जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी

 


JATAY NE JAAY KAVI OTAY JAAY ANUBHAVEE


Compilation by Dr. Umesh Mandal of Select Thoughtful passage of Shri. Jagdish Prasad Mandal 

This edition is being published by Pallavi Parkashan


पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल. नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली 

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प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल)  बिहार : 847452

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दाम : 200/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 

पहिल संस्करण : 2022  


ISBN : 978-93-93135-26-1


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पोथीक मादे   

प्रकृतिक लीला अद्भुत अछि। जेतेक पेड़-पौधा, जीव-जन्तु, कीट-पतंग इत्यादि प्रकृति प्रदत्त जे अछि, ओकरा जखन धियानसँ देखै छी तँ अद्भुत बुझिये पड़ैए। सबहक अपन-अपन जीवन, अपन-अपन क्रिया, अपन-अपन गुण, अपन-अपन सोभाव अछि। चाहे ओ पेड़-पौधा हुअए कि जीव-जन्तु आकि कीट-पतंग आदि-इत्यादि। मनुक्ख सेहो ओहीमे सँ एक अछि। मनुक्खो एक प्राणी छी। जे सभसँ भिन्न अछि। मनुक्ख विवेकशील प्राणी अछि। मनुक्खेमे ओ गुण अछि जे सबहक माने सभकथुक अध्ययन आ मनन सेहो करैत रहल अछि। मनुक्खमे सेहो रंग-बिरंगक चालि-प्रकृति देखल जाइत अछि। आ से ओहिना जहिना पेड़-पौधाक बीच अछि। प्राय: पेड़-पौधा जे फड़ैए ओ पहिने फुलाइए। माने फूलक पछाइत फल लगैए। मुदा एहनो पौधा तँ अछिए जे पहिने फड़बे करैए पछाइत फुलाइए, जेना मकइ। आ ओहनो अछिए जे फड़बे करैए आ फुलाइत अछिए ने कहियो। जेना गुल्लैड़। तहिना कटहरक गाछमे फूल-फड़क बीच कोनो मिलाने ने देखबै, माने फूल (मोछी) केतौ आ फल केतौ। तैसंग बहुतो एहेन पौधा अछि जे पहिने फुलाकऽ फुलहैर जाइए पछाइत फड़ैए। फड़ैयोमे विविधता अछि। बहुतो चीज मात्र एक सिजिन भरि फड़ैए, बाँकी समय ओहिना रहैए। आ बहुतो पौधा सालो भरि फड़ैए, माने नियमित (निरन्तर) फुलेबो करैए आ फड़बो करैए। जेकरा बरहमसिया कहै छिऐ। 

मनुक्खक आन क्रियामे जेहेन एकरूपता बुझि पड़ए मुदा साहित्य सृजन कार्यमे से किन्नहु नहि देखबामे अबैत अछि। खासकऽ लेखनमे निरन्तरताक अभाव प्राय: रचनाकारमे देखाइत अछि। हमरा सबहक बीच ओहनो रचनाकार भेला जे जहियासँ साहित्य लिखब शुरू केलैन आ जहिया धरि लिखि सकला आकि लिखि रहला अछि, तैबीच हुनक लेखनी नित्य-नियमित आ निरन्तर चलैत रहलैन अछि। मुदा ओ अत्यल्प अछि। हँ, ओहन रचनाकार खूब छैथ जनिक लेखनी दूइए-चारि सालमे टाल लगा देलकैन, सङ्कलित-सम्पादित लगाकऽ, आ दू साल, चारि सालसँ लऽ कऽ दस-दस, बीस-बीस साल धरि एक्को पृष्ठ नहि लिखि सकलैन। लिखबाक क्षमता आ लेखनीमे निरन्तरता, दुनू दू चीज अछि। मैथिली साहित्य लेखन क्षेत्रमे ओहन-ओहन रचनाकारक चरचा अछि जे भरि दिनमे 80 पृष्ठ लिखि लइ छला। हम ई नहि कहै छी जे जखन एक दिनमे अस्सी पृष्ठ लिखि लइ छला, तखन साले भरिमे जेतेक भेल, ओइ हिसाबे बीस-बीस, चालीस-चालीस सालक जे लेखन अवधि रहलैन, ओ केते भेल? आ जेते भेल ओ की भेल? मानि लेलौं जे बड़का भुमकम आकि सतासीक बाढ़िमे भाँसि गेल। मुदा आब तँ ओहन बाढ़ियो नहियेँ अबैए आ जँ भविष्यमे ऐबो करत तँ ऐ आकासी समयमे लिखलाहाकेँ मेटाइयो नहियेँ सकत। केतेको आदरणीय रचनाकारक विषयमे बाजएकालमे लोक बाजि दइ छै जे फल्लाँ साते दिनमे उपन्यास लिखि लैत रहैथ। ई भेल लेखन क्षमता। जखन आदरणीय केर लेखन अवधिकेँ आ हुनक रचना-संसारकेँ देखब तँ सहजे बुझबामे आबि जाएत जे क्षमताक हिसाबे हुनकामे निरन्तरताक अभाव रहैन। निरन्तर लिखब बेस दूरुह कार्य अछि। आ से ओहिना जहिना सिजिन भरि फड़ैबला आ बरहमसिया फड़ैबला पेड़-पौधामे जे अन्तर होइत अछि।

