रहै जोकर परिवार : जगदीश प्रसाद मण्डल



रहै जोकर परिवार

बैशाख मास। भोरे-भोर रघुनी भाय पहुँचला। अपनो सुति कऽ उठले रही। रघुनी भायकेँ देखिते बजलौं-

भाय साहैब, भोरे-भोर किमहर सवारी निकलल अछि?”

रघुनी भाय बजला-

राधे श्याम, तोरेसँ भेँट करए एलौं हेन..!”

काल्हि साँझोमे रघुनी भाय भेटल छला, मुदा किछु कहलैन नहि तँए मनमे तारतम्य हुअ लगल जे जँ कोनो तेहेन काज रहितैन तँ साँझेमे कहने रहितैथ मुदा साँझमे किछु कहलैन नहि आ रातिमे कोन एहेन बात भऽ गेलैन जे भोरे-भोर आबि गेला हेन! बजलौं-

किए?”

रघुनी भाय बजला-

राधे श्याम, अदहा जिनगी बीत गेल मुदा अखन तक कोलकाता नहि देखलौं हेन। रातिमे एकाएक मनमे उठल जे देखिते-देखिते लोकक जिनगी बीत जाइए मुदा दुनियोकेँ देखि नहि पबैए।

रघुनी भाइक विचार सुनि मनमे भेल जे रघुनी भाय ठीके कहै छथि। अपनो उमेर दिस तकलौं तँ बुझि पड़ल जे खाली रघुनीए भाइक अदहा उमेर नहि बितलैन, अपनो तँ बीतिये गेल अछि। अपनो ने कहियो कोलकाता गेलौं हेन। ऐठाम एकटा प्रश्न अछिए जे अदहा उमेर केकरा कहबै? जन्मक ठेकान तँ अछि जे फल्लॉंक जन्म फल्लॉं दिन भेल मुदा मृत्युक तँ ठेकान नहियेँ अछि जे के कहिया मरत तखन अदहा उमेर केकरा कहबै? कियो बीसे बर्खमे मरि जाइए, कियो पचास बर्खमे मरैए तँ कियो एहनो तँ अछिए जे साए बरख बीतला पछाइत मरैए। गामेमे देखै छी जे घुरन बाबा एक साए पाँच बर्खमे मुइला, मनोहर बाबा एक साए एक्कैस बर्खमे मुइला। तैबीच अदहा उमेर माने अदहा जिनगी केकरा कहब! ओना, अपना ऐठाम साए बर्खकेँ पूर्ण जिनगी मानल गेल अछि मुदा मरै-जीबैक कोनो बिसवासू आधार नहियेँ अछि।

रघुनी भाय साल भरिक जेठ छथि। जइसँ अपन जिनगीक अनुमान केने छेलौं। अपने ने कहियो स्कूल देखलौं जे उमेरक प्रमाणित सर्टिफिकेट रहत आ ने जन्मक कोनो टिप्पैण अछि जइसँ उमेरक ठेकान पबितौं, मुदा रघुनी भायकेँ से नहि छैन, कौलेज तक पढ़ने छैथ, जइसँ प्रमाणित सर्टिफिकेटो छैन्हे।

जहिना अपन बिसवास सभसँ बेसी रघुनी भायपर अछि तहिना रघुनी भायकेँ सेहो हमरापर छैन। रघुनी भाइक मुँहक बात जे दुनियाकेँ नहि देखि पबैएअपन मनकेँ हिलौलक। हिलौलक ई जे अखन तक दुनियाँकेँ ओतबे टा बुझै छी जेते दूर घुमल-फिरल छी। ओना, लोकक मुहेँ कोलकाता सुनिते आबि रहल छी मुदा कोलकाता छी की, से ने कहियो मनमे विचारे उठल आ ने बुझैक जिज्ञासे भेल। बजलौं-

बढ़ियाँ विचार अछि। देखिते-देखिते लोकक जिनगी बीत जाइए, ने किछु कऽ पबैए आ ने देखि पबैए।

ओना, अपन की विचार अछि से स्पष्ट नहियेँ भेल मुदा रघुनी भाइक मनमे जेना बिसवास जगलैन। बजला-

राधे श्याम, तोरासँ भेँट अही दुआरे करए एलौं जे दूरक सफर अछि। असगर-दुसगर जाएब नीक नहि, तँए तोरो कहए एलियह जे तोहूँ चलह।

अपने तँ किछु बुझल-गमल अछि नहि जे केते खर्च हएत आ केते समय लागत। तँए बजलौं-

भाय साहैब, संग पुरैमे कोनो हर्ज नहि, मुदा खर्च-बर्च केना कि पड़त आ समय केते लगत?”

