बाढ़ि, बाइढ़, दाही, रौदी आदि विषय श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे (लेखनमे)

बाढ़िक विकराल दृश्य आँखिक आगू नाचए लगैए। घोड़ोसँ तेज गतिसँ पानि दौगैत। बाढ़ियो छोटकी नहि, जुअनकी नहि, बुढ़िया। बुढ़िया रूप बना नृत्य करैत। केकरा कहूँ बड़की धार आ केकरा कहूँ छोटकी, सभ अपन-अपन चीन-पहचीन मेटा समुद्र जकाँ बनि गेल। जेमहर देखू तेमहर पाँक घोराएल पानि, निछोहे दच्छिन-मुहेँ दौगल जाइत। केतेक गाम-घर पजेबाक नइ रहने घर-विहीन भऽ गेल। इनार, पोखैर, बोरिंग, चापाकल पानिक तरमे डुबकुनियाँ काटए लगल। एहेन भयंकर दृश्य देख लोककेँ डरे छने-छन पियास लगलोपर पीबैक पानि नइ भेटैत। जीवन-मरण आगूमे ठाढ़ भऽ झिक्कम-झिक्का करैत। घर खसल, घरक कोठी खसल, कोठीक अन्न भँसल। जेहने दुरगैत घरक तेहने गाइयो-महींस, गाछो-बिरीछ आ खेतो-पथारक।
घरक नूआँ-वस्तर आ बासन-कुसनक संग आनो-आन समानक मोटरी बान्हि माथपर लऽ अपनो डाँड़मे दू भत्ता खरौआ डोरी बान्हि आ बेटोक डाँड़मे बान्हि आगू-आगू मुसना आ पाछू-पाछू घरवाली-जीबछी, बेटी-दुखनीकेँ कोरामे लऽ कन्हा लगौने पोखैरक ऊँचका महार दिस चलल।
अखन धरि ओ महार बोन-झाड़ आ पर-पैखानाक जगह छल, जइमे साँप-कीड़ा बसेरा बनौने, बाढ़ि ओकरा घराड़ी बना देलक।
जहिना इजोतमे छाँह लोकक संग नै छोड़ैत, तहिना बर्खा बाढ़िक संग छोड़ैले तैयार नहि। निच्चाँ पानिक तेज गति आ ऊपरसँ बर्खाक नमहर बून। महारपर मुसनाकेँ पहुँचैसँ पहिनहि बीस-पच्चीस गोरे अप्पन-अप्पन धिया-पुता, चीज-वौस आ माल-जालक संग पहुँच‍ चुकल छल। महारपर पहुँच‍ मुसना रहैक जगह हियाबए लगल। शौच करैक ढलान लग खाली जगह देख मुसना मोटरी रखलक। मोटरी रखि बिसनाइरिक डारि तोड़ि खर्ड़ा बनौलक। ओइ खर्ड़ासँ खर्ड़ए लगल। एक बेर खरैड़ कऽ देखलक तँ मनमे पड़पन नइ भेलइ। फेर दोहरा कऽ खरैड़ चिक्कन बनौलक। चिक्कन जगह देख दुनू बेकतीक मनमे चैन भेलइ। मोटरी खोलि मुसना एकटा बोरा निकालि चारिटा बत्तीक खुट्टा गाड़ि, खरौआ जौड़सँ ओइ चारू खूटकेँ बत्तीमे बान्हि घर बनौलक। दोसर बोरा निच्चाँमे ओछा धियो-पुतोकेँ बैसौलक आ समानो रखलक।
चिन्तासँ दुनू परानी मुसनाक मुँह सुखाएल। एक दिस दुनू बच्चाकेँ देखए आ दोसर दिस गनगनाइत बाढ़िकेँ। माथपर दुनू हाथ दऽ जीबछी मने-मन कोसी-कमला महरानीकेँ गरियेबो करैत आ जान बँचबैले निहोरो करैत। दुनू बच्चो कखनो बाढ़ि देख हँसैत तँ कखनो जाड़े कनैत। बाढ़िक वेगमे एकटा घर भँसियाएल अबैत देख मुसना बाँसक टोन आ कुरहैर लऽ दौगल। पानिमे पैस हियाबए लगल जे कोन सोझे घर औत। ठेकना कऽ हाँइ-हाँइ पाँचटा खुट्टा ठोकलक। आस्ते-आस्ते घर आबि कऽ खुट्टामे अड़कल, खुट्टामे अड़ल घर देख घरवालीकेँ हाक पाड़ि कहलक-
“हाँसू नेने आउ। घरक समचा सभ उघि-उघि लऽ जाउ।”
#लेखक_श्री_जगदीश_प्रसाद_मण्डल_साभार_गामक_जिनगी_लेखन_वर्ष_2004 



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