एकलव्यपन

 


एकलव्यपन

कनी देरीसँ नीन टुटने कनी अबेर-के उठलौं। अखन तकक अपन उठब यएह रहल अछि जे सुर्ज उगैसँ घन्टाभरि पहिने उठलौं आ माल-जालकेँ घरसँ बहार करैत, दुआर-दरबज्जा बहारि पछाइत अपना ऐठामसँ निकललौं। गाम-समाजमे किछुओ परिवार तँ एहेन भइये गेल अछि जे अप्पन पानिक संग अप्पन परो-पैखानाक बेवस्था कइये लेलैन अछि, तहीमे अपनो छी। पाँच साल पूर्व तक सुति-उठि माल-जालकेँ घरसँ बहार क, आगूमे खाइले दऽ दइ छेलिऐ आ अपने दिशा-मैदान दुआरे मन्ना चौर दिस, माने चौरी दिस, गहींरका खेतक इलाका दिस, विदा होइ छेलौं। मन्ना चौर अप्पन गामक पूबरिया चौर छी, जेकरा बीचमे अनेको कोचाढ़ि[1] सेहो खुनल अछि, जइमे बरसातक तँ कोनो बाते नहि जे जेठो-अखाढ़ तक पानि भरल रहिते अछि। ओम्हरे जाइ छेलौं, दिशा-मैदानक पछाइत झौआक दतमैन तोड़ि दतमैन करै छेलौं आ तखन घरपर आबि दुआर-दरबज्जाक बाहरन-सोहरन करैत रही, मुदा एमहर पाँच बर्खसँ रूटिंग बदैल गेल अछि।

अबेर-के सुतने उठैमे अबेर भइये गेल छल। कहब जे अहाँ तँ समयकेँ पकैड़कऽ चलैबला छी, तखन सुतै-उठैमे एना अबेर किए भेल? अबेर होइक कारण भेल जे जहिना घटही गाड़ी, घटही गाड़ीक माने ई बुझू जे घटही गाड़ी घटल देशक गाड़ी छी जे जहिना खुजैकाल एक-दू मिनट देरी करैए तहिना स्टेशने-स्टेशन दू-चारि मिनट देरी करैत गेल आ अपना घाटपर पहुँचैमे घटिया गेल, अपनो तहिना भेल। अप्पन सुतै-उठैमे अबेरक कारण ई भेल जे काल्हि साँझमे ममियौत भाय आबि गेला। एक तँ जेठ छैथ, दोसर एतेक कलाकारी ओ अपनामे रखने छैथ जे केहनो बज्जर नीने सुतनिहारक नीन हरण कइये सकै छैथ। ऐठाम अहाँ महाभारतक द्रोपदीक चीरहरण नइ बुझब, आ ने पत्नीकेँ जुआक पाशापर हारल बुझब, आ ने ओहन पत्नी बुझब जे विचारक क्षेत्रमे तँ अर्द्धांगिनी छैथ मुदा कर्मक क्षेत्रमे दुनू परानीक बीच एते दूरी बनि रहल अछि जे अर्जुन जकाँ जुओक पाशापर हारैले तैयार भऽ गेल छैथ। स्वतंत्र विचारक रक्षा हर मनुक्खकेँ हेबेक चाही, मुदा एहेन नइ ने जे जहिना बानर-भालूक सेना नेने राम समुद्रक कात पहुँच पुल बनबैक विचार केलैन आ नल-नीलकेँ ठीका देलखिन। नल-नील अप्पन कलापर मुग्ध छेलाहे जे नीक ठीकेदारी भेटल। मुदा जखन दुनू बेकती, माने नल-नील, पुल बनबैले पहाड़सँ पाथरक टुकड़ा आनि-आनि समुद्रमे फेंकए लगला, तखन सभ टुकड़ा असगरे-असगर, माने अपने-अपने, समुद्रमे अलैग-अलैग हेलए लगल, जइसँ पुल बनब असम्भव भऽ गेल, तहिना परिवारक बीच परिवारजनक आ गाम-समाजमे समाजजनक सहमत आवश्यक अछिए। नइ तँ परिवार होउ कि समाज, ओइमे समयानुकूल गतिशीलता केना औत?

