽ ठाढ़ भेल। ओ बढ़ैत-बढ़ैत कालिदास धरि
अबैत-अबैत सोझा-सोझी ठाढ़ भऽ गेल। मुदा जिनगीक लेल भाषा-अनिवार्य, तँए जन-गणक बीच पालि भाषा उगल। तहिना आगू बढ़ैत- प्राकृत, अपभ्रंश होइत अवहट्ठमे पहुँच गेल।
अवहट्ठक सीमानपर
विद्यापति अपन कीर्तिलता लऽ कऽ ठाढ़ छैथ। जइमे जन-गणक आत्मा झलैक रहल छैन। ओना
ओ संस्कृतक प्रगाढ़ पण्डित छला, जे हुनक रचनामे झलैक रहल अछि, ओ उगना सन संगीक संग रहैत छला। जे उगना गंगाजल पहुँचबै छेलैन। एक भांग
पीसैमे मस्त तँ दोसर पीब-पीब मस्त! एहनठाम हटलासँ, विद्यापति
पत्नियोसँ झगड़ा कऽ उगना लेल निष्काम प्रेम धारा नै बहबैथ, से
केहेन होएत।
अन्तमे, जहिना अदौसँ
एक-दोसर सटल रहलौं तहिना आगूओ सटि चलैत रही, यएह शुभ-कामना।
एहेन-एहेन पर्व आरो नमहर भऽ भऽ मनौल जाइत रहए, यएह शुभेच्छा!
जय-मैथिली! जय
मिथिला!!, जय कामरूप! जय भारत!! जय मानव!!!”
2009 सँ 2013 इस्वीक
बीच जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 27 गोट पोथी श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ
प्रकाशित भेल छन्हि। जाहिमे हिनका एक्कहु पाइ प्रकाशनक हेतु नहि देबए पड़लन्हि। ई
चीज स्पष्ट होइछ दू ठामसँ, पहिल जे लेखक स्वयं अपन ‘तरेगन’ पोथीक ‘मनमनियाँ’मे लिखने छथि- “समय-समयपर गजेन्द्रजी (श्री गजेन्द्र
ठाकुर, मेंहथ)क आग्रह आ सुझाव आ संगहि श्रुति प्रकाशनक श्री
नागेन्द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारीक भरपुर सहयोग भेटलासँ लिखैक नव उत्साहो
आ आशो मनकेँ सक्कत बना देने अछि।”[xxix]
आ दोसर- ‘अंशु’ समालोचनाक पोथीमे श्री शिव कुमार टिल्लू लिखने
छथि- “जगदीश प्रसाद मण्डलजीक लघुकथा ‘बिसाँढ़’
आ ‘भैंटक लावा’ घर-बाहरमे
आ ‘चुनवाली’ मिथिला दर्शनमे प्रकाशित
होइते मैथिली पत्रिकाक संपादक मण्डलक संग-संग प्रबुद्ध पाठकक मध्य हड़होरि मचि
गेल। ‘पहिने आउ आ पहिने पाउ’क आधारपर
विदेहक संपादक श्री गजेन्द्र ठाकुर हिनक रचना सभकेँ अपन पत्रिकामे छपबए लेल हथिया
लेलनि। ऐ प्रकारक शब्दक प्रयोग करबाक हमर तात्पर्य अछि जे जगदीशजी कोनो नव
रचनाकार नै छथि, तिरसठि बर्खक माँजल साहित्यकार छथि, मुदा हिनक रचनाक प्रदर्शन नै भेल छल। समग्र रचना-संसार हिनक पुत्र श्री
उमेश मण्डलजीक कम्प्यूटरमे ओझराएल छल किएक तँ छपबैले कैंचा केतएसँ आएत?”[xxx]
एहि तरहेँ जगदीश
प्रसाद मण्डलजीक आगमन मैथिली साहित्यक दुनियाँमे होइत छन्हि। बिनु पाइक अर्थात्
बिनु खर्चेक पोथी प्रकाशन मैथिली साहित्यमे नव उदाहरण छल। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक
27 गोट पोथी एकसंग श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेलन्हि। वर्तमानमे
ओही तरहेँ पोथीसभक प्रकाशन पल्लवी प्रकाशन, निर्मलीसँ भऽ
रहलन्हि अछि।
‘सगर राति दीप
जरय’ मैथिली कथा-साहित्य गोष्ठीमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी
नियमित रूपसँ उपस्थित होइत रहलाह हेँ। 81म कथागोष्ठी श्री ओम प्रकाश झाक
संयोजकत्वमे देवघर (झारखण्ड)मे आयोजित भेल छल। जकर अध्यक्षता श्री जगदीश प्रसाद
