निर्विकल्प

 


NIRVIKALP (निर्विकल्प)


Compilation by Dr. Umesh Mandal of Select Thoughtful passage of Shri. Jagdish Prasad Mandal  

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली 

जिला- सुपौल, बिहार : 847452 


वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल : pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल : 6200635563; 9931654742  


प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल)  बिहार : 847452

फोण्ट सोर्स : https://fonts.google.com/, 

https://github.com/virtualvinodh/aksharamukha-fonts  


दाम : 200/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 

पहिल संस्करण : 2022  


ISBN : 978-93-93135-02-5


ऐ पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। प्रकाशक अथवा काँपीराइट धारकक लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवं रिकॉडिंग सहित इलेक्‍ट्रॉनिक अथवा यांत्रि‍क, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि।


पोथीक मादे किछु अप्पन बात   

आइ 21 जून 2022 मंगल दिन छी, चारिम दिन अर्थात् 25 जून 2022क शनिदिन, ननौर गामक मध्य विद्यालय परिसरमे ‘सगर राति दीप जरय’क 109म कथा गोष्ठी आयोजित अछि, जइमे प्रस्तुत पोथी ‘निर्विकल्प’क लोकार्पण सेहो होमए जा रहल अछि। बीचमे बँचल मात्र तीनटा दिन अछि। ई तँ कम्प्यूटरेकेँ धन्यवाद दिऐ जे आब तीनियोँ दिनमे लोक पोथी छपाइ सम्बन्धी काज सम्पन्न कऽ सकैए। 

‘निर्विकल्प’ अर्थात् जगदीश प्रसाद मण्डलजीक रचित रचना संसारसँ सङ्कल्ति विचारोत्तेजक गद्यांश संग्रह। जे मात्र तीन दिनक पेसतर प्रिन्ट सम्बन्धी यात्रा तय केलक अछि। आब अहाँ यएह ने कहीं सोचए लागी जे एहेन कोन लौल भेल जे एते धड़फड़ीमे पोथी प्रकाशित कराएब, तहूमे ओहन पोथी (विधा) जेकर कोनो चर्च नहि। माने गद्यांश सङ्कलन कोन विधा भेल, इतिहासमे एकर की स्थान अछि? आदि-इत्यादि। मुदा हमर मानब अछि, ‘रूईसँ तिनका भला’, माने जैठाम अहाँ बैसियेकऽ समय बिताबी, किछु करबे ने करी, तैठाम किछु करबकेँ नीक मानब। तहूमे ओहन साहित्यकारक गद्यमे आएल विचारक सङ्कलन जे ‘आजुक जीवन आजुक साहित्य’केँ प्रमाणित करैत समयक संग धाराप्रवाह चलैत जा रहल अछि, बढ़ैत जा रहल अछि। जनिका सम्बन्धमे स्थापित ओ वरीय साहित्यकार श्री मन्त्रेश्वर झा (आई.ए.एस.) लिखने छैथ- “जइ ‍ गाम घरक कथा सभ मण्डलजी उठाए ओकरा परि‍णति‍ तक पहुँचओने छथि‍ तइ गाम घरक एतेक सूक्ष्‍म आ वि‍स्‍तृत वि‍वरण मैथि‍ली साहि‍त्‍यमे एहिसँ पूर्व कमे भेल अछि।”

क्रमश: जगदीश प्रसाद मण्डलजीक विषयमे हिनक ‘जिनगीक जीत’ उपन्यासक आमुखमे मैथिलीक सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ. तारानंद ‘वियोगी’ कहनाम छैन- “जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे मिथिलाक ग्रामीण समाजक अद्भुत चित्र आएल अछि। मैथिलीमे एहि वस्तुक खगता सभ दिनसँ रहल अछि। हमरा लोकनि अक्सरहां चिन्तित होइत रहै छी जे गाम उजरि रहल अछि, गामक सम्बन्धमे जतबे जे किछु लेखन भऽ रहल अछि से निगेटिभ फोर्ससँ भरल अछि, अधिकाधिक हताश करऽ बला अछि। हमरा लगैत अछि जे जीवनकेँ देखबाक जे दृष्टिकोण जगदीशजीक छनि से आम मैथिली साहित्यकारक दृष्टिकोणसँ फराक छनि तेँ ओ एहन चित्र रचि पबैत छथि जे सामान्यसँ हटि कऽ अछि।”

