Jagdish Prasad Mandal मैथिली साहित्यमे बाढ़ि, बाइढ़, दाही, जीवन-संघर्ष

“की हेतै, कियो कपार लऽ लेत। भगवान जे भोग-पारसमे देने हेता ओ हेबे करत। जे नै देने हेता से अपनो केने थोड़े हएत। तइले एते आगि-अंगोरा होइक कोन काज छइ। नोकसाने की भेल, खपड़ा गलि कऽ माटि हएत, ओकरा फेर‍ खपड़ा पाथि सुखा कऽ भट्ठा लगा लेब। जरनो भीजबे ने कएल ओकरो सुखा लेब। गिरहत सभकेँ देखै छिऐ हर-जन लगा खेती करैए आ बाढ़िमे दहा जाइ छै तँ की ओ मरि जाइए आकि खेती छोड़ि दइए। तहिना हमरो भेल। भगवान समांग देने रहैथ। सभ किछु फेर‍ भऽ जाएत।”
पतिक बात सुनि फुलेसरीक मन थीर भेल। मुदा तैयो मन खौंझाएले रहइ। बाजल-
“भगवानो दुष्‍टे छैथ‍‍। जानि-जानि कऽ गरीबे लोककेँ सतबै छथिन। जहिना ओ करै छथिन तहिना ने हमहूँ सभ करै छिऐन‍। ने एकोटा उपास करै छी आ ने एको दिन पूजा करै छिऐन‍।”
पत्नीक बात सुनि मुस्की दैत सुरतिया बाजल-
“अच्छा आब भऽ गेल। जहिना ओ केलैन तहिना अहूँ करिते छिऐन‍। सधम-बधम भऽ गेल।”
मछुआ सोसाइटी बनने किछु गोरे उठि-बैसल आ किछु गोरे गोपलखत्तामे चलि गेल। ओना, सोल्‍होअना पोखैर‍ सोसाइटीमे अखनो धरि नै गेल अछि मुदा जे गेल ओकर मुआबजा तँ पोखैरबलाकेँ नै भेटल। सोसाइटी बनने नव पनिदार मालिकक जन्म जरूर भऽ गेल। किएक तँ एक गोरेक हाथमे अंचल भरिक पोखैर‍ आबि गेल। जइसँ पर्याप्त उत्पादित पूजी हाथ लगि गेलइ। संग-संग सरकारी खजानाक लूट सेहो शुरू भेल। मनमाना ढंगसँ सोसाइटीक सचिव आ सरकारी तंत्र, दुनू मिलि कऽ गामक अमूल्य पूजी लूटब शुरू केलक।
ओइ सोसाइटीसँ एकेटा पोखैर‍ आ एकटा खानगी पोखैर‍ डेढ़ हजार सलियाना-किस्तपर फुदना माछ पोसैले लेलक। सोसाइटीबला पोखैरक महार, बिनु देख-रेख भेने ढहि-ढुहि कऽ सहीट भऽ गेल छेलइ। मुदा रामधनबला पोखैरक महार, नीक मुँह कान रहने, जीअ‍त छइ।
शुरूहे अखाढ़मे फुदना एकटा वेपारीसँ गंगाक जीरा कीनि सैरातबला पोखैरमे देलक। आ दोसर पोखैरमे तमुरियाक हेचरीसँ जीरा कीनि कऽ आनि देने रहए। गंगाक जीरा रौहु, नैन, भाकुर रहै आ तमुरियाक जीरा, सिल्‍वरकाफ रहए। सिल्‍बरकाफ साले भरिमे दू-दू-तीन‍-तीन किलोक भऽ जाइत, जखन‍ कि रौहु-नैन तँ कम बढ़ै छै मुदा भाकुरक बाढ़ि अधिक होइ छइ। पानिक सतहक हिसाबसँ तीनू माछ रहै छै, तँए तीनू मिला कऽ देल जाइए।