आबक ओ समय अछि जे किनकहु क्रिया, कृति झाँपल नहि रहि सकैए। सबहक सोझमे आसानीसँ आबिए जाएत। ‘आबि जाएत’ माने जँ आनए चाहता तखन। ओना, आनब-आनबमे सेहो अन्तर अछि। विज्ञापनक दृष्टिसँ सेहो आनल जाइए आ अपन कार्य-कृतिक परिचयक खियालसँ सेहो आनल जाइए। तैसंग आब ईहो भेबे कएल अछि जे लोक हिसाब जोड़ि अपनो दिससँ बुझि जाइए, माने खाली सुनलेहेटा केँ नहि मानैए, अपनो दिससँ सोचैए, विचारैए। सोचब, विचारब आ विचारिकऽ बाजबक प्रवृतिक लेल समय अनुकूल भेल अछि। पूर्वमे औझुका जकाँ खुलापन नहि रहने केतेको तरहक समस्या छल। तेतबे नहि, आब जहिना काजकेँ तहिना काज करैबलाकेँ सेहो फरिछाकऽ बुझब आ बुझिकऽ अपन विचार अधिक-सँ-अधिक लोक लग पहुँचाएब सहज भेल अछि। “वनगमनक अवधिमे राम सीता (पत्नी) लेल बिरहेवेटा नहि केलाह जे रावणक लंकाकेँ सेहो मेटा देलैन, मुदा लक्ष्मण स्वेच्छासँ पत्नीसँ अलग रहि वनयात्रा केलैन। तँए दुनूक भावनामे अन्तर नइ छेलैन, सेहो केना नहि कहल जाएत।”  अर्थात् कार्य-भावनाकेँ सेहो लोक फरिछाकऽ बुझिकऽ विचारए लगला अछि। खाएर जे से...। 

‘जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’ शीर्षक मध्य प्रस्तुत गद्यांश संग्रह अपनेक हाथमे दैत प्रसन्नता स्वभाविक अछि। प्रसन्नता अहू-दुआरे जे उक्त विधामे ई अपन पाँचिम सङ्कलन भेल। पहिल- ‘हेण्डबुकसँ फेसबुक धरि’, दोसर- ‘समस्यासँ समाधान धरि’, तेसर- ‘निर्विकल्प’, चारिम- ‘अभ्यन्तर’ आ पाँचिम जे ‘जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’। 

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 2000 इस्वीक पछाइत लेखन क्षेत्रमे एला। दू-तीन वर्ष अभ्यासोमे लागल हेतैन। प्राय: 2003 इस्वीक पछाइत हुनक लेखनी चलए लगलैन। जे कि आइ धरि निरन्तर चलि रहलैन अछि। केहेन निरन्तरता से हुनक रचना-संसारकेँ देखि बुझल जा सकैए। 2021 इस्वीमे हुनका ‘पंगु’ उपन्यास लेल साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल गेलैन। जखन कि हुनक शताधिक पोथी प्रकाशित भऽ चुकल छेलैन। हम ई नहि कहै छी जे साहित्य अकादेमी पुरस्कार लेल साएसँ अधिक पोथी केर रचना करए पड़ैत अछि। जँ से रहैत तखन 24 भाषामे जे एक-एक रचनाकारकेँ देल जाइए, सबहक संग ओहिना होइत। वर्ष 2021क साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ पुरस्कृत कएल गेलैन जँ ओइ सूचीकेँ देखब ओहनो रचनाकारकेँ देखबे करबैन जनिक मात्र पाँच गोट पोथी प्रकाशित छैन। गणनाक हिसाबे बहुसंख्य रचनाकारक कृति एक-आध-दू दर्जनक मध्य छैन। असमियामे श्रीमती अनुराधा शर्मा पुजारीक 26 गोट पोथी छैन, नेपालीमे श्री छविलाल उपाध्यायक 30 गोट कृति छैन, कन्नड़मे श्री डि.एस. नागभूषणक 40, मलयालम्-मे श्री जोर्ज् केर 49 कृति प्रकाशित छैन आ मैथिलीमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक शताधिक पोथी प्रकाशित छैन। 