अहिना मैथिली साहित्यक प्रसिद्ध रचनाकार ओ आलोचक डॉ. कैलाश कुमार मिश्र सेहो हिनका-दे माने श्री जगदीश प्रसाद मण्डल-दे लिखलैन अछि- “एहेन रचना अगर मैथिली साहित्यमे लगातार हो आ ऐ तरहक रचनाक प्रचार-प्रसार नीकसँ कुनो जाति-पाति, वर्ग, सम्‍प्रदाय, स्थानीयता आदिक दुर्भावनासँ दूर भऽ कएल जाए तँ मैथिली साहित्य महिमा-मण्डि‍त भऽ एक गौरवशाली परम्पराकेँ प्रारम्भ कऽ सकैत अछि।”

कोनो रचनाक मूल्‍याङ्कन समय करैत अछि। समयानुकूल रचना छी वा नहि, ई समय आँकि बुझल जा सकैए। मुदा से आंकएबला सबहक काज छिऐन। अपने एकटा अदना आदमी छी, ई किनकोसँ छुपल अछि सेहो बात नहियेँ अछि। हँ, तखन शोध कार्यसँ सम्बन्धित जे अपना ऊपर जिम्मा अछि तइमे जखन जेना जे कए पेबाक बल पबै छी ओ करबाक चेष्टा जरूर करैत रहल छी।

जगदीश प्रसाद मण्डलजी अपन रचनाकेँ अपना धारणानुकूल ओहन मूर्त्तरूपमे गढ़ए चाहि रहला अछि जे भूत, वर्तमान ओ भविष्य- तीनू समयमे अपन रूप बना ठाढ़ रहए। कोनौं समस्याक जड़ि वर्तमान रहितो ओ भूत बनि जाइए, तँए भूतोकेँ पकैड़ राखए पड़त, वर्तमान तँ सहजहि प्रत्यक्ष अछिए जे सामाजिक धारा शुद्ध-अशुद्ध करैत चलिते अछि, जैपर भविष्यक भवन ठाढ़ होइत अछि। ओना, मण्डलजीक सोच ईहो छैन जे जिनगी नम्हरो होइए माने महीनो-वर्षबला होइए आ एकदिना सेहो होइत अछि। एकदिना जिनगी भेल एक घटनाक जीवन। ओना, एहेन-एहेन घटना जिनगीक बीच चलिते रहैए, किएक तँ ओहन घटना फेर जीवनमे दोहरा कऽ अबितो अछि आ नहियोँ अबैए। एहेन जे जीवन अछि ओहो ने जीवने भेल। मण्डलजी मूलत: जीवनक रचनाकार छैथ। ओ बेकतीगत जीवनसँ आगू बढ़ि सामाजिक जीवनकेँ विशेष महत्व दैत रहला अछि, तँए हिनक सभ रचना सामाजिक रूप धारण केने रहै छैन।

उपरोक्त सन्दर्भमे ‘विदेह’ प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका (www.videha.co.in) केर सम्पादक साहित्यकार श्री गजेन्द्र ठाकुरक कहब सेहो विचारणीय ओ युक्तिसंगत बुझि पड़त जे निम्नवत अछि-

“जगदीश प्रसाद मण्डलक कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरूद्ध पारम्‍परिक आजीविकाक गौरव महिमा मण्डि‍त भेटैत अछि। आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टि‍कोणक कारणसँ आ से अछि हिनकर बेकती‍गत आ सामाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे सोचै छी, जे करै छी; सएह लिखै छी तइ कारणसँ।”