मण्डल ओ मञ्च संचालन श्री गजेन्द्र ठाकुर कयने छलाह। श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक
उक्त अध्यक्षीय उद्बोधन यथावत निम्नांकित अछि-
“उदय-प्रलय शाश्वत
सत् जहिना छै तहिना जिनगियो आ जिनगीक किरिया-कलाप सेहो छइ। मैथिली साहित्याकाशमे
बीसम शताब्दीक आठम दशक ओहने ऊर्जावान साहित्यकारक टोली छल जेहेन बरसातक पछाइत
ओस-पाला, गर्दा-धूरासँ स्वच्छ वायुमण्डलक
संग अकास रहैए। एक संग हरिमोहन बाबू (हरिमोहन झा), तंतर बाबू
(तंत्रनाथ झा), मधुपजी (काशीकान्त मिश्र ‘मधूप’), किरणजी (काञ्चीनाथ किरण), मणिपद्मजी (ब्रज किशोर
वर्मा ‘मणिपद्म’), शेखरजी (शुधांशु
शेखर चौधरी), योगाबाबू (योगानन्द झा), राघवाचार्यजी,
(बोध नारायण झा), बहेड़जी (राधाकृष्ण झा ‘बहेड़’) आ राधाकृष्ण चौधरीजी सन मैथिली साहित्यकाशमे
दुनियाँक सभ दिशा देखनिहार छला। दार्शनिक रहितो हरिमोहन बाबूकेँ मैथिली साहित्य
हास्यसँ आगू नै बढ़ए देलकैन! एकैसम शदीक मांग अछि जे हुनक समीक्षा मिथिलाक
चिन्तनधारा, अध्यात्म दर्शनक कसौटीपर हुअए। तहिना
राधाकृष्णजीक इतिहासक मूल तत्त्वक सेहो। चौधरीजीक इतिहास समाजमे पाठकक बीच एक नब
सोच आ नब दृष्टि दैत अछि तँए ओइ दृष्टिसँ हुनका देखल जाए। भऽ सकैए किछु पोथी हाथ
नै पड़ल होइन, मुदा इतिहासो तँ इतिहासे छी। जे अखन तक राजा-रजबारासँ
आगू नै बढ़ल अछि, तैठाम इतिहासक पूर्णता देखब उचित नहि।
दुर्भाग्य रहल अछि जे अखन धरिक इतिहास सामाजिक ताना-बानाकेँ नीक जकाँ नै ताकि सकल
अछि। अखनो मिथिलाक खान-पान आ घर-दुआर अपन आदिम स्वरूपकेँ बँचौने अछि। मात्र देखैक
नजैरक जरूरत अछि। जे मधुपजी पोरो सागकेँ देख सकै छैथ ओ साग खेनिहारकेँ नै देख
पबितैथ? रहस्यमय अछि। किरणजी तँ सहजे मैथिलीक किरणे छला।
कठही पैडिलक साइकिलपर शतरंजी चौपेतले रहै छेलैन। शरदक चान जकाँ चमकैत सोभाव।
मात्र चाहपर अभ्यागती! बीचमे एकटा प्रश्न उठैए, ओहन टोली आइ
किए ने? साहित्यजगतमे जागरण छल, समाजक
बीच जिज्ञासा छल जे कि साहित्य हमरो छी। किरणजीक स्पष्ट कहब छेलैन, जहिना बजै छी तहिना लिखू, जहिना समाजकेँ देखै छिऐ
तेहने विषय बनाउ, वएह भेल साहित्य। जेहने विचार किरणजीक रहैन
तेहने विचार राहुल सांकृत्यायनजीक सेहो रहैन। हुनको कहब छैन अपन बात आन आ आनक
बात अपने नीक जकाँ बुझि जाइ, वएह भेल ओइ भाषाक व्याकरण।
भाषाक धाराक अंग भेल शब्द। भाषाक धारा ओइसँ वृहत अछि। आन भाषा केना आन भाषामे
प्रवेश करैए ओ अलग प्रक्रिया भेल। मणिपद्मजी, सचमुच
साहित्यक मर्म बुझनिहार मणिपद्म भेला। ओना अपनो जिनगीक अनुभव आ दरभंगा जिलाक
पुबरिया हिस्साक अखनो की गति अछि ओइ अनुकूल हुनक सृजन छैन। बेछप साहित्यकार।
एकभग्गू कविए मात्र नै छला, लोकगाथाक मर्म बुझनिहारो छला।
आठम दशक उर्वर होइक कारण यएह सभ छला। जहिना आठम दशकक उर्वरता छल तहिना नअम दशक
उसराह बनैत गेल, बनियेँ गेल। मुदा तैयो साहित्यक धार बहिते
रहल अछि। एकटा बात आरो, आठम दशक ओहन रहल, जइमे गाम-गाममे हराएल-भुतिआएल किछु साहित्यकार सेहो भेटला। मुदा अखनो बहुत
