हमर मीठ बैना

 

हमर मीठ बैना

गत किछु बर्खसँ मैथिलीमे कवयित्रीक गणनामे अपेक्षित वृद्धि भऽ रहल अछि, जे भाषा आ साहित्य दुनू दृष्टिसँ प्रासंगिक आ अनिवार्य मानल जाए। मायक बिनु मातृभाषा कोना? जाहि गतिसँ मैथिलीमे कविताक सर्जना बढ़ि रहल ओहि गतिसँ भाषाक अस्तित्वक दिशामे सभ्यक विमर्श नहि भऽ रहल अछि। नवका पिरही विविध कारणेँ जन्महिसँ मातृभाषा विमुख छथि और गाममे शिक्षा ग्रहण केलाक बादो हुनक प्रवासी भेल माए-बाप अपन सन्तानक संग मैथिली बजबामे अशोकर्य कऽ रहलाहें। एहि परिस्थितिमे जनगणनामे मैथिली लिखाऊ सँ बेसी आवश्यक छैक बाल-बच्चाकेँ मैथिली बजाऊ, एहि विषयक विमर्श घरसँ गाम नगर धरि कएल जाए। 

मैथिली भाषा संरक्षण आओर संवर्धनक संग समाजक बहुत रास समस्याकेँ देखार करैत श्रीमती नूतन झा रचित मुक्तक काव्य संकलन ‘हमर मीठ बैना’ सुधि पाठकक सोझाँ विमर्शक लेल प्रस्तुत अछि। नूतन झा मैथिली साहित्यक नव कवयित्री छथि। सरल आ सहज शब्दमे विषय भावकेँ शिल्पसँ बोरि विमर्श धरि रखबामे प्रयासरत छथि। नव कविता अकविताक दिसि बढ़ि रहल। छन्दमुक्त कवितामे भाव सहेजब सरल होइत छैक। एहि परिस्थितिमे छंदीय कविता लिखनिहार/ लिखनिहारि कवि/कवयित्रीक संख्या कम भऽ रहल अछि। छंदीय प्रवाहकेँ विषयमे समादृत करैत नूतन झा अपन आशुत्वसँ भावकेँ गहि कऽ पकड़बामे समर्थ छथि। 

शीर्षक कविता ‘हमर मीठ बैना’ भावक महत्त देखा रहल छैक। कथाकथित नामधारी लोकनि अपन परिवारक धीया-पूताक संग मातृभाषा नहि बजैत छथि। मिथिलाक शिखर समाजमे पितृभाषा हिन्दी परिवारक बीच भरिगर भऽ गेल अछि। मैथिली लोक साहित्यक श्रष्टा दीन, दुखी, दलित, पिछड़ल परिवार सेहो शिष्ट लोकक देखांऊस करैत मैथिलीकेँ घऽरसँ दूर कऽ रहल छथि। मंचपर हम सभ कहैत छी जे मैथिली संसारक सभसँ मीठ भाषा थिक। ई गप्प हम की विश्वक चर्चित व्यक्तिमे सँ एक, ‘यहूदी मेनुहिन’ सेहो कहने छल। मात्र शब्दसँ एकर बड़ाइ केलासँ किछु नहि हएत। मैथिली भाषाकेँ मैथिली/ मैथिलानी ओना कट्टर भऽ कऽ आत्मसात् करथु जेना द्रविड़, गुजराती, बंगाली, असमिया आदि अप्पन भाषाक संग करैत छथि। इएह सोचि कऽ नूतनजी हमर मीठ वयना लिखैत छथि। साहित्यक श्रीवृद्धिमे एहि पोथीक केहेन योगदान हएत ओ तँ सुधि साहित्यकार आ समीक्षक लोकनिपर निर्भर करैत छनि, मुदा कवयित्री तँ आत्मासँ लिखैत छथि- 

“मधुर मैथिली भाषा 

जनक नन्दिनी आशा 

अपन ठाम गामक 

छै माटिक अभिलाषा 

महींसो बुझै छै 

हे कुकुरो सुनै छै 

ओकरा दिशि नै ताकै 

जे मैथिली नै बाजै छै।”

जनमानस केर महाकवि गोस्वामी तुलसीदासक प्रति पुष्पांजलि अर्पित करैत कवयित्री लिखैत छथि- 

“आदर्श आ संदेश परिपूरित 

उदात्त कल्पना केर महाकवि 

कविता कए कविवर नहि लसय 

कविता लसय तुलसी वा छवि..।” 

अनचोकेमे हिनक आशुत्व अलंकार शास्त्रकेँ सहज स्पर्शन करैत बुझना जाइत अछि। काव्यमे एहेन प्रवाह आशुत्वक कारणेँ होइते रहल अछि। सीताकेँ शक्ति मानि पूजनिहारिन कवयित्री नारी विमर्शकेँ अपन लेखनीमे गहिकऽ धएने छथि। वातावरणक ताप नित-नित बढ़ि रहल अछि। एहेन स्थितिमे ऋतुराज वसंतक आगम मात्र औपचारिक भऽ गेल छैक, तेँ कवयित्री टीस भरल वेदना गीत गबैत वसंतकेँ दूर रहबाक निवेदन करैत छथि- 

“मज्जरि गुज्जरि झड़ि रहलै हे 

कोइली नोर चुआबै 

लुप्त भऽ रहल कौआ मैना 

टिटही टर्र टर्र गाबै 

फूल पात मूर्छित भऽ झखरै 

दुःख मे आदि अनंत 

कंत पंत सभ आकुल भेलथि 

दूरे रहथु वसन्त।” 