सबहक रचना-संसारकेँ जँ निरन्तरताक खियालसँ देखब तँ श्री मण्डलजीक लेखनीक निरन्तरता सभसँ फराक ओ श्रेष्ठ बुझना जाएत। हिनक पहिल रचना औपन्यासिक कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’ छिऐन जे 2004 ईस्‍वीमे लिखला। 2008 इस्वी धरिक अवधिमे पाँच गोट उपन्यास, एक नाटक तथा किछु कथादि लिखि चुकल छला। मुदा कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे एक्को गोट रचना प्रकाशित नहि भेल रहैन। तथापि हिनक कलम, लिखबाक क्रम जारी रहलैन- प्रस्तुत अछि ऐ प्रसंगमे हुनकहि लिखल बात- “मौलाइल गाछक फूल 2004 ईस्‍वीमे लिखल पहिल उपन्यास छी। अखन धरि पाँचटा उपन्यास आ किछु कथा, लघुकथा, नाटक सभ अछि। छपबैक जे मजबूरी बहुतो रचनाकारकेँ छैन‍ से हमरो रहल। मुदा तइसँ लिखैक क्रम नै टुटल। ‘भैंटक लावा’ कथा सेहो दू-हजार चारिक पहिल कथा छी।”    

8 नवम्बर 2008 मे मिथिलाक प्रसिद्ध ‘सगर राति दीप जरय’क 64म कथागोष्ठी डॉ. अशोक अविचलक संयोजकत्वमे हुनक गाम- रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे आयोजित भेल छल जइमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी उपस्थित भऽ ‘भैंटक लावा’ कथा केर पाठ केलैन। साहित्य क्षेत्रमे मण्डलजीक ओ पहिल मञ्च छेलैन। ओना, साहित्य लेखन क्षेत्रमे अबैसँ पूर्व माने 2000 इस्वीसँ मण्डलजीक क्रिया-कलाप एक समर्पित समाजसेवीक रहल छैन। तँए ओ केतेको बेर राजनीतिक मञ्चपर बाजि चुकल छला। पहिने बेरमा पंचायत आ रहुआ संग्राम, दुनू मधेपुर ब्लौकक अन्तर्गत पड़ै छल। जे कि जगदीश प्रसाद मण्डलजीक कर्म क्षेत्र रहल छैन। तँए, रहुआ गाममे सेहो मञ्च साझा कऽ चुकल छला।  

2008 इस्वीसँ पूर्व जगदीश प्रसाद मण्डलजीक एक्को गोट रचना सार्वजनिक नहि भेल छेलैन। कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे प्रकाशित नहि भेल छेलैन। पहिल रचना ‘घर बाहर- पटना’सँ प्रकाशित भेलैन। जइ कथाक पाठ रहुआ संग्राममे केने छला, खूब प्रशंसा भेल छेलैन। ऐ प्रसंग मण्डलजीक वानगी निम्नांकित अछि- 

“डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’जी ओ कथा मांगि लेलैन। किछुए मासक उपरान्त ‘घर बाहर’ पत्रिकामे प्रकाशित केलैन। सिद्ध पुरुषक स्थानमे प्रतिष्ठा भेटल। डायरी-कलम भेटल। गमछा-पाग भेटल। लक्ष्मीनाथ गोसाँइक मुर्ति सेहो भेटल।”   

घर-बाहरमे एक आर रचना (कथा) प्रकाशित भेलैन। पछाइत ‘मिथिला दर्शन- कोलकाता’मे ‘चुनवाली’ नामक कथा प्रकाशित भेलैन। चुनवाली, भैंटक लावा आ बिसाँढ़, कथा प्रकाशित होइते ‘विदेह’क सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरजीसँ सम्पर्क भेलैन। तेकर बाद मण्डलजीक रचना सभ पुस्तकाकार रूपमे प्रकाशित हुअ लगलैन। 

ऐ तरहेँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आगमन मैथिली साहित्यक दुनियाँमे होइ छैन। बिनु पाइक अर्थात् बिनु खर्चेक पोथी प्रकाशन मैथिली साहित्यमे नव उदाहरण छल। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 27 गोट पोथी एकसंग श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेलैन। वर्तमानमे ओही तरहेँ पोथीसभक प्रकाशन पल्लवी प्रकाशन, निर्मलीसँ भऽ रहलैन अछि।

