अन्तर्ध्वनि


 ANTARDHWANI (अन्तर्ध्वनि) 
Fifteen Selected stories of Jagdish Prasad Mandal edited (and with a foreword) by Dr. Umesh Mandal  

ISBN: 978-93-93135-37-7 
सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल  
पहिल संस्करण: 2023 
दाम: 230/- (भा.रू.) 

प्रकाशक: पल्लवी प्रकाशन 
तुलसी भवन, जे.एल. नेहरू मार्ग, वार्ड नं.: 06, निर्मली
जिला- सुपौल, बिहार : 847452
मुद्रक: पल्लवी प्रकाशन (मानव आर्ट)

वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com 
ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com 
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आवरण: श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल), बिहार : 847452
अक्षर संयोजन: डॉ. उमेश मण्डल 


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मनुक्ख आ समाज 
मनुक्ख सामाजिक प्राणी छी। समाजमे किछु-ने-किछु होइते रहैत अछि तँए जँ ई कही जे अनेक घटना मनुक्खक बीच आकि मनुक्खक अगल-बगलमे घटित होइत रहैत अछि तँ ओ बेसी नहि होएत, भलहिं हमरालोकनिक नजैर ओइपर जेबो करैए आ नहियोँ जाइए। अपना सभ ईहो जनै छी जे मनुक्खक जीवनमे जेतेक समस्या अछि, जेतेक की जे ई जीवने, खासकऽ बहुजनक जीवन, समस्येसँ घेरल-बेढ़ल अछि। शास्त्र-पुराणसँ लऽ कऽ जेतेक पोथी-पतरा देखै छिऐ ओ समस्येक परिचय ओ निवारणार्थ अछि। अर्थात् बहुतो विसंगति ओ समस्या समाजक बीच अछिए। 
समाजमे दू तरहक समस्या अछि, एक अछि प्रकृति प्रदत्त, जेना- भुमकम, बाढ़ि, रौदी आदि-आदि। दोसर अछि मानव निर्मित, जेना- लूट-पाट, चोरी-डकैती, मार-काट, शोषण-दोहन, ठकैती, फुसिऐती, सूदिखोरी, महाजनी, दहेज, कालाबाजारी आदि-आदि..। सभ समस्याकेँ जँ गौर करिकऽ देखब तँ मात्र दू-चारि प्रतिशत समस्या प्राकृतिक देखाएत बॉंकी पनचानबे-छिआनबे प्रतिशत मानवे द्वारा मानवक सोझमे आनल समस्याकेँ देखब। खाएर जे देखब आकि देखाएत ओ अपन-अपन नजैरिक काज भेल। समय अपना गतिए सदैव अपन यात्रा-पथपर चलयमान अछि, जेकरा हम-अहॉं नीक जकॉं बुझै छी, तहिना हमरा-अहॉंक चारू भाग अनेको क्रिया-कलाप, अनेको घटना होइत रहैए। मुदा ओकरा सहजहि हम-अहॉं नहियोँ देखि/बुझि पबै छी आ बुझितो छीहे। 
जहिया देश आजाद भेल तइ दिनक समय आ आइक समयमे बहुत बदलाउ आएल अछि। से दुनू दिशामे, माने नीक-बेजाए दुनू दिस बदलाउ आएल अछि। नीकसँ नीक सेहो भेल अछि आ नीकसँ अधलो भेले अछि। तहिना अधला बदैल कऽ नीको नहि भेल अछि आ आरो अधला सेहो नहि भेल अछि, ईहो केना मानब। ओइ समयमे माने चारिम-पाँचिम दसकमे संयुक्त परिवारक जे बेवस्था छल, परिवारक प्रति लोकक मनमे जेहेन विश्वास छल तइ-हिसाबे आइ बहुत कमि गेल अछि। स्वभाविक अछि जखन परिवारक प्रति विश्वास कमत तँ ओकर असर समाजोपर पड़बे करत। परिवारे ने समाजक अंग छी। आजुक एहेन परिस्थिति बनि गेल अछि जइमे ने बेटा बाप-माएकेँ मनसँ देखै छैथ आ ने माए-बाप बेटा-पुतोहुकेँ देखैले तैयार छैथ। देखब आसान सेहो नहि रहि गेल अछि। माए-बाप केतौ आ बेटा-पुतोहु केतौ रहि रहला अछि। खाएर.. जे जेतए रहै छैथ, ऐठाम हमरा अपन काजक गप करबाक-कहबाक अछि। 

जगदीश प्रसाद मण्डलक जन्म 1947 इस्वीमे 5 जुलाई-के मधुबनी जिलाक झंझारपुर अनुमण्डलक बेरमा गाममे भेलैन। भारतमे स्वतंत्रताक झण्डा फहराइक समय आबि गेल छल, अंगरेज अपन डेली-खोंगी बान्हि ऐठामसँ विदा होइपर रहए। “मिथिलांचलक बीच झंझारपुर इलाका ओ क्षेत्र छी, जइमे मिथिलाक इतिहास-दर्शन, अखनो झलैक रहल अछि। अखनो पाथरमे फूल, माटि-पानिमे सुगन्ध जीवित अछि‍। क्षेत्रक गाम-समाजमे दर्जनो जाति, दर्जनो सम्प्रदाय अदौसँ अखन धरि मिलि-जुलि एकठाम बास करैत एला अछि। भूमियोक शक्ति ओहने उर्वर अछि, देशक एक नम्बर श्रेणीक सघन आबादीबला क्षेत्र अछि।..मिथिलांचलक बीच झंझारपुर इलाकाक अप्पन प्रतिष्ठा रहल अछि। जहिना शिक्षाक क्षेत्रमे तहिना आर्थिक क्षेत्रमे सेहो। देशक पैमानामे इलाका पछुआएल नै छल, अगुआएल छल। एक-सँ-एक महान पुरुष पैदा लऽ चुकल छैथ। ई आजादीक लड़ाइमे खून बहौनिहार क्षेत्र छी। झंझारपुर अंगरेजक मुख्य अड्डामे छल। दमन नीति केतौ चलल तँ अहू क्षेत्रमे चलल।”  

जगदीश प्रसाद मण्डल जीक जीवन जीबाक कला
पहिल भाग
समाज आ  समाज लेल राजनीति- 
1950 इस्वीमे जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पिता–दल्लू मण्डल–क निधन भऽ गेलैन। ओ कहै छैथ- “पिताक मृत्युक किछुओ नै यादि अछि, सिरिफ गाछीमे जरैत अछिया टा...। जखन तीन बर्खक रही। दू भाँइक भैयारीमे छह बर्खक भैया रहैथ। पिताजी करीब एक मास बीमार रहला। इलाजोक नीक बेवस्था नहि, ताबत दरभंगा अस्पताल नै बनल छेलइ। झाड़-फूकसँ लऽ कऽ जड़ी-बुटीक इलाज समाजमे चलै छल।” 
जगदीश प्रसाद मण्डलजी तहिया तीनिये बर्खक रहैथ जहिया हुनक पिताक मृत्यु भेलैन। मुदा लालन-पालनसँ लऽ कऽ पढ़ाइ-लिखाइमे कोनो कमी नहि भेलैन। तेकर कारण मात्र परिवारेटा नहि सामाजिक वातावरण सेहो अछि। मण्डलजी कहै छैथ- “एक तँ अपनो परिवारक समांग, दोसर गामक कोनो जाति एहेन नहि, जइ जातिसँ पारिवारिक सम्बन्ध नइ छल। तैसंग जातियोक नमहर टोल। गामक चारूकातक गाममे कुटुमैती सेहो छल आ अखनो अछि। ओहो सभ अपनामे समय निर्धारित कऽ अबैत-जाइत रहै छला। कान्‍ही सेहो नीक बनौलैन। एक-सँ-एक खिस्‍सकर आ एक-सँ-एक गप केनिहार। तँए दिन-रातिमे कोनो अन्तर नहि। अभाव परिवारमे नहियेँ छल तँए अनुकूल परिस्थिति बनल छल।”  
हिन्दी एवं राजनीति शास्त्र विषयसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजी एम.ए.क अहर्ता प्राप्त केलाह। ओइ समय परिवारमे दू भाँइ पिसियौत रहै छेलैन। शिक्षा ग्रहण केलाक बाद जीवि‍कोपार्जन हेतु कृषि कार्यकेँ अपनौलैन। ओइ समय समाजक हालत बहुत रद्दी छल। खासकऽ जइ गाम-समाजमे मण्डलजीक जन्म भेल छैन। विकासक खिलाफ समाजमे व्याप्त रूढ़िवादी एवं सामन्ती बेवहार एक-एक बेकतीकेँ जकैड़कऽ पकड़ने छल। स्थिति-परिस्थितिकेँ देखैत जगदीश प्रसाद मण्डलजी समाज सेवामे लागि गेला। “जेतए परिवारमे साधारण शिक्षाक आगमन भेल छेलैन। तैठाम एम.ए. तक पढ़लैन। परिवारे नहि, गामेमे पहिल एम.ए. भेला। ओना, पैछला पीढ़ीमे संस्कृतक माध्यमसँ एक-पर-एक विद्वान बेरमामे भेला मुदा जेनरलमे जगदीश प्रसाद मण्डलेटा रहैथ।” 


