KHULA AASMA DHARTEE KEE GOD ME
Anthology of Hindi Poems by Sh. Ram Bilas Sahu
ISBN : 978-93-93135-49-0
दाम : 200/- (भा.रू.)
सर्वाधिकार © लेखक (श्री राम विलास साहु)
प्रथम संस्करण : 2023
प्रकाशक: पल्लवी प्रकाशन
तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली
जिला- सुपौल, बिहार : 847452
मुद्रक: पल्लवी प्रकाशन (मानव आर्ट)
वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com
ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com
मोबाइल: 6200635563; 9931654742
फोण्ट सोर्स: https://fonts.google.com/,
https://github.com/virtualvinodh/aksharamukha-fonts
अक्षर संयोजन: सुश्री पल्लवी मण्डल
आवरण: श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल), बिहार : 847452
इस पुस्तक का सर्वाधिकार सुरक्षित है। कॉपीराइट धारक के लिखित अनुमति के बिना पुस्तक की किसी अंश की छाया प्रति एवम् रिकॉडिंग सहित इलेक्ट्रॉनिक अथवा याँत्रिक, किसी माध्यम से या ज्ञान के संग्रहण व पुनर्प्रयोग प्रणाली द्वारा किसी भी रूप में पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहीं किया जा सकता है।
स्वस्तिवाचन
“रचनाकार के हृदय कुंज से
गूंज रहे हैं दो पक्षी के गीत
एक पक्षी का अफसोस तराना
दूजे का कर्म-वीर संगीत।”
चर्चित, सम्मानित और प्रसिद्ध रचनाकार राम विलास साहु जी साहित्य नक्षत्र का एक चमकता हुआ सितारा हैं। इन्होंने मैथिली भाषा में कई पुस्तकों की रचना कर मैथिली साहित्य के कई अछूते अंगों को भरने का प्रयास किया है। ये बहुमखी प्रतिभा के धनी हैं। ये एक साथ कथाकार और कवि दोनों हैं। ये दोनों भाषाओं, मैथिली और हिन्दी में लिखते हैं। मैथिली में इनके द्वारा लिखित कृतियों में से मुझे ‘नेत्रदान’ और ‘दुधबेचनी’ का रसास्वदन मिला है। इनमें नेत्रदान एक खण्डकाव्य है तो ‘दुधबेचनी’ एक सफल कथा संग्रह है। नेत्रदान में नायिका ‘अन्धरानी’ के लिए नेत्र अथवा ज्योति का जुगाड़ इन्होंने जिस युक्ति से किया है, इन्हें विज्ञान साहित्यकार प्रमाणित करता है और इससे इनकी कृति में चार चॉंद लग गये हैं। महान साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी जी रचित ‘नेत्रदान’ का दर्द इस कृति में भी शुरू में झलकता है परन्तु रचनाकार ने बड़े ही मार्मिक ढंग से अन्धरानी की दुखद स्थिति को देखकर तथा ऑंख का जुगाड़ कर ‘ट्रेजडी से कॉमेडी’ की ओर स्थिति को ले गया है। ‘दुधबेचनी’ में हाहाकार गरीबी जीवन का निष्पक्ष उल्लेख इन्होंने किया है। वैसे समाज के लिए ‘गरीबी’ अभिशाप है, एक ऐसा अभिशाप जो पैरखींचा है, आगे नहीं बढ़ने देता है तथा उन्नति