SUKHAL MAN TARSAL AAKHI

ISBN : 978-93-87675-56-8
ISBN :
दाम : 200/-
© श्रीमती मुन्नी कामत
पहिल संस्‍करण : 2014
दोसर संस्‍करण : 2017
तेसर संस्‍करण : 2018

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन
तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली, जिला- सुपौल, 
बिहार : 847452

वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com
मोबाइल : 8539043668, 9931654742

प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)
आवरण : दी साहु प्रिन्टिग प्रेस. निर्मली (सुपौल) पिन : 847452  

SUKHAL MAN TARSAL AAKHI
Anthology of Maithili Poems by Smt. Munni Kamat..

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आशीर्वचन-
सुखल मन तरसल आँखिहमर मुन्नीक काव्‍य संग्रह अछि। मुन्नी जे हमर हिन्‍दी प्रतिष्‍ठाक छात्रा छेली। नीक अध्‍येता। एक-एक डेगकेँ नपैत अगल-बगलक काह-कूहकेँ साफ करैत पोखैरसँ समुद्र दिस बढ़ैत छल। साहित्‍यक समुद्रमे सोंस-घड़ियार तथा माछ-कौछक संग डोका-काँकोड़ादिकेँ देखैत-परखैत ओ जिजिविषाक लेल उताहुल रहैत छेली। अपना संगे आनो-आनकेँ हाथ पकैड़ घीचैत घाट लगबैमे कखनो उद्विग्न नहि भेली।
एकटा जाइठ पकैड़ ओ मैथिली भाषा-साहित्‍यक सागरमे अपन पएर पटैक-पटैक हेलबाक कोशिश करैत आइ कुशल हेलवैया बनबाक प्रयत्न कऽ रहल अछि।
संग्रहमे मिथिलाक बेटीक दुखक अनेकानेक दृश्‍य कवयित्रीक मनक असंतोष नहि वरन्‍ समस्‍त मिथिलाक बेटीक मनोदशाक छवि दृश्‍य मान अछि। बेटीक प्रति समाजक आँखिमे नचैत चण्‍डालक छवि कखनौं कवयित्रीकेँ चैनसँ जीबक पलखैत नहि दऽ रहल छइ।
मैथिल समाजक माए, पिता आ भाइक करस्‍तानीसँ तार-तार होइत जिनगीक परिणाम ई सुखल मन तरसल आँखि छी। सुखाड़ आ तरास ऐ पोथीक मर्म अछि। मिथिलाक बेटीक मनमे बेटी हेबाक अभिशाप ओकर रोंआँ-रोंआँ भोगि रहल छइ। चिड़ै-चुनमुनी जकाँ अपन ओद्रक घावकेँ दाबैत, पीचैत, मारैत हम कहिया तक बेटीकेँ धरतीसँ मेटेबाक कुकृत्‍य करैत रहब। की मानव सभ्‍यता बेटी विहीन समाजे सम्‍भव अछि? फेर अनकर बेटी हमर बेटाक भावनासँ भरल हमर समाज किए अपनाकेँ रोकैमे असमर्थ भऽ रहल अछि।
बेटी सभ दिन अहिना बोझ परहक आँटी बनल रहत। सगर जिनगी एक-एकटा छोट-छोट अभिलाषाकेँ बलि चढ़बैत ओ सीता जकाँ कहिया तक बनवासल जिनगी जीबैले बाध्‍य होइत रहत।
समाजक प्रति मुन्नी कामतिक हृदयमे धधकैत आगिमे हमर बेटीक वेदना चरमपर छैन। अनगढ़ आाखरमे गढ़ल मिथिलाक बेटीक जीवन, दहेजक आगिमे जरैत ओकर करेज, गर्भेमे ओकर हत्‍या, जन्‍मोपरान्‍त ओकर उपेक्षाक दरदकेँ बेटियो अनुभव करैत छै किने, बस! ओकरे प्रमाण ई पोथी थिक।
भाषा भावक रथवाह होइत छइ। मनुखक पीड़ाकेँ स्‍वर देबाक साधन होइत छइ। मुन्नी कामति (वर्मा) मात्र मिथिलांचले नहि वरन्‍ समस्‍त भारतक बेटीक माउथ पीस बनि अपन काव्‍यकेँ संग्रहक रूप देबाक प्रयास केलैन अछि।
ऐ संग्रहमे सुखल मनतरसल आँखि केँ दू खण्‍डमे विभाजित कऽ अगर प्रकाशन होइत तँ आर नीक रहैत।
एहेन आगि जरबाके चाही। युग-युगसँ संचित आगिकेँ व्‍यक्‍त करैमे कवयित्री केतेक वेदनासँ गुजरल हेती से शब्‍दमे व्‍यक्‍त करब असान नहि। हम कवयित्रीक वेदनाकेँ नमन करै छी। हमहूँ तँ कोनो बेटियेक सन्‍तान छी।
भाषाक गढ़ैन अट-पट होइतो अटपट बेटीक भावकेँ व्‍यक्‍त करबामे सक्षम अछि।
..तँए एक क्षेत्र विशेषक बोलीकेँ स्‍वीकार करब विद्वतजनक सिनेहक सादर आकांक्षी अछि।◌