एम.ए. पास मण्डलजी समाजक प्रति अपन दायित्वकेँ बुझि डेग आगू बढ़ौलैन तँ हिनका सामाजिक विकासमे बहुत-किछु वाधक बुझि पड़लैन। बुझियो केना ने पड़ितैन। आइ ने सामाजिक समस्या गौण पड़ि रहल अछि। मुदा ओइ समय से नहि छल। “बीसम शताब्‍दीक पाँचम दशक, देशकेँ ऐ रूपेँ आन्दोलित कऽ देलक जे जन-गण अपन घर-परिवारसँ आगू बढ़ि देश लेल अपनाकेँ अर्पित कऽ देलक। जहिना दशकक पूर्वार्द्ध आन्दोलन केलक तहिना एकसंग अनेको प्रश्न उठि कऽ ठाढ़ भेल। ओना, आइ धरिक देशक इतिहासमे एकसंग एते खुशी कहियो नै भेल छल जेते भेल। जेना-जेना आजादीक झण्डा फहरबैक दिन लगिचाइत गेल तेना-तेना खुशीमे बढ़ोतरी होइत गेल। अदहा दशक जहिना जगैमे लागल तहिना रंग-रंगक सपना देखैमे सेहो अदहा दशक खुशीसँ बितल। ..समाजक बीच तँ नहि, मुदा देशक राजनीतिकेँ आर्थिक मुद्दा स्पष्ट विभाजित कऽ देने छल। कियो देशक पूर्ण आजादी देखै छला तँ कियो एकरा नेंगरा आजादी बुझै छला। ओना, देशक भीतर रौदी, भुमकम, जाति-साम्प्रदायिक उन्‍माद एते जोर पकैड़ लेने छल जे भीतर-बाहरक लड़ाइमे राजनीतिक दल ओझराएल रहए।”  
बेरमा गाममे सेहो जमीन्दार आ आमजनक बीच विरोधक अनेको मुद्दा उठिकऽ ठाढ़ भेल। सामन्ती बेवहारक खिलाफ पुरजोर लड़ाइ उठल। जगदीश प्रसाद मण्डलजी सेहो समाजक प्रति अपन दायित्व-कर्ममे संलग्न भऽ गेला। लगातार 35 वर्ष धरि केस-मोकदमा, जहल यात्रादिमे हिनकर समय बितलैन। जेकरा हम ओहुना बाजि-बुझि सकै छी जे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजी अपन जीवनक अधिकांश समय समाज-सेवामे लगेलैन। किएक तँ ओ जेतेक मोकदमा लड़ला, जेतेक बेर जेल गेला से सभटा सामाजिक मुद्दासँ जुड़ल मोकदमादि छल, बेकतीगत नहि। आ से दत्तचित भऽ कऽ लागल रहला, अर्थात् रूचिपूर्वक। मुदा...।  
मुदा ई जे वातावरणोक तँ अपन प्रभाव होइत अछि। तेतबे नहि, जहिना वातावरणक प्रभाव मनुक्खपर पड़ैत अछि तहिना मनुक्खोक प्रभाव की वातावरणपर नहि पड़ैत अछि। पड़बे टा नहि करैत अछि वातावरणक निर्माताक रूपमे सेहो प्रकृतिसँ बीस मनुक्खे अछि। 
“1960 इस्वीक पछाइत मधुबनी जिला कम्युनिस्ट पार्टीक मुख्य आन्दोलन ‘कोसी नहर’, ‘नूनथर’, ‘शीशा पानी’ आ ‘बराह क्षेत्रक डैम’पर केन्‍द्रि‍त भऽ गेल। ओना, आनो मुद्दा रहबे करइ। बटाइदारी जमीनक लड़ाइ जोर पकड़नहि रहए। नहरक पानि आ पनिबिजली जेना कम्युनिस्टे पार्टीक होइ तहिना लोकक धारणा बनि गेल छेलइ। जेकर समाधान भेने मिथिलांचलक उद्धार होइत। खेतीसँ उद्योग धरि बढ़ि जाइत, से नै भेल। जेते विरोधी (कम्युनिस्ट विरोधी) तागत छल रंग-रंगक आन्दोलन, षड्यंत्र कऽ योजनाकेँ अखन धरि सफल नै हुअ देलक। पार्टियोक राजनीतिमे ठहराव आबि गेल। एतबे नहि, जेकरा सभकेँ बटाइ-जमीन भेल ओहो सभ ओकरा (ओइ खेतकेँ) भरना लगा पंजाब-दिल्ली जाए लगल। परिणाम ओहन आबए लगलैन जे की केलाह तँ किछु नहि। सिरिफ जिलेक राजनीति नहि। गामोमे सएह भेलैन।”  
“जगदीश प्रसाद मण्डलजीक मनमे उठलैन जे हजारो बर्खक गाछ किछु-ने-किछु अपनामे नवीनता अनिते रहैए। चाहे नव टुसा हउ आकि नव मुड़ी आकि नव पात आकि नव कलश। विचार तँ उठलैन मुदा मनमे दुनू केस तँ रहबे करैन। जाइ-अबैक परेशानी नहि, केसक सजाए केर परेशानी। दुनू सेशन केस। दू-दिना-चारि-दिना तँ छी नहि जे बुझथिन पहुनाइ करए जहल गेल छला। सालक-साल दस साल, बारह साल। दुनू मिला बीस सालसँ बेसी। तैबीच की कएल जाए।”  जाधैर केससँ छुटकारा नै पाबि लेता ताधैर दोसर दिस‍ बढ़ब नीक नै बुझैथ। 
“केसक छुटकाराक पछाइत करबे की करितैथ। गुजर लेल खेती करिते छला। नोकरी दिस कहियो मनसँ तकबे ने केलाह, वेपार कएले ने हेतैन। मुदा जिनगियो तँ छोट नहियेँ अछि। कठही साइकिल (काठक पाइडिल लगौल साइकिल) तँ जिनगी छी नहि जे थालो-कादो आकि रस्ताक कटारियोमे कन्हापर उठा लेता आ टपि जेता। जिनगीक गाड़ी छी। एक पटरीपर सँ दोसर पटरीपर आनब। एकर अर्थ ई नहि जे जैठाम पाहि कटैक जोगार छै तैठाम गाड़ीकेँ लऽ जा कऽ दोसर पटरीपर चढ़ा दियौ। दोसर पटरीपर आनैक अर्थ ई जे छोटी लाइन (मीटर गेज लाइन) सँ बड़ी लाइनपर चढ़ेबाक अछि। ओकर आँट-पेट छोट छै मुदा किछु पार्ट- धुरी-चक्का बदलने तँ डिब्बा आ आनो-आनो वस्तु उपयोगी बनि जाइ छइ। प्रश्न एतबे नै अछि, ऐसँ आगूओ अछि। ओ ई अछि जे अदौसँ अबैत ई जिनगीक गाड़ी छी। जेतेक रंगक पटरी तेतेक रंगक पटरीक गति। तैठाम गाड़ीकेँ दोसर पटरीपर लऽ जाएब, असान नहि।“  
दोसर भाग
समाज आ  समाज लेल साहित्य- 
साहित्यो जगतक जे दशा-दिशा अछि ओ छपित नहियेँ अछि। तहूमे लाथी सबहक हाथ पड़ल अछि। कोनो वस्तु मंगलापर नै दऽ छिपा लेब, लाथ कहबैत अछि। मैथिली साहित्य जगत समाजसँ एते दूर हटि गेल अछि जे जोड़ब असान नै अछि। ओना, ई सिरिफ मैथिलीए-मे नहि, आनो-आन साहित्यमे भरपूर अछिए। जेना- कबीर दासक चर्चा मैथिली साहित्यमे कम अछि मुदा कबीर दासक जे जिनगीक (जीवन पद्धति) इतिहास प्रस्तुत कएल गेल अछि ओ विवेकपूर्ण जकाँ नै अछि। विवेकपूर्ण नै हेबाक कारणे कबीर दर्शन समाजसँ हटि गेल अछि। जेहो सभ दर्शनक प्रचार-प्रसार कऽ रहल छैथ, ओहो सभ या तँ अपनो गुमराहे छैथ, नहि तँ लाथी छैथ, जे गुमराह केने छैथ। 

तहिना तुलसी दास ‘गोस्‍वामी’ कहबै छैथ, मुदा केतेक गाए पोसने छला? जरूरत अछि युगानुसार साहित्यक निर्माण करब। ..तहिना जाधैर मैथिलियो साहित्य समाजक वस्तु (समाजक साहित्य) नै बनत ताधैर के केकरा की कहै छिऐ से भाँज थोड़े लगत। तँए शुभेक्षु साहित्यकारक दायित्व बनैए जे एक आँखि समाजपर रखि दोसर आँखि जखन कागत-कलमपर रखता तखन मैथिली साहित्‍ये नहि मिथिलाक कल्याण हएत। राज्यक अर्थ जौं राजधानीक एकटा कार्यालयसँ लइ छी तँए मिथिलाक समाज छुटि जाइए। मिथिलाक सामाजिक पद्धति वैदिक पद्धतिसँ आगू बढ़त तखने सर्वांगी‍न विकास हएत।”   
“जगदीश प्रसाद मण्डल लेल 1999 ई. अबैत-अबैत आशा-निराशाक बीच संक्रमणक स्थिति बनए लगलैन। 1998 ई.मे दफा 307क केसमे सजाए भऽ गेल रहैन। हाइ कोर्टमे अपील होइमे 20-25 दिन लागि गेलैन। तइ समयमे रामपट्टी जेलमे रहैथ। मने-मन आश्चर्य होनि जे बिना किछु केनौं जहलमे छैथ। तहियो आ अखनो मन नै मानि रहल छेलैन‍ जे कोनो गलती हुनकासँ भेल हुअए। खाएर, अपील भेल, जमानत भेलैन। दिनांक 5-5-2005 इस्वी-केँ ओहो समाप्त भऽ गेलैन।” 
जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ नव काल्हि‍ देखैक इच्छा शुरूहेसँ रहलैन। से ओहिना नहि, केलाक (क्रिया) पछाति आरो मजगूत भेलैन। ओना, हिनकर अपन जीवनक अधिकांश समय, 2000 इस्वी धरि, केस-मोकदमा, जहल यात्रादिमे व्यतीत भेलैन।  

