हेन्डबुक सँ फेसबुक धरि

 


HANDBOOK SAN FACEBOOK DHARI


Compilation by Dr. Umesh Mandal of Select Thoughtful passage of Shri. Jagdish Prasad Mandal  

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली 

जिला- सुपौल, बिहार : 847452 


वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल : pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल : 6200635563; 9931654742  


प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल)  बिहार : 847452  


दाम : 200/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 

दोसर संस्करण : 2022 (पहिल संस्करण : 2021)  


ISBN : 978-81-951070-9-4


ऐ पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। प्रकाशक अथवा काँपीराइट धारकक लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवं रिकॉडिंग सहित इलेक्‍ट्रॉनिक अथवा यांत्रि‍क, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि।



पोथीक मादे किछु अप्पन बात   

'पोथीक मादे किछु अप्पन बात'क जगह जँ 'पोथीक बहन्ने किछु अपनो बात' रहैत तँ आरो नीक होइत, मुदा अधला ईहो नहियेँ अछि। ओ ऐ दुआरे जे काजेक हिसाबे काज करैत चलब नीक होइत अछि किने। जीवन तँ काजेसँ भरल अछि। केतबो करब तैयो बहुत काज कएल नहि हएत बल्कि बहुत काज बाँकीए रहि जाएत। मुदा सभकेँ अपन सक्य भरिक जिम्मो अछिए। कोनो नव काज जखन सोझामे अबैए तँ पहिने ओकर रूप-स्वरूप (जीवन) मूल रहैए, नहि कि ओकर नामकरण। तँए जे नाओं सोझमे पड़ि जाए, ओकरा बेजा नहि कहि काजकेँ आगू बढ़ेबाक चाही..। प्रस्तुत पोथीक नामकरणक परिपेक्ष्यमे सेहो हमर यएह धारणा बनल आ राखि देलौं 'हेन्डबुक सँ फेसबुक धरि', नीक बेजापर विचार शिरोधार्य रहत। ओना, 'धनपति' एक गरीबोक नाओं होइते छइ। खाएर जे होइ छै ओ अपन-अपन सेहो होइते छइ। ऐठाम हमरा अप्पन बात कहबाक अछि। 

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक रचनासँ हमर सम्बन्ध ओहेन रहल अछि जेहेन कोनो रचनाक सम्बन्ध ओकर पहिल पाठकसँ होइ छइ। ई हमर सौभाग्य अछि जे मण्डलजीक आइ धरिक सभ रचनाक पहिल पाठक हेबाक अवसरि हमरा भेटैत रहल अछि। तेतबे नहि, हुनक कोरा-काँख तर खेलबाक-बढ़बाक अवसरि सेहो हमर सौभाग्ये अछि। वएह हमरा आँगुर पकैड़ 'अ-आ'क बोधसँ बोधित कए; पुचकारिकऽ कान्हपर चढ़ा गामक स्कूलमे लऽ जा कऽ नाओं लिखौलैन। तेतबे नहि, हुनका संगे रहब, संगे-संग खेतमे काज करब, एक थारीमे खाएब आ एकहि लोटा-गिलासमे पानि पीबैसँ लऽ कऽ प्रत्येक काजमे संग रहैत हुनकहि छत्र-छायामे उठिकऽ ठाढ़ हेबाक संयोग सेहो हमरा प्राप्त भेल अछि। ओना, 2004 इस्वीसँ हम बेरमा (मधुबनी) सँ निर्मली (सुपौल) आबि, रहि रहल छी। 

बेरमा-निर्मलीक बीच बहुत दूरी तँ नहि मुदा 35-40 किलोमीटर अछि। 2005 इस्वीमे श्री मण्डलजीक लिखल, पाण्डुलिपिमे 'भैयारी' कथा पढ़लौं। कुसुमलाल ओ दीनानाथक भैयारी, हृदयकेँ झकझोरि देलक। जीवन आगूमे आबि ठाढ़ भऽ गेल। ओही दिनसँ साहित्य पढ़ए लगलौं। 

हमर एक संगी, संगे-संग एक मकानमे रहैबला संगी, अशोकजी (श्री अशोक कुमार मण्डल) सेहो ओइ कथाकेँ पढ़ि उत्साहित भेला। ओ हृदय खोलि कहए लगला जे एतेक सुन्दर (यथार्थ) विषय-वस्तु, एहेन जीवन्त शब्दावलीक माध्यमसँ एहेन उद्देश्यपूर्ण पवित्र कथा हम बहुत कम पढ़ने छी। नव चीज अछि। हिनक रचना सभ प्रकाशित हुअए ऐ लेल प्रयत्न करू...। 