प्रस्तुत अछि मण्डलजीक रचना संसार- 1. इन्द्रधनुषी अकास, 2. राति-दिन, 3. तीन जेठ एगारहम माघ, 4. सरिता, 5. गीतांजलि, 6. सुखाएल पोखरि‍क जाइठ, 7. सतबेध, 8. चुनौती, 9. रहसा चौरी, 10. कामधेनु, 11. मन मथन, 12. अकास गंगा - कविता संग्रह। 13. पंचवटी- एकांकी संचयन। 14. मिथिलाक बेटी, 15. कम्प्रोमाइज, 16. झमेलिया बिआह, 17. रत्नाकर डकैत, 18. स्वयंवर- नाटक। 19. मौलाइल गाछक फूल, 20. उत्थान-पतन, 21. जिनगीक जीत, 22. जीवन-मरण, 23. जीवन संघर्ष, 24. नै धाड़ैए, 25. बड़की बहिन, 26. भादवक आठ अन्हार, 27. सधवा-विधवा, 28. ठूठ गाछ, 29. इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं, 30. लहसन, 31. पंगु, 32. आमक गाछी, 33. सुचिता, 34. मोड़पर, 35. संकल्प, 36. अन्तिम क्षण, 37. कुण्ठा- उपन्यास। 38. पयस्विनी- प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना। 39. कल्याणी, 40. सतमाए, 41. समझौता, 42. तामक तमघैल, 43. बीरांगना- एकांकी। 44. तरेगन, 45. बजन्ता-बुझन्ता- बीहैन कथा संग्रह। 46. शंभुदास, 47. रटनी खढ़- दीर्घ कथा संग्रह। 48. गामक जिनगी, 49. अर्द्धांगिनी, 50. सतभैंया पोखैर, 51. गामक शकल-सूरत, 52. अपन मन अपन धन, 53. समरथाइक भूत, 54. अप्‍पन-बीरान, 55. बाल गोपाल, 56. भकमोड़, 57. उलबा चाउर, 58. पतझाड़, 59. गढ़ैनगर हाथ, 60. लजबि‍जी, 61. उकड़ू समय, 62. मधुमाछी, 63. पसेनाक धरम, 64. गुड़ा-खुद्दीक रोटी, 65. फलहार, 66. खसैत गाछ, 67. एगच्छा आमक गाछ, 68. शुभचिन्तक, 69. गाछपर सँ खसला, 70. डभियाएल गाम, 71. गुलेती दास, 72. मुड़ियाएल घर, 73. बीरांगना, 74. स्मृति शेष, 75. बेटीक पैरुख, 76. क्रान्तियोग, 77. त्रिकालदर्शी, 78. पैंतीस साल पछुआ गेलौं, 79. दोहरी हाक, 80. सुभिमानी जिनगी, 81. देखल दिन, 82. गपक पियाहुल लोक, 83. दिवालीक दीप, 84. अप्पन गाम, 85. खिलतोड़ भूमि, 86. चितवनक शिकार, 87. चौरस खेतक चौरस उपज, 88. समयसँ पहिने चेत किसान, 89. भौक, 90. गामक आशा टुटि गेल, 91. पसेनाक मोल, 92. कृषियोग, 93. हारल चेहरा जीतल रूप, 94. रहै जोकर परिवार, 95. कर्ताक रंग कर्मक संग, 96. गामक सूरत बदैल गेल, 97. अन्तिम परीक्षा, 98. घरक खर्च, 99. नीक ठकान ठकेलौं, 100. जीवनक कर्म जीवनक मर्म, 101. संचरण, 102. भरि मन काज, 103. आएल आशा चलि गेल, 104. जीवन दान 105. अप्पन साती, 106. साहित्यकारक विवेक लघु कथा संग्रह।