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 2000 इस्वीक पछाइत लेखन क्षेत्रमे एला। दू-तीन वर्ष अभ्यासोमे लागल हेतैन। प्राय: 2003 इस्वीक पछाइत हुनक लेखनी चलए लगलैन। जे कि आइ धरि निरन्तर चलि रहलैन अछि। केहेन निरन्तरता से हुनक रचना-संसारकेँ देखि बुझल जा सकैए। 2021 इस्वीमे हुनका ‘पंगु’ उपन्यास लेल साहित्य अकादेमी मूल पुरस्कार देल गेलैन अछि। जखन कि हुनक शताधिक पोथी प्रकाशित भऽ चुकल छेलैन। हम ई नहि कहै छी जे साहित्य अकादेमी पुरस्कार लेल साएसँ अधिक पोथी केर रचना करए पड़ैत अछि। जँ से रहैत तखन 24 भाषामे जे एक-एक रचनाकारकेँ देल जाइए, सबहक संग ओहिना होइत। वर्ष 2021क साहित्य अकादेमी पुरस्कारसँ पुरस्कृत कएल गेलैन जँ ओइ सूचीकेँ देखब ओहनो रचनाकारकेँ देखबे करबैन जनिक मात्र पाँच गोट पोथी प्रकाशित छैन। गणनाक हिसाबे बहुसंख्य रचनाकारक कृति एक-आध-दू दर्जनक मध्य छैन। असमियामे श्रीमती अनुराधा शर्मा पुजारीक 26 गोट पोथी छैन, नेपालीमे श्री छविलाल उपाध्यायक 30 गोट कृति छैन, कन्नड़मे श्री डि.एस. नागभूषणक 40, मलयालममे श्री जॉर्ज केर 49 कृति प्रकाशित छैन आ मैथिलीमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक शताधिक पोथी प्रकाशित छैन।  
सबहक रचना-संसारकेँ जँ निरन्तरताक खियालसँ देखब तँ श्री मण्डलजीक लेखनीक निरन्तरता सभसँ फराक ओ श्रेष्ठ बुझना जाएत। हिनक पहिल रचना औपन्यासिक कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’ छिऐन जे 2004 ईस्‍वीमे लिखला। 2008 इस्वी धरिक अवधिमे पाँच गोट उपन्यास, एक नाटक तथा किछु कथादि लिखि चुकल छला। मुदा कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे एक्को गोट रचना प्रकाशित नहि भेल रहैन। तथापि हिनक कलम, लिखबाक क्रम जारी रहलैन- प्रस्तुत अछि ऐ प्रसंगमे हुनकहि लिखल बात- “मौलाइल गाछक फूल 2004 ईस्‍वीमे लिखल पहिल उपन्यास छी। अखन धरि पाँचटा उपन्यास आ किछु कथा, लघुकथा, नाटक सभ अछि। छपबैक जे मजबूरी बहुतो रचनाकारकेँ छैन‍ से हमरो रहल। मुदा तइसँ लिखैक क्रम नै टुटल। ‘भैंटक लावा’ कथा सेहो दू-हजार चारिक पहिल कथा छी।”  8 नवम्बर 2008 इस्वीमे ‘सगर राति दीप जरय’क 64म कथागोष्ठी डॉ. अशोक अविचलक संयोजकत्वमे हुनक गाम- रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे आयोजित भेल छल जइमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी उपस्थित भऽ अपन पहिल रचना ‘भैंटक लावा’ कथा केर पाठ केलैन। साहित्य क्षेत्रमे मण्डलजीक ओ पहिल मञ्च छेलैन। ओना, साहित्य लेखन क्षेत्रमे अबैसँ पूर्व माने 2000 इस्वीसँ मण्डलजीक क्रिया-कलाप एक समर्पित समाजसेवीक रहल छैन। तँए ओ केतेको बेर राजनीतिक मञ्चपर बाजि चुकल छला। पहिने बेरमा पंचायत आ रहुआ संग्राम, दुनू मधेपुर ब्लौकक अन्तर्गत पड़ै छल। जे कि जगदीश प्रसाद मण्डलजीक कर्म क्षेत्र रहल छैन। तँए, रहुआ गाममे सेहो मञ्च साझा कऽ चुकल छला।  

