सेहन्ता सेहन्ते रहि गेल


 SEHANTA SEHANTE RAHI GEL 

Collection of Maithili Stories by Shri Jagdish Prasad Mandal  


ISBN: 978-93-93135-38-4

सर्वाधिकार: © लेखक (श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)  

पहिल संस्करण: 2023

दाम: 250/- (भा.रू.) 


प्रकाशक: पल्लवी प्रकाशन 

तुलसी भवन, जे.एल. नेहरू मार्ग, वार्ड नं.: 06, निर्मली

जिला- सुपौल, बिहार : 847452

मुद्रक: पल्लवी प्रकाशन (मानव आर्ट)


वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल: 6200635563; 9931654742 


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आवरण: श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल), बिहार : 847452

अक्षर संयोजन: डॉ. उमेश मण्डल 


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सेहन्ता सेहन्ते रहि गेल 

जेठ मासक दसराहा माने दसमी तिथिक शुक्र दिनक भिनसुरुका समय। चाहक प्रतीक्षामे निर्मल बाबा दलानक ओसारक चौकीपर बैसल अँगनमुहाँ देखि रहल छला। औझुका काजक बोझ माथकेँ दबने छेलैन। अप्पन गाछी-कलमक ताक-हेरक संग आइ समाजक उत्सव सेहो छीहे, तँए ओहूमे भाग लेबेक अछि। ‘भाग लेबेक अछि’क माने जिज्ञासा रहित नहि बुझब, अपनो जिज्ञासा छैन्हे जे समाजक बीच जे कोनो उत्सव अछि ओ सभक उत्सव छीहे, तँए अपनो उत्सव भेबे केलैन। ओना, निर्मल बाबाक मनमे दोसरो विचार जगि चुकल छेलैन ओ छेलैन जे किछु बर्खसँ, परिवेशमे बहुत बदलाव आएल अछि, लोको सभ केते आएल आ केते गेबो कएल तँए आजुक जे दृश्य अछि तेकरा ढंगसँ देखब अछि। 

ब्रह्मस्थान कहियौ कि डिहवारक स्थान आकि गाम-देवताक स्थान, जइमे आइ लोक घोड़ा चढ़ौत। अखनो आ किछु बरख पूर्वो तक परिवारक कुमार बच्चा, माने बिनु बिआहल बच्चा अपन माइक संग जाइ छल आ गाम-देवताक स्थानमे घोड़ा चढ़ेबो करै छल आ चढ़ैबतो अछि। चङेरामे माटिक घोड़ाकेँ साजि माए फूल-पानक संग ब्रह्मस्थान जाइ छैथ आ बच्चा हाथकेँ बेरा-बेरी सभ किछु दइ छथिन आ बच्चा ऐगला वाहन बनि अपन घोड़ाकेँ पैछला घोड़ाक आगूमे सजबै छैथ। ऐठाम एकटा बात आरो अछि, ओ अछि एक्के स्थानक तीन नाम। ब्रह्मस्थान, डिहवार स्थान आ गाम-देवताक स्थान। मुदा अखन से नहि, अखन बस एतबे जे घरसँ घोड़ा सजि केना ब्रह्मस्थान पहुँच रहल अछि, बस एतबे जिज्ञासा निर्मल बाबाक मनमे छैन। ईहो नइ मनमे छैन जे जैठाम माइक माथपर सजल घोड़ा कुमार बच्चाक हाथे चढ़ैए तैठाम परदेशी युवक-जहान आ गामक नवयुवकक सेहो संख्या बढ़ि गेल अछि तैसग घोड़ाक (चढ़ौआ घोड़ाक) सवारी सेहो बदैल रहल अछि। गमैया साइकिल तँ कम्मो-सम्म मुदा मोटर साइकिल आ इंजनबला चरिचकिया गाड़ीक संख्या बढ़िये गेल अछि। जइपर सजि कुम्हारक बनौल माटिक घोड़ा ब्रह्मस्थान पहुँच रहल अछि। से अप्पन आँखिये निर्मल बाबाकेँ देखैक छैन। मुदा चाह पीने बिना दरबज्जापर सँ उठबोकेँ नीक नइ बुझि रहला अछि। तहूमे जीवन भरि पत्नीक बुझल वृत्ति छैन्हे, तेकरो छोड़ब उचित नहि बुझि रहला अछि। 