रघुनी भाय सभ बात पुहुपलालसँ भँजिया नेने छला तँए बुझल छेलैन। रघुनी भाय बजला-

कोनो कि हाथी-घोड़ा कीनब जे बहुत खर्च हएत। भेल तँ गाड़ी-सवारीक भाड़ा-भुड़ी आ खाएब-पीबमे जे पड़त, तेतबे ने खर्च हएत।

अपना जनैत छाँह-छुँहमे रघुनी भाय बाजि चुकल छला मुदा अपने अन्दाज नहि कए पेलौं जे भाड़ा-भुड़ीमे केते खर्च हएत आ खाइ-पीबैमे केते खर्च हएत। बजलौं-

भाय, अहूँ कोलकाता नहि गेल छी, तँए ठीक-ठीक नहि बुझल हएत। तहूमे खाली कोलकाता गेनाइये टा रहैत तखन दोसर बात होइत मुदा जखन देखै-सुनैले जाइ छी तखन केते समय लगत आ केते खर्च हएत आ जइ स्थानपर जाएब, तइठामक किछु सनेस नहि आनब, सेहो केहेन हएत। तँए एकटा अनुमान कऽ लेब किने।

स्वीकार करैत रघुनी भाय बजला-

राधे श्याम, कोलकाता खाली महानगरे टा नहि ने छी जे बजारे टा अछि। बजारक अतिरिक्तो, जे कोलकातासँ बाहर अछि, दर्शनीय जगह सभ अछि, ओहो ने देखने आएब।

हूँहकारी भरैत बजलौं-

ठीके किने। गामेक नहि, परोपट्टेक केतेको लोक कोलकातामे नोकरियो करै छैथ आ अपन परिवारो रखने छैथ, मुदा अपना सभ तँ से नहि छी, देखै-सुनैले जाएब आ देखि-सुनि कऽ घुमि आएब। तँए, ओत्ते ओरियान केनहि ने जाएब जे केतौ कोनो बाधा उपस्थित नहि हुअए।

मने-मन विचारि रघुनी भाय बजला-

राधे श्याम, जँ ठीक-ठीक बुझल रहैत तँ ठीक-ठीक कहि दैतियह मुदा से नहि अछि। मानि लएह जे एक मास समय लागत आ एक हजार रूपैआ खर्च हएत।

बैशाख-जेठक समय छी खेती-पथारी अखन कोनो अछिए नहि तँए समैयक तँ कोनो बाते नहि। तैबीच परसू बारह साएमे खस्सी बेचने छेलौं, से रूपैआ हाथमे छेलए-हे। कहलयैन-

ठीक अछि भाय, जखन विदा होइ, हमहूँ तैयार छी।

तैबीच पत्नी चाह बना दरबज्जापर आबि गेली। पत्नीक हाथसँ चाहक दुनू कप लैत एक हाथक रघुनी भाय दिस बढ़ैलौं आ एक हाथक अपने रखलौं। ओना, पत्नी सुनि नेने छेली- जखन विदा हएब, हमहूँ तैयार छीतँए ऐगला बात सुनैले छोट डेगे आँगन घुमली। मुदा तैबीच ने अपने किछु बजलौं आ ने रघुनीए भाय किछु बजला। ओना, अपन मन मानि गेल जे पत्नी ऐगला गप सुनै दुआरे डेग छोट कए आँगन दिस बढ़ि रहली अछि, तँए अपने पाशा बदलैत बजलौं-

भाय साहैब, चाह नीक बनल किने?”

कर्ताक मन तँ कर्मपर रहिते अछि तहूमे चर्च कऽ देने छेलौं। रघुनी भाय पाशाकेँ आरो छिड़ियबैत बजला-

धु: चाहोकेँ लोक सुआदि-सुआदि पीबैए। आब तँ चाह पानिये जकाँ लोक केता बेर दिनमे पीबैए तेकर कोनो ठेकान छै।

पत्नी ताबे अढ़ भऽ गेली, माने अँगना पहुँच गेली। बजलौं-

रघुनी भाय, खेबो-पीबोक ओरियान करब?”

रघुनी भाय बजला- हम सभ बात पुहुपलालसँ बुझि नेने छी। खाइ-पीबैक किछु ने ओरियान करैक अछि, खाली अपन जे देहक कपड़ा पहिरैबला अछि बस तेतबे। कोलकाता जाएब किने, जैठाम अपना देशक कोन बात जे अपन मधुबनी-झंझारपुरमे जे खाइ-पीबैक समानक दाम अछि तेकर अदहा दाममे ओतए भेटैए। तँए जैठाम एतेक सस्ता अछि तैठाम अनेरे गामसँ किए किछु नेने जाएब।

बजलौं-

तखन तँ एक गोरेक खर्चमे, माने जेते खर्च मधुबनी-झंझारपुरमे एक बेकतीकेँ खाइ-पीबैमे होइए, तेतेमे दुनू गोरेकेँ कोलकातामे भऽ जाएत।

रघुनी भाय बजला-

तेहने सन बुझह।

बजलौं-

बड़बढ़ियाँ। घरसँ कहिया निकलब?”