2008 इस्वीसँ पूर्व जगदीश प्रसाद मण्डलजीक एक्को गोट रचना सार्वजनिक नहि भेल छेलैन। कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे प्रकाशित नहि भेल छेलैन। पहिल रचना ‘घर बाहर- पटना’सँ प्रकाशित भेलैन। जइ कथाक पाठ रहुआ संग्राममे केने छला, खूब प्रशंसा भेल छेलैन। ऐ प्रसंगमे मण्डलजीक वानगी निम्नांकित अछि- 
“डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’जी ओ कथा मांगि लेलैन। किछुए मासक उपरान्त ‘घर बाहर’ पत्रिकामे प्रकाशित केलैन। सिद्ध पुरुषक स्थानमे प्रतिष्ठा भेटल। डायरी-कलम भेटल। गमछा-पाग भेटल। लक्ष्मीनाथ गोसाँइक मुर्ति सेहो भेटल।”   
घर-बाहरमे एक आर रचना (कथा) प्रकाशित भेलैन। पछाइत ‘मिथिला दर्शन- कोलकाता’मे ‘चुनवाली’ नामक कथा प्रकाशित भेलैन। चुनवाली, भैंटक लावा आ बिसाँढ़, कथा प्रकाशित होइते ‘विदेह’क सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरजीसँ सम्पर्क भेलैन। तेकर बाद मण्डलजीक रचना सभ पुस्तकाकार रूपमे प्रकाशित हुअ लगलैन। 
ऐ तरहेँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आगमन मैथिली साहित्यक दुनियाँमे होइ छैन। बिनु पाइक अर्थात् बिनु खर्चेक पोथी प्रकाशन मैथिली साहित्यमे नव उदाहरण छल। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 27 गोट पोथी एकसंग श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेलैन। वर्तमानमे ओही तरहेँ पोथीसभक प्रकाशन पल्लवी प्रकाशन, निर्मलीसँ भऽ रहलैन अछि।  
गीत, काव्य, नाटक, एकांकी, कथा, उपन्यास इत्यादि साहित्यक सभ विधामे, हिनक अनवरत लेखन अद्वितीय सिद्ध भऽ रहलैन अछि। अखन धरि दर्जन भरि नाटक/एकांकी, पाँच साएसँ ऊपर गीत/काव्य, उन्नैस गोट उपन्यास आ साढ़े आठसाए कथा-कहानीक संग किछु महत्वपूर्ण विषयक शोधालेख आदिक पुस्तकाकार, साएसँ ऊपर ग्रन्थमे प्रकाशित छैन। 
गाम-समाज आ समाजक लोकसँ जगदीश प्रसाद मण्डलकेँ अटूट सिनेह रहलैन अछि। विदेह ई पत्रिकाक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुर कहै छैथ- “समाजक सभ वर्ग हिनकर कथ्यमे भेटैत अछि आ से आलंकारिक रूपमे नहि, वरन अनायास, जे मैथिली साहित्य लेल एकटा हिलकोर एबाक समान अछि। हिनकर कथ्यमे केतौ अभाव-भाषण नै भेटत, सभ वर्गक लोकक जीवन शैलीक प्रति जे आदर आ गौरव ओ अपन कथ्यमे रखै छैथ से अद्भुत। हिनकर कथ्यमे नोकरी आ पलायनक विरूद्ध पारम्‍परिक आजीविकाक गौरव महिमा मण्डि‍त भेटैत अछि। आ से प्रभावकारी होइत अछि हिनकर कथ्य आ कर्मक प्रति समान दृष्टि‍कोणक कारणसँ आ से अछि हिनकर बेकती‍गत आ सामाजिक जीवनक श्रेष्ठताक कारणसँ। जे सोचै छी, जे करै छी; सएह लिखै छी तइ कारणसँ। यात्री आ धूमकेतु सन उपन्‍यासकार आ कुमार पवन आ धूमकेतु सन कथा-शिल्‍पीक अछैत मैथिली भाषा जनसामान्‍यसँ दूर रहल। मैथिली भाषाक आरोह-अवरोह मिथिलाक बाहरक लोककेँ सेहो आकर्षित करैत रहल आ ओइ भाषाक आरोह-अवरोहमे समाज-संस्कृति-भाषासँ देखौल जगदीशजीक सरोकारी साहित्य मिथिलाक सामाजिके क्षेत्रटा मे नहि वरन आर्थिक क्षेत्रमे सेहो क्रान्ति आनत।”
श्री जगदीश प्रसाद मण्डल मैथिली साहित्यक प्राय: सभ विधामे रचना केनिहार ओहन रचनाकार छैथ जनिक लेखन अनवरत ओ अवाध गतिये चलि रहल छैन। जहिना पद्य विधामे गीत, कविता तहिना गद्यमे  एकांकी, नाटक, कथा, उपन्यास, कथामे बीहैन, लघु आ दीर्घ- तीनू, तैसंग प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचनामे सेहो हिनक लेखनी चलैत रहलैन अछि। कथा आ उपन्यासमे तँ नियमित चलि रहलैन हेन। मण्डलजीक नियमितता, माने नित्य-नियमित साहित्य लेखन, एहेन छैन जे साहित्य-रचनाकारक बीच कएगोट मान्यतासभ पर बरबरि प्रश्नचिह्न ठाढ़ करैत रहल अछि। 
मण्डलजी 2000 इस्वीक पछाइतसँ साहित्य लेखन आरम्भ केलाह। तइसँ पूर्व किसानी जीवनक बीच रहि समाज सेवामे संलग्न छला, ओ कहै छैथ- “जहिया एम.ए.क विद्यार्थी रही तहिए नोकरीसँ विराग भऽ गेल। आठ बीघा जमीन रहए। खेतीसँ जीवन-यापन करैक बिसवास भऽ गेल। पैंतीस साल धरि समाज सेवा केलाक पछाइत अपन हहरैत शरीर देखि किछु लिखै-पढ़ैक विचार जगल।”   
2013 इस्वीक अन्तिम मास वा कहि तँ 2014 इस्वीसँ अद्यपर्यन्त, मण्डलजी जे कोनो रचना केलैन आकि कऽ रहला अछि, तइ सभ रचनाक संग रचना-तिथि सेहो सार्वजनिक करैत रहला। रचना करबाक सन्दर्भमे एक मान्यता अछि जे कोनहुँ रचनाक बिम्ब रचनाकारक मनमे कखनो-कखनो आ कहियो-कहियो अबैत छैक। माने अनायास अबै छइ। अत: ओ नियमित ओ निर्धारित समयक कार्य नहि थिक। मुदा मण्डलजी द्वारा नियमित लेखनसँ ई मान्यता कमजोर बुझना जाइत अछि। नियमित लेखनसँ सद्य: ओहन मान्यतापर प्रश्नचिह्न लगैत अछि। हँ, एहेन मान्यता बेकतीगत भऽ सकैत अछि जे ‘विषय-बिम्ब कखनो-कखनो आ कहियो काल अबैत छैक’।
श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक निरन्तर लेखनसँ आरो-आर मान्यता सभ स्वत: निरस्त भेल जा रहल अछि। मनुक्खक जीवनमे होइत निरन्तर-परिवर्तनकेँ अनुभवी जकाँ मण्डलजी अपना रचनामे रेखाङ्कित करै छैथ। ‘जेतए न जाए रवि ओतए जाए कवि’ हम एतबए सुनैत रही, मुदा जगदीश प्रसाद मण्डल कहै छैथ- ‘जेतए नइ जाए रवि ओतए जाए कवि आ जेतए ने जाए कवि ओतए जाए अनुभवी’। 
मण्डलजीक रचनामे सदैव नीक-बेजाकेँ बिलगेबाक सुन्दर प्रयास देखबामे अबैत अछि। हिनक प्रत्येक रचनामे खास गुण छैन जे पाठक सहजतासँ बन्हा जाइ छैथ। बेकतीगत जीवनक बीच नीक-बेजाक दर्शन करबैत सहजतासँ पाठककेँ ओइठाम लऽ कऽ चलि जाइ छैथ जैठाम मनुक्ख रहैत तँ अछि सदिखन मुदा अनभिज्ञ जकाँ। अपन लगक चीजकेँ नहि देखि पबैत अछि। समाजक बीच एहेन बहुत बेवहार अछि जे रूढ़ रहितो नीक जकाँ चलि रहल अछि। जेकर परिचय ओ दर्शन अपन रचनामे मण्डलजी नीक जकाँ करबैत रहल छैथ। मण्डलजी कोनो चीजक दशा-दिशाक परिचयक संग ओकर कारण तथा समय-सापेक्ष निदान-परिष्कार सेहो करेबाक कोशिशमे लागल रहै छैथ। ई हिनक खास गुण छिऐन। कोनहुँ मनुक्खक परिचय ओकर लगन, धैर्य, साहस तथा विश्वाससँ होइत अछि। विश्वास एहेन चीज छी, जेकर वास्तविक रूप कोनो बेकतीक कार्यक नियमिततामे देखार होइत अछि, नियमितताक अपन छवि होइ छइ। तइ नजैरिये जँ देखब तँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक अप्पन छवि छैन। जे हिनक परिचय भेल। ई अपन सतत क्रियाशीलता ओ रचना धर्मिताक लेल विभिन्न संस्थासभक द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत होइत रहला अछि, यथा- विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा ‘गामक जिनगी’ लघु कथा संग्रह लेल ‘विदेह सम्मान- 2011’, ‘गामक जिनगी व समग्र योगदान हेतु साहित्य अकादेमी द्वारा- ‘टैगोर लिटिरेचर एवार्ड- 2011’, मिथिला मैथिलीक उन्नयन लेल साक्षर दरभंगा द्वारा- ‘वैदेह सम्‍मान- 2012’, विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा ‘नै धारैए’ उपन्यास लेल ‘विदेह बाल साहित्य पुरस्कार- 2014’, साहित्यमे समग्र योदान लेल एस.एन.एस. ग्लोबल सेमिनरी द्वारा ‘कौशिकी साहित्य सम्मान- 2015’, मिथिला-मैथिलीक विकास लेल सतत क्रियाशील रहबाक हेतु अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा- ‘वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ सम्मान- 2016’, रचना धर्मिताक क्षेत्रमे अमूल्य योगदान हेतु ज्योत्स्ना-मण्डल द्वारा- ‘कौमुदी सम्मान- 2017’, मिथिला-मैथिलीक संग अन्य उत्कृष्ट सेवा लेल अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा ‘स्व. बाबू साहेव चौधरी सम्मान- 2018’, चेतना समिति, पटनाक प्रसिद्ध ‘यात्री चेतना पुरस्कार- 2020’, मैथिली साहित्यक अहर्निश सेवा आ सृजन हेतु मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटी-असम द्वारा ‘राजकमल चौधरी साहित्य सम्मान- 2020’, भारत सरकार द्वारा ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2021’, साहित्य ओ संस्कृतिमे महत्वपूर्ण अवदान लेल अमर शहीद रामफल मंडल विचार मञ्च द्वारा ‘अमर शहीद रामफल मंडल राष्ट्रीय पुरस्कार- 2022’, मिथिलांचल विकास परिषद्, लहेरियासराय, दरभंगा द्वारा ‘यात्री सम्मान- 2022’ तथा साहित्य, संस्कृति, सामाजिक आ मिथिलांचलक सर्वांगीण विकासक क्षेत्रमे उल्लेखनीय योगदान हेतु ‘शिखर सम्मान- 2022’