डॉ. शिव कुमार प्रसाद
एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष,
हिन्‍दी विभाग-
हरि प्रसाद साह महाविद्यालय,
निर्मली (सुपौल)
15.02.2017              






अप्‍पन बात-
उड़ियाइत बालुपर
हरियरी लहलहा जाएत
जँ बदली अपन विचार हम
तँ सगरे खुशी ओंघरा जाएत।

ई हमर पहिल परियास छी जे अपन रचनाक माध्यमसँ समस्त पाठककेँ किछु कहैले चाहै छी। ऐ संग्रहमे हम अपन चारू दिस घटित घटनाकेँ काव्य रूप दऽ अहाँक हाथमे रखलौं। जइ समाजमे हम ठाढ़ छी वएह समाजक भिन्न-भिन्न रूप आ परिस्थिति अहाँकेँ ऐ संकलनमे भेटत।
 सभसँ अधिक जोर हम नारीक दशा आ दिशापर देने छी। एना बिलकुल नै अछि की जेतए ज्ञानक अभाव अछि ओतैटा नारीक स्थिति कमजोर अछि, बल्कि सच तँ ई अछि की पूर्ण ज्ञानक बाबजूदो हमरा समाजमे नारीक प्रति ज्ञानक परिपक्वताक अभाव अछि। जे ज्ञान हम अरजै छी ओकरा जीवनमे नै उतारि पबै छी, वएह कारण अछि जे आइ अपना समाजमे दहेज, भ्रूण हत्या, दुष्कर्म आ घरेलू हिंसा दिन-प्रतिदिन छुआ-छूतक बिमारी जकाँ बढ़ि‍ रहल अछि। की हमरामे शिक्षाक अभाव भेल जाइए? नहि! हमर विचार बदलल जाइए। हम स्वार्थी भेल जाइ छी। हमर इंसानियत मरल जाइए। जेना कल्पना मात्रसँ ऊँचाइ नै मि‍लै छइ, तइले डेग बढ़बए पड़ै छइ। एक-एक सिढ़ी चढ़ि‍ कऽ मनुख गगनचुंबी महलक चोटीपर ठाढ़ भऽ ओकर अहंकार तोड़ैए, ओहिना हम सभ मिलि‍ अगर घरे-घर एक दि‍यारी जराबी तँ हमर समाज अन्‍धकार मुक्त भऽ जाएत।
हम अपन ऐ काव्‍य-रचनामे एहने किछु अंशकेँ छुबैक परियास करैत समाजक सड़ल-गलल मानसिकताकेँ अहाँ सबहक समक्ष ठाढ़ करैक प्रयास केलौं अछि। यर्थाथ, हास्‍य, रौद्र, करूण आ वात्‍सल्य इत्‍यादि विभिन्न सुआदसँ सुसज्‍जि‍त ई थारी आइ अहाँ सबहक समक्ष परसैत हमरा बेहद खुशी भऽ रहल अछि।
कहल जाइ छै जे कोनो विषयपर नान्‍हि‍टासँ अभिरुचि रहै छै, मुदा हमरा संगे ई विचार गलत साबित भेल। समयक संगे हमर रुचि बदलैत गेल। पहिने गणित पढ़ैमे नीक लगैत रहए तँ सहपाठी सभ कहैत छल जे अहाँ गणितक गुरुआइन बनब। मुदा जखन आठमी-नौमीमे गेलौं तँ पढ़ैक जिज्ञासा हमरा विज्ञान दिस खिंचलक। इण्‍टर वि‍ज्ञानसँ केलौं। किछु समए बीतल। ओइ समयमे शिक्षकक नौकरीक बिहाड़ि बहैत रहइ, तइमे हिन्दी वि‍षयक शिक्षकक मांग बेसी छल। वएह बिहाड़िक हवा हमरो देहमे लगि‍ गेल आ हम हिन्दीसँ ऑनर्स केलौं, निर्मली महावि‍द्यालय निर्मलीसँ।