हराएल छैथ। किछु हेराएलो गेला।
सगर राति दीप जरय, कथा गोष्ठीक
आयोजनक अवधारणाक जन्म किरणजीक जयन्तीक अवसरपर लोहना (धर्मपुर)मे एकत्रित
साहित्यकारक बीच भेल। मुदा साकार भेल प्रभास कुमार चौधरीजीक माध्यमसँ। एकटा बात
बीचमे, किरणजी सन खोद-बेद केनिहारक अवसर दोसर प्रभासजीक स्थापना।
बेछप जिनगी, बेछप सोच, बेछप सृजन,
बेछप नजैर प्रभासजीक। असीम जिज्ञासाक सम्वेदना रग-रगमे रमल छेलैन।
जेकर परिचय जीवन्त रचना अखनो दाइए रहल छैन।
साहित्यकारक बीच सहमत
बनल जे जहिना पंजाबी सहित्यमे ‘दीवा जले सारी रात’ कथा
गोष्ठी भरि रातिक होइए, तहिना मैथिलियोमे हुअए। नब उत्साह
नब जिज्ञासाक संग प्रभास भाय डेग उठौलैन। मनमे छेलैन जे साहित्यिक धारा समाजक
संग चलए। मुदा किछुए साल पछाइत मरि गेला।
पहिल कथा गोष्ठीक
आयोजन मुजफ्फरपुरमे भेल। ओतए प्रभासजी नोकरी करै छला। रेणुजीक अध्यक्षतामे गोष्ठी
भेल। रेणुजी सेहो समाजकेँ निष्पक्ष ढंगसँ देखै छला। तइ दिनसँ अखन धरिक कथा गोष्ठी
मैथिली साहित्यक धरोहर छी,
पूजी छी। एक तँ कथा गोष्ठी, दोसर साहित्यक
मुख्य विधा, तँए पहिल सन्तानो कहल जा सकैए।
पहिल कथा गोष्ठी
जनवरी १९९० इस्वीमे भेल। पहिल गोष्ठीमे कथापाठ केने रहैथ, रमेशजी- ‘थाक’, श्रीनिवासजी (शिव शंकर श्रीनिवास)- ‘वसातमे बहैत लोक’, विभूति आनन्दजी- ‘अन्यपुरुष’, अशोकजी- ‘पिशाच’,
सियाराम सरसजी- ‘ओहि साँझक नाम’, प्रभासजी- ‘खूनी’, रविन्द्र कुमार
चौधरीजी सेहो कथा पाठ केलैन। तैबीच डॉ. नन्द किशोर जे एल.एस. कौलेजक नीक शिक्षक,
हिन्दीमे कथा पाठ केलैन। मुदा दुर्भाग्य ईहो जे ओ मैथिलीभाषी रहितो
हिन्दीमे पाठ केलैन। समीक्षको छैथ। कथाक समीक्षक रूपमे कथाकारक संग रामानन्द झा ‘रमण’जी, भीम भाय (भीमनाथ झा),
मोहन भारद्वाजजी, जीवकान्त, कथा पाठ जीवकान्त केलैन कि नहि से जनतबमे नइ अछि। इत्यादि समीक्षकक संग
किछु दर्शको रहबे करैथ।
तेसर कथा गोष्ठीसँ
पोथीक लोकार्पण शुरू भेल,
जे बढ़ैत-बढ़ैत दरभंगा गोष्ठी शीर्षपर पहुँच गेल। एक संग
पौंतीस-चालिसटा पोथीक लोकार्पण! निर्मली कथा गोष्ठीसँ पूर्ब धरि शीर्षपर रहल।
निर्मली गोष्ठीमे पैंतालिस-पचासटा पोथीक लोकार्पण भेल। कथा गोष्ठीसँ कथाधारामे एक
गति आएल, नब-नब रचनाकारक प्रवेश गोष्ठीमे होइत रहल, गोष्ठी आगू बढ़ैत रहल। मुदा गोष्ठीक बीच एकरूपता नै रहल, केतौ एहेन आयोजन भेल जे साँझसँ भोर भेलो पछाइत कथाकारक कथा रहि जाइ छैन
तँ केतौ अधरतियेमे बेवस्थापक चाह-पान समेट लइ छैथ, खाएर जे
भेल। साहित्य गोष्ठी साहित्यकारक मञ्च छी। जइ मञ्चपर सभकेँ अपन विचार रखैक हक छैन।
जखन सभ कियो मिथिलाक विकास चाहै छी तखन मत-मतान्तर किए? कथा
गोष्ठीक संग कथा-विचार मंचोक तँ जरूरत ऐछे। लिखैक मानदण्ड, समीक्षाक
मानदण्ड के बनौत? समयानुकूल दृष्टिये तँ समसामयिके ने जिम्मा
भेल। समसामयिक रचनाकारक रचनाकेँ स्तरानुसार सिलेबसमे स्थान आवश्यक अछि।
दुनियाँमे पैघ-पैघ
शिक्षण संस्थान जनसहयोगसँ चलि रहल अछि, की अपना ऐठाम नै चलि सकैए? एकटा विश्वविद्यालय अछि, रेडियो स्टेशन अछि,