गजेन्द्र ठाकुरजी 2012 इस्वीमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक वायोग्राफी लिखि चुकल छैथ। अत: ओ जहिना मण्डलजीक जीवन-शिल्प उपरोक्त वानगीमे प्रस्तुत केलैन तहिना हुनक रचना-शिल्पक सम्बन्धमे कहलैन अछि- 

“यात्री आ धूमकेतु सन उपन्‍यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्‍पीक अछैत मैथिली भाषा जनसामान्‍यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो आकर्षित करैत रहल आ ओइ भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति-भाषासँ देखौल जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक समाजिके क्षेत्रटामे नहि वरन आर्थिक क्षेत्रमे सेहो क्रान्ति‍ आनत।”     

ओना तँ बहुत विद्वान-मनीषी लोकनिक कलम मण्डलजीपर चलल छैन, सम्प्रति सबहक जिक्र लेल यथोचित अवकाश नहि। तथापि जहिना प्रसिद्धि पाओल विद्वज्जन छैथ तहिना एकान्तवासमे संघर्षरत रचनाकार मण्डलजी नहि छैथ सेहो नहियेँ कहल जा सकैए। अत: एकैसम शताब्दीक पहिल दशकक श्रेष्ठ कविक रूपमे चर्चित श्री राजदेव मण्डल जे कि एकांकी, नाटक, कविता, कथा, पटकथा, उपन्यासादि साहित्यक सभ मौलिक विधामे हिनक कलम चलैत रहलैन अछि, जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘उत्थान-पतन’ उपन्यासक आमुख सेहो लिखने छैथ। हिनक कहब छैन- “केहनो अकर्मण्य बेकती जँ पूर्ण मनोयोगक संग आर्थिक उन्नतिमे दत्तचित भऽ जाए तँ हुनक प्रगति होएब निश्चित भऽ जाइत अछि। ऐ दर्शनकेँ देखेबाक प्रयत्न लेखक (जगदीश प्रसाद मण्डल) पात्र श्यामानन्द द्वारा केलैन अछि। परिवर्तनशीलता संसारक निअम छी। सामन्तवादसँ पूँजीवाद आ पूँजीवादक गर्भेसँ समाजवादक जन्म सेहो होइत अछि। ई अलग बात जे पूँजीवादसँ साम्राज्यवाद सेहो पनपैत अछि।”

उपरोक्त वानगी सदृश एक आर वानगी जज साहैबक उद्धृत करब आवश्यक बुझै छी। जज साहैबक माने श्री रबीन्द्र नारायण मिश्र, जे मैथिली साहित्यमे अपन बेछप स्थान बना चुकल छैथ। कथा, कविता, उपन्यास, संस्मरण, यात्रा वृतान्त, शोध आलेख आदि अनेको विधामे नियमित लिखएबला साहित्यकार छैथ। ओ अपन ब्लॉग ‘भोरसँ साँझ धरि’मे जगदीश प्रसाद मण्डलजीक ‘लहसन’ उपन्यासक समीक्षा करैत लिखने छैथ- 

“श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक ‘लहसन’ उपन्यासकेँ पढ़लासँ पाठक थोड़बे कालमे समाजक निम्नतम पौदानपर ठाढ़ लोकक जिनगीक बारेमे बहुत किछु बुझि सकैत छथि। किछु एहन करबाक प्रेरणा प्राप्त कए सकैत छथि जाहिसँ मेवालाल सन-सन गरीब लोकसभकेँ गाम छोड़ि कलकत्ता सन महानगर पलायन नहि करय पड़नि। एहिसँ प्रेरणा लए समाजक समृद्ध लोकनि किछु करथि जाहिसँ गाम-घरसँ पलायन बन्द होअए आ गाम एकबेर फेर पल्लवित-पुष्पित भए जाए।” 