तैबीच पत्नी (श्रीमती पुनम मण्डल) सेहो मण्डलजीक लिखल- 'बोनिहारिन मरनी', 'चुनवाली', 'अनेरुआ बेटा', 'घरदेखिया', 'बाबी' आ 'कामनी' कथाकेँ पढ़ि चुकल छेली। ओहो बेस प्रभावित छेली। अपने सेहो उद्वेलित रहबे करी। 'भैयारी' कथाक स्थिति आँखिक सोझमे रहबे करए। किछु दिनक पछाइत—तैबीच निर्मलीमे सेहो यारी-भाय कहियौ कि भैयारी, बहुतोक संग बनियेँ गेल छल—कम्प्युटर लेलौं आ ओइ पाछू लागि गेलौं। माने मनोयोगसँ रचनाक टंकण कार्यमे लागि गेलौं। संगहि, मैथिली साहित्यमे बहड़ाइत, ओइ समयमे जे कोनो पत्रिका छल, ताकि-ताकि कऽ लेबए लगलौं आ पढ़ए लगलौं। किछुए दिनक पछाइत अनेकहु सम्पादक महोदयक संग साहित्यकार विद्वानजन सभसँ सेहो गप-सप्पक सौभाग्य प्राप्त भेल। किछु गोटासँ घर/डेरापर जा कऽ भेँट सेहो कएल, जेना- डॉ. तारानंद 'वियोगी', डॉ. शिवशंकर श्रीनिवास, श्री रघुवीर मोची, श्री गजेन्द्र ठाकुर, मन्त्रेश्वर झा आदि...। आ निर्मलीमे तँ रहिते छेलौं आ छिहो। अहूठामक विद्वान-मनीषी-रचनाकारक संग साहित्य प्रेमीकेँ जनलयैन कि जनै छिऐन, हुनका सबहक संग जुड़लौं आ आगूओ अनेकसँ जुड़िये रहल छी।  

2008 इस्वीमे 8 नवम्बरक शनि दिन मिथिलाक प्रसिद्ध 'सगर राति दीप जरय'क 64म कथागोष्ठी डॉ. अशोक अविचलक संयोजकत्वमे हुनक गाम- रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे आयोजित भेल छल, जइमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक संग हमहूँ पहिल कथा-साहित्य गोष्ठीमे भाग लेने रही। 'भैंटक लावा' कथाक पाठ ओ केलैन आ 'दोस्ती' बीहैन कथाक पाठ अपने केने रही। डॉ. शिवशंकर 'श्रीनिवास' ओ डॉ. रामानन्द झा 'रमण'जीक अध्यक्षतामे ओ गोष्ठी ओयोजित छल, उद्धघाटन केने रहैथ स्व. उग्रनारायण मिश्र 'कनक', बहुत पैघ-पैघ विद्वतजन, रचनाकार सभकेँ ओइठाम एकसंग देखने रहिऐन। रहुआमे हमरो पाग-दोपटाक संग परमहंस लक्ष्मीनाथ गोसाँइक एकगोट दिव्य मूर्ति प्राप्त भेल छल।

मिथिलांचलमे आ मिथिलांचलसँ बाहर सेहो मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धि हेतु अनेकहु मञ्च अछि। व्यवहारिक तौरपर सभ मञ्चक अपन-अपन उद्देश्य छै, मुदा वैचारिक तौरपर सभक एक्के उद्देश्य अछि, मैथिलीक विकास। जहिना सभ मञ्चक अपन-अपन व्यवहार अछि तहिना सभक अपन-अपन पहिचान सेहो अछिए।

'सगर राति दीप जरय'केँ मैथिली साहित्यक पहिल ‘सर्वहारा साहित्यिक मञ्च' मानल जाइत अछि। ऐ मञ्चपर मैथिली साहित्यक तमाम साहित्यकार अबैत-जाइत रहला अछि। सभक पोथीक लोकार्पण सेहो होइत रहलैन अछि।