ओ केना नीक जकाँ बढ़ि सकए, सबहक जिम्मा भेल।
एकटा विश्वविद्यालय अछि, जे सोलहन्नी सरकार दिस तकैए,
तहूमे लूटिक बाढ़ि छइहे, तइसँ केते आशा कएल जा
सकैए। मिथिलामे पाइबला शिक्षण प्रेमी नै छैथ, सेहो बात नै
अछि। गजेन्द्रजीक (गजेन्द्र ठाकुर) सम्पादनमे नागेन्द्रजीक (नागेन्द्र झा, श्रुति प्रकाशन) सहयोगसँ केते पोथी प्रकाशित भेल अछि ओ अपने-आपमे एकटा
उदाहरण अछि। ओना बेकतीगत रूपमे गजेन्द्रजीकेँ केना बिसरल जाए जे टैगोर पुरस्कारमे
एँड़ी-चोटी एक केने छैथ। कोंचिन जाइ काल पटना एयरपोर्टपर अपन गाड़ीसँ पहुँचा सभ
किछु देखा-सुना दुर्गानन्द मण्डलक संग विदा केलैन। स्पष्ट सोच छैन जे आर्थिक
दृष्टिये कमजोर रचनाकार लोकैनक रचना प्रकाशित करब। से करबो केलैन आ करितो छैथ।
अन्तमे, बेवस्थापक ओम
बाबू (ओम प्रकाश झा) निर्मली गोष्ठीमे अपन गजल संग्रह नेने लोकार्पण करबए पहुँचला।
ओना किछ-किछ पहिनौंसँ बुझल छल मुदा चेहरा देख झुझुआ गेलौं। किछु करैक जिज्ञासा तँ
मनमे छैन्हे। ऐगला बात आगू, अखन तँ अशे धरि। अन्तमे,
अन्हरा-अन्हरी माए-बापकेँ कन्हेठ जहिना श्रवणकुमार चारू धाम देखबए
विदा भेला तही आशाक संग अपन दू शब्दमे विराम लगबै छी। धन्यवाद! जय मैथिली।”
‘सगर राति दीप
जरय’क शतांक आयोजनक अवसरिपर सेहो श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक वकतव्य
महत्वपूर्ण रहल छन्हि। उक्त कथागोष्ठी निर्मली (सुपौल) मे दिनांक 22 दिसम्बर 2018क
आयोजित भेल छल। जाहिमे सगर ‘राति दीप जरय’क मादे ‘शुभकामना’ व्यक्त कयने
छलाह। प्रस्तुत शुभकामनाकेँ रेकॉडिग कए लिपिबद्ध कएल यथावत रूप निम्नांकित अछि-
“आइ अध्यक्ष वा अन्य
पदाधिकारीक चुनाव तँ नहियेँ भेल। ई नीक बात, तँए अध्यक्षजीक सम्बोधन केना करी,
तखन विद्वतजन...।
आइ सौमा कार्यक्रमकेँ
पाबैन हम-सभ मना रहल छी और ऐ पाबैनकेँ कोनो कार्यक्रम–जे साहित्यिक
कार्यक्रम होइ वा राजनीतिक कार्यक्रम होइ–भार लेनिहारमे जखन
ई भावना आबि जाइ छैन जे कार्यक्रम अप्पन छी, जँ केतौ
त्रुटियो भऽ रहल हेन तँ ओकरा अनठबैत, कार्यक्रमकेँ
अधिक-सँ-अधिक सफल केना बनाबी, नीक-सँ-नीक केना बनाबी..;
ई औझुका कार्यक्रमक स्पष्ट प्रमाण अछि। जे सबहक जिज्ञासा एहेन रहलैन
जे कार्यक्रम सफल हुअए...!
ऐठाम पैघ-पैघ बहुत
लोक सभ छैथ, पैघ-पैघ माने साहित्यिक क्षेत्रमे, साहित्यिक काज
केनिहारक क्षेत्रमे...। आइ भाषाक दृष्टिकोणसँ अहॉं कहबै जे कि मैथिलीकेँ की जान छै?
तँ एक्केटा शब्द हम कहब जे अंगरेजी डिक्सनरी लिअ और अहॉं मैथिलीमे,
डिक्सनरी नइए जँ कियो लिखनौं छैथ तँ प्रकाशित जकाँ नइ भेल छै,
भऽ सकै छै जँ गोटे-आधे प्रकाशित भाइयो गेल होइ तँ, हम नइ देखलिऐ हेन। जे एकटा, जैठाम एकटा शब्द
अंगरेजीमे छै तैठाम मैथिलीमे अहाँकेँ दर्जनो शब्द ओइ शब्दक छइ! एतेक समृद्ध भाषा
मैथिली अछि। जनभाषा छिऐ। और ई धरतीसँ ऐ भाषाक जन्म भऽ रहलै हेन, आ हेतइ, आगूओ हेतइ। भाषाक जन्म और भाषाक विकास
अवरूद्ध नै कहियो हेतै, ओ समयक अनुकूल परिवर्तित होइत चल
जेतइ! और बढ़ैत जेतइ...!