के सभी रास्तों को अवरूद्ध कर देता है, परन्तु नायिका ‘रीता’ गरीबी की चक्की में पिसाती हुई भी आगे बढ़ती गई। इतना तक कि विधवा हो जाने पर भी दूध बेचकर अपने दोनों बेटों को उसने पदाधिकारी बनाकर उसका जीवन सफल किया और अंतोगत्वा उस खुशी की लहर में वह सक्रिय समाज-सेवी बन गई। इस प्रकार ‘गरीबी’ अभिशाप है को चुनौती देकर ‘गरीबी वरदान’ भी है, सावित कर दिया। अभिशाप को वरदान के रंग में रंजित करने वाली ‘रीता’ को क्या मंत्र मिला था? उत्तर मिलता है- ‘हौसला’। शायर ने भी कहा है- ‘हम पर से नहीं हैसले से उड़ते हैं।’
मैथिली में यद्यपि ये दूतिया के चॉंद की तरह बढ़ते आये हो, परन्तु हिन्दी में ये भुरुकवा तारा अर्थात् ‘भोर का तरा’ की भॉंति हिन्दी- साहित्याकाश में चमके हैं।
प्रस्तुत रचना ‘खुला आसमां धरती की गोद में’ श्री साहु की हिन्दी भाषा में लिखित एक काव्य संग्रह है। इसके माध्यम से इन्होंने सुसुप्त ज्वालामुखी की भॉंति सोये को जगाने और जीवन-पथ पर सक्रिय रहने का सन्देश दिया है और अवनति की ओर जा रहे समाज को उन्नति की दिशा दी है। सोये हुए को जगाना इसलिए भी जरूरी है-
“जागो-जागो अब मत सोओ
कि पीछे गड्ढ़ा तो आगे कुऑं है।
तेरा अधिकार अधर में न पड़ जाये
कि तेरे आगे तेरा कारवॉं है।”
‘चेतावनी गीत’, रामेश्वर प्रसाद मण्डल
जैसा कि कवि राम विलास साहु इन पंक्तियों में किसानों के दर्दों को वयां कर रहे हैं और समाज को जगा रहे हैं-
“खुला आसमां धरती की गोद में
चैन की नींद कभी सोया नहीं
करता रहा दिन-रात खेतों में काम
भर पेट अन्न कभी खाया नहीं।”
सत्य है कि हक और अधिकार के लिए लड़ना पड़ता है। इसके लिए साहस ही नहीं दु:साहस भी दिखलाना पड़ता है। जब वीर-यौद्धा लड़ने के लिए चलते हैं तो उनके लिए विघ्न-बाधाओं से टकड़ाना और आगे बढ़ते जाना एक अभियान गीत बन जाता है-
“फण उठाये नाग हो
भालू-चीता बाघ हो
जलती हुई आग हो
सामने अड़ा पहाड़ हो
कोई न रोकेगा मेरा रास्ता।”
अभियान गीत, रामेश्वर प्रसाद मण्डल
इसी अभियान को और वीरता को और वीरमय करने के लिए श्री साहु ने अपनी रचना में प्रस्तुत किया है-
“न जाने कितने बाधाओं से
लड़ते गीरते उठते बढ़ते
नहीं हारते हिम्मत कभी हम
अपने लक्ष्य तक जाते हैं।”
‘गुमान’ शीर्षक में रचनाकार ने समाज को तथा वैसे लोगों को चेतावनी दी है जो गुमान करना अपना शान-शौकात समझता है। ये कहते हैं कि घमण्ड करना अथवा गुमान करना किसी तरह से ठीक नहीं है। कहावत भी है- प्राउड मस्ट फेल’। जैसा कि इन पंक्तियों में रचनाकार ने दर्शाया है-
“धन-वैभव न तेरा है न किसी का
जमीन जोरू भी जोर का नहीं तो
वह भी किसी और का है
क्या लेकर आया था तुमने?