'सगर राति दीप जरय'क सभसँ पैघ मजगूत पक्ष ई अछि जे ऐ मञ्चपर कोनो (कियो) रचनाकार, समीक्षक भाग लऽ सकै छैथ। किनकहुँ लेल हकारक अनिवार्यता नहि अछि। बिल्कुल खुला मञ्च अछि। सभ वर्गक कथाकार, समीक्षक ओ साहित्य प्रेमी ऐ मञ्चपर उपस्थित होइ छैथ। साँझ छह बजेसँ भिनसर छह बजे धरि संगोष्ठीक समय अछि। दीप प्रज्ज्वलित कए कथा सत्रक आरम्भ होइत अछि। जइमे कथाकार ओ आलोचक आमने-सामने होइ छैथ। एक पालीमे प्राय: चारि गोट कथाकार अपन-अपन नूतन कथाक पाठ करै छैथ। प्रत्येक पालीमे पठित कथापर समीक्षक लोकैन समीक्षात्मक टिप्पणी प्रस्तुत करै छैथ। पोथी-लोकार्पणक सेहो एकटा सत्र होइत अछि जे शुरूहेमे सम्पन्न भऽ जाइए। बीचमे अर्थात् अधरतियामे गोटेक घन्टाक शून्यकाल सेहो होइ छै, आ पुन: भिनसर छह बजे धरिक लेल कथा पाठ आ समीक्षाक लेल गोष्ठी प्रारम्भ भऽ जाइत अछि।

रहुआ संग्रामक गोष्ठीक पछाइत श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक दू गोट कथा 'घर-बाहर' पत्रिका पटनासँ आ एकटा 'मिथिला दर्शन' कोलकातासँ प्रकाशित भेलैन। जेकर किछु दिनक पछाइत गजेन्द्र सर, (श्री गजेन्द्र ठाकुर, विदेह प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिकाक सम्पादक) सँ गप-सप्प भेल, सम्बन्ध बनल। पत्रिकामे सहायक कार्य लेल अवसरि देलैन आ श्री नागेन्द्र कुमार झा (श्रुति प्रकाशन, नई दिल्लीक संस्थापक)सँ सेहो गप करौलैन। दुनू गोटा कहलैन जे “अहाँ जतबा जे रचना, हेराएल वा ओहन रचनाकारक रचना, जनिक पोथी प्रकाशित नहि भऽ रहलैन हेँ, नहि भेल छैन, टंकित कए देब, ओकर पुस्तकाकार प्रकाशनक जिम्मा हमरसभक। सभ पोथीकेँ प्रकाशित कराओल जाएत।” 

वस्तुत: अहिना भेबो कएल। पोथी छपबाक समस्याक अन्त भेल। पाण्डुलिपिक टंकण कार्य आरो तीव्र भेल। ताकि-ताकि कऽ रचनाकार सभसँ सम्पर्क करए लगलौं। जइमे श्री राजदेव मण्डल, श्री राम विलास साहु, श्री नन्द विलास राय, श्री उमेश पासवान, श्री रामदेव प्रसाद मण्डल ‘झारूदार’, श्री बेचन ठाकुर, श्री शिव कुमार झा 'टिल्लू', श्री ओम प्रकाश झा, श्री कपिलेश्वर राउत तथा श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक पोथी छपलैन। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक तँ 27 गोट पोथी छपलैन। माने 'श्रुति प्रकाशन', न्यू राजेन्द्र नगर, नई दिल्ली- 110008 सँ प्रकाशित भेलैन। अपन 'निश्तुकी' पद्य संग्रह सेहो छपल। आ तैसंग अनेको ओहनो-ओहन रचनाकार लोकनिक रचना छपल जे खुदरा लिखलैन। विविध-विधाक सङ्कलन 'विदेह-सदेह' नाओंसँ प्रकाशित भेल अछि। हमर जिम्मा रचनाकारक रचनाकेँ टंकण कए पहुँचाएब छल। अनेको रचनाकार पाठकक सोझमे एला। ई क्रम, माने श्रुति प्रकाशनसँ पोथी प्रकाशनक क्रम, 2008 सँ 2012-13 इस्वी धरि चलल। 

'सगर राति दीप जरय'क 64म कथागोष्ठीसँ लगातार जुड़ल छी। वर्त्तमानमे 106म आयोजन हटनी (नौआबाखर)मे श्री लालदेव कामतजीक संयोजकत्वमे 25 सितम्बर-के हएब निश्चित अछि। उक्त कथा-साहित्य गोष्ठीक तीन खेप, क्रमश: 80म, 87म ओ 100म आयोजन निर्मलीमे कराएल। जइमे निर्मलीक समाजक भरपूर योगदान रहल अछि।   

2014 इस्वीमे 'पल्लवी प्रकाशन'क पंजीयन कराएल तथा पोथी प्रकाशनक क्रम जारी राखल। पल्लवी प्रकाशन द्वारा विविध-विधाक करीब 300 साए पोथी प्रकाशित कए चुकलौं अछि।  