ऐ तरहेँ श्री मण्डलजीक रचना संसारपर सेहो दृष्टिपात कएल जाए जे प्रकाशित छैन- 
1. गामक जिनगी : (कथा संग्रह- 2009), 2. मौलाइल गाछक फूल : (उपन्यास- 2009), 3. उत्थान-पतन : (उपन्यास- 2009), 4. जिनगीक जीत : (उपन्यास- 2009), 5. मिथिलाक बेटी : (नाटक- 2009) 
6. तरेगन : (प्रेरक कथा संकलन- 2010), 7. जीवन-मरण : (उपन्यास- 2010), 8. जीवन संघर्ष : (उपन्यास- 2010)
9. बजन्ता-बुझन्ता : (बीहैन कथा संग्रह- 2013), 10. शंभुदास : (दीर्घ कथा संग्रह- 2013), 11. उलबा चाउर : (कथा संग्रह- 2013), 12. अर्द्धांगिनी : (कथा संग्रह- 2013), 13. सतभैंया पोखैर : (कथा संग्रह- 2013), 14. भकमोड़ : (कथा संग्रह- 2013), 15. नै धाड़ैए : (उपन्यास- 2013), 16. बड़की बहिन : (उपन्यास- 2013), 17. इन्द्रधनुषी अकास : (काव्य संग्रह- 2013), 18. तीन जेठ एगारहम माघ : (गीत संग्रह- 2013), 19. राति-दिन : (काव्य संग्रह- 2013), 20. सरिता : (काव्य संग्रह- 2013), 21. गीतांजलि : (काव्य संग्रह- 2013), 22. सुखाएल पोखरि‍क जाइठ : (काव्य संग्रह- 2013), 23. कम्प्रोमाइज : (नाटक- 2013), 24. झमेलिया बिआह : (नाटक- 2013), 25. रत्नाकर डकैत : (नाटक- 2013), 26. स्वयंवर : (नाटक- 2013), 27. पंचवटी : (एकांकी संचयन, 2013) 
28. गामक शकल-सूरत : (कथा संग्रह- 2014), 29. लजबि‍जी : (कथा संग्रह- 2014), 30. समरथाइक भूत : (कथा संग्रह- 2014), 31. अप्‍पन-बीरान : (कथा संग्रह- 2014), 32. बाल गोपाल : (कथा संग्रह- 2014), 33. रटनी खढ़ : (दीर्घ कथा संग्रह- 2014), 34. पतझाड़ : (कथा संग्रह- 2014), 35. गढ़ैनगर हाथ : (कथा संग्रह- 2014), 36. अपन मन अपन धन : (कथा संग्रह- 2015) 
37. उकड़ू समय : (कथा संग्रह- 2015), 38. मधुमाछी : (कथा संग्रह- 2015), 39. पसेनाक धरम : (कथा संग्रह- 2015), 40. गुड़ा-खुद्दीक रोटी : (कथा संग्रह- 2015), 41. फलहार : (कथा संग्रह- 2015), 42. खसैत गाछ : (कथा संग्रह- 2015), 43. ठूठ गाछ : (उपन्यास- 2015), 44. कल्याणी : (एकांकी, 2015), 45. सतमाए : (एकांकी, 2015), 46. समझौता : (एकांकी, 2015), 47. तामक तमघैल : (एकांकी, 2015), 48. बीरांगना : (एकांकी, 2015) 
49. एगच्छा आमक गाछ : (कथा संग्रह- 2016), 50. शुभचिन्तक : (कथा संग्रह- 2016), 51. गाछपर सँ खसला : (कथा संग्रह- 2016), 52. डभियाएल गाम : (कथा संग्रह- 2016), 53. गुलेती दास : (कथा संग्रह- 2016), 54. मुड़ियाएल घर : (कथा संग्रह- 2016) 
55. बीरांगना : (कथा संग्रह- 2017), 56. स्मृति शेष : (कथा संग्रह- 2017), 57. बेटीक पैरुख : (कथा संग्रह- 2017), 58. क्रान्तियोग : (कथा संग्रह- 2017), 59. त्रिकालदर्शी : (कथा संग्रह- 2017), 60. पैंतीस साल पछुआ गेलौं : (कथा संग्रह- 2017), 61. इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं : (उपन्यास- 2017) 
62. दोहरी हाक : (कथा संग्रह- 2018), 63. सुभिमानी जिनगी : (कथा संग्रह- 2018), 64. देखल दिन : (कथा संग्रह- 2018), 65. गपक पियाहुल लोक : (कथा संग्रह- 2018), 66. दिवालीक दीप : (कथा संग्रह- 2018), 67. अप्पन गाम : (कथा संग्रह- 2018), 68. लहसन : (उपन्यास- 2018), 69. पंगु : (उपन्यास- 2018), 70. आमक गाछी : (उपन्यास- 2018), 71. सतबेध : (गीत संग्रह 2018) 
72. खिलतोड़ भूमि : (कथा संग्रह- 2019), 73. चितवनक शिकार : (कथा संग्रह- 2019), 74. चौरस खेतक चौरस उपज : (कथा संग्रह- 2019), 75. समयसँ पहिने चेत किसान : (कथा संग्रह- 2019), 76. भौक : (कथा संग्रह- 2019), 77. गामक आशा टुटि गेल : (कथा संग्रह- 2019), 78. पसेनाक मोल : (कथा संग्रह- 2019), 79. चुनौती : (पद्य संग्रह- 2019), 80. रहसा चौरी : (गीत संग्रह 2019) 
81. कृषियोग : (कथा संग्रह- 2020), 82. हारल चेहरा जीतल रूप : (कथा संग्रह- 2020), 83. रहै जोकर परिवार : (कथा संग्रह- 2020), 84. कामधेनु : (गीत संग्रह- 2020), 85. मन मथन : (गीत संग्रह- 2020), 86. अकास गंगा : (गीत संग्रह- 2020), 87. सुचिता : (उपन्यास- 2020), 88. कर्ताक रंग कर्मक संग : (कथा संग्रह- 2020), 89. गामक सूरत बदैल गेल : (कथा संग्रह- 2020), 90. अन्तिम परीक्षा : (कथा संग्रह- 2020), 91. घरक खर्च : (कथा संग्रह- 2020) 
92. मोड़पर : (उपन्यास- 2021), 93. संकल्प : (उपन्यास- 2021), 94. अन्तिम क्षण : (उपन्यास- 2021), 95. नीक ठकान ठकेलौं : (कथा संग्रह- 2021), 96. कुण्ठा : (उपन्यास- 2021), 97. पयस्विनी : (निबन्ध-प्रबन्ध, 2021), 98. जीवनक कर्म जीवनक मर्म (कथा संग्रह- 2021), 99. संचरण : (कथा संग्रह- 2022), 100. भरि मन काज : (कथा संग्रह- 2022), 101. आएल आशा चलि गेल : (कथा संग्रह- 2022), 102. जीवन दान : (कथा संग्रह- 2022), 103. अप्पन साती : (कथा संग्रह- 2022), 104. साहित्यकारक विवेक : (कथा संग्रह- 2022), 105. नब बनक नब फल : (कथा संग्रह- 2022), 106. सुनयना बेटी : (उपन्यास- 2023), 107. सेहन्ता सेहन्ते रहि गेल : (कथा संग्रह- 2023) 

आब आउ ‘अन्तर्ध्वनि’ पर- 
प्रस्तुत पोथी श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक कथा-संसारसँ पनरह गोट कथाक संचयन छी। मण्डलजीक विशाल कथाकोषकेँ पढ़ब आ तखन हुनका चिन्हब-जानब थोड़ेक भीहगड़ अछिए तँए हम आदरणीय पाठक वृन्द लेल माने अपने सभ लेल, मण्डलजीक पनरह गोट ओहन कथा जमा केलौं अछि जेकरा पढ़ि हुनक नजैरकेँ बहुत हदतक परेख पाबी। ओ पनरहो कथा सभक शीर्षक अछि- 1. काजक मेहपन, 2. स्वरोजगार, 3. कनियाँ-पुतरा, 4. वारन्ट, 5. दुष्टपन, 6. केकरो कियो ने, 7. हुसि गेलौं,  8. केलवारी, 9. सिकिया नेता, 10. अगुताइ भेल, 11. अर्जुन रोग, 12. भौक, 13. सि‍रमा, 14. बुलन्दी, 15. अन्तिम आशा 

 ‘काजक मेहपन’ 
ई कथा 2019 इस्वीमे प्रकाशित- ‘समयसँ पहिने चेत किसान’ पोथीमे 8म स्थानपर अछि। मण्डलजी ऐ कथाकेँ लेखन तिथि अछि- 27-05-2019  
विक्रम बाबा मौसमी फलक किसान छैथ। रंग-बिरंगक फल-फलहरी उपजबै छैथ। अपन अधिकतर समय फसिलकेँ देखै-सुनै आ गुणैमे बितबै छैथ। मेहीपनसँ फसलक तकतान कए ओकर भविष्य ओ वर्तमानक निर्णय करै छैथ। मुदा घरक कनियाँ-बहुरिया लेल ओ ओतेक महत्वपूर्ण नहि छैथ, माने हिनक कार्य ओतेक महत्व नहि रखै छैन। ओना, जँ गौर करि कऽ देखब तँ ईहो साफ देखबामे एबे करत जे किसानकेँ लोक छोट नजैरिये देखैए। माने वातावरणे ओहन बनि रहल अछि वा बनि गेल अछि। खाएर..।   
विक्रम बाबाक स्पष्ट सोच छैन। दुनियाँकेँ जानब अधला विचार नहि, मुदा ईहो तँ प्रश्न अछिए जे एते विशाल दुनियाँ आ ओइ दुनियाँक विशालतम जीवनक बीच जखन छी तखन जेते सम्भव हएत तेतबेक ने अपन सीमा बनाएब। जँ से नहि करब तँ जहिना रामकेँ लंका जाइकाल पुल बनबैक खगता भेलैन जेकरा बनबैले नल-नील सन कारीगर भेटलैन, जिनका–माने नल-नीलकेँ–पानिमे पाथर अलगबैक लूरि तँ छल मुदा टुकड़ा-टुकड़ी पाथर एकबट्ट केना बनत से लूरिये ने रहइ, तहिना ने अपनो हएत..! विक्रम बाबा अपन बरसाती मौसमक फलबगानमे फलक गाछकेँ निच्चाँ-सँ-ऊपर धरि मेहपनिया नजैरसँ देखि रहल छला। मेहपन कहियौ कि मेहपनिया, माने भेल ओकर मेही-सँ-मेही रूपमे मेहिया कऽ ओकर बारीकपनकेँ बुझब। 
जहिना मनुक्खक जिनगीमे अतीत-वर्त्तमान आ भविस चक्कर लगबैत चलैए आ ओही बीच बच्चाकेँ देखि अपन बालपनो आ वृद्धकेँ देखि अपन वृद्धपनो लोक बुझै-गमैए तहिना विक्रम बाबा, गरमी मासक मौसमी फलक वर्त्तमानकेँ देखि रहल छला आ जाड़क मौसमक फलक भविस दिस सेहो तकै छला। ‘अनजान सुनजान महा कल्याण’, जहिना कहल जाइए तहिना मौसमो आ मौसमक फलो-फूल आ अनो-पानिक लीला अछिए। जहिना कोनो अने वा फले-फूल अपनाकेँ समेट अपन उदय-प्रलय मौसमे अनुकूल निमाहैत चलैए तहिना ने...।
मुदा घरक स्त्रीगण विक्रम बाबाकेँ मतिभ्रम मानै छथिन। ऐ सभसँ विक्रम बाबाकेँ एकोरत्ती क्षोभ नहि छैन, ओ निर्विकार भावसँ अपन कर्ममे निरन्तर लागल रहै छैथ।
 