मैथिली भाषा संरक्षण ओ संवर्धनक लेल संस्था सभ मंचपर क्रियाशील छथि, मुदा यथार्थ स्थिति भ्रम उत्पन्न करैत अछि। प्रवास आ अधिवासक गप्प कोन आब तऽ मिथिलाक भूगोलमे स्थिति छोट-छोट नगर आ चर्चित गाम सभक शिष्ट लोकनिक भाषा मैथिली घऽर सँ सेहो समेटल जा रहल छैक- 

“घऽर'मे हिन्दीक बाय 

एम्हर अबियौ जखन कहलियनि 

हँसि हँसि भगलथि दाइ

झट दऽ अप्पन पितासँ कहलथि 

सुनिये मम्मी की बोली 

फिर ठेठी का भूत सवार है 

कैसे समझूँ इसकी बोली 

आब अहीं सभ हमरा कहियौ 

की दोषी छथि माय 

बापे जखन सिखाबै छथि हे 

ओके टाटा बाय..।”

भारतवर्षक अपन संस्कृति बहुत समृद्ध रहल अछि, मुदा प्रवृतिमे दोसरक देंखाउस एक मूल संस्कृतिक विकासमे बाधा सेहो उत्पन्न करैत छैक। आनक नीक कृत्यकेँ अपन घरमे आनब अधलाह नहि परंच अपन परम्पराक नीक तत्वक अतिक्रमण सेहो नहि कएल जाइ। कवयित्री ‘अप्पन बाड़ीक पटुआ तीत’ शीर्षक कवितामे अपन मोनक आहिकेँ खुलिकऽ लिखैत छथि- 

“वरक माँथपर पगड़ी शोभनि 

समधिक माँथ सुसज्जित पाग

गाम गामके एक्के ढंग अछि 

दोष ककर मिथिलाक अभाग. 

सबहक नीक जगतभरि पसरय 

के कहतै ई गप नहि साँच 

मुदा ध्यान रखियौ कखनो 

नै निज परिचय के लागै आँच..।” 

पंथ विचारधारा थिक जकरा कोनो स्वरूपमे माननाइ वयस्क व्यक्ति केर मौलिक अधिकार होइत छैक। पंथ ककरो पर थोपल नहि जा सकैत छैक। एकर विपरीत धर्म मानवमूल्य थिक जे सदति सदविचारक संग सबहक हृदयमे प्राय: समान रूपेँ रहैत छैक। कवयित्री पंथ आ धर्मक बीचक भेदकेँ छन्द स्वरूपमे स्पष्ट व्याख्या करबामे सिद्धहस्त बुझाइत छथि- 

“द्वेष दम्भ पाखण्ड चोरि 

हिंसाके मानि कुकर्म 

नित्य सत्यके बाट चलै जे 

वएह बचाबै धर्म 

पथ अछि पंथक दिशा सदतिसँ 

सदाचारके मूल 

कोनो पंथ केर ग्रन्थ कहै नहि 

रोपू बाटपर शूल।” 

कवयित्री अपन लिपि, राज्य आ साहित्यक पक्षधर छथि मुदा कहैत छथि जे पहिने अप्पन भाषा बचाऊ। मैथिली ककर मातृभाषा आ एहि भाषाक कर्तव्य पुत्र के छथि एहि सभकेँ पढ़बा आ गुनबाक लेल सभटा रचना पढ़ब अत्यन्त अनिवार्य अछि। बाढ़ि, काटर प्रथा, जाति परजाति, नारी सशक्तीकरण, प्रकृति संग बरखा, पर्यावरण संरक्षण, नशामुक्ति, उग्रवाद सन बहुत रास गम्भीर समस्यापर कवयित्री काव्यात्मक विमर्श रखैत छथि। हिनक आंजुरमे मिथिलाक गुमानक फूल सेहो छनि जे अपन समर्पित साधक/साधिकाक प्रति आत्मिक श्रद्धाक संग-संग अर्पण आ तर्पणक लेल रखने छथि। हिनक खोंइछमे संस्कार गीतक चाउर संग सुवासित कुमकुम सेहो छनि। संस्कारगीतक बिनु संस्कार कोना? कन्या जन्मपर माएक सिनेह सशंकित रहैत छनि लेकिन कवयित्रीकेँ अपन परिवारक ऊपर भरोस छनि तेँ माए बनि कऽ मोनक गप्प खुलि कऽ कहैत छथि। 

हमरा जनैत वर्तमान पिरहीक क्रियाशील कवयित्री सभक रचनाक बीच ई पुस्तक प्रतिनिधि काव्य संग्रह जकाँ अपन स्थान निश्चित करत। 

देखल जाए, पढ़ल जाए आ गुनल जाए..। शेष अशेष विद्वान समीक्षक लोकनिक लेखनीक लेल...। 

आभार

शिव कुमार झा टिल्लू


HAMAR MEETH BAINA (हमर मीठ बैना) 

Anthology of Maithili Verse by Smt. Nutan Jha

ISBN: 978-93-93135-34-6 

दाम: 151/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्रीमती नूतन झा 

पहिल संस्करण : 2022 

प्रकाशक: झारखण्ड मैथिली साहित्य मंच,

97/2/2 रोड नं.: 3, बागबेड़ा कॉलोनी, जमशेदपुर

मुद्रण: पल्लवी प्रकाशन 

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं.: 06, निर्मली 

जिला- सुपौल, बिहार : 847452 

वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल: 6200635563; 9931654742 

फोण्ट सोर्स: https://fonts.google.com/, 

https://github.com/virtualvinodh/aksharamukha-fonts

आवरण चित्र: श्री दुर्गेश मण्डल 

एहि पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। कॉपीराइट © (श्रीमती नूतन झा) धारकक लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवं रिकॉडिंग सहित इलेक्‍ट्रॉनिक अथवा यांत्रि‍क, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि।




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