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक निरन्तर लेखनसँ बहुतो ओहन मान्यता अछि जे स्वत: निरस्त भेल जा रहल अछि। मनुक्खक जीवनमे होइत निरन्तर-परिवर्तनकेँ मण्डलजी सिद्धहस्त अनुभवी जकाँ रेखाङ्कित करैत रहला अछि। नीक-बेजाकेँ बिलगेबाक लेल ओ सदैव सुन्दर प्रयासमे लागल रहै छैथ। हुनक प्रत्येक रचनामे ई खास गुण रहैत अछि जइमे पाठक सहजतासँ बान्हा जाइ छैथ। व्यक्तिगत जीवनक बीच नीक-बेजाएक दर्शन करबैत सहजतासँ अपन पाठककेँ ओइठाम लऽ कऽ चलि जाइ छैथ जैठाम मनुक्ख रहैत तँ अछि सदिखन मुदा अनभिज्ञ जकाँ। अपन लगक चीजकेँ नहि देखि पबैत अछि। समाजमे एहेन बहुत व्यवहार अछि जे रूढ़ रहितो नीक जकाँ चलि रहल अछि। जेकर परिचय ओ दर्शन अपन रचनामे मण्डलजी साकारात्मक ढंगसँ पूर्ण मानवीयताक संग इमानदारीसँ निरन्तर करबैत रहला अछि। ‘जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि’ हम एतबए सुनैत रही, मुदा जगदीश प्रसाद मण्डल कहै छैथ- ‘जेतए नइ जाए रवि ओतए जाए कवि आ जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी।’ यएह ओ स्थान छी जैठामसँ हम प्रस्तुत सङ्कलनक नामकरण ‘जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’ राखल। 

प्रस्तुत पोथीक लोकार्पण 31 दिसम्बर 2022क शनि दिन होबए जा रहल अछि। ‘सगर राति दीप जरय’क आगामी कथा गोष्ठी, रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे डॉ. अशोक कुमार झा ‘अविचल’जीक संयोजकत्वमे होबए जा रहल अछि। जैठाम अनेको पोथीक लोकार्पण होएत। अपन जे कोनो रचना लोकार्पित भेल ओ प्राय: ‘सगर राति दीप जरय’क मञ्चपर। 

‘रहुआ गाम’ आ ‘सगर राति दीप जरय कथा गोष्ठी’, ई दुनू हमरा लेल बेस महत्व रखैत अछि। ‘सगर राति दीप जरय’क 64म आयोजन रहुआ गाममे 8 नवम्बर 2008 इस्वीक शनि दिन डॉ. अशोक कुमार झा ‘अविचल’जीक संयोजकत्वमे आयोजित छल। कोनो साहित्यिक मञ्चपर ओ हमर पहिल उपस्थिति छल। ‘अविचल’जीक संयोजकत्वमे  डॉ. शिवशंकर ‘श्रीनिवास’ ओ डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’जीक अध्यक्षतामे ओ गोष्ठी ओयोजित छल जेकर उद्धघाटन केने छला प्रसिद्ध रचनाकार स्व. उग्रनारायण मिश्र ‘कनक’, बहुत पैघ-पैघ विद्वज्जन, रचनाकार सभकेँ ओइठाम एकसंग देखने रहिऐन। ओतए पाग-दोपटाक संग लक्ष्मीनाथ गोसाँइ केर एकगोट दिव्य मूर्ति सेहो प्राप्त भेल छल। सगर राति दीप जरय तँ अपने-आपमे अद्भुत मञ्च अछिए। ओइ दिनसँ आइ धरिक प्रत्येक सगर राति दीप जरय- कथागोष्ठीमे भाग लैत रहलौं अछि। साइते कोनो आयोजन छुटल होएत। ओना, उक्त गोष्ठीक कएक खेपक संयोजन करबाक अवसरि सेहो अपना प्राप्त भेल अछि। संयोगसँ 2008 इस्वीक बाद आगामी आयोजन पुन: ओहीठाम माने रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे होबए जा रहल अछि। 

‘सगर राति दीप जरय’ एक ओहन मञ्च अछि जे सर्वहारा साहित्यिक-मञ्चक रूपमे प्रसिद्ध अछि। ‘सगर राति दीप जरय’ भरि राति चलैबला कथा गोष्ठीक नाओं छी। प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. प्रभाष कुमार चौधरीक संयोजकत्व आ स्व. रमानन्द रेणुक अध्यक्षतामे ऐ मञ्चपर पहिल गोष्ठीक आयोजन, 1990 इस्वीमे 21 जनवरीक शनि दिन मुजफ्फरपुरमे भेल छल। 