 ‘स्वरोजगार’
कथामे रविशंकर स्नातक अन्तिम बर्खक विद्यार्थी अछि जे अपन परीक्षा छोड़ि घर चलि अबैत अछि। किए चलि अबैत अछि? यएह ऐ कथाक विषय छी। कथाकार बेस सचेत भऽ कऽ ऐ कथाकेँ गढ़लैन अछि। रविशंकरक अलाबे ऐ कथामे ‘भागेसर’, ‘राधा’ आ ‘चेतानन्द’ सेहो पात्रक रूपमे आएल छैथ।  
प्रजातांत्रिक शासन पद्धतिक अनुकूल शासन व्यवस्था नहि भेने जे सार्वजनिक संस्थासभमे विकृतिपन आबि जाइए जइसँ ओकर कार्यप्रणाली प्रभावित हुअ लगैए। भेल तहिना छल। रविशंकर जइ युनिवर्सिटीमे पढ़ै छल ओकरहु कार्यप्रणालीमे जे विकृतता आबि गेल, ओइ विकृतिसँ क्षुब्ध भऽ स्नातक अन्तिम बर्खमे रहितो रविशंकर अपन परीक्षा छोड़ि दैत अछि आ घर एबाक लेल चलि दैत अछि। मनमे अनेको प्रश्न उठि जाइ छइ। जइमे महत्वपूर्ण प्रश्न अछि भक्ति कालक विकास प्रक्रियासँ सम्बन्धित। अर्थात् भक्तिकालक (साहित्यक भक्तिकाल)क विकास प्रक्रियाक अनुसार रीतिकाल अर्थात् शृंगारकाल आरो नीक हेबाक चाही छल से नहि भऽ ठीक विपरीत दिशामे परिवर्तित भऽ गेल। 

प्रस्तुत अछि रविशंकरक मनोविश्लेषण, कथाकारक शब्दमे यथावत- 
“विश्वविद्यालय स्तरक कार्यक्रम भेल, बेकती-विशेषक नै छल, तखन‍ किए ने बुझलौं? ..ने प्रश्नक जड़ि भेटै आ ने विचार आगू बढ़इ। मुदा तैयो बाढ़िक पलाड़ी जकाँ बहबे करइ। मन बहकलै, इन्दि‍रा अवासक जेकरे पक्का घर रहै छै हथि‍याक झटकीमे खसल घरक अनुदानो तेकरे भेटै छइ। सएह ने तँ भेल। की अहि‍ना भोजे-भातक शिक्षण संस्थान बनल रहत? धू:! अनेरे मनकेँ बौअबै छी। ठीके लोक बताह कहैए! एहने-एहने बतहपनी सोचने ने लोक बताह होइए! अनेरे हमरे किए एते सोग अछि। ‘जानए जअ आ जानए जत्ता।’ लसि‍गर होइ आकि खढ़हर से ओ जानए। हमहीं की बजितौं जे अनेरे माथ धुनै छी। बड़ बजितौं तँ यएह ने बजितौं जे साहि‍त्य जगतमे मध्यकालीन युग स्वर्णिम रहल। भक्ति‍मय साहि‍त्यक सृजन एते कहि‍यो ने भेल, मुदा भक्ति‍ साहि‍त्यक पछाइत‍ वैराग्य अबैत आकि श्रृंगार? एबाक चाहै छल ‘वैराग्य’ से नइ आबि ‘श्रृंगार’ आबि गेल! समैयो मुगले शासनक छल। विश्वविद्यालय सर्वोच्च शिक्षण संस्थान छी। जे मिथि‍लांचल ऋृषि-मुनिक बास स्थल अदौसँ रहल आकि ओतबे गनल-गूथल छैथ‍ जेतेकेँ दोरिका छाप भेट गेलैन! विश्वविद्यालयक दायि‍त्व बनैत अछि जे जिनकर रचना दि‍वारमे सड़ि गेलैन‍, पानिक चुबाटमे गलि गेलैन‍ ओहनो-ओहनो रचनाकारक खोज हुअए।” 

 ‘कनियाँ-पुतरा’
'कनियाँ-पुतरा' कथा 2013 इस्वीमे लिखल गेल अछि। श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक अपन ऐ कथाकेँ 'भकमोड़' पोथीमे सातम स्थानपर संग्रहित केने छैथ। 'भकमोड़'क पहिल संस्करण 2013 ई.मे श्रुति प्रकाशन, नई दिल्लीसँ प्रकाशित भेल अछि। 
‘कनियाँ-पुतरा’ कथाक माध्यमसँ कथाकार मुहेँ-मुँह बजैबला ओहन बातकेँ रेखाङ्कित केलैन अछि जेकरा बजैत-बजैत लोक धीरे-धीरे सही मानए लगैत अछि। आ पछाति मानि चलैनमे सेहो आनि लैत अछि। भलेँ ओ व्यवहारिक रूपमे गलतीए किए ने अछि। मुदा ओही चलैनकेँ जखन व्यवहारिक तौरपर लोक परीक्षण करैए तखन ओकर सत्यता स्वत: लोकक बीच आबिये जाइए। ओहने परम्परासँ अबैत विचारकेँ कथाकार प्रस्तुत कथामे रेखाङ्कित केलैन अछि। 
अपना ऐठामक लोकक बीच एहेन चलैन आबि रहल अछि, माने मान्यता अछि जे सन्तानमे जँ बेटा-बेटी दुनू संगे हुअए तँ पहिने बेटाक जन्म होइए पछाइत बेटीक। मुदा प्रस्तुत कथामे घटना ई अछि जे पहिने बेटीक जन्म भेल पछाइत बेटाक भेल।

 ‘वारन्ट’ 
वारन्ट कथामे दू गोट पात्र अछि- पहिल, हरिहर काका आ दोसर, कलक्टर साहैब। कथाक भाव-भूमि अनुपम अछि। मनुक्खक क्रियागत जीवन आ वैचारिक जीवन ऐ कथाक मूल भूमि छी। मनुक्खक जीवनमे बदलाव अबैत रहैत अछि। बदलावक प्रक्रिया सदैत चलायमान अछिए। जखन कोनहुँ मनुक्खक जीवनमे काजक रूप बदलैत अछि तँ ओकर वैचारिक रूप सेहो बदलैत अछि। गाममे जखन वैज्ञानिक दृष्टिसँ खेती-बारी नहि होइ छल, परम्परागत ढर्रानुसार खेती-बारीक काज चलै छल, तखन ओही ढर्रानुकूल किसानक विचारो आ काजो छेलैन। मुदा जखन वैज्ञानिक ढर्रा पकैड़ खेती-बारीक काज शुरू भेल तखन तही अनुसार किसानक विचारमे सेहो परिवर्तन हुअ लगलैन। प्रस्तुत कथामे अही चीजकेँ अर्थात् मनुक्खक क्रियागत जीवनक प्रभावसँ वैचारिक परिवर्तनकेँ चिह्नित कएल गेल अछि। 

 ‘दुष्टपन’
प्रस्तुत कथाक माध्यमसँ कथाकार समाजक ओइ मनोवृत्तिकेँ गहराइसँ पकैड़ कऽ अपन विचार प्रतिपादित केलैन अछि जइमे दुष्टपनक क्रिया-कलापसँ इष्टपन प्रभावित होइत रहल अछि। आइये नहि, आदिये-कालसँ समाजमे एक दिस जहिना इष्टपनक विचारधारा रहल अछि तहिना दोसर दिस दुष्टपनक विचारधारा सेहो रहल अछि। दुष्टपनक जगह इष्टपन केना स्थापित होएत, तइ दिशामे कथाकार जगदीश प्रसाद मण्डलजी गम्भीर चिन्तन-मननक संग महत्वपूर्ण परिवर्तनक विचार व्यक्त केलैन अछि। ओ कहै छैथ जे जाबत धरि मनुक्खक संस्कारमे परतंत्र पकड़ने रहत ताबत धरि स्वतंत्र विचार दबल रहत जइसँ स्वतंत्र रूपेँ कियो अपन जीवन-यापन नहियेँ कऽ पाओत। 

 ‘केकरो कियो ने’ 
प्रस्तुत कथाक माध्यमसँ कथाकार पुरुष-नारी अर्थात् पति-पत्नीक बीचक सम्बन्धकेँ रेखाङ्कित केलैन अछि। रेखाङ्कित ई केलैन अछि जे दुनूक अप्पन सम्बन्ध रहितहु आ तैसंग परिवारो आ समाजोक बीच एक-दोसराक बीच सम्बन्ध रहलाक बादो क्रियागत दूरी सेहो छैन्हे। 
कथामे एक पात्र कथाकार अपनहि छैथ। आ से मुख्य पात्रक रूपमे छैथ। मुकदमामे फँसल छैथ। पत्नी दबाव दइ छैन जे गामक जखन सात गोरे केसमे फँसल छैथ तखन अहींकेँ किए एतेक बेगरता अछि। 
मुदा ओ मने-मन सोचै छैथ जे मुकदमाक तारीखपर जँ नहि जाएब तखन तँ अनुपस्थिति दर्ज होएत जइसँ वारन्ट हएत, जब्ती-कुर्की हएत.! अन्तमे जहल तँ हमरा जाए पड़त, पत्नीकेँ थोड़े जाए पड़तैन। अर्द्धांगिनी रहितो हम भोगब आकि पत्नी भोगती? केकरो कियो ने छी, सभ अपन-अपन कर्मक भागी होइए।
कहि सकै छी, प्रस्तुत कथाक माध्यमसँ कथाकार सभसँ लगक सम्बन्धक बेवहारिक परिचय करबैत एक-दोसराक सम्बन्धक बीचक सीमा-रेखाकेँ रेखाङ्कित केलैन अछि।

