बाढ़ि-दाही नदी-नालाक किरदानी मिथिलाक वास्तवीक चित्र Mithila Flood baadh विषयक झलक_जगदीश प्रसाद मण्डल

मनमोहन- बड़ बढ़ियाँ, घनश्याम भाय कहलैन। एक तँ दैवी प्रकोप माने बाढ़ि, रौदीसँ अपन इलाका पछुआएल दोसर मनुखोक दोख कम नइ छइ। जे इलाका जेते पहिने जागल ओ ओते अगुआएल। 

आभा- कनी सोझरा दियौ काका। 

मनमोहन- (मुस्की दैत...।) पहिने जंगली अवस्थामे अपना सबहक पूर्वज छला। हाथे-पैरसँ सभ किछु करै छला। जेना-जेना बुइध‍-अकील बढ़ैत गेल तेना-तेना आगू मुहेँ ससरैत गेला। हथकर्घासँ पाँच सीढ़ी आगू बढ़ि आइ कम्प्यूटर-युगमे पहुँच‍ गेल छी।

आभा- ऐसँ आगूओ बढ़त?

मनमोहन- निसचित बढ़त। निचेनमे कहियो औरो कहब। अखन जइ काजे एकत्रित भेल छी तेकरा आगू बढ़ाउ।

सोमन- भाय, हम सभ ने कहियोकाल मासुल दऽ कऽ बस, जीप आकि कोनो गाड़ीपर चढ़ै छी। अहाँकेँ तँ अपने अछि।

मनमोहन- से तँ अछिए।

घनश्याम- ओना बाढ़ि रौदी दुनू जनमारा छी। मुदा आइ रौदीक विचार करू।

शान्ती- मैनेजर काका, अहाँ सभ तरहेँ ऊपर छी। ओना समाजक किछु भारो ऊपरमे अछि, तँए चाहब जे झगड़ा-झंझटसँ नहि, विचारक रस्तासँ समाज आगू बढ़ए।

घनश्याम- विचार तँ अपनो सएह अछि। मुदा नहियोँ चाहलापर केते-गोरेकेँ बैंकक लोनमे जहल पठबए पड़ैए आ चौकैठ-केबाड़ उखाड़ए पड़ैए।

शान्ती- से किए?
घनश्याम- (विस्मि‍त होइत...।) की कहब बोरिंग-दमकलसँ लऽ कऽ गाए पोसैक लोन उठा लोक सराध-बिआहक भोज कऽ पूजी नष्ट कऽ लैत अछि आ समैपर आपस नइ कऽ पबैत अछि।

शान्ती- तखन?

घनश्याम- औझुका बैसार तँए ऐतिहासिक अछि जे समाज अपन कल्याणक दिशा अपने निसचित करैथ।

नसीवलाल- जुग-जुगान्तरसँ जे मनोवृत्ति‍ बनि गेल अछि ओकरा एकाएक नै बदलल जा सकैए। मुदा बिना बदलने काजो नहियेँ चलत, तँए जरूरी अछि जे उत्पादन आ उपभोगकेँ नीक जकाँ सभ बुझी।

घनश्याम- जुगक अनुकूल विचार अछि।

सुकदेव- घनश्याम बाबू, गामक बारहअना जमीन हुनका सबहक छिऐन जे गाम छोड़ि अनतए जा नोकरी करै छैथ। जखन कि खेती केनिहारकेँ अपन खेत नै छिऐन।

घनश्याम- (मुड़ी डोलबैत...।) हँ से तँ अछिए।

सुकदेव- तैबीच केना सामंजस हएत?

घनश्याम- ओना अपना सभ बुझै छी जे अंग्रेजकेँ भगा हम सभ स्वतंत्र भेलौं मुदा से नहि छी। जखन देशक शासन आ सम्पैत सबहक सझिया भऽ जिनगीक समुचित विकास दिस बढ़त तखन हएत।

रघुनाथ- (हृदए खोलि...।) मन हल्लुक करै दुआरे अपन बात कहै छी। जहिना जुआनीक उमकीमे गाम छोड़ि शहर गेलौं तहिना आइ बुझि पड़ैए जे..?

मनमोहन- रुकलौं किए?

रघुनाथ- संकोच होइए। जैठाम छी तैठाम निहत्था भऽ गेलौं। जिनगीक सभ किछु छीना रहल अछि। मुदा गाममे सभ किछु देख रहल छी।

मनमोहन- संकोच किए होइए।

रघुनाथ- पूजी नष्ट होइत देख रहल छी। जइले जिनगी गमेलौं सएह..?

मनमोहन- डॉक्टर साहैबसँ कनियोँ नीक नहि छी। ओना डॉक्टर साहैबकेँ सभ किछु भेट जेतैन मुदा..?

रघुनाथ- (मुस्की दैत...।) ‘मुदा’ की?

मनमोहन- एग्रीकल्चर शिक्षा पाबि बेटा गाममे रहत आ अपने शहरमे। बुढ़ाड़ीमे एकलोटा पानियोँ के देत।

सोमन- अहाँक गाम छी, खेत-पथार छी। अहाँक सुआगत अछि जे गाम आबि अपन जिनगीक अनुभव अनाड़ी-धुनाड़ीकेँ दिऐ।

कृष्णदेव- अखन हम तनावमे चलि रहल छी। मुदा तैयो कहै छी अहाँ सबहक विचारानुसार जीबैक कोशिश करब।

शान्ती- घनश्याम काका, आगूक भार अहाँ ऊपर?

घनश्याम- गामक भाग जगि गेल। पूजीक जेते जरूरत हएत ओ बैंकसँ दिआ देब। भने एग्रीकल्चर ग्रेजुएट गाममे रहता, हुनका माध्यमसँ गामक योजना बना उन्नैत खेती आ खेतीसँ जुड़ल कल-कारखाना लेल परियासरत् रहब।

शान्ती- (हँसैत...।) जिनगीक सार्थकता पाबि रहल छी।

घनश्याम- किछु करैक संकल्प सभ लिअ। जखने सामुहिक डेग उठत तखने रस्ता धड़ैमे देरी नहि लगत।
नसीवलाल- सबहक दुख-सुख- सहबहक छी। सबहक इज्जत-सबहक छी।

#Courtesy_COMPROMISE
A Play in Maithili Language by Shri. Jagdish Prasad Mandal 




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