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक रचना संसार सङ्कलित विचारोत्तेजक गद्यांशक ई तेसर पोथी छी। पहिल ‘हेण्डबुक सँ फेसबुक धरि- 2021’, दोसर ‘समस्यासँ समाधान धरि- 2022’ आ तेसर सद्य प्रकाशित ‘निर्विकल्प’, जे अपने सबहक हाथमे अछि। ओना, ‘देवाश्रम’केँ सेहो एतत्सम्बन्धित पोथी मानल जा सकैए, जे कि विचारोत्तेजक पाम्फलेट सङ्कलन छी। 2019 इस्वीमे ‘देवाश्रम’क 35 खण्ड-ग्रन्थ प्रकाशित भेल अछि।     

प्रत्येक मनुक्खक अपन-अपन स्थिति-परिस्थित होइते अछि। अपनो किछु तेनाहे सन अछि जइ कारणेँ भरि दिन पानिमे रहैत नहाइक सोभाग्यसँ बञ्चित रहए पड़ैए। मुदा जँ अन्तिमो समयमे, माने पानिसँ निकलैयोकाल अर्थात् जहिना मलाह भरि दिनक काजसँ निचेन भऽ, पोखैरसँ निकैल जखन अपन घर जाइ छैथ, तखनो जँ मनमे आबि जानि- जा.! नहेलौं कहाँ.? आ नहाइक जएह सुविधा-साधन, स्थिति-परिस्थिति रहए, जँ तहूमे नहा ली तँ कोन अधला। बस यएह चीज मनमे आएल आ लागि गेलौं काजमे। समयक आँट-पेटकेँ देखैत पुन: विचारोत्तेजक गद्यांश सङ्कलनकेँ प्रकाशित करबैक विचार तँइ केलौं। सोशल मिडियापर माने फेसबुकपर सम्बन्धित काज प्राय: नित्य-नूतन किछु-ने-किछु करिते रहै छी, ओही सभकेँ समेट एकटा सङ्कलित रूपमे ‘निर्विकल्प’ लऽ कऽ उपस्थित भेलौं अछि। बिसवास अछि प्रोत्साहित करबे करब।  

प्रोत्साहनक परिपेक्ष्यमे अपन एक गुरु-भाइक चर्च कए रहल छी, ओ छैथ हमर ब्रह्मानन्द भायजी अर्थात् श्री ब्रह्मानन्द प्रसाद जे अखन दिल्लीमे ओकालत कए चैनसँ जीवि रहला अछि, चैनसँ ई जे ओ अनका जकाँ दिल्लियेला नहि माने अपन गाम, अप्पन विचार आ अप्पन समाज (गामक समाज)केँ बिसैर नहि गेला। गामक ब्रह्मानन्द भायजी आइयो बनले छैथ। बेरमाक करीब-करीब सभ गतिविधिमे गामक संग रहैक विचार जे ब्रह्मानन्द भायजीमे शुरूसँ रहलैन ओ अखनो व्याप्त छैन्हे जे उत्तरोत्तर बढ़िते जा रहल छैन। भाय, गप्पेटा सँ काज नहि चलत, गप्पेटाक अर्थ मात्र गप बुझब, काज काज होइ छै, ओ बेवहारसँ जोड़ल रहैत अछि जइमे लोक अवधारित भऽ अपन कल्याणक मार्ग प्रशस्त करैए वा अपन-अपन मनक मनराज बना जीवन-वसर करए चाहैए। राज कोनो रहह, मुदा नीक वएह ने जइ राज्यक लोक वैचारिक संग बेवहारिक सेहो हुअए। खाएर जेतए जे हुअए। हमरा अपन गप कहबाक अछि। ब्रह्मानन्द भायजी जहिना काल्हि डेग-मे-डेग मिलाकऽ चलैत अपन छोट भाए सदृश बुझैत-बुझबैत रहला, तहिना आइयो बुझै छैथ। ओहिना बुझबैत, ओहिना प्रोत्साहित करैत रहै छैथ। ई हमर सौभाग्य अछि जे हमरा जहिया जेतए जे कियो अप्पन बुझि पड़ला ओ आइयो नहि बुझि पड़ि रहला अछि से नहि। बीचमे समय ओ परिस्थिति विशेषक अपन प्रभाव देखले जा सकैए। 