पत्नीक वृत्तिक माने एतबे अछि जे सुलछमी दादी, जिनकर उमेर साठि बर्खसँ ऊपर भऽ गेल छैन, बेटी जखन चेष्टगर भेलैन तखन भनसाघरक आधा काजक भार सुमझा देलखिन आ जखन पुतोहु एलैन तखन सोल्होअना भनसाघरक भार बेटी-पुतोहुकेँ सुमझा देलैन, मुदा पतिव्रत कहियौ आकि पत्नी धर्म, ऐठाम पतिव्रतक माने भनसियाक व्रत बुझू, से अखनो सुलछमी दादी अपने हाथे निमाहै छैथ। ओ व्रत छी जे पतिकेँ भिनसुरुका पहिल चाह कहियौ आकि दिनक पहिल बेरक चाह अपनेसँ बनाकऽ पिआएब। कोनो सार्वजनिक स्थल हुअ आकि बेकतीगत जीवन, जीवनक पहिल कदमक महत्व अछिए। 

मने-मन निर्मल बाबा अप्पन गामक चौबट्टीकेँ ठिकिया मन असथिर केलैन। समाज दिससँ ससैर निर्मल बाबाक मन अप्पन जीवन दिस एलैन। अबिते जहिना खेतमे धान फुटैए तहिना निर्मल बाबाक मनक विचार फुटलैन। विचार फुटिते धानक लावा जहिना खापैड़सँ चनचना कुदैए तहिना निर्मल बाबाक मुहसँ निकललैन- 

“सिहन्ता-सिहन्ते रहि गेल.!” 

ओना, असगरेमे बैसल निर्मल बाबक मुहसँ निकललैन मुदा तैबीच सुलछमी दादी चाह नेने लगमे पहुँच गेली, तँए ओहो सुनलैन। सुनिते सुलछमी दादीक मनमे भेलैन जे भऽ सकैए हमरा देखिकऽ पति बाजल होथि, तखन जँ दोहराकऽ नइ पुछऐन सेहो केहेन हएत, मुदा मनमे ईहो होनि जे जाबे मुँहक आहार मुँहमे नइ लेता ताबे किछु पुछब आकि कहब उचित नइ हएत। किए तँ अपने कानक सुनलो आ मनक पढ़लो एकटा कथा हुनका मनमे नचलैन। युग-युगक युगकर्त्ताक खेल चलबो कएल अछि आ चलितो तँ आबिये रहल अछि। कथा अछि, एकटा गामकेँ चौबगलीक पाँच कोसक गामक लोक कहए लगल जे भोरे-भोर जे ओइ गामक नाओं लेत ओकरा भरि दिन अन्नक भोग नइ हेतइ। किए कहए लगलै से अखन नहि, अखन बस एतबे जे चारूकातक लोक कहितो आबि रहल अछि आ कहबो केलक। गाममे एकटा वैज्ञानिक भेला। हुनको कानमे एहेन प्रश्न देल गेलैन। प्रश्न एला पछाइत वैज्ञानिकजी पहिल दृष्टि सँ जखन तजबीज केलैन तँ हुनका सोल्हन्नी तखन अनसोहाँत बुझि पड़लैन। मुदा जखन समाजक विचारक परम्परा दिस तजबीज केलैन आ परम्परा रोकैक शक्ति अपनामे अँटकारलैन तखन बुझि पड़लैन जे जेतबो मान-सम्मान पेलौं अछि सेहो चलि जाएत.! असमंजसमे पड़ल वैज्ञानिकजी जी-जाँति कहियौ आकि जी-तोड़ि, बजला- 

“एहेन विचार सोल्होअना सत्य अछि।” 

बजैक क्रममे वैज्ञानिकजी बाजि गेला, आब ओकरा प्रयोगशालामे प्रयोग करि कऽ निर्णय कएल जाएत। गामक जेते गाछी-कलम अछि तइमे सभसँ बेसी कोन गाछपर चिड़ै रहैए। किछु किस्मक गाछ गाम-घरमे अखनो ओहन अछिए जैपर चिड़ै बेसी बइसैए। ओही गाछक नियुक्ति भेल। गामक लोकक बीच ने फूसि हएत मुदा अनगौंआँक समर्थन भेटने तँ फुसियो सत्य हेबे करैए। गामक नवयुवक चूड़ा-दही-चिन्नी-केरा इत्यादिक ओहन भोजनक ओरियान केलैन जेहेन अनगौंआँ अतिथि-अभ्यागतकेँ भोजन करौल जाइए। 

तेसर दिन भने एकटा अनगौंआँ अपना गामसँ आन गाम जाइ छला। बीचक गाममे प्रयोगशाला बनल अछि। नवयुवक सभ हुनका पकैड़ गाछक निच्चाँ ठाँउ कऽ नारक बीड़ीपर बैसा भोजनक सभ विन्यास परसलैन। भोजन करैसँ पहिने युवक सभ कहलकैन- 

“भोजनक सब विन्यास आगूमे अछि, आब ओइ गामक नाम लइमे माने जइ गामक नाम लेलासँ अन्नक भोग नइ होइए, कोनो हर्ज नइ ने?” 