कथा-कहानीक सम्‍बन्‍ध हमरा संगे पूब-पच्‍छिमक जकाँ छल जेकर कोनो मेल नहि। एक दिन ऐ रेगिस्तानमे कविताक एक मेही फुहार लऽ कऽ प्रो. शिव कुमार प्रसाद सर कि‍लासमे एला। हुनकर पहिल कि‍लाससँ हम तेतेक प्रभावित भेलौं कि सहजे हमरा कलमसँ किछु तुकबन्‍दी सादा कागतपर निखरए लगल।
ओइ समयमे हम-सभ माने डाक्‍टर चाचा (श्री उमेश मण्डल) आ चाची (श्रीमती पुनम मण्डल) एक्केठाम भाड़ाक मकानमे रहैत रही। पुबरिया मकानमे ओ दुनू परानी छेलैथ आ पछबरियामे- दोसर महलपर हम सभ सहेली। उमेरक लिहाजसँ आकि परिवारिक सम्‍बन्‍धसँ ओ हमर चाचा-चाची नहि, बल्‍कि हमरा मनमे जे हुनकर स्थान अछि‍, सम्मान अछि से सहजें अछि। सभसँ अधिक चाचीकेँ जिनकासँ हमरा माइक सिनेह मिलल ओइ सिनेहकेँ पाबि हम सभ जेतेक विद्यार्थी ओतए रहैत रही सभ हुनका चाची कहैत रहि‍ऐन। तहिया दादाजीक (आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मण्डल) अनेकानेक रचना प्रकाशित हएब शुरू भेल रहए। चाची हमरा दादाजीक लि‍खल किछु पोथी पढ़ैले देलैन आ कहलैन जे लि‍अ पढ़ब। चचा कहै छला जे मुन्नी जँ लि‍खए तँ कहबै लि‍खैले। पत्रि‍कामे छपतै। तखने हम अपन वएह तुकबन्‍दी पढ़ि‍‍ कऽ सुना देलिऐन। कविता सुनि‍ चाची हमरा आगू लिखैले प्रेरित केली आ कहली जे एकरा आब मैथिलीमे लिखू।
आइ अगर हम किछु लिखलौं आकि‍ लि‍खि‍ रहल छी, एकर सभटा श्रेय चाचा-चाचीकेँ छैन। वएह छैथ जे हमरा बेर-बेर प्रेरित करैत छेलैथ। जेना माए-बाप अपन बच्चाकेँ सही रस्ता देखबै छै तहिना चाचा-चाची हमरा आँगुर पकैड़‍ एतए तक अनलैथ‍। हम हुनका धन्‍यवाद दऽ सिनेहक मोल नै लगबए चाहै छी, बल्‍कि जइ ऊँचाइपर ओ हमरा देखए चाहै छैथ‍ ओइ ऊँचाइपर हम चढ़ि‍ हुनका उपहार दि‍अ चाहै छिऐन।
श्री गजेन्‍द्र ठाकुरजीक सहयोग तथा हुनक प्रत्‍यक्ष वा अप्रत्‍यक्ष प्रेरणा सदैत‍ मन रखबा योग्‍य अछि। हम सबहक प्रति कृतज्ञ छी आ शुद्ध हृदैसँ सबहक आभारी छी।  
सभ पन्ना उज्जर रहि‍ जाइत
सभ गप्प उड़िया जाइत
श्रीमती पुनम मण्‍डलक सहयोगक बिना
केतेक भावना मनमे मरि जाइत।
पोथी प्रकाशि‍त करबा लेल एक बेर फेर चाचीकेँ (श्रीमती पुनम मण्‍डल) सादर नमन, सादर धन्‍यवाद...।  
केतए जा रहल छी हम-