 

आन-आन देश जकाँ अपनो देशमे अछिए, पतिसँ भिन्न पत्नीक राजनीतिक दलो छैन आ विचारो तँ छैन्हे। एक-दोसराक बीच सार्वजनिक रूपमे सेहो आ बेकतीगत रूपमे सेहो, दुनू दुनूक विरोध करिते छैथ, यएह छी व्यक्तिगत स्वतंत्रताक उछरीमताक[2] जड़ि। खाएर जे अछि से अछि, अपना ओइसँ कोन मतलब अछि।

साँझू पहर जखन सुशील भाय पहुँचला तँ हुनका देखिते मन सन्न भऽ गेल। सन्न होइक कारण भेल जे पचासी बरख टपला पछातियो सुशील भायकेँ ने एकोटा दाँत टुटलैन अछि आ ने चौंथाइसँ बेसी केश पकलैन अछि। जहिना जुआनीमे चौपहल चेहरा छेलैन तहिना अखनो एक साए पाँच किलोमीटर सुलतानगंज-सँ-वैद्यनाथधाम साले-साले जाइ छैथ।

सुशील भायपर नजैर पड़िते भीतरसँ मन फुला गेल जे जँ अपनौं हिनकर अनुकरण करैत चलितौं तँ अहिना पचासी तँ निसचिते जे साइयो-बर्खक जिनगी हँसैत-खेलैत बितैबतौं।

सुशील भाय शुरूहे सँ गीत कलाक प्रेमी रहला। ओना, कम कि बेसी सभ कलाकार छीहे। जीवनक परिमार्जनमे किछु-ने-किछु कलाकारी करिते छी। सुशील भाइक माता-पिताक, माने अप्पन मामा-मामीक अमलदारी तक बेरियाही गामक दशा नीक छल। माने पूबमे कोसी आ पच्छिममे कमला धारक दूरी गामसँ बेसी रहने बेरियाहीमे बाढ़िक उपद्रव नइ होइ छेलइ। बाढ़िक उपद्रवक माने भेल गाममे बालू भरब, मोइन फोरब, नासी बना नव धारक सृजन करब आदि-आदि। से उपद्रव बेरियाही गाममे नहि छल। सुशील भायकेँ पिताक अमलदारीमे बारह बीघा जमीन छेलैन जेकरा उपजसँ परिवार मध्यम वर्गक किसानक जीवन धारण केने रहलैन। तीन भाइक भैयारीमे सुशील भाय सभसँ छोट छैथ। गाम-गाममे, कीर्तन मण्डली, नाच पार्टी इत्यादि-इत्यादि छेलैहे। अखनो अछि। रंग भलेँ जे पकड़ने हुअए मुदा सार्वजनिक रूपमे एक-दोसराक बीच सम्बध छेलैहे।

बच्चाक जीवन सुशील भाइक नीक रहलैन। ओइ समयक नीकअखुनका नहि, अखुनका जकाँ परिवारमे ने मोबाइल छेलैन आ ने चरिचकिया गाड़ीमाने भेल दुनू साँझ भरि पेट भोजन, जाड़-बरसात-रौदसँ बँचैले घर आ समयानुसार, जाड़-गरमीक संग इज्जत बँचेबाक लेल, वस्त्र। तीनू सुविधा सुशील भायकेँ भेटलैन।