अनगौंआँ बजला- 

“जाबे मुँहमे अन्न नइ लेब ताबे तक नाम नइ लेब। तखनो तक कोनो आशा नहि।” 

युवक सभ बलजोरी गट्टा पकैड़ कहलकैन- 

“आब बाजू।” 

जखने अनगौंआँ अभ्यागत ओइ गामक नाम लइ गेला, जइ गामक नाम लेलासँ अन्नक भोग नइ होइए कि तखने गाछक ऊपरसँ एकटा कौआ चट कऽ देलक। चट करिते अनगौंआँ अभ्यागत बजला- 

“देखलिऐ.! आब अहाँ सभ भरि दिन भूखल राखब किने।” 

चारि-पाँच घोंट चाह जखन निर्मल बाबा पीलैन तखन सुलछमी दादी बजली- 

“की बजलिऐ जे सिहन्ता सिहन्ते रहि गेल?” 

चाह अप्पन रंग निर्मल बाबाकेँ पेटसँ देखबए लगलैन जइसँ मन फुहराम जकाँ भइये गेल रहैन। निष्कपट रूपमे बजला- 

“सिहन्तासँ रोपल दूटा आमक गाछ अछि। भरिसक अहूँकेँ मोने हएत जे छठम साल पूसाक किसान मेलासँ अनलौं।” 

एक तँ ओहुना पत्नीमे एहेन अभ्यास बनियेँ जाइए जे बिनु विचारनौं ‘हँ-मे-हँ’ मिला दइते छैथ, तहिना सुलछमी दादी हूँहकारी भरैत बजली- 

“हँ से तँ अननहि रही।” 

कोनो घटनाक एक्को अंश भेटने लोक काल्पनिक घटना गढ़िये लइए, तहूमे जैठाम सनेस रहत तैठाम तँ आरो मजगूतीक संग गढ़ल जाएत। निर्मल बाबा बजला- 

“ओहीठाम सँ ने दूटा आमक गाछ अनने रही आ कहने रही जे साल भरिक पछाइत जखन गाछ फड़ए लगत तखन बारहो मास आमो आ आमक चटनी सेहो खाइत रहब।” 

आमक अँचारक चर्च ऐ दुआरे नइ केलौं जे बीस-बीस बर्खक आमक अँचार योगनी दादी-काकी सभ घरमे रखनौं रहै छैथ आ साले-साल बनैबतो छथिए। जहिना अँचार तहिना घीबोक अछि, चालीस-पचास बर्खक पुरान घी भेटिते अछि। खाएर से अखन नहि।..सुलछमी दादी बजली- 

“हँ, तेकर की?” 

पत्नीक प्रश्न सुनि निर्मल बाबाकेँ परबा-पौरुकी जकाँ दम घूटए लगलैन। दम ई घूटए लगलैन जे अप्पन हारल दाउ बाजी कि नइ बाजी। निर्मल बाबा ओहन अखड़ाहा परक पहलवान छैथ नहि जे बुझि पौता जे नीको अधला होइए आ अधलो नीक होइए। ई तँ मनक विचार कहियौ कि शब्दक खेल कहियौ, से छी। सभ जनिते छी जे तिलकोर आ कुरली  एक्के वंशक लत्तीनुमा गाछ छी। जहिना तिलकोरक तहिना कुरलीक लत्तीक जड़ि उज्जर होइए आ तहिना लत्तीक बढ़वारियो दुनूक एक्के रंग अछि आ जहिना पत्ताक रंग-रूप, आकार-प्रकार एकरंग अछि तहिना फूलो-फड़क अछिए। मुदा एकटाक पात खाएल जाइए आ दोसराक फड़। कहब जे एना किए अछि, से तँ ओइ लत्तीकेँ पुछियौ जे तोहर फड़ मीठ आ पात तीत किए होइ छह आ दोसराक पाते किए मीठ होइए आ फड़ तीत। 

मुदा निर्मल बाबाक मनमे जे हारल सन बुझि पड़ि रहल छैन तेकरा काजक डोरिसँ बान्हि बजला- 

“जड़ियेसँ कहि दइ छी, अहाँकेँ अखन तक सभ बात कहबो ने केलौं आ जे कहलौं से मनो हएत कि नहि।” 

भाय, जहिना पत्नीक विचार सुनैले पतिकेँ आ पतिक विचार सुनैले पत्नीकेँ, सभक मनमे जिज्ञासा होइते छैन तहिना सुलछमी दादीकेँ सेहो भेलैन। बजली- 

“कनी सेरियाकऽ बाजब, ई नहि जे ‘नख-शिख वर्णन’ नहि कए ऊपरे-झापड़ बाजि, माने शिखे-नखक वर्णन कए पछाइत पुइछ दी जे नीक जकाँ बुझलौं कि नहि?” 