 ‘हुसि गेलौं’ 
‘हुसि गेलौं’ कथामे कथाकार जीवनक वर्णन करैत कहलैन अछि जे जीवन जीवन छी। जीवनमे सम-विषम परिस्थिति अबैत रहैत अछि जइसँ जीवन प्रभावित होइत अछि। आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक अनेको रंगक परिवर्तन जीवनमे होइत अछि। जेहेन परिस्थिति जीवनमे अबैए तेहने विचार आ व्यवहार सेहो बदैलते अछि। अही बिम्बकेँ पकैड़ कथाकार प्रस्तुत कथामे जागेसरक चर्च केलैन अछि। जागेसर गरीबीक चलते अर्थात् आर्थिक मजबूरी भेलाक कारणेँ गामसँ दिल्ली गेला। किछु समयक पछाइत पुन: गाम आबि गामहिमे रहैक विचार मोनमे रोपि लेलैन। ऐ तरहेँ जागेसरक जीवनमे वैचारिक ओ बेवहारिक परिवर्तन भेल। जेकरा नीक ताना-बानाक संग कथाकार उक्त कथामे प्रस्तुत केलैन अछि।

 ‘केलवारी’ 
केलवारी कथाक माध्यमसँ केरा-खेतीक सन्दर्भमे कथाकार अपन अनुभवात्मक ज्ञानक साझा केलैन अछि। 
अपना ऐठाम माने मिथिलांचलमे परम्परासँ जे केराक खेती होइत आबि रहल अछि ओ ऐठामक तीनू मौसम (जाड़, गरमी, बरसात)क अनुकूल रहल अछि। मुदा ओइ किस्मक जगह नव किस्मक केरा आएल अर्थात् बौना किस्मक, जेकरा सिंगापुरी सेहो कहैत छिऐ, जइसँ मिथिलांचलमे जे पूर्वसँ अबैत केरा छल ओ उपैट गेल। मुदा ओ बौना किस्म, जे आन-आन देशक छल, अपन मिथिलांचलक माटि-पानिक अनुकूल नहि भेने विकास नहि कए सकल। जइसँ पुन: परम्परासँ अबैत जे अपन केरा छल, ओ अपन स्थान बना लेलक। उक्त विषयकेँ नीक विश्लेषण संग कथाकार ऐ कथामे प्रस्तुत केलैन अछि।  
प्रस्तुत कथोपकथनपर विचार कएल जाए-  (1) “जहिना देखबहक जे जामुनक मासमे लोक जामुनक बीआ रोपैए, आमक मासमे आम रौपैए, अनारसक मासमे अनारस रौपैए तहि‍ना अपना ऐठाम सरसठिक रौदीक पछाइत‍ जे उथल-पुथल भेल ताहिमे केरोक खेती आएल। बाहरी किस्‍मक केरा, एक-मौसमी। लोक जहपटार अपन पुरना करजान सभ उपटा-उपटा लगा लेलक। जे केरा अपना ऐठाम बहुत पहिनेसँ होइत चलि आबि रहल छल, ओ उपैट गेल। रोपाएल ओ जे समायानुकूल नै छल, अपनो गेल आ जेहो आएल सेहो गेल। जेकर फल भेल- मिथिलांचलक केदली वन महराइ गाबए लगल!” 
(2) “बौआ, केचुआ छोड़ैक लूरि जेकरा रहै छै वएह ऐ धरतीक सुख बुझैए। अपना ऐठाम केराक खेती अदौसँ होइत आबि रहल अछि। जेहने गुणगर तेहने पेटभर। मुदा ऐठाम तँ पौष्टिक वस्तुक उत्‍पादन होइ वा नै होइ, मुदा जन-जनकेँ पोष्टिक अहार भेट‍ रहल छइ। जइसँ स्‍वस्थ शरीरक निर्माण भऽ रहल छइ।”

 ‘सिकिया नेता’
ऐ कथामे चुनाव दिनक चर्च कएल गेल अछि। कथामे एक पात्र कथाकार स्वयं छैथ। ओ भोरे सुतिकऽ उठबे केलाह कि सुधनी दादीकेँ यत्र-कुत्र गरियबैत सुनलैन। मनमे शंका भेलैन जे अखन पुलिसक दौड़ गाममे चलि रहल अछि, जँ कहीं जा कऽ पुछिऐन आ तही काल पुलिसक गाड़ी चलि आएल तखन अनेरे लफड़ामे पड़ि जाएब। तेँ सुधनी दादी लग नहि पहुँच रूपनी भौजीकेँ पुछलखिन जे केकरा सुधनी दादी भोरे-भोर गरियबै छैथ। जैपर रूपनी भौजी बुझबैत बजली जे गाममे देखै नइ छिऐ जे केहेन-केहेन सिकिया नेता सभ भऽ गेल अछि। मौगीक सलवार-जम्फर जकॉं पैजामा-कुर्ता पहीरि लइए आ अँगने-अँगने लेटरीनक नाओंपर घरक नाओंपर लोक सभसँ रूपैआ ठकने घुरैए। सुधनी दादीकेँ दू हजार लेटरीनक नाअेंपर आ पाँच हजार घरक नाओंपर ठकि लेने छैन। वएह भोँट-दे कहैले आएल अछि तेकरे देखि दादी गरिया रहल छैन। तही काल रबिन्दर भाय बुथपर (भोँटक बुथपर) सँ घुमि कऽ अबै छला। साढ़े सात बजैत रहइ। कथाकार पुछलखिन जे भाय, भोँट खसेलौं? जैपर रविन्दर भाय कहलकैन, लोकक कतार देखि अखन नइ खसेलौं, छह बजे सॉंझमे खसाएब।
रविन्दर भाय राजनीतिसँ जुड़ल नहि छैथ मुदा समाजसँ जुड़ल रहने समाजक बीच जे पारिवारिक काज अछि तइमे हुनकर नीक योगदान रहै छैन। माने अपन परिवारक काज जकॉं अनकहु काजकेँ बुझि करै छैथ। जेकर उद्देश्य मनमे यएह छैन जे जखन समाजमे छी तखन समाजसँ मिलि कऽ ने रहैक अछि। 
सामाजिक दायित्वकेँ रेखांकित करैत कथाकार प्रस्तुत कथाकेँ गढ़लैन अछि।

 ‘अगुताइ भेल’ 
प्रस्तुत कथाकेँ कथाकार रघुनीबाबाक माध्यमसँ गढ़लैन अछि। कोनो-कोनो कार्य समय आ परिवेशकँ धियानमे नहि राखि कएलासँ जे गड़बड़ होइए तेकरे जिक्र केलैन अछि। परिवारो आ समाजोमे एहेन बहुतो कार्य अछि जेकर खगता अछि, मुदा ओइ अनुकूल जँ समय वा परिवेश नहि अछि तँ ओ कार्य असफल भइये जाइए। यएह रघुनीबाबाकेँ सेहो भेलैन। रघुनीबाबा माछ पोसैले छोट-छीन एकटा पोखैर खुनौलैन। मुदा पानिक अभावमे माछ नहि पोसि सकला। किएक तँ माछक लेल पोखैरमे बारहो मास पानि चाही, से नहि भेलैन। तेलबला दमकलसँ पानि महग भऽ जाइत छेलैन। अर्थात् जेते उपज (माछसँ लाभ) होइतैन तइसँ बेसी खर्च भऽ जाइत रहैन। समयकेँ आगू बढ़ने जखन गाममे बिजली आएल जइसँ पानिक सुविधा भेल तखन रघुनीबाबा अपने मुहेँ बजला- ‘अगुताइ भेल’।

 ‘अर्जुन रोग’ 
अर्जुन रोग शीर्षक कोनहु चिकित्सीय नाओं (मेडिकल नाम) नहि छी। ओ वैचारिक नाओं छी। महाभारतक प्रमुख पात्र पाण्डव वंशमे अर्जुन रहला अछि। जे कौरव-पाण्डवक बीचक लड़ाइमे प्रमुख भूमिका अदा केने छैथ। प्रस्तुत कथामे कथाकार अर्जुन सन योद्धाक रूपक चर्च केने छैथ। कथामे ओइ जीवनक दर्शन होइत अछि जे जीवन लाखो-रोग-वियाधिसँ घेराएल अछि। अर्थात् ई जे सामाजिक, आर्थिक, वौद्धिक इत्यादि सभ क्षेत्रमे जे मनुक्ख दबल-कुचलल अछि, पछुआएल अछि ओ केना ठाढ़ भऽ श्रेष्ठ मनुक्ख बनि सकैए, अही जीवन दर्शनकेँ कथाकार ‘अर्जुन रोग’क अर्थात् नीक बनैक रोग (इच्छा)क चर्च प्रस्तुत कथामे केलैन अछि। कथाकेँ पढ़िते ई बुझबामे आबि जाइत अछि जे अर्जुनक लड़ाइ जीवन सुधारैक प्रक्रिया छी। जेकरामे नीक बनैक इच्छा जागि जाइत अछि अर्थात् जे अर्जुन रोगसँ ग्रसित भऽ जाइत अछि ओ अपन जीवनकेँ परिवर्तित करैत अन्तिम सीमापर पहुँचिये जाइत अछि।