तँए भाषा कमजोर नइए।
हँ, साहित्यक क्षेत्रमे भलेँ कहबै जे रचना हमरा सबहक कम अछि। और रचनो जे अछि
ओइमे सभ विधापर...। समाजकेँ...। आइ, हम सभ अतीत दिस कनी बेसी
बढ़ि जाइ छी, जे रचनाकारमे हमरा कनीक दोष बुझाइए। ई बात जरूर
जे ओ इतिहास छी, ओ पुराण छी, ओ परम्परा
छी..! मुदा ओकरा ओइ दायरामे राखए पड़तै। ओकरा अगर आइ हम वर्तमान वा भविसकेँ नजैरमे
राखि कऽ जँ मनुखकेँ देखबै तँ ओ कल्याणकारी नइ हेतइ। कल्याणकारी लेल दुनू दिस देखए
पड़त। ओइसँ अहॉंकेँ सीख लिअ पड़त- अतीतसँ, मुदा ओकरे
पूजा-पाठमे उतारि देबै, ओकरे हम भविस बनाकऽ ओही दिशामे बढ़ि
जेबै तखन साहित्य अवरूद्ध भऽ जेतइ।
औझुका जे कार्यक्रम
देखलौं हेन जइमे ठीके शिवकुमार बाबू कहलैन हेन जे “किछु गोरे ग्रूप बना कऽ..!”
मुदा नहि.., आइ जहिना
एकठाम सभकियो एक विचारसँ, एक समस्याकेँ मानि कऽ, जे मैथिलीक कल्याणक सबाल अछि ऐ बिन्दुपर अगर जँ हम एकजुट भऽ अहिना आगू
बढ़ैत रहब तँ मैथिलीक विकास, जे चाहै छिऐ, विकास तँ भाइये रहलै हेन आ हेबै करतै, ओ तँ विकासक
एक प्रक्रिया छिऐ, ओ तँ समयक मांग छिऐ, ओ रूकतै नहि, भलेँ ओ मनथर गतिसँ होइ वा द्रूत गतिसँ
होइ, तँए चाहब जे अधिक-सँ-अधिक कार्यक्रम अहॉंक साहित्यमे
हुअए, अधिक-सँ-अधिक हमसभ एकठाम भऽ कऽ अपन विचारक जे ‘अदान-प्रदान’ अछि ओ करैत रही। किए? आइ, मानि लिअ जे अहूँ नीक चाहि रहलिऐ हेन जे मैथिलीक
कल्याण होइ, हमहूँ चाहि रहलिऐ हेन जे मैथिलीक कल्याण होइ,
तखन मतभेद केतए? फेर मतभेद केतए भऽ जाइए?
सभ दृष्ट्रिकोणमे...।
ऐठाम जे इतिहास रहलै
हेन, इतिहासे नहि रहलै हेन, जेकरा ‘वैदिक
बात’ कहै छिऐ वा ‘शास्त्रीय बात’
कहै छिऐ ओहीमे दू दिशा भऽ गेलिऐ! सभठाम..!