‘सगर राति दीप जरय’ कथा-साहित्य गोष्ठीक आयोजन प्रत्येक तीन मासपर होइत आबि रहल अछि। भरि राति चलैबला ऐ गोष्ठीक आरम्भ पोथी लोकार्पणसँ होइत अछि। पछाइत कथा पाठ आ समीक्षाक सत्र चलैत रहैत अछि। रचनाकार अपन नूतन कथाक पाठ करै छैथ आ तैपर समीक्षक लोकैन त्वरित टिप्पणी करै छथिन। जइसँ अनेको चीज लेखक-सँ-पाठक धरिक नजैरपर अबै छैन। एकसंग केतेको रंगक कथा माने केतेको विषय-वस्तुक संग आकार-प्रकारक रचना सभक सोझसँ गुजरैत अछि। तैपर विश्लेषण करबाक अवसरि सेहो भेटैत अछि। सभसँ बेसी लाभ कथाकारकेँ होइ छैन। नीक-बेजाक अनेको चीजसँ भेँट होइ छैन जइसँ हुनका कथा लिखैमे काज दइ छैन। तेतबे नहि, ऐ बहन्ने कथाकारकेँ नियमित रूपेँ कथा सेहो लिखा जाइ छैन। एकर अलाबे आरो केतेको लाभ एक-दोसरकेँ होइत अछि। मैथिली साहित्यमे यएह ओ मञ्च अछि जैपर अनेको श्रोता/पाठक लोकनिक बीच कथाकार ओ समीक्षक आमने-सामने होइ छैथ। तेतबे नहि, श्रोता/पाठककेँ सेहो टिप्पणी करबाक अवसरि देल जाइ छैन। जे पठित कथाक संग भेल समीक्षापर सेहो बाजि सकै छैथ। ऐ तरहक प्रतिआलोचनाक अवसरि भरिसक आन कोनो भाषा-साहित्यक बीच तँ नहि कहब, मुदा मैथिली साहित्यमे ई अद्वितीय मञ्च अछिए। देखबामे नहि औत। कथाकारक लेल ऐ मञ्चकेँ वर्कशॉप सेहो कहल जाइत अछि।  

राति भरिक ऐ आयोजनसँ केतेको नवांकुर कथाकार सभ धीरे-धीरे नीक-सँ-नीक कथा लिखए लगै छैथ। परिणामत: ओ नीक कथाकारक रूपमे जानल-मानल जाइ छैथ। ऐठाम एक बात महत्वपूर्ण अछि। ओ ई जे नीक कथाकारक माने प्रिय कथाकार मात्र नहि, सर्वजनप्रिय विषय-वस्तुक संग सरोकार रखनिहार कथाकारसँ अछि। मुदा ऐ लेल मनसा वाचा कर्मणामे एक-सहतपनक खगता होइत अछि। जइसँ व्यक्तिमे नियमितता अबैत अछि। सगर राति दीप जरय नामक ऐ कथा गोष्ठीमे नियमित सहभागिता लेल ई अनिवार्य भऽ जाइत अछि। 

भिनसरमे ऐगला आयोजनक निर्धारण सेहो भऽ जाइत अछि। अर्थात् ऐगला कथागोष्ठी केतए होएत, माने किनक संयोजकत्वमे, से सर्वसम्मतिसँ ओहीठाम निर्धारित भऽ जाइत अछि।

‘जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’ अर्थात् श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक रचित रचना संसारसँ विचारोत्तेजक गद्यांशक सङ्कलन। 

जगदीश प्रसाद मण्डलजीक लेखनी ‘आजुक जीवन आजुक साहित्य’केँ प्रमाणित करैत समयक संग धाराप्रवाह चलैत जा रहल छैन, बढ़ैत जा रहल छैन। जनिका सम्बन्धमे स्थापित ओ वरीय साहित्यकार श्री मन्त्रेश्वर झा (आई.ए.एस.) लिखने छैथ- “जइ ‍ गाम घरक कथा सभ मण्डलजी उठाए ओकरा परि‍णति‍ तक पहुँचओने छथि‍ तइ गाम घरक एतेक सूक्ष्‍म आ वि‍स्‍तृत वि‍वरण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे एहिसँ पूर्व कमे भेल अछि।”

क्रमश: जगदीश प्रसाद मण्डलजीक विषयमे हिनक ‘जिनगीक जीत’ उपन्यासक आमुखमे मैथिलीक सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. तारानंद ‘वियोगी’ लिखलैन- “जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे मिथिलाक ग्रामीण समाजक अद्भुत चित्र आएल अछि। मैथिलीमे एहि वस्तुक खगता सभ दिनसँ रहल अछि। हमरा लोकनि अक्सरहां चिन्तित होइत रहै छी जे गाम उजरि रहल अछि, गामक सम्बन्धमे जतबे जे किछु लेखन भऽ रहल अछि से निगेटिभ फोर्ससँ भरल अछि, अधिकाधिक हताश करऽ बला अछि। हमरा लगैत अछि जे जीवनकेँ देखबाक जे दृष्टिकोण जगदीशजीक छनि से आम मैथिली साहित्यकारक दृष्टिकोणसँ फराक छनि तेँ ओ एहन चित्र रचि पबैत छथि जे सामान्यसँ हटि कऽ अछि।”