श्री ब्रह्मानन्द प्रसाद, मगध विश्वविद्यालय, बोधगयासँ अंग्रेजी विषयमे ऑनर्स केलाह। पछाइत दिल्ली विश्वविद्यालयसँ ओकालतिक अहर्ता प्राप्त कए दिल्ली उच्च न्यायालयमे ओकालति कऽ रहला हेन। ओ हमर जहिना दोस्त छैथ तहिना गुरु सदृश ज्ञान सेहो देने छैथ तँए ब्रह्मानन्द भायजी-दे गुरु-भाय शब्दक प्रयोग केलौं। अहाँकेँ खुशी होएत जे ऐ पोथीक लोकार्पण हेतु हुनका कहलयैन। जे भायजी निर्विकल्पक लोकार्पण अहीं करबै। तैपर ओ बजला जे ‘लोकार्पणक अर्थ साधारण थोड़े अछि।’ हम चुप रहि गेलौं। की सोचि बजला से तँ ठीकसँ नहि बुझि पेलौं। हमरा चुप देखि ओ पुन: बजला- ‘100 प्रति पोथीक केतेक दाम भेल, लोकार्पणक पछाइत पोथी-वितरण हमरा दिससँ हुअए।’

स्पष्ट अछि ‘निर्विकल्प’क लोकार्पणक संग वितरण/अर्पण श्री ब्रह्मानन्द प्रसादजीक सौजन्यसँ होएत। ऐ तरहक प्रोत्साहनसँ आह्लादित हएब सोभाविक।   

‘निर्विकल्प’क आरम्भ श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक जीवनीसँ कएल गेल अछि। श्री गजेन्द्र ठाकुर द्वारा ‘जगदीश प्रसाद मण्डल एकटा वायोग्राफी’ 2012 इस्वीमे श्रुति प्रकाशनसँ प्रकाशित भेल अछि। पछाइत ‘आएल आशा चलि गेल’क संग ‘भरि मन काज’, ‘संचरण’, ‘जीवनक कर्म जीवनक मर्म’, ‘नीक ठकान ठकेलौं’, ‘घरक खर्च’, ‘अन्तिम परीक्षा’, ‘गामक सूरत बदैल गेल’, ‘कर्ताक रंग कर्मक संग’, ‘रहै जोकर परिवार’, ‘हारल चेहरा जीतल रूप’, ‘कृषियोग’, ‘पसेनाक मोल’, ‘गामक आशा टुटि गेल’, ‘भौक’, ‘समयसँ पहिने चेत किसान’, ‘गामक जिनगी’ आदि कथा संग्रहसँ आ किछु उपन्याससँ सेहो गद्यांश सङ्कलित सामग्रीकेँ दू तरहक फोन्ट-साइजमे प्रस्तुत कएल गेल अछि। जइमे विचारोत्तेजक वा भावोत्तेजक तथ्यक फोन्ट-साइज किछु नम्हर अछि। संगहि कोन तथ्य केतएसँ अर्थात् कोन पोथीसँ वा रचनासँ आनल, तेकरो विवरण सन्दर्भ-साभारमे अङ्कित करबाक कोशिश कएल अछि। रचनाकारक प्रति सादर आभार व्यक्त करैत अपन बातमे विराम लगा रहल छी। धन्यवाद.! प्रणाम.!! 

जय मैथिली.! जय साहित्य.!! आजुक जीवन आजुक साहित्य!!  


- उमेश मण्डल

निर्मली (सुपौल)

21 जून 2022 


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