आब, जेना ऐठाम
ब्रह्मेक विषयमे लिअ, कियो अद्वैत मानलैन, कियो द्वैत मानलैन, कियो द्वैताद्वैत मानलैन,
कियो विशिष्टाद्वैत मानलैन...। ढेर तरहक विचार, ढेर तरहक विचारक जरूरत और ढेर तरहक मतवाद जे छै जे उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेल।
तँए ई सभ अलग बिन्दु अछि। मुदा मैथिली, जे अपना सबहक भाषा छी,
अपना सबहक साहित्य छी, ई केकर छिऐ, केकरा-ले छिऐ? ऐ चीजकेँ नजैरमे राखि हम सभ मैथिलीकेँ
दशा-दिशा दिऐ। और मैथिलीक प्रगतिक माने मैथिलीक भाषा कि मैथिली साहित्यक प्रगति नहि
होइ छै, मिथिला समाजक होइ छै, हमर-अहॉंक
होइ छइ। ई कल्याणकारी बात एकरे भीतरमे छिपल छै, ऐपर हम सभ
नजैर राखी और अहिना कार्यक्रम अनवरत चलैत रहए।
और दिलीपोजीकेँ हम
आग्रह करबैन जे सघन कार्यक्रमक दिशामे.., अहॉं जेनरल हकार दियौ कोनो कार्यक्रम
होइ, हम जेनरल हकार दिऐ कोनो कार्यक्रममे, अहिना जे कियो छथि, कमल बाबू छैथ। सभ कियो कार्यक्रम
कऽ रहला हेन। नारायण बाबू छैथ, ईहो बहुत सक्रीय लोक छैथ,
आ बहुत कार्यक्रम कऽ रहला हेन। सभकियो एकदम समान दृष्टिसँ, जेनरल दृष्टिकेँ अपनाकऽ जे सबहक कार्यक्रम छी, सबहक
चीज छी, हम सभ एकठाम बैसी। कियो आबैथ, कियो
नइ आबैथ ऐमे तँ बहुत तरहक बात होइ छइ। केते गोरेकेँ कए तरहक समस्या भऽ जाइ छैन,
कए तरहक समस्या उपस्थित भऽ जाइ छैन। एकर माने ई नइ हेबाक चाही जे
एह! फल्लाँ रूसि रहला तँए फल्लॉं नइ एला..। नइ गलत बात! ई बात नइ हेबाक चाही। हम
सभ एकजुट भऽ कऽ अहिना जहिना मैथिली भाषा और साहित्यक झण्डा उठा कऽ आइ सौमा
कार्यक्रम कऽ रहलिऐ हेन तहिना उठा कऽ फेर हम सभ ऐगला सौ केर बाद जे कार्यक्रम छै,
और अनेको जे कार्यक्रम छै, ओइ सभमे अहिना
सक्रीय बनल रही और अहिना कार्यक्रम चलैत रहए...।
औझुका कार्यक्रमकेँ
जे सफल बनेबाक लेल विद्वतजन एकठाम भऽ सौमा पाबैन मना रहल छैथ ऐ लेल हम बहुत खुशी
छी और चाहब जे अहिना हमरा सबहक अनवरत गाड़ी चलैत रहए। अही आशाक संग हम अपन विचारमे
विराम दइ छी।”
उपसंहार-
जगदीश प्रसाद मण्डलजी
अपन आस-पासमे होइत तमाम घटना, यथा- प्राकृतिक घटना, समय
परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक
परिवर्तन, लोक मानसक परिवर्तनकेँ साकांक्ष भऽ सर्वेक्षण करैत
रहलाह, एकरहि परिणाम अछि जे हिनक रचनामे सभकिछुक दर्शन होइछ।
जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ
नव काल्हि देखैक इच्छा शुरूहेसँ रहलैन। से ओहिना नहि, कएला पछाति
आरो मजगूत भेलन्हि। एहि प्रसंगमे श्री गजेन्द्र ठाकुर लिखित हिनक वायोग्राफीमे आएल
अछि- “जेतए परिवारमे साधारण शिक्षाक आगमन भेल छेलैन। तैठाम मण्डलजी एम.ए. तक
पढ़लैन। परिवारे नहि, गामेमे पहिल एम.ए. भेला। ओना, पैछला पीढ़ीमे संस्कृतक माध्यमसँ एक-पर-एक विद्वान बेरमामे भेला मुदा
जेनरलमे जगदीश प्रसाद मण्डलेटा रहैथ। ..दोसर उदाहरण- बोरिंग-करौने खेतियोमे किछु
नवता आबि गेल छेलै गाममे। दुनू रंगक खेती करै छला मण्डलजी। दुनू रंगकसँ मतलब-
अन्नो आ नगदियोक। नगदी खेतीमे तरकारी आ फलक खेती सेहो करए लगला। ओना, जइ रूपे करए चाहै छला ओइ रूपे नै होइक कारण छल, किछु