अहिना मैथिली साहित्यक प्रसिद्ध रचनाकार ओ आलोचक डॉ. कैलाश कुमार मिश्र सेहो हिनका-दे माने श्री जगदीश प्रसाद मण्डल-दे लिखलैन अछि- “एहेन रचना अगर मैथिली साहित्यमे लगातार हो आ ऐ तरहक रचनाक प्रचार-प्रसार नीकसँ कुनो जाति-पाति, वर्ग, सम्‍प्रदाय, स्थानीयता आदिक दुर्भावनासँ दूर भऽ कएल जाए तँ मैथिली साहित्य महिमा-मण्डि‍त भऽ एक गौरवशाली परम्पराकेँ प्रारम्भ कऽ सकैत अछि।”

कोनो रचनाक मूल्‍याङ्कन समय करैत अछि। समयानुकूल रचना छी वा नहि, ई समय आँकि बुझल जा सकैए। मुदा से आंकएबला सबहक काज छिऐन। अपने एकटा अदना आदमी छी, ई किनकोसँ छुपल अछि, सेहो बात नहियेँ अछि। हँ, तखन शोध कार्यसँ सम्बन्धित जे अपना ऊपर जिम्मा अछि तइमे जखन जेना जे कए पेबाक बल पबै छी ओ करबाक चेष्टा जरूर करैत रहल छी।

जगदीश प्रसाद मण्डलजी अपन रचनाकेँ अपना धारणानुकूल ओहन मूर्त्तरूपमे गढ़ए चाहि रहला अछि जे भूत, वर्तमान ओ भविष्य- तीनू समयमे अपन रूप बना ठाढ़ रहए। कोनौं समस्याक जड़ि वर्तमान रहितो ओ भूत बनि जाइए, तँए भूतोकेँ पकैड़ राखए पड़त, वर्तमान तँ सहजहि प्रत्यक्ष अछिए जे सामाजिक धारा शुद्ध-अशुद्ध करैत चलिते अछि, जैपर भविष्यक भवन ठाढ़ होइत अछि। ओना, मण्डलजीक सोच ईहो छैन जे जिनगी नम्हरो होइए माने महीनो-वर्षबला होइए आ एकदिना सेहो होइत अछि। एकदिना जिनगी भेल एक घटनाक जीवन। ओना, एहेन-एहेन घटना जिनगीक बीच चलिते रहैए, किएक तँ ओहन घटना फेर जीवनमे दोहरा कऽ अबितो अछि आ नहियोँ अबैए। एहेन जे जीवन अछि ओहो ने जीवने भेल। मण्डलजी मूलत: जीवनक रचनाकार छैथ। ओ बेकतीगत जीवनसँ आगू बढ़ि सामाजिक जीवनकेँ विशेष महत्व दैत रहला अछि, तँए हिनक सभ रचना सामाजिक रूप धारण केने रहै छैन।

उपरोक्त सन्दर्भमे ‘विदेह’ प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिकाक सम्पादक ओ प्रसिद्ध साहित्यकार श्री गजेन्द्र ठाकुरक कहब सेहो विचारणीय ओ युक्तिसंगत बुझि पड़त जे निम्नवत अछि-

“जगदीश प्रसाद मण्डलक कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरूद्ध पारम्‍परिक आजीविकाक गौरव महिमा मण्डि‍त भेटैत अछि। आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टि‍कोणक कारणसँ आ से अछि हिनकर बेकती‍गत आ सामाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे सोचै छी, जे करै छी; सएह लिखै छी तइ कारणसँ।”

श्री गजेन्द्र ठाकुर 2012 इस्वीमे जगदीश प्रसाद मण्डलजीक वायोग्राफी लिखि चुकल छैथ। अत: ओ जहिना मण्डलजीक जीवन-शिल्प उपरोक्त वानगीमे प्रस्तुत केलैन तहिना हुनक रचना-शिल्पक सम्बन्धमे कहलैन अछि- 

“यात्री आ धूमकेतु सन उपन्‍यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्‍पीक अछैत मैथिली भाषा जनसामान्‍यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो आकर्षित करैत रहल आ ओइ भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति-भाषासँ देखौल जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक सामाजिके क्षेत्रटामे नहि वरन आर्थिक क्षेत्रमे सेहो क्रान्ति‍ आनत।” 