केतौ तपि रहल अछि,
केतौ गलि रहल अछि,
केतौ धँसि रहल अछि,
तँ, केतौ उठि रहल अछि आइ धरती!

तपा रहल अछि एकरा मनुखक बढ़ैत भूख, जे दिन-प्रतिदिन गाछ-वृक्ष काटि एकरा छाहहीन बनबैत अछि। समाजक कुरीति एकरा गला रहल अछि। अपन बेटीपर होइत अति‍याचारकेँ देख ई बेबस भऽ धँसि रहल अछि। देख-देख ई सभ विडम्बना, माँ धरती क्रोधसँ पहाड़ बनि संकल्प करैत अछि- की सम्पूर्ण संसारकेँ ऐ विशाल चोटीसँ झाँपि एकर सर्वनाश करि दी?
मुदा ओ कि‍छु नै करैले नचार अछि। जेना आइ धरती बेबस नचार भेल कड़ीसँ बान्‍हल देखाइत अछि, ओहिना हमरा समाजमे नारीक स्थिति अछि। भाय जल्लाद बनल अछि आ बाप पापक रूप लेने अछि! जखन कि प्राचीन कालेसँ ओइ सम्‍बन्‍धकेँ भगवानसँ ऊपरक स्‍थान मिलल अछि।
आइ ओकर नामो लइसँ घृणाक बोध होइए। आइ हमरा समाजमे सभसँ अधिक नजाइज सम्बन्ध गुरु आ शिष्याक बीच अछि। हम एगो अभिलाषा मनमे बसा अपन बच्चामे नीके संस्कार आ उच्च शिक्षाक अभिलाषा लेने गुरु लग जाइ छी, मुदा वएह गुरु हमर आत्म-सम्मानकेँ ठेँस पहुँचबैत हमर बच्चाक संग शोषण करैत अछि..!
भाय शब्द अतेक पावन, अतेक पवित्र अछि कि सभ बहिन भाय शब्दकेँ सम्बोघित करैत ई सोचैत अछि कि ई हमर केवल भाय नहि कृष्णक रूप अछि। जे युग-युग तक हमर इज्‍जत आ सम्मानक रक्षा करत। चाहे ओ चचेरा, ममेरा आकि‍ फुफेरा भाय किएक नै हुअए। पर वएह भाय जब अपन बहिनक बिसवास तार-तार करैत ओकरा संगे बलात्‍कार करैए तँ ओकर की नाम देल जाएत?
जन्‍म देनिहार बाप जेकरा पिता परमेश्वर कहल जाइत अछि, वएह बाप अपन जन्‍मल बेटी संग पाप करैत अछि समाजमे..!
आखिर केतए ठाढ़ छी हम, केतए जाइले डेग बढ़ा रहल छी? एक क्षण लेल सभ कियो सोचू। की ऐ लेटाएल पैरसँ चलि हम अपन स्वच्छ आ पवित्र समाजक निर्माण कऽ सकै छी? अपन आत्माक अवाज सुनू आ कहू की‍ बेटी कलंकक पुड़िया अछि?‍ हमर समाज ओकरा कलंकित किए करैत अछि?