समैयोक अभाव आ किछु उपद्रवो। खेतीक एहेन उजाड़ि होइत रहैन जे जौं मारि-झगड़ा करए
लगितैथ तँ दिनमे तीन बेर होइतैन। पैघ समस्याक आगू छोट गौण पड़ि जाइ छइ। मुदा मन
तोड़ैक तँ अस्त्र भेबे कएल। उपद्रवो चाहे जेतए हउ मुदा मनकेँ प्रभावित तँ करिते
अछि। तहूमे खेतीक उजाड़ि जइमे मेहनत आ पूजीक संग समैयक क्षति सेहो होइत।”[xxxi]
हजारो बर्खक गाछ
किछु-ने-किछु अपनामे नवीनता अनिते रहैए। चाहे नव टुसा हउ आकि नव मुड़ी आकि नव पात
आकि नव कलश। मण्डलजी पहिने विपुल अनुभव प्राप्त कएलाह पछाति लेखन दिसि अग्रसर
भेलाह।
प्रस्तुत अछि
मण्डलजीक आइ धरिक प्रकाशित पोथीक सूची, जाहिमे क्रमश: कथा, उपन्यास, कविता, गीत आ
नाटक-एकांकी अछि-
कथा- 1. गामक जिनगी (2009), 2. तरेगन (2010), 3. बजन्ता-बुझन्ता (2013), 4. शंभुदास (2013), 5. उलबा चाउर (2013), 6. अर्द्धांगिनी (2013), 7. सतभैंया पोखरि (2013), 8. गामक शकल-सूरत (2014), 9. अपन मन अपन धन (2015), 10. समरथाइक भूत (2014), 11. अप्पन-बीरान (2014), 12. बाल गोपाल (2014), 13. भकमोड़ (2013), 14. रटनी खढ़ (2014), 15. पतझाड़ (2014), 16. लजबिजी (2014), 17. उकड़ू समय (2015), 18. मधुमाछी (2015), 19. पसेनाक धरम (2015), 20. गुड़ा-खुद्दीक रोटी (2015), 21. फलहार (2015), 22. खसैत गाछ (2015), 23. एगच्छा आमक गाछ (2016), 24. शुभचिन्तक (2016), 25. गाछपर सँ खसला (2016), 26. डभियाएल गाम (2016), 27. गुलेती दास (2016), 28. मुड़ियाएल घर (2016), 29. बीरांगना (2017), 30. स्मृति शेष (2017), 31. बेटीक पैरुख (2017), 32. क्रान्तियोग (2017), 33. त्रिकालदर्शी (2017), 34. पैंतीस साल पछुआ गेलौं (2017), 35. दोहरी हाक (2018), 36. सुभिमानी जिनगी (2018), 37. देखल दिन (2018), 38. गपक पियाहुल लोक (2018), 39. दिवालीक दीप (2018), 40. अप्पन गाम (2018), 41. खिलतोड़ भूमि (2019), 42. चितवनक शिकार (2019), 43. चौरस खेतक चौरस उपज (2019), 44. समयसँ पहिने चेत किसान (2019), 45. भौक (2019), 46. गामक आशा टुटि गेल (2019), 47. पसेनाक मोल (2019), 48. कृषियोग (2020), 49. हारल चेहरा जीतल रूप (2020), 50. रहै जोकर परिवार (2020), 51. कर्ताक रंग कर्मक संग, 52. गढ़ैनगर हाथ (अपूर्ण)
उपन्यास- 1. मौलाइल
गाछक फूल (2009),
2. उत्थान-पतन (2009), 3. जिनगीक जीत (2009),
4. जीवन-मरण (2010), 5. जीवन संघर्ष (2010),
6. नै धाड़ैए (2013), 7. बड़की बहिन (2013),
8. ठूठ गाछ (2015), 9. इज्जत गमा इज्जत
बँचेलौं (2017), 10. लहसन (2018), 11.
पंगु (2018), 12.आमक गाछी (2018), 13.
सधवा-विधवा (अपूर्ण), 14. भादवक आठ
अन्हार (अपूर्ण), 15. सुचिता
पद्य- 1. इन्द्रधनुषी
अकास (2013), 2. राति-दिन (2013), 3. तीन जेठ एगारहम माघ (2013),
4. सरिता (2013), 5. गीतांजलि (2013), 6. सुखाएल पोखरिक जाइठ (2013), 7. सतबेध (2018),
8. चुनौती (2019), 9. रहसा चौरी (2019),
10. कामधेनु (2020), 11. मन मथन (2020),
12. अकास गंगा (2020)
नाटक/एकांकी- 1.
मिथिलाक बेटी (2009),
2. कम्प्रोमाइज (2013), 3. झमेलिया बिआह
(2013), 4. रत्नाकर डकैत (2013), 5.
स्वयंवर (2013), 6. पंचवटी (2013), 7.
कल्याणी (2015), 8. सतमाए (2015), 9.