पत्नीक विचार सुनि निर्मल बाबाक मनमे पाथरक अमृत रस जकाँ माने शिलाजीत जकाँ सुअदगर विचारसँ भेँट भेलैन। शिलाजीतक रस जे पानियेँ जकाँ अछि तँ की ओ मक्खनक फटौन-पानि थोड़े हएत। हीय खोलि निर्मल बाबा बजला- “तीन तरहक बैसार पूसाक किसान मेलामे भेल छल, एकटामे अन्नक चर्च चलल, दोसरमे तीमन-तरकारीक आ तेसरमे फल-फलहरीक। अहूँ जनिते छी जे अपने फल-फलहरीसँ विशेष सिनेह अछि आ ओइसँ कम सिनेह तीमन-तरकारीसँ आ तहूसँ कम अन्न-पानिसँ अछि।” 

सुलछमी दादीकेँ निर्मल बाबाक विचार सुनैमे नीक लगलैन। नीक किए लगलैन से तँ ओ अपने बुझती मुदा तेसर माने आन तँ यएह ने बुझत जे जीवनमे कहियो सुलछमी दादीकेँ फल-फलहरी वा तीमने-तरकारी वा अन्ने-पानिक दुख नइ होइ छैन, तँए हुनकर मन सदिकाल अरबा चाउरक बसिया भात जकाँ फरहर रहबे करै छैन, सुलछमी दादी बिहुँसैत बजली- 

“अहीं पेब ने सब किछुसँ सम्पन्न परिवार अछि।” 

एक तँ अप्पन जीवनक चोट खाएल निर्मल बाबाक मन रहबे करैन, तँए होनि जे जोर-जोरसँ बाजी जे सपना सपने रहि गेल, मुदा रहैथ तँ दुइये गोरे। दू गोरेमे लोक कनफुसकियोसँ काज चला लइए, तैठाम जोरसँ बजैक कोन खगता अछि। कमो-जोरसँ लोक सत्य बात बजैए आ सोझा-सोझी जोरोसँ बजिते अछि। 

जहिना कल्पनाकेँ थुथुनो नमगर होइए आ नाङैर सेहो नमगरे होइए तहिना सपनाक सेहो दुनू नमगर-चौड़गर होइते अछि। निर्मल बाबा बजला- 

“अहाँ एतबेमे परिवारकेँ सम्पन्न बुझै छी। जेना अपने सुनलौं तँ सुनिकऽ पाँच साए रूपैआमे दूटा बरहमसिया आमक गाछ कीनिकऽ आनि रोपिकऽ सेवा केलौं आ आइ जेठक दसराहा छी, जँ एकोटा आम पाँच बर्खक बीच भोग भेल रहैत तँ संतोष होइत। ओ सम्पन्नता तँ परिवारमे नहियेँ आएल।” 

ओना बजैक क्रममे निर्मल बाबा बाजि गेला मुदा पछाइत अपने मोन पड़लैन जे भूगोलक दृष्टिसँ खेतीक काज ठानब उचित छल, मुदा से नहि भेल। आब तँ यएह ने उचित जे आजुक भौगोलिक परिवेशकेँ देखैत क्रियाशील होइ। ओना, जीबठगर लोक पाथरोपर दुभि जनमैबते छैथ आ भविष्यमे सेहो जनमेबे करता। 

संयोग बनल, तहीकालमे रास्ता धेने अपने झंझारपुर जाइत रही कि निर्मल बाबा देखलैन। देखिते दरबज्जेपर सँ शोर पाड़ैत बजला- 

“रमाकान्त, कनी सुनि लएह तखन जइहह।” 

ओना, रही अपने अगुताइमे मुदा निर्मल बाबाकेँ सभ दिनसँ श्रेष्ठ बुझैत आबि रहल छिऐन तँए ठाढे-ठाढ़ सुनैक विचार मनमे रोपि लगमे पहुँचते बजलौं- 

“की कहै छी बाबा?” 