मुन्नी कामत

 



 

काव्‍य क्रम

समरपि‍त होइत बेटी/18

नव जीवनक निर्माण/19

घर-घर बढ़ल अति‍याचार/20

संकल्प/21

दहेजक बिहाड़ि/22

एहेन समाज/26

सुरज दादा/27

सियान भेल हमर खेल/28

महगाइक खेल/29

सुखद अछि ई मिलाप/30

सान हमर मिथिला/31

विरह/33

देशक राजनीति/34

विदेशी चालि‍/35

बेटी किए बनेलहक विधाता!/36

दुनियाँ तबाह भऽ गेल/37

अन्‍हार भेल जाइए देश अपन/39

बाबू हम सिपाही बनबै/39

आगमन अहाँक/40

हरल जाइए जननि/41

कौआक दुलार/42

कोइस रहल छी जन्‍मकेँ/43

गाम-घर/44

मलार/45

मुनगा/45

सगरे इजोत हमर मिथिला/46

अरिकंचन/47

हमर मिथिला हमर परान/48

नारी/49

जट-जटिन/50

सुखल मन तरसल आँखि/53

मनुखक सौदा/54

अनमोल-बोल/55

चलाकक दुनियाँ/56

बून-बून बँचाबी हम/57

जि‍नगीक मरीचिका/58

तकैत जिनगी कड़कटक ढेरमे/60

संकल्प-2/61

ठमकल शब्द/62

दहेजक बिहाड़ि/63

हराएल हमर रूप/64

विदाइ/65

बेटी/67

दहेजक आगि/68

ओइ पार/69

नेताजी/70

पहिल बरखा/71

किसान/72

समाजक वि‍डम्‍बना/73

दर्दक टीस/74

रोकू कियो ऐ बाढ़िकेँ/75

नोराएल आँखि/‍76

कि‍ए छी हम अछूत/77

भ्रष्टाचारक परसाद/78

तब हँसत तुलसी/79

शिल्पकार/80

यादि‍ गामक/81

आशाक किरण/82

नारीक पहचान/83

आजाद गजल-1/84

आजाद गजल-2/85

बौआ देखहक चान्‍दकेँ/86

भोरक सनेस/87

बेटी-लहास/88

बाल-श्रम/89

फगुआ/90

आन्‍हर कानून/91

बूनक मोल/91

करी मिथिलासँ पहचान/93

करिझुमड़ी कोसी/94

नइ लेब आब हम दहेज/95

मिथिलाक दादा/96

पाहुनक माछ/96

हमरा पागल कहैत अछि लोक/97

सगरे अन्‍हार अछि/98

माइक रूदन/99

अपना दिस निहारू/100

नचार किसान/101

स्वच्छ समाज/102

माए एक चुटकी नून दऽ दे/103

बेटी/104

कारी-बजार/106

शब्दक खेल/107

माए बता तूँ एगो बात/108

अन्‍हार घरमे हत्या/109

बेटी/110

भेल पूर आस/111

भाइक सिनेह/112

अल्हर मेघ/113

सिया तोरे कारण/114

जाड़/115

बन्‍दिश/117

टाकासँ बिआह/118

काँच बाँस जकाँ लचपच उमेरिया/119

मनक वेदना/120

सरहद/121

जतरा/123

अंकक मेल/123

बहि‍न/125
                                                                         ◌

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