समझौता (2015), 10. तामक तमघैल (2015), 11. बीरांगना (2015)
साहित्यक प्रति हिनक
दृष्टिकोण जे छन्हि ओ द्रष्टव्य अछि- “मैथिली साहित्य जगत समाजसँ एते दूर हटि गेल
अछि जे जोड़ब असान नै अछि। ओना, ई सिरिफ मैथिलीए-मे नहि, आनो-आन
साहित्यमे भरपूर अछिए। जेना- कबीर दासक चर्च मैथिली साहित्यमे कम अछि मुदा कबीर
दासक जे जिनगीक (जीवन पद्धति) इतिहास प्रस्तुत कएल गेल अछि ओ विवेकपूर्ण जकाँ नै
अछि। विवेकपूर्ण नै हेबाक कारणे कबीर दर्शन समाजसँ हटि गेल अछि। जेहो सभ दर्शनक
प्रचार-प्रसार कऽ रहल छैथ। ओहो सभ या तँ अपनो गुमराहे छैथ, नहि
तँ लाथी छैथ, जे गुमराह केने छैथ।
तहिना तुलसी दास ‘गोस्वामी’
कहबै छैथ, मुदा केतेक गाए पोसने छला? जरूरत अछि युगानुसार साहित्यक निर्माण करब।
तहिना जाधैर मैथिलियो
साहित्य समाजक वस्तु (समाजक साहित्य) नै बनत ताधैर के केकरा की कहै छिऐ से भाँज
थोड़े लगत। तँए शुभेक्षु साहित्यकारक दायित्व बनैए जे एक आँखि समाजपर रखि दोसर आँखि
जखन कागत-कलमपर रखता तखन मैथिली साहित्ये नहि मिथिलाक कल्याण हएत। राज्यक अर्थ जौं
राजधानीक एकटा कार्यालयसँ लइ छी तँए मिथिलाक समाज छुटि जाइए। मिथिलाक समाजिक
पद्धति वैदिक पद्धतिसँ आगू बढ़त तखने सर्वांगीन विकास हएत।”[xxxii]
जगदीश प्रसाद
मण्डलजीकेँ समय-समयपर सम्मान/पुरस्कार सेहो भेटैत रहलनि अछि, यथा- विदेह
सम्पादक मण्डल द्वारा ‘गामक जिनगी’ लघु
कथा संग्रह लेल ‘विदेह सम्मान- 2011’, बाल
प्रेरक बीहैन कथा संग्रह ‘तरेगन’ लेल ‘विदेह बाल साहित्य पुरस्कार-2012’, तथा ‘नै धारैए’ उपन्यास लेल ‘विदेह बाल
साहित्य पुरस्कार- 2014-15’, ‘गामक जिनगी व समग्र योगदान
हेतु साहित्य अकादेमी द्वारा- ‘टैगोर लिटिरेचर एवार्ड- 2011’,
मिथिला मैथिलीक उन्नयन लेल साक्षर दरभंगा द्वारा- ‘वैदेह सम्मान- 2012’, मिथिला-मैथिलीक विकास लेल सतत
क्रियाशील रहबाक हेतु अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा- ‘वैद्यनाथ
मिश्र ‘यात्री’ सम्मान- 2016’, रचना धर्मिताक क्षेत्रमे अमूल्य योगदान हेतु ज्योत्स्ना-मण्डल द्वारा- ‘कौमुदी सम्मान- 2017’, मैथिली साहित्यमे समग्र योदान
लेल एस.एन.एस. ग्लोबल सेमिनरी द्वारा ‘कौशिकी साहित्य
सम्मान- 2015’, आ मिथिला-मैथिलीक संग अन्य उत्कृष्ट सेवा लेल
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा ‘स्व. बाबू साहेव चौधरी
सम्मान- 2018’ इत्यादि।
[ii] तत्रैव,
पृ.- 07
[iii] मौलाइल गाछक
फूल, जगदीश प्रसाद मण्डल, पल्लवी
प्रकाशन, निर्मली, पृ.- 09
[iv] तत्रैव,
पृ.- 09
[v] तत्रैव
[vi] तत्रैव
[vii] तत्रैव
[viii] जगदीश प्रसाद
मण्डल- एकटा वायोग्राफी, पल्लवी प्रकाशन, निर्मली, गजेन्द्र ठाकुर, पृ.-
18
[ix] तत्रैव,
पृ.- 21
[x] तत्रैव,
पृ.- 42
[xi] तत्रैव,
पृ.- 37
[xii] तत्रैव,
पृ.- 40
[xiii] तत्रैव
[xiv] तत्रैव,
पृ.- 88
[xv] तत्रैव,
पृ.- 60
[xvi] तत्रैव,
पृ.- 61
[xvii] तत्रैव,
पृ.- 62
[xviii] तत्रैव,
पृ.- 63
[xix] तत्रैव,
पृ.- 80
[xx] तत्रैव,
पृ.- 82
[xxi] तत्रैव,
पृ.- 99
[xxii] तत्रैव,
पृ.- 103
[xxiii] तत्रैव,
पृ.- 123
[xxiv] तत्रैव,
पृ.- 09
[xxv] तत्रैव
[xxvi] मौलाइल गाछक
फूल, जगदीश प्रसाद मण्डल, पल्लवी
प्रकाशन, निर्मली, पृ.- 10
[xxvii] तत्रैव,
पृ.- 10
[xxviii] तत्रैव
[xxix] तरेगन,
जगदीश प्रसाद मण्डल, पल्लवी प्रकाशन, निर्मली, पृ.- 06
[xxx] अंशु, शिव कुमार झा ‘टिल्लू’, श्रुति
प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.- 53
[xxxi] जगदीश प्रसाद
मण्डल- एकटा वायोग्राफी, पल्लवी प्रकाशन, निर्मली, गजेन्द्र ठाकुर, पृ.-124-125
[xxxii] तत्रैव,
पृ.- 127
]Y§Y]
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