जहिना गाम-गाममे कीर्तन मण्डली, नाच मण्डली छल तहिना गाम-गाममे कुश्ती लड़ैक अखड़ाहा सेहो छल। अखड़ाहाक माने साम्प्रदायिक स्थान नहि बुझब। ओना, विचार करैक तँ छीहे। गाछी-बिरछी वा परती-परातकेँ नवतूरक बच्चा सभ कोदारिसँ तामिकऽ अखड़ाहा बनबै छला आ ओइपर भिनसरू पहरमे एक-दोसरसँ लड़ै जाइ छला। लड़ैक दुनू प्रक्रिया छल। अपनासँ बच्चा वा कमजोरसँ सेहो लड़ैत छल, जेकरा लपटाएब कहल जाइ छेलै आ अपनासँ तगतगरोसँ सेहो लड़ैत छल जेकरा जोड़ देबाक लपटब कहल जाइ छल।

शुरूमे सुशील भाय सेहो संगी-तुरियाक संग अखड़ाहापर गेला, मुदा तइ बिच्चेमे शरीरक शक्तिसँ मनक शक्ति उपैज गेल छेलैन। तीन साल, माने जाड़क मासमे कातिक-सँ-फागुन धरि अखड़ाहा चलै छल, तक सुशील भाय अखड़ाहापर गेल छला, पछाइत कीर्तन मण्डलीक संग जुड़ि गेला। सभ दिन साँझू पहरमे हनुमानजी स्थानपर कीर्तन होइ छेलइ। तइमे सुशील भाय सेहो आएब-जाएब शुरू केलैन। ढोलकक आवाज सुनि सुशील भाय सेहो पल्था मारि ठेहुनक जोड़पर दुनू हाथे एकताले ओहिना बजबै छला जहिना ढोलकिया ढोलक बजबैत रहैथ। जहिना काजक दौड़मे जहिना सभकेँ होइ छैन जे एक तरहक काज दोसर तरहक काजक साधको बनैए आ असाधको तँ बनिते अछि, तहिना छह मास ढोलकक ताल ठेहुनपर मिलेलाक पछाइत सुशील भाइक स्वरलहर जगिकऽ रोकलकैन। माने ई जे साज बजौनिहारक मनकेँ जेना साज पकैड़ लइए, तेना सुशील भायकेँ नहि पकड़लकैन, ऐसँ मनक साम्राज्यमे कमी अबैए। तीन तरहक शक्ति—शारीरिक, मानसिक आ भाव भावित शक्ति—मे मनक शक्ति प्रबलो अछि आ पूज्य सेहो अछि। मने शरीरक निगरानी (देखभाल) सेहो करैए आ भावभूमिकेँ सेहो सिंचित[3] करिते अछि। मुदा शारीरिक शक्तिक प्रबलता वा भावना-शक्तिक प्रबलता, मनक शक्तिक प्रबलतासँ कोनो-ने-कोनो रूपमे प्रभावित होइते अछि। खाएर जे होइए, तइसँ सुशील भायकेँ कोन मतलब छेलैन, मतलब एतबे छेलैन जे गबैया सभक संग अपनो गाबी। मुदा ठेहुनपर ढोलकक ताल मिलौने से नइ होइए।  

छअ मासपर जहिना बच्चा (विद्यार्थी) सभकेँ छमाही परीक्षा होइ छैन, जइमे बच्चाक झुकाउक परीक्षण होइ छैन तहिना सुशील भायकेँ सेहो भेलैन। परीक्षा परिछन आ परिछव दुनू रंगक होइए। सुशील भायकेँ ढोलकक धुनि कमि गेलैन आ स्वरक धुन जगि गेलैन। बाल-बोध बच्चा गीत-भजनक सुर-तान तँ बुझैत नहि, तँए बेसूरे जोर-जोरसँ गाबए लगला। हरमुनिया बजौनिहारक स्वर टुटए लगलैन, मुदा स्वरक स्वर स्वरकेँ प्रभावित केलकैन। गौरीनाथकेँमाने हरमुनिया बजौनिहार गायककेँ, जे आगू-आगू गबै छला आ पाछू उनैट-उनैट तकै छला जे सामाजिक स्वरमे एकलव्यपन अछि कि नहि, सामाजिक स्वरक माने भेल जे कीर्तन-भजनमे एक दल आगू-आगू आ दोसर दल पाछू-पाछू गबै छैथ—सुशील भाइक आवाज, माने जोरक स्वरक आवाज, जहिना धानक झड़ जकाँ बेदरंग बुझि पड़ैन, तहिना सुधरंग सेहो बुझि पड़लैन। सुधरंग शब्दक माने भेल सुधरैक रंग। गौरीनाथ सुशील भायकेँ पुछलैन-

बौआ, तोहर नाओं की छिअह?”