2009-2010 इस्वीक बीच फेसबुकपर आबि चुकल रही, जइमे श्रीमान् गजेन्द्र ठाकुरजीक सहयोगकेँ केना बिसैर सकबैन, अपने किछु बुझितो ने रही, हुनकेसँ बुझैत-सीखैत किछु-किछु काजक आरम्भ कएल।   

फेसबुकपर अनेको विद्वानक रचनाकेँ साझा करए लगलौं। पछाइत, पूज्यवर श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक विविध-विधाक रचना-अंशकेँ फेसबुकपर साझा करए लगलौं। ऐ कार्यकेँ करबाक मूल उद्देश्य मैथिलीक पाठक समुदायकेँ बढ़ेबाक छल। बेस पाठक बढ़ल। बहुतो विद्वतजन, पाठकवृन्द हमरा उत्साहितो केलैन। उत्साहित भऽ हम पाम्फलेट-कलेक्शन सेहो फेसबुकपर साझा करए लगलौं। धीरे-धीरे ई कार्य आगू बढ़ैत गेल। 'देवाश्रम' नाओंसँ अनेको सङ्कलन सेहो बहराएल। अही क्रममे मण्डलजीक बीछल कथाक एक साए सङ्कलन- 'पंचदेव' नाओंसँ प्रकाशित कए लोकार्पण कराएल। संगहि एक गोट 'दुध-पानि फराक फराक' नामक पाण्डुलिपि-छाया पोथी केर लोकार्पण सेहो 'सगर राति दीप जरय'क शतांक आयोजनमे कराएल। ऐ कार्यक लेल बहुतो आदरणीय हमरा उत्साहित करैत कहबो केलैन जे ई “मैथिली साहित्यमे ई नव डेग थिक।” 

'नव डेग' सुनि अर्थात् उत्साहसँ उत्साहित भऽ विचारोत्तेजक गद्यांशक सङ्कलित पोथी प्रकाशित करी, ईहो मनमे आबए लगल। आइ लगातार सात वर्षसँ, माने 2014 इस्वीसँ ऐ कार्यमे लागल छी। जेकर फलाफल सद्य: प्रकाशित सङ्कलन- 'हेन्डबुक सँ फेसबुक धरि' अपने सबहक सोझमे अछि।   

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक रचना कौशलक सन्दर्भमे केतेको विद्वतजन लिखलैन अछि- “मण्डलजी फुसियाँहीक रचनाकार नहि छैथ, हिनक एक-एक वाक्य महत्वपूर्ण होइत छैन। एहि तरहक रचना कौशल कोनहुँ रचनाकारमे तखनहि आबि सकैछ जखन मंसा-वाचा ओ कर्मणाक सतह एक हो...।”

पूर्वमे अपन दू गोट मौलिक कृति  क्रमश: 'निश्तुकी' काव्य संग्रह- 2009 इस्वीमे तथा 'टुटैत मनक जुड़ाव' कथा संग्रह- 2018 इस्वीमे प्रकाशित कराएल। ऐ दुनू पोथीक लोकार्पण सेहो क्रमश: 80म तथा 97म 'सगर राति दीप जरय'क कथागोष्ठीमे भेल अछि।  

प्रस्तुत पोथी 'हेन्डबुक सँ फेसबुक धरि'क सम्बन्धमे सेहो अपना विश्वास अछि जे सुधि पाठक लोकैनकेँ नवताक भान हेतैन। ऐ पोथीमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक गद्य रचनाक विचारोत्तेजक अंशकेँ हू-ब-हू राखलौं अछि। आरम्भ 'पंगु' उपन्याससँ कएल अछि। उक्त उपन्यासक आरम्भ सीतापुर गामक वर्णनसँ भेल अछि। सीतापुर मिथिलाक गाम थिक। अत: आरम्भ मिथिलाक वर्णनसँ भेल अछि आ अन्त भेल अछि 'वर्चस्ववादी संस्कृति बनाम हाशियाक समाज उर्फ पचपनियाक संषर्ष' शीर्षक आलेखक अंशसँ...।  

साम्रगीकेँ दू तरहक फोन्ट-साइजमे प्रस्तुत कएल गेल अछि। जइमे विचारोत्तेजक वा भावोत्तेजक तथ्यक फोन्ट-साइज किछु नम्हर अछि। कोन तथ्य केतएसँ अर्थात् कोन पोथीसँ वा रचनासँ आनल, तेकर विवरण सेहो सन्दर्भ-साभारमे अङ्कित करबाक कोशिश कएल अछि। धन्यवाद.! प्रणाम.!! 

जय मैथिली.! जय साहित्य.!! आजुक जीवन आजुक साहित्य!!  

–उमेश मण्डल

निर्मली 

23 सितम्बर 2021


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