पंगु (उपन्यास) अनूदित
PANGU: Hindi translation by Rameshwer Prasad Mandal of Sahitya Akamemi awarded author Jagdish Prasad Mandal’s Maithili prominent novel ‘Pangu, Pallavi Parkashan, Berma/Nirmali, Bihar, 2022, ₹ 250
ISBN : 978-93-93135-17-9
© श्री जगदीश प्रसाद मण्डल
प्रथम संस्करण : 2022
मूल्य : ₹ 250 (दो सौ पचास) मात्र
प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन
तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली
जिला- सुपौल, बिहार : 847452
वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com
ई-मेल : pallavi.publication.nirmali@gmail.com
मोबाइल : 6200635563, 9931654742
मुद्रक : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल), पिन : 847452
आवरण सज्जा : श्रीमती पुनम मण्डल
फोण्ट सोर्स : https://fonts.google.com/,
https://github.com/virtualvinodh/aksharamukha-fonts
अपनी बात
आज मैं फूले नहीं समा रहा हूँ, क्योंकि एक नेक काम करने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मैं वर्षों से इस ऐतिहासिक मौका का इन्तजार कर रहा था कि काश! मुझे महान साहित्यकार एवार्ड वीर सामाजिक धरातल को विशुद्ध करने वाले मानवता के सच्चे प्रतिमूर्त्ति बेजोर रचनाकार आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मण्डल द्वारा रचित एवम् पुरस्कृत पोथियों का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने का पुण्य अवसर प्राप्त हो सके। इसी भावना के परिपेक्ष्य में मैंने साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कृत मैथिली में लोकप्रिय उपन्यास ‘पंगु’ का अनुवाद हिन्दी में किया है।
सज्जनों! वाल्मीकि कृत रामायण संस्कृत भाषा में लिखा गया है, जो भाषायिक कठोरता के कारण अधिक-से-अधिक पाठकों तक नहीं पहुँच सका, परन्तु जब गोस्वामी तुलसी दास जी ने उसे जन-भाषा, सुबोध-भाषा, सुग्राह्य-भाषा में ‘राम चरित मानस’ शीर्षक में लिखा, तो काफी लोकप्रिय हुआ, क्योंकि भाषा का क्षेत्र बढ़ने से पाठकों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई। वस्तुत: भाषा- स्थानान्तरण एक ऐसा उत्तल दर्पण है, जो दृष्टि-क्षेत्र को विस्तार करता है। मेरे ख्याल में उपयोगी कृतियों का अन्य दूसरी भाषाओं में अनुवाद किया जाय, जिससे सुधी पाठकों की संख्या में महत वृद्धि होगी और रचनाकारों की कृतियॉं अधिक सुवासित, चर्चित और लाभदायक होगी।
मैंने आदरणीय जगदीश बाबू को पढ़ा है। ये गुदरी के लाल हैं, मधुबनी के हीं नहीं मिथिला के मणि-रत्न हैं और साहित्य-नक्षत्र के ध्रुवतारा हैं, जो दिशा निर्देशित करता है। जगदीश बाबू भी आज यही कर रहे हैं। अहा! क्या लिखते हैं। क्या, दिशा निर्देशित करते हैं! मैं ऐसे समाज-सेवी अग्रदूत एवम् साहित्य-शिल्पी को शत्-शत् नमन करता हूँ।
मैं आशा करता हूँ कि मेरे द्वारा हिन्दी में अनूदित प्रसिद्ध एवं साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत उपन्यास ‘पंगु’ को पढ़कर सुधी पाठकगण एवम् सज्जनवृन्द लाभान्वित होंगे। मैं आपका सुधासम सुझाव और आशीर्वाद चाहता हूँ, ताकि मैं अधिक-से-अधिक कृतियों का अनुवाद कर सकूँ।
इस पुनीत कार्य के लिए मुझे प्रेरित करने वाले महान साहित्यकार आदरणीय श्री जगदीश प्रसाद मण्डल के प्रति, उत्साह बढ़ाने वाले डॉ उमेश मण्डल के प्रति, हिन्दी के मर्मज्ञ परम श्रद्धेय गुरुदेव रामजी प्रसाद मण्डल के प्रति, हिन्दी के ख्याति प्राप्त मंचीय सलाहकार प्रो. धीरेन्द्र कुमार के प्रति, परम सहयोगी प्रसिद्ध लेखक राजदेव मण्डल के प्रति, मनोबल बढ़ाने वाले प्रदीप पुष्प के प्रति, रामश्रेष्ठ दिवाना के प्रति, मनोज कुमार मण्डल के प्रति, नन्द विलास राय के प्रति, पल्लवी जैसे उदीयमान लेखिका की सक्रियता के प्रति, पूनम चाँद की भाँति आवरण सज्जा देने वाली पुनम मण्डल के प्रति, शिक्षक जगदीश मण्डल के प्रति एवम् मेरे प्रति सहानुभूति और सहयोग दर्शाने वाले सभी सलाहकारों के प्रति सादर आभार व्यक्त करता हूँ।
कोई भी पूर्ण नहीं होता है। त्रुटि के लिए क्षमा याचना।
- रामेश्वर प्रसाद मण्डल
मो. 9973541877
सुन्दर भवन, निर्मली
20 सितम्बर 2022
‘पंगु’क अनुवादक मादे
‘पंगु’ उपन्यासक अनुवाद रामेश्वर बाबू करता, चर्च सुनि मन में तृप्ति भेल। तृप्ति ई नइ भेल जे रामेश्वर बाबू, बिहारक प्रतिष्ठित भाषा माने खड़ी बोली हिन्दीकेँ सभ राज्यसँ नीक मानल गेल अछि, हिन्दीमे उजागर करता, तृप्ति ई भेल जे रामेश्वर बाबू हाइ स्कूलसँ सेवा निवृत्त शिक्षक छैथ, जिनकामे एहेन उत्साह अहू उमेरमे छैन। ओना, हुनकोसँ बेसी तृप्ति भेटैत, जँ मिडिल स्कूलक शिक्षक अनुवादक होइतैथ।
अपन समयक जे धुमसाही चलि रहल अछि, तइमे अनूदित ‘पंगु’ अखन नहि पढ़ि पेलौं अछि, मुदा जेते जल्दी विद्वज्जनक हाथ पोथी पड़त, ओते राय-विचारक तँ आशा अछिए किने।
अन्तमे, यएह कहब जे जहिना राहुलजी माने राहुल सांकृत्यायन, अपने पाठक बन्धुकेँ कहलैन जे ‘भाय, जहिना लिखैमे मेहनत हम केलौं, तहिना पढ़ैमे, सुधारिकऽ पढ़ैमे, सहयोग करू।’ अही आशाक संग...।
-जगदीश प्रसाद मण्डल
बेरमा
20 सितम्बर 2022
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