ओना, चेहरासँ गौरीनाथ चिन्है छेलैन मुदा नाओंसँ वाकिफ नइ छला। नामक बाद कामो होइए आ कामक बाद नामो तँ होइते अछि। सुशील भाय बजला- सुशील।

बच्चामे सभ जहिना बजैए तहिना सुशीलो भाय बजला। सात बर्खक सुशील भाय ऐसँ बेसी बाजिये की सकितैथ। आजुक परिवेशमे ने किछु परिवारक बच्चा एतेक अगुआ गेल अछि जे सात बर्खक बच्चा अपन कलाक ढंगसँ अप्पन परिचय दइए। एक तँ सात दशक पैछला समाजक चर्च छी, दोसर आजुक परिवेशमे सेहो एहेन परिवार अछिए जेकर स्थिति पचास-साठि बरख पूर्वक जे अवस्था छल तहिना अछि।

अपना समाजक परिवेशमे तहू समयमे, माने सात दशक पूर्व, गामक हनुमानजी स्थानमे, सभक प्रवेश छल, छुआछुत नहि छल, आजुक तँ परिवेशे बदैल रहल अछि। जैठाम गाम-गामक कीर्तन मण्डली धर्मक रूपमे, माने सेवा भावसँ भजन-कीर्तन करै छला, तैठाम आजुक परिवेशमे ओहो बेपारक रूप पकैड़ लेलक अछि। ओना, गौरीनाथ सुशील भाइक परिवारकेँ सेहो चिन्हैत रहैथ तँए दोहरा-तेहराकऽ नहि पुछि कहलखिन-

बौआ, काल्हि भोरमे तूँ हमरा ऐठाम आबह।

जहिना बोनमे भगवान रामकेँ वौआएल-ढौआएल परिवारो आ परिवारजनो सभसँ भेँट भेल, पछाइत परिवारजनकेँ जहिना भेलैन तहिना सुशील भायकेँ सेहो भेलैन। आन दिनसँ पहिनहि आइ सुशील भाइक नीन भोरमे टुटलैन। टुटबो केना ने करितैन। मनक उत्साहक उमंग असगरोमे उमैकते अछि। से कोनो आइये उमकए लगल अछि से बात नहि, सभ दिनसँ होइत आबि रहल अछि।

जनिते छी जे अकबर जखन अपन दल-बलक संग शिकार करए वा सैर करए राजधानीसँ बाहर निकैल बोनाएल-पथराएल इलाकामे डेरा देलैन आ क्षेत्रक जाँच-पड़ताल जखन करए लगला तखन बीरबल नामक एकटा बच्चा ठहकलैन। मसोमात माइयक बेटा बीरबल, जे माइयक संग पहाड़पर सूखल जारन तोड़ि-तोड़ि बेचि-बेचि गुजर करै छल। बीरबलकेँ भाँज लगा ओकर अबैक माने सामने आनैक विचार अकबरकेँ भेलैन। सिपाहीकेँ कहलखिन, ओकरेसँ समय पुछि लेब। सएह भेल। सिपाही अप्पन कैम्पमे अबैक सूचना दऽ देलकैन। अकबरक दरबार सुनि दस बर्खक बीरबल उत्साहित होइत उत्तेजित भऽ गेला तँए मनमे रोपि लेलैन जे अखने जा कऽ भेँट करबैन।