लेकर भी कुछ नहीं जाओगे।”
इन्होंने ‘चुप्पी’ शीर्षक कविता के द्वारा समाज की चुप्पी तोड़ने का प्रयास किया है। समाज की शान्त सरिता में अपने कशक के वेग से कल-कल-छल-छल की धारा बहाते हुए उपदेश दिया है-
“सावन की कहर है
घटा भी है वेदर्दी
समुद्र क्योँ चुप है
ये आग किसने लगाई।”
‘सच्चा पुत्र’ शीर्षक के माध्यम से श्री साहु ने ‘सुपुत्र’ को परिभाषित किया है और सच्चा पुत्र बनने के लिए उपदेश दिया है-
“सच्चा सुपुत्र वही होता है
जिसको कर्म पर है विश्वास
मातृभूमि भी गुनगान करती
सब के हृदय में करता है वास।”
‘जागो मुसाफिर’ शीर्षक में इन्होंने समाज और देश में अपनी पहचान बनाने में समय का कितना महत्व है, दर्शाया है-
“जो समय संग चलते आया
वह बनाया जग में पहचान।”
इतना ही नहीं रचनाकार ने अपने विलक्षण प्रतिभा का परिचय कराते हुए समाज में मातृवत्सल्य प्रेम और पितृवत्सल्य प्रेम के प्रतीक श्रवण कुमार जैसे सुपुत्र की नगण्यता पर प्रहार करते हुए माता-पिता को देवी-देवता के रूप में स्थापित कर पूजित किया है-
“माता-पिता को जो नित्य पूजता
वही सच्चा सपुत कहलाता है
जो पूजता है हरि समझ कर
वह महामानव कहलाता है।”
‘ज्ञान दीप- 01’ शीर्षक के माध्यम से इन्होंने जाति-धर्म और भेद-भाव से समाज को टूटता हुआ देखकर लोगों को सावधान किया है और विचार बदलने का सुन्दर तथा सुखद सन्देश दिया है-
“हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई
सभी हैं ईश्वर की सन्तान
एक ही लहू से बना इंसान
विकार छोड़ो विचार बदलो।”
न जाने इनके दिल में कितने दर्द, टीस और कशक छिपे हैं कि कभी व्यंग्य-तीर से भी समाज अथवा लोगों को बेधकर भीष्म पितामह भी बना डालते हैं। इन्होंने ‘मन का मैला’ में पूजा-पाठ, कर्म-काण्ड अर्थात् तीर्थधाम पर करारा व्यंग्य कसा है-
“तीर्थ धाम मैं बहुत किया
स्नान, ध्यान, दान-पुण्य काम
नद-महानद गोंता लगाया
सब हुआ बेकार निष्काम।”
‘अन्धी सरकार’ शीर्षक में इन्होंने एक कुशल राजनीतिज्ञ बनकर सरकार की नाकामियों को दिखाकर, जनता के उत्पन्न दर्दों को बताकर उनकी समस्याओं में शामिल हुआ है-
“हे देश की अंधी सरकार
भ्रष्टाचार, मंहगाई की मार से
गरीब जन है लाचार बेकार
कौन है इसका जिम्मेवार?”
‘वतन की सेवा’ शीर्षक द्वारा इन्होंने देश के हर नौजवान को, समस्त देश वासियों को पहरेदार, सिपाही-संतरी बताकर इनके दिल में राष्ट्र-प्रेम की भावना का संचार किया है और कहा है कि देश के लिए ही जीना है और मरना है-
“धरती से अम्बर पथ पर
संभल-संभल कर बढ़ना है
वतन की सेवा करते-करते
अन्तिम साँस लेना है।”
सचमुच में इनहोंने ‘खुला आसमां धरती की गोद में’ जैसा अनमोल रत्न देकर भारत और भारतियों को गौरवान्वित किया है।
अन्त में चलते-चलते, मुझे आशा ही नहीं विश्वास है कि समाज, युवक-युवतियॉं वीर-नौजवान एवम् किसान इस उपयोगी कृति से लाभ उठायेंगे। यह कृति नव पीढ़ी के लिए मील का पत्थर सावित होगा। मैं रचनाकार से अपेक्षा रखता हूँ कि ऐसा ही समाज और देश के लिए ये लिखते रहें। दिल से बधाई एवम् शुभकामनाएँ।
- रामेश्वर प्रसाद मण्डल
लेखक, अनुवादक, कवि एवम् दार्शनिक
प्रमुख संचालक- प्रगतिशील बौद्धिक समाज, निर्मली
निदेशक- पदमावती आर.पी. शैक्षणिक संस्थान, निर्मली सह शिक्षक सृजन कोचिंग सेन्टर निर्मली।
पूर्व विभागाध्यक्ष- दर्शनशास्त्र, के. एन. एस. जे. कॉलेज, सरौती, मधुबनी।
कार्यकारणी सदस्य, प्रलेस अर्थात् प्रगतिशील लेखक संघ, मधुबनी।
Comments
Post a Comment