शुरूहे अखाढ़ेमे जे आद्रामे बर्खा भेल रहै, ओइमे दुनू पोखैर‍ भरि गेल रहए। पोखैरक पानि आ जीराक सुतरब देख दुनू परानी फुदनाक मन चपचप करैत रहइ जे भगवान दुख हेरलैन‍। कहुना-कहुना तँ बीस हजारसँ ऊपरेक आमदनी हएत। जहिना खूब फड़ल आमक गाछी, खूब उपजल खेत आ खूब दुधगरि गाए बिएलासँ खुशी किसानकेँ होइत, तहिना फुदनो दुनू परानीक मनमे होइ। जइसँ दुनू परानी बेरा-बेरी तीन‍-तीन बेर‍ पोखैरक घाटपर घन्‍टा-घन्‍टा भरि बैस माछक बच्चाकेँ एमहर-सँ-ओमहर हेलैत देखए। घरपर अबैक मने ने होइ।
माछक कारोबारसँ फुदनाक परिवार पहिलेसँ जुड़ल। मखान खर्ड़ब, माछ मारि बेचब, परिवारक जीविका रहइ। मुदा तीन-सलिया रौदी भेने फुदना कण्‍ठी लऽ लेलक। माछक रोजगार कोन जे माछ खाएबो छोड़ि देलक। माछक गन्ध फुदनाकेँ पहिने नीक लगै मुदा आब जी ओकिऐ लगै छइ। गामक कीर्तन मण्डलीमे शामिल भऽ अष्टयाम, नवाहमे कीर्तन करैले सेहो जाए लगल आ भनडारा सेहो पुरए लगल। लाट लगने एक हाथ हरमुनियाँ आ ढोलक बजौनाइ सेहो सीख लेलक। पाछू-पाछू कीर्तन गबैत-गबैत गौनाइयो सीख लेलक। दाढ़ियो-केश बढ़ा लेलक आ पतलखरीक चानन सेहो करए लगल। समैयो संग देलकै। नव रोजगार ठाढ़ भेल। कीर्तन मण्डलीक सट्टा सेहो हुअ लगलै। काजो हल्लुक आ प्रतिष्ठाक संग-संग खेनाइयो नीक भेटै आ पाइयोक आमदनी नीक भऽ गेलइ। मुदा घरवाली साकठे रहल‍।
जहिना माछक विन्‍यास बनबैमे सितिया लूरिगर तहिना खाइयोमे जीविलाहि। गामक छौड़ा सभ आ जनिजातियो सभ, ओकरा बगुला भगत कहैत। घरमे एक्केटा थारी-लोटा रहइ। जहीमे फुदनो खाए आ सि‍‍तियो। एते बात जरूर रहै जे कहियो फुदना घरवालीकेँ माछ खाइसँ मनाही नै केलक। फुदना देखबो करै जे नैहरसँ सनेसमे माछे अबै छइ। नहियोँ-नहियोँ तँ तीन‍-चारि खेप मासमे आबिए जाइ छइ। सितियाक पिता माछक कारोबारी छथिन। पोखैरोबला सभसँ आ मधेपुरोक वेपारीसँ माछ कीनि-कीनि आनि आ नफ्फा लगा कऽ गामे-गामे घुमि कऽ बेच लइ छैथ। जइसँ नीक कमाइ होइ छैन। खेत-पथार तँ नै कीन‍लैन मुदा नीक जकाँ गुजर करैत घरो नीक बनौने छैथ।
एक दिन फुदनाक सार टुनटुनमा दू किलोक अण्‍डाएल रौहु नेने एलैन। नमहर-नमहर कुट्टि‍या काटि सितिया माछ तरए लगल।
माछक सुगन्धसँ फुदनाक मन मचकी जकाँ डोलए लगलै। जहिना शरीरमे पुरन रोग समए पाबि जगि जाइए, तहिना फुदनोकेँ भेल। गरदैनसँ कण्‍ठी निकालि लाचारीक मुस्की दैत पत्नी लग आबि बाजल-
“दूटा कुट्टि‍या आ चूरा भुजि कऽ नेने आउ?”
