बाढ़ि-दाही नदी-नालाक किरदानी मिथिलाक वास्तवीक चित्र Mithila Flood baadh विषयक झलक_जगदीश प्रसाद मण्डल

दस बीघा खेतबला कृष्णमोहन सोलहन्नी पठने-पाठनक बीचक जिनगी धारण कऽ लेलैन तइसँ खेतीक आमदनी सेहो कमि गेलैन‍। ओना, खेत बँटाइ लगौने रहैथ‍ मुदा उपजा दूधक-डारही जकाँ रहैन‍। कारणो छल, एक तँ समयपर खेती नै भऽ पबै, दोसर खेतीक खोराक तँ पानि छिऐ से नै रहैन‍, तैसंग कोनो साल बीड़ारेमे बीहैन रौदी भेने जरि जाइत तँ कोनो साल बेसी बरखा-बाढ़ि एने गलि जाइ। जरन-गलन खेतीक प्रमुख बीमारी भइये गेल रहइ। ओना, कृष्णमोहनक किछु बँटेदार खेतीमे पूजी लगा उद्योग बनबए चाहै छल मुदा खेतीक पूजी दू-दिसिया होइत। एक दिस खेतकेँ चौरस करब, पानिक ओरियान करब, जीव-जन्‍तुक उपद्रवक बचाव करब, तँ दोसर दिस होइत नीक बीआ, खाद, दबाइ कीनि उपजा बढ़ाएब। मुदा तइमे कृष्णमोहन पाछू हटि जाइथ। हटैक कारण रहैन जे पानि लेल बोरिंग-दमकल जे कारखानाक समान छी, तइमे मनमाना दाम रहने अधिक पूजीक जरूरैत पड़ैत, तहिना खेतो चौरस आकि छहरदेवालीसँ घेरब आकि कँटहा तारसँ बेरहब सेहो तहिना। आब ओ समय रहल नै जे टल्ला-छिट्टासँ लोक खेत सेरिऔत, गामक लोक भागि कऽ शहर-बजार पकैड़ लेलक तखन केना सेरिऔल जाएत। टेकटर सभ बढ़ियाँ काज करै छै मुदा ओकर तँ खर्चो बेसी छैहे। ओना, कृष्णमोहनकेँ एते जमीन छेलैन‍ जे किछु जमीन बेच जँ पानिक प्रबन्ध करए चाहितैथ तँ कऽ सकै छला मुदा बाप-दादाक देल जमीन केना बेच सकै छला! प्रतिष्ठाक प्रश्न तँ रहबे करैन। भूमिए ने भूमा आ भूषण दुनू छी। बँटेदार अपन पूजी अहू दुआरे नै बेसीयबऽ चाहैत जे उपजाक बँटबारा उचित नै छइ। खेतीमे उपजाक अदहासँ बेसी बँटेदारकेँ लगते लगबए पड़ैए, तैठाम जँ अदहा बँटाइ भेटत तँ घाटा हेबे करत। आब कि कोनो सतयुग छी जे लोक अपन पूजी गमा दोसराक उपकार करत। आब तँ ओ जुग आबि गेल अछि जे लोक दानो-पुन अपने धिया-पुता धरि करैए। जँ से नै तँ महारथीक बेटे किए महारथी बनला, दोसर किए ने बनि सकला, जखन‍ कि ओ सभ दानीए नै महादानी छला।
कृष्णमोहनक पहिल सन्तान इन्द्रमोहन। इन्द्रमोहनक जन्‍मक समय हुनकर मातो-पिता जीविते रहथिन। परिवारमे इन्द्रमोहनकेँ पैबते‍ बाबा-दादी हृदए फाड़ि असीरवाद देने रहथिन जे कुलमन्त बनि जिनगी जीविहऽ।
समय बीतल‍ हराइत-ढराइत कृष्णमोहनोकेँ स्‍कूल भेटलैन‍। शनिचराक आशा रहबे करैन‍ तैपर पैंतालीस रूपैआ दरमहो भेटए लगलैन‍। मनक आशा पुरबै दुआरे इन्द्रमोहनकेँ इमानदारीक संग पढ़ौलैन। अपन कोठीक जे धान-चाउर रहैन ओ खोलि कऽ दऽ देलखिन। मुदा इन्द्रमोहनकेँ डिग्री-डिप्‍लोमा नै भेट‍ सकलै। अछैते बुधिये इन्द्रमोहनकेँ अपना बरबरि काज नै देख‍‍ कृष्णमोहन चिन्ति‍त रहबे करैथ‍ मुदा उपैये की। सरकारमे जे अछि ओकर तँ अपने लगुआ-भगुआ सड़कपर बौआइ छै, अनका कथी देखत। मुदा एते उपए तँ कृष्णमोहनकेँ कइए देलखिन जे खेत बँटाइए रहए दहक, अपनो दरमाहा भेटते अछि, पेन्‍शनोक गप-सप्प चलिये रहल अछि जाबे जीब ताबे तोरा तकलीफ नै हुअ देबह। जइसँ इन्द्रमोहनकेँ अपना सिरे काज किछु ने। मुदा शिक्षकक बेटा रहने