श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे, लेखनमे, मैथिली साहित्यमे मिथिलाक बाढ़ि, बाइढ़, दाही, कोसी, कमलाक उपद्रव आदिक चित्र-विचार

मीनमे घर बना लेलक। केना नै बनबैत? एक तँ पुश्‍तैनी गामक सिनेह आ अपन सम्पैतो तँ छेलइ। छह मासक पछाइत‍ धार सुखि गेल। मुदा उपजो-वाड़ी आ गाछो-बिरीछ अदहा-छिदहा भऽ गेल। किछु गोरेक मालो-जाल नष्ट भेल। अनरनेबा, धात्री, लताम, कटहर इत्यादिक गाछ उपैट‍ गेल, दूटा पोखैर‍ आ पाँचटा इनार धारक पेटमे समा गेल। जइसँ लोकक मनमे डर पैसए लगल। गामक माटि-पानिक सिनेह सेहो कम हुअ लगल। बिसवासू जिनगी अनिश्चि‍तता दिस बढ़ए लगल। किछु गोरे आन गाम जा बसैक बात सोचए लगल।
मुदा जेकरा खेत-पथार रहै ओ करेजपर पाथर रखि रहैले मजबूर भऽ गेल। तेसरा साल बाढ़ि सभसँ भयंकर रूपमे आएल जइसँ गामक खेतो-पथारक रूप नष्ट भऽ गेल, गाछो-बिरीछ नष्ट भऽ गेल आ लोकोक जान अवग्रहमे फँसि गेल। छातीमे मुक्का मारि सभ गाम छोड़ि देलक। सन्‍मुख कोसी गाम होइत बहए लगल।
तीस बर्ख तक, एक रफ्तारमे बँसपुरा होइत कोसी बहैत रहल। गामक सभ आन-आन गाम जा बोनिहार बनि गेल। जेकरा-जेतए जीबैक गर लगलै ओ ओतए चलि गेल। अधिकतर लोक नेपाल पकैड़‍ लेलक। जाधैर लोककेँ अपना पूजी रहै छै ताधैर ने किसान वा कारोबारी रहैए मुदा पूजी नष्ट भेने तँ खाली-हाथ बँचि जाइए।
बँसपुराक सभ बोनिहार बनि गेल। कोसी एलासँ पूर्वक जे समाजिक सम्बन्ध बँसपुराक छल ओ राँइ-बाँइ भऽ गेल। पहिलुका समाज नष्ट भऽ गेल। बँसपुराक सभ सुख लोक बिसैर गेल। मातृभूमि केकरा कहै छै से बँसपुराक लोक-ले परिभषे मेटा गेल। मातृभूमि आ दुनियाँमे की अन्तर अछि..?
...जँ जन्मभूमिकेँ मातृभूमि मानल जाए, तखन तँ ओकरा सबहक मातृभूमियेँ नष्ट भऽ गेलइ, जे सभ बँसपुरामे जन्म नेने छल। किए तँ ओ सभ आन-आन गाममे रहि रहल अछि। जँ कहियो फेर‍ बँसपुरा जगतै तँ ओ फेर‍ आबि देखत किने‍। तहिना जे घुमि कऽ औत ओ सभ तँ आने-आने ठाम जन्म नेने रहत, तहन ओकर मातृभूमि कोन भेलइ? जँ देशकेँ मातृभूमि मानल जाए, तँ देशो विभाजित भऽ जाइ छइ। जे दू नाओं धारण कऽ लैत अछि, तहन तँ देशोकेँ केना मातृभूमि मानल जाए? जँ से नहि, जइ धरतीपर लोक जन्म लैत अछि ओकरा मानल जाए, तँ दुनियाँक जेते देश अछि सभ धरतीएपर अछि तहन किए मातृभूमिकेँ छोट आकारमे मानै छी। किए ने दुनियाकेँ मातृभूमि मानल जाए?
कोसीक धार हटलापर जखन बँसपुरा जागल तँ रूपे बदैल‍ गेल। मुलाइम माटि बाउल भऽ गेल। गाछ-बिरीछक जगह कास-पटेर, झौआ लऽ लेलक। अपन पुश्‍तैनी गाम बुझि पुन: लोक सभ आबए लगल। ने केकरो जमीनक सबूत, खतियान-दस्ताबेज इत्यादि रहलै आ ने जमीनक ठर-ठेकान। मुदा गाम तँ हेतइ। जहिना अदौमे माने साबीकमे जंगल-झाड़ तोड़ि लोक बसो-बास आ उपजाउ भूमि बनौलक आ रेन्ट फिक्स कऽ सरकारो जमीनक अधिकार देलकै, तहिना बनौल गाम बँसपुरा छी।
#उपन्यासकार_जगदीश_प्रसाद_मण्डल
पल्लवी प्रकाशन बेरमा-निर्मली
छातीमे मुक्का मारि सभ गाम छोड़ि देलक। सन्‍मुख कोसी गाम होइत बहए लगल।

#जेपीएम-गद्य_2006

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