अकबर दरबारक कैम्प आ बीरबलक घरक बीच, पहाड़ी इलाका रहने, छोट-छीन नाशी, नाशी माने कम चौड़गर धार, बहैत रहइ। पानि तँ बहुत बेसी नहियेँ छल मुदा प्रवाह तँ रहबे करइ। घरसँ विदा भेलापर बीरबल धारकेँ कूदिकऽ ओहिना फानि गेल जहिना हनुमानजी सीताजीक नाओं सुनि समुद्रकेँ कूदिकऽ फानि लंका पहुँचला। बीरबलक करतूत अकबर अपना आँखिसँ देखि रहल छला। कैम्प लग माने अकबरक दरबारक कैम्प, जे सैर-शिकार करैले पहाड़ी इलाकामे लगौल छल तेतए, पहुँच बीरबल सोझे अकबरक आगूमे ठाढ़ भऽ बाजल-

हम बीरबल। कोन काजक निमिते बजौल गेलौं हेन?”

बीरबलक विचार सुनि अकबर बजला-

कोनो काजक निमिते नहि, ओहिना।

बीरबल बजला-

तखन जाइ छी।

अकबर बजला-

जाउ।

दरबारसँ, माने कैम्पसँ विदा भेलाक पछाइत बीरबल ओइ नाशीमे उतैर धार पार करए लगला। बीरबलकेँ पार होइते अकबर पुन: सिपाहीकेँ पठा बीरबलकेँ बजौलैन। पएरे नाशी पार भेलहा बीरबल पुन: दरबारक (अकबरक) नाओं सुनि कूदिकऽ नाशी पार करैत दौड़ल आबि दरबारमे पुन: उपस्थित भेला। बीरबलकेँ सोझामे देखि अकबर पुछलखिन-

बीरबल, जइ धारकेँ अबैकाल अहाँ कूदिकऽ पार भेलौं, जेबाकाल किए धारमे उतैरकऽ डेगे-डेग पार भेलौं?”

निरभिक बच्चा बीरबल छेलाहे। बजला-

अपनेक जिज्ञासा सुनि मन एते उत्साहित भऽ गेल जे धारक सुधिये-बुधि हेरा गेल, निआस भेल जखन घुमलौं तखन मन एते टुटि गेल जे मनक उत्साहे मेटा गेल।

बीरबलक प्रतिभा अकबर देखि लेलैन आ ओही दिन अपन मंत्री बना लेलैन।

एहेन गुण बीरबलेमे छेलैन आ दोसरमे नहि अछि, सेहो बात तँ नहियेँ अछि। जहिना गौरीनाथ सुशील भायकेँ बजौने छला तहिना सुशील भाय अपना समयपर गौरीनाथक ऐठाम पहुँच गेला। पितातुल्य गुरु जकाँ गौरीनाथ सुशील भायकेँ कहलखिन-

बौआ, अखन तूँ कुम्हारक सानल माटि जकाँ छह, माने कोनो वस्तु बनबैसँ पहिने कुम्हार माटिकेँ बारीकीसँ सानैए, तहिना तूँ छह, तँए ढोलकक अनुकरण छोड़ि हरमुनियाक अनुकरण करह जइसँ स्वर-साधना सेहो हेतह।

एक तँ अप्पन मनक उत्साह, दोसर, दोसराक प्रोत्साहन.! हँसी-खुशीसँ सुशील भाय स्वीकारि लेलैन।

सौंझुका समय रहने सुशील भायकेँ कहलयैन-

भाय, हाथ-पएर पछाइत धोब, पहिने चाह पीब कुशल-समाचार कऽ लिअ।

जहिना कहलयैन तहिना सुशील भाय मानैत कहलैन-

बड़ बढ़ियाँ कहलह माधव। आब ओ जुग जमाना रहल जे हाथ-पएर धोला पछाइत लोक आसनपर बैसै छैथ। पहिने लोक एक तँ पएरे चलै छला, दोसर बिनु पनही-जुत्ताक चलै छला, जइसँ गरदा-माटिसँ पएर नहा जाइ छेलैन, तेकरा धोब जरूरी छल। मुदा आब तँ से अछि नहि।

तैबीच चाह आबि गेल, दुनू भाँइ चाहो पीबए लगलौं आ गप्पो-सप्प करिते रहलौं। पुछलयैन- भाय, परिवारक की हाल-चाल अछि?”