जेना पाशापर माने जीवनक पाशापर निर्मल बाबा हारि रहल छला तहिना मन तीताएल छेलैन। मुदा मनमे एते तँ छैन्हे जे केकरा लग केहेन शब्द केहेन भावमे बाजी। बजला- 

“रमाकान्त, मरब की जीब तेकर कोनो ठेकान नहि अछि, अप्पन जीवनक घटल घटना एकटा अछि से पहिने सुनि लएह, पछाइत आगू बढ़िहह।” 

निर्मल बाबाक विचार सुनि अपनो मनमे नव जिज्ञासा जगल जे जीवन केकरो किए ने होइ मुदा जीवन तँ जीवन छी। तहूमे मनुक्खक जीवनक घटना छी, कहियो ने कहियो खगता हेबे करत। बजलौं- 

“बाबा, बेसी आहे-माहेमे नइ कहियौ, कनी अगुताएल छी। मुदा अगुताइमे एहनो विचार नइ छोड़ि देबै जइसँ विचारे घवाह, घवाह माने अधबुझू, भऽ जाए।” 

अप्पन मनक सभ बात बजैक जगह पेब निर्मल बाबा बजला- 

“रमाकान्त, तोरासँ परोछोमे पत्नीकेँ किछु बात कहि देने छिऐन, मुदा ओ पारिवारिक भेल। जड़ियेसँ कहि दइ छिअ।” 

कोनो घटना वा काजकेँ जड़िसँ छीप धरि सुनिकऽ गुनबे ने बुधिक (ज्ञानक) गुनब भेल। मने-मन मनकेँ ब्लैक बोर्ड जकाँ साफ करैत बजलौं- 

“कहियौ?” 

निर्मल बाबा बजला- 

“तोहूँ देखै छह रमाकान्त जे अनका जकाँ मनमे अखनो माने साठि बर्खक उमेर बितला पछातियो, मनमे नइ आएल अछि जे आब जे कोनो फल-फलहरीक गाछ रोपब, तँ अपनो भोग हएत कि नहि, तँए रोपबे ने करब। शुरूहेसँ सभ दिन मनमे एहेन धारणा बनले अछि जे सभ दिन किछु-ने-किछु नव लगाबी। तँए पाँच बरख पूर्व जखन फल-फलहरी भोजनक गुण बुझलौं तखन ठिकियाकऽ किसान मेलामे पूसा पहुँचलौं।” 

ओना, पूसाक किसान मेलामे भाग लेबाक इच्छा अपनो मनमे केते दिनसँ अछि मुदा कुसंयोग एहेन होइत रहल जे अखन तक नहियेँ जा भेल अछि। बजलौं- 

“मेलामे की सभ देखलिऐ, बाबा?” 

निर्मल बाबा निष्कपट भावमे बजला- 

“देखै-सुनैक की कोनो ठेकान रहल, बहुत लोको देखलिऐ आ खेती-वारीक बहुत गाछ-बिरीछ, बीआ-बाइल सेहो देखलिऐ मुदा से सभ कथीले। अपने दूटा बरहमसिया आमक गाछ कीनलौं। मन सपनाएले छल जे बारहो मास जखन आम सन फल भेटत तखन जीवनमे खगते की रहि जाएत।” 

आगूक बात बुझल रहैत तखने ने से तँ छल नहि, तँए बजलौं- 

“अहाँ तँ बाबा कमाल कऽ देलिऐ। तेहेन ठिकिया कऽ गोटी चाललौं जे एक्के गोटीमे पार भऽ जाएब।” 

अपना जनैत नीके बात बाजल छेलौं मुदा निर्मल बाबाकेँ नीक नइ लगलैन। बजला- 

“की गोटी चालब, सभ पानिमे चलि गेल।” 

बजलौं- 

“से केना बाबा?” 

निर्मल बाबा बजला- 

“तोहूँ बजार जाइक धड़फड़ीमे छह आ अपनो बजैमे संकोच होइए, एतबे बुझह जे आइ जेठक दसराहा छी, ओना लोक बरिसाइते दिनसँ आम खाएब शुरू करै छैथ, मुदा अपना पाँच बरख पूर्वक सिहन्ता अखनो सिहिन्ते बनल रहि गेल अछि।” 

बजा गेल- 

“से केना बाबा?” 

निर्मल बाबा बजला- 

“निचेनमे दोसर दिन जड़िसँ छीप धरि सबटा सुना देबह।” 

अकछाइत निर्मल बाबाकेँ देखि बजलौं- 

“अखन जाइ छी बाबा, मुदा सुनब बाँकी रहल।”

 

शब्द संख्या : 2013, तिथि : 06 मार्च 2023


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