 ‘भौक’ 
प्रस्तुत कथाक माध्यमसँ कथाकार अन्धविश्वासक चर्च केलैन अछि। केना आजुक वैज्ञानिक युगमे अर्थात् एकैसम सदीमे अन्धविश्वास अछि तेकर जिक्र कथाकार केलैन अछि। 
आमक गाछी लगसँ कथा शुरू होइए। जेठ मासक दुपहरियाक टहटहौआ रौदमे दीनबन्धु काका एकटा भगत अर्थात् गोसाँइ खेलेनिहारक ओहिठामसँ आबि रहल छैथ। कथाकार आमक गाछीक मचानपर सुतल-सुतल गाछीक ओगरवाहि कऽ रहल छला, तैबीच दीनबन्धु काकाकेँ फाँड़ बन्हने, माथपर गमछा नेने अबैत देखलैन। दीनबन्धु काकाकेँ शोर पाड़ि कथाकार मचानपर बैसा पहिने ताड़क पंखासँ हौंकिकऽ ठंढा करै छैथ, पछाइत मन शान्त भेलापर पुछै छथिन जे एहेन समयमे कतएसँ अबै छी? 
दीनबन्धु काका अपन सभ वृतान्त सुनबैत कहलखिन जे पत्नी देवरिया गेल छेली। अर्थात् देवरियामे एकटा जनानाकेँ सपनौती भेल। सपनौती ई भेल जे जेकरा कोनौं दैहिक वा दैविक रोग भेल अछि ओकरा एक चुटकी माटिसँ सभ किछु अर्थात् रोग-वियाधि छुटि जाएत। ओहीठाम दीनबन्धु काकाक पत्नी गेल छेलखिन। लोकक भीड़मे कियो मोबाइल चोरा लेलकैन, तेकरे नाम उचारै-खातिर भगतक ओइठाम गेल छला। 
दीनबन्धु कक्काक बात सुनि कथाकारकेँ मनमे उठलैन- समय-समयपर अहिना अन्धविश्वासक हवा उठैत रहैए। समाजमे सभ तरहक लोक अछि। अन्धविश्वासक भौक बनौनिहार सेहो समाजेक बीचमे रहैबला लोक अछि। 
सम्पूर्ण कथाक ताना-बानासँ अन्धविश्वाससँ जकड़ल समाजकेँ चित्र बेस व्यापक रूपमे सोझा आएल अछि।

 ‘सिरमा’ 
ई कथा बाल साहित्यपर केन्द्रित ‘बाल गोपाल’ नामक कथा संग्रहमे संग्रहित अछि। उक्त पोथीमे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 14 गोट कथा संकलित छैन। सिरमा कथाक लेखन तिथि 31 मार्च 2014 अछि। ई कथा मात्र 757 शब्दमे लिखल अछि। 
सत्तैर बर्खक बाबा ‘जगदम्ब’ आ बारह बर्खक पोता ‘मुरारी’क बीचक ई कथा अछि। जगदम्ब शुद्ध समाजवादी सोच आ आधुनिक (वैज्ञानिक) बेवहारक लोक छैथ। ई अपना जीवनमे समय आ परिस्थितिकेँ देखैत अपनो लेल आ समाजो लेल बहुत किछु केलैन। सामाजिक विकासमे अपन विकासक मानसिकता जगदम्ब बाबाक जीवनकेँ काफी संघर्षशील बना देलकैन। समाजक बीच व्याप्त रूढ़ि ओ आडम्बरकेँ चिह्नित करब, नीक-बेजापर सदैत गौर करब, नीकक अनुसरण करैत अधलाकेँ विरोध करब, बेजाकेँ तियागब आदि जगदम्ब बाबाक जीवनक खास पहिचान रहलैन। बाबा अपना जीवनमे जनजागरणक लेल केतेको गोष्ठी-संगोष्ठी सेहो करैत रहला।  ओना, ऐ खातिर, माने जनजागरणक विरोधमे हिनका केतेको बेर जहल जाए पड़लैन। तथापि ई अपन कर्तव्य-पथपर वैज्ञानिक सोचक संग सदैत चलैत रहला। हिनक सम्पूर्ण जीवन क्रान्तिकारी पथक पथिक रूपमे रहलैन। कहि सकै छी, जगदम्ब बाबाक जीवन वैज्ञानिक सोच आ कान्तिकारी क्रिया-कलापक बीच मानवीय सम्वेदनासँ भरल रहलैन।
शान्ति निकेतनमे पढ़ैत 12 बर्खक मुरारी। मुरारी जखन पाँचे बर्खक छल तखने अपन पिताक संग बंगाल चलि गेल। सात बर्खक पछाइत गाम आएल अछि। बाबाक जीवनसँ अनभिज्ञ मुरारी मुदा सम्बन्ध तँ बाबा-पोताक बीचक छैन्हे।  ..मुरारी अपन बाबा लेल बंगालसँ एकटा सिरमा लऽ कऽ आएल अछि। बाबा लग आबि बाजल- “बाबा, पुरनाकेँ बदैल‍ दियौ, सभ किछु नवका अनलौं अछि।” 
जगदम्बक मन ठमैक गेलैन। मुदा तामस नहि उठलैन। अपन सिरमाक इतिहास सुनबए लगला। इतिहास सुनि मुरारीकेँ बुझि पड़लै जे अपन आनल सिरमा बाबाकेँ देब अनुचित होएत, किन्नहु नहि लेता। मुदा से भेल नहि। मुरारीक श्रद्धाक आगू जगदम्ब अभिभूत भऽ सदैव परिवर्तनकारी स्वभावक सुन्दर परिचय प्रस्तुत केलैन। 

 ‘बुलन्दी’ 
ऐ कथाकेँ दू गोट पात्रक माध्यमसँ कथाकार लिखलैन अछि। पहिल पात्र रूपचन काका आ दोसर पात्र कथाकार स्वयं छैथ। 
स्वस्थ्य-प्रसन्न रहि बुलन्दीसँ केना लोक जीब सकैए, यएह ऐ कथाक मूलमे अछि। रूपचन काका अपन बेवहारिक अनुभवकेँ गप-सप्पक माध्यमसँ कथाकारक संग साझा करै छैथ। 
रूपचन काका अप्पन जीवनक शुरूआत किसानी कार्यसँ कए किसानक रूपमे जीवन स्थापित केलैन। दुनियाँ दिस ताकब छोड़ि अपना दिस नजैर निखारलैन। ओना, कौलेजक जीवनमे रूपचन काका एते सुनिकऽ सीख नेने छला जे भूत-सँ-भविष्य धरि केना मन दौड़ैए। मुदा अनुकूल स्थान नहि भेटने विचारकेँ विचारेक पौतीमे सैंतिकऽ रखने रहला। 
जहिना कोनो घटना स्थलपर देखल घटना, महिनो-सालो बाद धक-दे मोन पड़ि जाइए तहिना रूपचन काकाकेँ अपन जीवनक दिशा धक-दे मोन पड़लैन। किसानियोँक तँ विराट रूप अछिए। तइमे अपने बसि ब्रजवासी जकाँ केना जीब, यएह मूल प्रश्न छी। रूपचन काका दरबज्जापर बैसल एकटा बाल्टीन आगूमे रखने रहैथ। जइ बाल्टीनमे दरबज्जाक चुबाठ-पानि टप-टप छतसँ खसैत रहइ। दरबज्जापर पहुँचते रूपचन काका बजला- “तूँ सभ ते नबका लोक भेलह। देहपर गमछा रखिते ने छह।” 
कहि, रूपचन काका एकटा गमछा देह पोछेले, माने पानि जे पड़ल रहए तेकरा पोछैले, देलैन। ..देह पोछि, गमछा राखि रूपचन काकाकेँ हियासए लगलौं। दू ढंगसँ हिसास करए लगलौं। पहिल जे रूपचन कक्काक प्रति अपन विचार केहेन अछि आ दोसर, गीता वा आध्यात्म सोच जकाँ आध्यात्म आ जीवनक सम्बन्ध रूपचन कक्काक केहेन छैन। तइ बीचमे रूपचन काका बजला- “चाह पीबह?”

‘अन्तिम आशा’ 
ई कथा ‘साहित्यकारक विवेक’ नामक पोथीमे माने कथा संग्रहमे नअम स्थानपर संग्रहित छैन। हराशंख तथा कृत्यानन्द काका नामक पात्रक माध्यमसँ कथा रचल गेल अछि।  
विकासक दौड़मे गामक किसानक टुटैत जिनगी, ठमकल किसानी कारोबार तथा पछुआइत खेती-पथारीक कथा ‘अन्तिम आशा’ कथामे आएल अछि। 
उपरोक्त कथासभक संक्षिप्त परिचयक आधारपर ‘कनियाँ-पुतरा’, ‘वारन्ट’, ‘दुष्टपन’, ‘केकरो कियो ने’, ‘हुसि गेलौं’, ‘अर्जुन रोग’ आ ‘सिरमा’ शीर्षक कथासभकेँ मनोविज्ञान आधारित कथानक अन्तर्गत राखि सकै छी, तहिना ‘बुलन्दी’ शीर्षक कथाकेँ जीवन जीबाक कला आधारित, ‘कनियाँ-पुतरा’, ‘केकरो कियो ने’ कथाकेँ पुरुष प्रश्न आधारित, ‘काजक मेहपन’, ‘केलवाड़ी’, ‘अगुताइ भेल’, ‘बुलन्दी’ आ ‘अन्तिम आशा’ केँ किसानी जीवन आधारित तथा ‘स्वरोजगार’, ‘सिकिया नेता’, ‘भौक’, ‘अन्तिम आशा’ ओ ‘वारन्ट’ केँ तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक-शैक्षिक तथा अन्धविश्वासक समस्या आधारित कथाक रूपमे देखि सकै छी।
- उमेश मण्डल



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