ओना तँ बहुत विद्वान-मनीषी लोकनिक कलम मण्डलजीपर चलल छैन, सम्प्रति सबहक जिक्र लेल यथोचित अवकाश नहि। तथापि जहिना प्रसिद्धि पाओल विद्वज्जन छैथ तहिना एकान्तवासमे संघर्षरत रचनाकार मण्डलजी नहि छैथ सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। अत: एकैसम शताब्दीक पहिल दशकक श्रेष्ठ कविक रूपमे चर्चित श्री राजदेव मण्डल जे कि एकांकी, नाटक, कविता, कथा, पटकथा, उपन्यासादि साहित्यक सभ मौलिक विधामे हिनक कलम चलैत रहलैन अछि, जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘उत्थान-पतन’ उपन्यासक आमुख लिखबाक क्रममे लिखलैन अछि- “केहनो अकर्मण्य बेकती जँ पूर्ण मनोयोगक संग आर्थिक उन्नतिमे दत्तचित भऽ जाए तँ हुनक प्रगति होएब निश्चित भऽ जाइत अछि। ऐ दर्शनकेँ देखेबाक प्रयत्न लेखक (जगदीश प्रसाद मण्डल) पात्र श्यामानन्द द्वारा केलैन अछि। परिवर्तनशीलता संसारक निअम छी। सामन्तवादसँ पूँजीवाद आ पूँजीवादक गर्भेसँ समाजवादक जन्म सेहो होइत अछि। ई अलग बात जे पूँजीवादसँ साम्राज्यवाद सेहो पनपैत अछि।”

उपरोक्त वानगी सदृश एक आर वानगी जज साहैबक उद्धृत करब आवश्यक बुझै छी। जज साहैबक माने श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र, जे मैथिली साहित्यमे अपन बेछप स्थान बना चुकल छैथ। कथा, कविता, उपन्यास, संस्मरण, यात्रा वृतान्त, शोध आलेख आदि अनेको विधामे नियमित लिखएबला साहित्यकार छैथ। ओ अपन ब्लॉग ‘भोरसँ साँझ धरि’मे जगदीश प्रसाद मण्डलजीक ‘लहसन’ उपन्यासक समीक्षा करैत लिखने छैथ- “श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘लहसन’ उपन्यासकेँ पढ़लासँ पाठक थोड़बे कालमे समाजक निम्नतम पौदानपर ठाढ़ लोकक जिनगीक बारेमे बहुत किछु बुझि सकैत छथि। किछु एहन करबाक प्रेरणा प्राप्त कए सकैत छथि जाहिसँ मेवालाल सन-सन गरीब लोकसभकेँ गाम छोड़ि कलकत्ता सन महानगर पलायन नहि करय पड़नि। एहिसँ प्रेरणा लए समाजक समृद्ध लोकनि किछु करथि जाहिसँ गाम-घरसँ पलायन बन्द होअए आ गाम एकबेर फेर पल्लवित-पुष्पित भए जाए।” 

प्रत्येक मनुक्खक अपन-अपन स्थिति-परिस्थिति होइते अछि। अपनो किछु तेनाहे सन अछि जइ कारणेँ भरि दिन पानिमे रहैत नहाइक सोभाग्यसँ बञ्चित रहए पड़ैए। मुदा जँ अन्तिमो समयमे, माने पानिसँ निकलैयोकाल अर्थात् जहिना मलाह भरि दिनक काजसँ निचेन भऽ, पोखैरसँ निकैल जखन अपन घर जाइ छैथ, तखनो जँ मनमे आबि जानि- जा.! नहेलौं कहाँ.? आ नहाइक जएह सुविधा-साधन, स्थिति-परिस्थिति रहए, जँ तहूमे नहा ली तँ कोन अधला। यएह चीज मनमे आएल आ लागि गेलौं काजमे। समयक आँट-पेटकेँ देखैत पुन: विचारोत्तेजक गद्यांश सङ्कलनकेँ प्रकाशित करबैक विचार तँइ केलौं। सोशल मिडियापर माने फेसबुकपर सम्बन्धित काज प्राय: नित्य-नूतन किछु-ने-किछु करिते रहै छी, ओही सभकेँ समेटि एकटा सङ्कलित रूपमे ‘जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’ लऽ कऽ उपस्थित भेलौं अछि। बिसवास अछि प्रोत्साहित करबे करब। संगहि सुधि पाठकीय प्रतिक्रियाक आशमे ‘इतिश्री’क उच्चारण करैत सम्बन्धित गद्यकारक प्रति सादर आभार व्यक्त करैत अपन बातमे विराम लगा रहल छी। धन्यवाद.! प्रणाम.!! 

जय मैथिली.! जय साहित्य.!! आजुक जीवन आजुक साहित्य!!  

  

- उमेश मण्डल

तुलसी भवन, निर्मली (सुपौल)

19 दिसम्बर 2022


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