पतिक बात सुनि व्यंग करैत सितिया बाजल‍-
“तीन सालमे केते घाटा भेल से बुझै छिऐ? रौहु माछ खेनिहारकेँ कहियो आँखिक ज्‍योति कमै छइ। बुढ़ाड़ियो तक ओहिना चक-चक देखैत रहैए। अखन चूल्हि‍ तरसँ केना उठब। घरमे चूरा नै अछि। दोकानसँ अदहा किलो नेने आउ। ताबे हम अण्‍डाकेँ तरै छी।‍”
जहिना चोरकेँ गरपर रूपैआ देखने देहमे तेजी आबि जाइ छै, तहिना फुदनोकेँ आबि गेल। जेबीसँ दसटकही निकालि दोकान गेल। सात रूपैआमे अदहा किलो चूरा कीनि कऽ आबि चूल्हि‍‍ए लग बैस पत्नीकेँ कहलक-
“ताबे एकटा लाउ।”
सितियाक इच्छा रहबे करइ। अनेरे दुनू परानी दु-दिसाह भेल छी। जइसँ अनेरे सदिकाल रक्का-टोकी होइत रहैए। तरल अण्‍डा आ चूराक भूजा सितिया पतिकेँ देलक। जहिना कोनो वस्तु अधिक दिनक पछाइत‍‍ भेटलासँ आनन्द अबैत तहिना फुदनाकेँ माछ-चूरा खाइमे आबए लगल।
फुदना सासुर गेल। ससुरक घरमे धड़ैनपर एकटा छोटका घुमौआ जाल सैंत‍ कऽ रखल देखलक। जाल देख मनमे एलै जे अनेरे ई जाल रखले-रखले दुरि भऽ जाएत, तइसँ नीक जे नेने जाइ। छोटका सारकेँ जाल उतारि देखबैले कहलक। जाल मांगि गाम नेने आएल। गाममे केकरो बुझले नै रहै आ ने केकरो लग बजबे कएल। ओजार देख फुदना तरे-तर खुशी रहए। तेसरे-चारिमे दिनसँ ओ पोखैर‍ सभमे साँझू पहरकेँ चोरा-चोरा माछ मारए लगल। अपनो खाए आ उगरै तँ बेचियो लिअए।
पोखैरबला सभ धपबए लगल। होइत-होइत एक दिन फुदना पकड़ा गेल। तत्‍काल तँ पोखैरबला किछु नै कहलकै, खाली जाल छीन लेलक। दोसर दिन भोरे पोखैरबला पनचैती बैसौलक। पूर्वासायक जरूरते ने रहै किएक तँ जाले गबाह रहइ। पंच सभ पच्चीस बेर‍ कान पकैड़‍ कऽ उठै-बैसैले आ एक साए रूपैआ दण्ड केलक। मुदा जाल घुमा देलकै। आँगन अबिते पत्नी मुहेँ-काने खुब दुत्कारलक। पत्नीक बातसँ फुदनाकेँ जानसँ ऊपर ग्‍लानि भेल। कान पकैड़‍ बाजल-
“आइ दिनसँ कहियो एहेन काज नै करब।”
पतिक बात सुनि सितिया अपन हौंसली दैत कहलक-
“लिअ, एकरा बन्हकी लगा माछ पोसैले एक-दूटा पोखैरक बनोबस कऽ लिअ। अपन कारोबार रहत, जेते मन हएत खेबो करब आ गुजरो करब।”
दिवाली दिनक घनघोर बर्खासँ सैरातबला पोखैरक माछ दहा गेल। बाधक पानिक सलाढ़ पोखैरमे लगि गेल। बर्खा छुटला पछाइत‍ दुनू परानी फुदना टॉर्चक हाथे माछ देखए गेल। पोखैरक सलाढ़ देख फुदनाकेँ बघजर लगि गेल। बकार बन्न भऽ गेलइ। दुनू हाथ माथपर लऽ महारपर बैस रहल। टॉर्च नेने सितिया घाटपर जा बारलक तँ एक्कोटा माछ नजैरपर पड़बे ने केएल। माछ नै देख सकदम भऽ गेल‍। मने मन सोचए लगल जे सभ केलहा डुमि गेल। मुदा गलती अपनो भेल जे महारकेँ बन्हलौं नहि। जँ मोटगर आड़ियो जकाँ मुहकेँ बान्हि देने रहितिऐ तँ एहेन दिन नै देखितौं। मुदा आब सके कोन। जे चलि गेल ओ फेर‍ घुमि कऽ थोड़े औत। घुमि कऽ पति लग आबि चुपचाप ठाढ़ भऽ गेल‍। फुदना सोचैत, लोक कमा कऽ स्‍त्रीकेँ गहना-जेबर कीनि-कीनि दैत अछि आ हम एहेन करमघट्टू छी जे जेहो गहना छेलै सेहो पानिमे बोहा देलिऐ। एक तँ माछ भाँसल, तैपर सँ हौंसलियो चलि गेल...।