परिवार तँ प्रतिष्‍ठि‍त भइये गेल छेलैन‍। केना ने होइत, जँ सरस्‍वतीक बास भूमि स्‍वर्ग भूमि नै बनै तँ केकर बनइ। अपनो दरबज्जापर लोकक आवाजाही आ अनको ऐठाम आएब-जाएब इन्द्रमोहनक रहबे कएल। पढ़ल-लिखल रहने गामक लोक इन्द्रमोहनकेँ काजक भार दिअ लगलैन‍। खेती-पथारीक समय आ ओकरा करैक लूरि तँ लोक पुछए लगलैन। समाजमे झूठो केना बाजल जाए तखन‍ तँ महिना-तीर्थ बुझैले किछु जरूरत‍ पड़बे करत। तैसंग खेती करैक तरीका सेहो बुझए पड़त, जँ से नै बूझब तँ लोक अनेरे कहत जे मास्टरक बेटा तास्टर भऽ गेल। तइले जँ सोलहन्नी नै तँ चौअन्नियोँ सत् नै रहत तँ सोलहन्नी झूठो आँखिक सोझहामे केना देखल जाएत।
ओना, पोथियो-पत्रा प्रमाणि‍क अछि मुदा तेतबेसँ काज चलैबला नहियेँ अछि। जेना वायुमण्डलक रूप रेखा बदलने मौसमक रूप-रेखा बदैल‍ जाइत तेना तँ पोथी-पत्राक तानी-भरनी नै बदलैत, तँए किछु आरो पढ़ैक जरूरैत अछि। इन्द्रमोहनकेँ मनमे उठिते बुधि बिचरलै, बिचैरते भूगोल-इतिहास दिस बढ़ल। मुदा प्रश्न फँसि गेलै दुनूक साल-मासक हिसाबमे मलमास। तीन सालपर होइए। जेकर कोनो मोजरे ने छै, जखन‍ पूजा-पाठ, पाबैन‍-तिहार हेबे ने करत तखन‍ खेती-पथारी केना कएल जाएत। मुदा विचारलो केकरासँ जाए। भूमि छेदन अधला भेल। मुदा भूमि तँ देहो होइए, मनो होइए। समाजक निरमौत समाज होइए। तइमे समाज तेहेन चालैन‍ जकाँ भऽ गेल अछि जइसँ परदा बनब कठिन अछि। घोर-मट्ठा भेल मनमे इन्द्रमोहनकेँ उठल जे अनेरे दूध-दही फुटाएब आकि घोर-मट्ठा, तइसँ नीक जे दूधे उठा कऽ पीब जाइ। सबहक मद्दी भऽ जेतै। विचारमे मनो मानि निर्णए कऽ लेलकै जे जेते बुझल अछि ओ बुझलाहा भेल बाँकी बिनु बुझल भेल, दुनू बात लोककेँ कहबै। जे मन फुरतै से मानि करत। मुदा लगले मनमे दोसर धक्का लगलैन। ओ ई जे बुझबो तँ एक रंग नै होइए। कोनो दोसराक मुँहक सुनल होइए तँ कोनो किताबक पढ़ल तँ कोनो अपना हाथे कएल रहैए तखन‍ तीनूमे केकरा की कहबै। हरि अनंत हरि कथा अनन्ता’ कहि राम-राम कऽ जिनगीकेँ रामरो बना समाजिक लोक इन्द्रमोहन बनि गेल।
नोकरीक अन्तिम दस बर्खक बीच पिता-कृष्णमोहनक जिनगीमे उछाल एलैन। पाँच सन्तानक बीच परिवारमे तीनू बेटियो आ जेठ बेटा-इन्द्रमोहनकेँ बिआह-दुरागमन कऽ निचेन भऽ गेल छला। गामसँ थोड़े हटि दोसर गाममे हाइस्‍कूल बनने विष्‍णुमोहन मैट्रि‍क पास कऽ नेने छल। एका-एक पैंतालीस रूपैआक काजक मूल्‍यो हजारमे बदैल‍ गेलैन‍। बेटाक मनमाना शिक्षा लेल हृदए खोलि देलखिन। एते जरूर केलैन‍ कृष्णमोहन जे इन्द्रमोहनसँ सेहो पुछि लेलखिन। सोझमतिया इन्द्रमोहनकेँ प्रश्नक उत्तर दइमे मिनटो नै लगलै। मन कहलकै-
“अनकर दालि-चाउर अनकर घी हमरा परसैमे की। जेठ भाइक मान-मर्यादा तँ अपने बनबए पड़त। से तँ अनके सिरे भेट‍ रहल अछि। एते हल्‍लुक माटि तँ बिलाइयो खुनि सकैए, मनुख तँ सहजे मनुख छी जे पाताल खुनि जौमैठ‍ गाड़ि सीमांकन कऽ लइए।”

#अप्पन सन मुँह कथासँ ई कथा अंश लेलौं, रखलौंं।
पतझाड़ कथा संग्रहक ई कथा छी। जे २०१४ ईमे प्रकाशित अछि।




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