निधन्धी लोककेँ जहिना धनक कोनो धैन नइ रहैए तहिना सुशील भाय बजला-

बौआ, अपन जन्मकुण्डली तँ माए-बाबू नइ बनौलैन जे सही-सही कहबह, मुदा एते तँ अनुभवसँ जनिते छी जे पचासी बरख पार कऽ नेने छी।

एक तँ चाह पीने अपनो मन हल्लुक भइये गेल छल, दोसर विचारोसँ प्रभावित भेलौं। अखन जे परिवेश बनि गेल अछि, जैठाम बुढ़सँ बेसी जवान लोक मरैए, तैठाम सुशील भाय पचासी बरख पार कऽ चुकल छैथ आ अखनो मरैक चर्च नहि करै छैथ, बजलौं-

भाय, एतेटा उमेरमे की सब केलौं आ की सब देखलौं-सुनलौं, से कनी कहियौ।

हमर बात सुनि सुशील भाय ठमैक कऽ विचारए लगला। थोड़ेक कालक पछाइत बजला-

बौआ, जीवन तँ जीवन छी जे सुर्ज जकाँ सौंसे दुनियाँ देखैए, मुदा से नहि, अप्पन जीवनक दूटा काजक चर्च करबह।

सुशील भाइक विचार सुनि मनमे भेल जे अनेरे नोनी-पटुआ सागक चर्च किए करब, अप्पन जे मनक उद्गार छैन, सएह ओ बाजथु। बजलौं-

बड़बढ़ियाँ।

सुशील भाय बजला- पिताजीक अमलदारीमे गामसँ माने बेरियाही गामसँ तीन कोस हटल जहिना कोसी छल तहिना दू कोस हटल कमला छल, जइसँ ओइ समयक परिवारक स्थिति बहुत नीक छल जइमे अप्पन बालपन बीतल। गीत-संगीतसँ सिनेह भऽ गेल। पहिने संगी-साथीक संग अखड़ाहापर तीन साल गेलौं, पछाइत गामक कीर्तन मण्डलीसँ जुड़लौं। मन नइ लागल। ओना, ढोलक बजौनाइ, हरमुनिया बजौनाइ एकहाथ सीखिये नेने छी, पछाइत खजुरी लऽ कऽ असगरे घुमि-घुमि निरगुणो आ महराइयो समाजकेँ सुनबए लगलयैन। से अखनो सुनैबते छिऐन। तैसंग खिस्सा-पिहानी सेहो सुनबै छिऐन।

बजलौं-

कमला-कोसी की कहलिऐ?”

नकछोहैन करैत सुशील भाय बजला-

गामसँ जे दुनू धार हटल छल ओ गाममे प्रवेश कऽ गेल। ओइ दुनूक, माने दुनू धारक, कोनो ठेकान अछि जे कखन धारा बदलत आ कखन घाट, गाम तहस-नहस भऽ गेल। अपने दसदुआरी भइये गेल छी, जाबे से नइ बनब ताबे अप्पन समाज जागत केना? जगे ने जागबो छी आ दुनियोँ तँ छीहे।

बजलौं-

अप्पन जीवनसँ सन्तुष्ट छी?”

जेना भाव शक्ति मनक शक्तिकेँ जगा देलकैन तहिना सुशील भाय बजला-

बौआ, अप्पन एकोपाइ मूल्य नइ बुझै छी, तखनो जँ सन्तुष्ट नइ हएब तँ कहिया हएब।

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शब्द संख्या : 2083, तिथि : 14 जुलाई 2023


[1] बिरइ

[2] उच्छृंखलता

[3] पटौनी


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