फुदना किछु बजबे ने करैत। पतिकेँ देख सितिया बाजल-
“माथा-हाथ देलासँ थोड़े माछ घुमि औत। तखन तँ आगू की करब से सोचू। चलू ओहू पोखैरकेँ देखिऐ जे ओहो भँसि गेल आकि बँचल अछि।”
मने-मन फुदना सोचलक, हमर बाजब उचित नै हएत। किएक तँ जनीजाति बेटोसँ पैघ गहनाकेँ बुझैत अछि। तँए वएह कि बजैए सएह सुनी। आगू-आगू टॉर्च नेने सितिया आ पाछू-पाछू चुपचाप फुदना दोसर पोखैर‍ देखए विदा भेल।
पोखैरक चारू महार घुमि कऽ देख मुस्की दैत सितिया बाजल-
“जीरासँ जे किछु आमदनी होइत से तँ नहियेँ हएत। मुदा एक्को पोखैर‍ जँ बँचि गेल तँ अहीसँ दुनू पोखैर‍ अबाद भऽ जाएत।”
पत्नीक बात सुनि फुदना बाजल-
“पहिने तँ भेल जे जहिना ओ पोखैर‍ दहा गेल तहिना ईहो दहा गेल हएत। मुदा भगवान रच्छ रखलैन जे एकटा बँचल अछि। तेते ने जीरा सुतरल अछि जे एकटाकेँ के कहए जे एकटा आरो पोखैर‍ भऽ जाएत, तेकरो अबादि लेब। जेते छेहर बच्चा रहै छै ओते बेसी बाढ़ि होइ छइ।”
फुदनाक बात सुनि सितियाक मनमे एकटा नव विचार जगलै। मने-मन सोचए लगल जे भने दहार भऽ गेल। कोनो कि हमरेटा पोखैर‍ दहाएल, एहेन-एहेन केते गोरेक दहाएल हेतइ। आब सोसाइटीबला आ पोखैरबला अगधाएत थोड़े, तेहेन पूजी अछि जे पोखैरबला सभ खुशामद करए औत। सस्‍तेमे दोसरो पोखैर हाथ लगि जाएत। भगवान जहन दइपर होइ छथिन तँ अहिना ने छप्पर फारि कऽ दइ छथिन। बाजल-
“गलती अपनो सबहक भेल जे पोखैरक मुँह मजगूतसँ नै बान्हि देलिऐ। जँ से बान्हल रहैत तँ एहेन दिन थोड़े देखतौं। काल्हि‍‍ भोरे पाँचटा टल्लाबला जन कऽ कऽ मजगूतसँ मुँह बान्हि देबइ। अखन कातिके छी बहुत समए अछि। बैशाख-जेठमे मछहैर‍ हएत। भने पोखैर उपो-उप भरि गेल।”
पत्नीक बात सुनि फुदना बाजल-
“जँए एते पूजी लगेलौं तँए थोड़े आरो लगा देबइ। दू मन खैर आनि कऽ सेहो दइए देबइ। ओना, देखै छिऐ जे केते गोरे खादो दइए। मुदा अपना तँ ओते ओकाइत नइए। ऐ साल कहुना-कहुना कऽ लिअ। ऐगला सालसँ नीक जकाँ करब। कोनो की अग्‍गह-बिग्‍गह पोखैरे जोतलासँ थोड़े होइ छै, जेतबे करब नीक जकाँ करब।” 
#Courtesy_JEEVAN-SANGHARSH
A Maithili Novel by Sh. Jagdish Prasad Mandal
Jagdish Prasad Mandal
Published by Umesh MandalJuly 16 at 6:50 PM
गिरहत सभकेँ देखै छिऐ हर-जन लगा खेती करैए आ बाढ़िमे दहा जाइ छै तँ की ओ मरि जाइए आकि खेती छोड़ि दइए। #जीवन_संघर्ष_2006

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