रघुनी भाय बजला-

परिवार छी किने, किछु-ने-किछु सदिकाल होइते रहैए। तँए, जखन नियारि लेलौं तखन बेसी समय लगबैक थोड़े अछि। काल्हि भोरे विदा भऽ जाएब।

बजलौं-

आइ भरि दिन समय अछि। कपड़ो-लत्ता खींच लेब आ काजो सभकेँ गर-गुर लगा लेब।

दोसर दिन भोरे दुनू गोरे गाड़ी पकड़ए विदा भेलौं। ओना, अपना स्टेशनसँ डायरेक्ट गाड़ी कोलकाताक नहियेँ अछि मुदा दरभंगासँ अछिए। दरभंगा-हाबड़ाक जे गाड़ी अछि ओ दरभंगेसँ खुजैए, भीड़ो-भड़क्का बेसी नहियेँ छल तहूमे रिजर्व टिकट बनौने छेलौं।

ओना, भीड़-भड़क्का गाड़ीमे बेसी नहि छल मुदा जगहक हिसाबे यात्री तँ छेलैहे। दुनू गोरेक जगह एक्केठाम भेल। बगलमे आन-आन यात्री सभ छला। संजोग एहेन भेल जे दूटा बंगाली यात्री सेहो बगलमे बैसला। गाड़ी जखन दरभंगासँ खुजल तँ ओ दुनू बंगाली यात्री हिन्दीमे गप-सप्प शुरू केलैन। बुझि पड़ल जे दुनू बेपारी छैथ। अपन-अपन वेपारक सम्बन्धमे गप-सप्प करए लगला। ओना, दुनू अपरिचित, एक-दोसरकेँ नहि चिन्हैत, मुदा किछु समैयक पछाइत दुनू हिन्दी छोड़ि बंगलामे गप-सप्प करए लगला। जाबे तक हिन्दीमे गप-सप्प करैत रहला ताबे तक तँ किछु बुझितो छेलौं मुदा जखन बंगलामे गप-सप्प करए लगला तखनसँ किछु ने बुझि पेलौं। बंगलामे गप-सप्प सुनि रघुनी भायकेँ कान लग फुसफुसा कऽ कहलयैन-

भाय, ई दुनू डिब्बामे मारि फँसौत। देखै छिऐ केहेन बढ़ियाँ हिन्दीमे सभ्य जकाँ आप-आपक प्रयोग करै छल आ आब तुमि-तुमि’- तुम-ताम केनाइ शुरू केलक!”

अपना जनैत हम ऐ दुआरे बजलौं जे अपना ऐठाम देखै छी जे पहिने लोक मैथिलीमे गप-सप्प शुरू करैए आ रक्का-टोकी करैत हिन्दीमे पहुँच झगड़ा-झंझट, मारि-पीट करए लगैए। मनमे सहए भेल। तँए रघुनी भायकेँ कहने छेलिऐन। रघुनी भाय बंगला भाषा आ बंगालीक सम्बन्धकेँ बुझै छैथ, बजला-

राधे श्याम, यएह बंगाली भाषाक शक्ति आ बंगभूमिक खास गुण छी जे जखने एक-दोसरकेँ बंगवासी बुझि जाइ छैथ तखने आन भाषाकेँ छोड़ि अपन मातृभाषामे बाजए लगै छैथ। जइसँ अपनामे अपनत्व बढ़ए लगै छैन।

रघुनी भाइक विचार उन्टा बुझि पड़ल। उनटा ई जे अपना ऐठाम जे बच्चो आ कि सियाने मैथिलीसँ अलग हटि हिन्दी वा अंग्रेजीमे बजै छथि तँ हुनका लोक बेसी बुद्धिमान बुझै छैन, आ बंगालीमे तेकर उन्टा अछि। तँए कनी छगुन्ता जरूर लगल। बजलौं-

से की भाय?”

विचारकेँ सोझरबैत रघुनी भाय बजला-

राधे श्याम, बंगला भाषा आ बंगला साहित्य जे एते सशक्त अछि एकर यएह कारण अछि जे बंगालक लोक अपन मातृभूमि-मातृभाषाकेँ हृदयसँ बेसी आदर करै छैथ। जे अपना ऐठाम नहि अछि। बजैक क्रममे अपना ऐठामक लोक जेतेक बढ़ा-चढ़ा कऽ बाजि लैथ मुदा बेवहारमे ठीक एकर विपरीत अछि।  

रघुनी भाइक विचारकेँ गहराइसँ तँ नहि बुझि पेलौं मुदा एतेक तँ बिसवास रघुनी भायपर बनले अछि जे ओ ठक-फुसियाह नहि छैथ, तँए झूठ-फूस नहियेँ कहता। तही बीच गाड़ी समस्तीपुर पहुँच गेल। मकैक ओरहा बेचनिहार बोगीमे पहुँचल। पाँच रूपैये बाइल बेचै छल। ओहो दुनू माने दुनू बंगाली यात्री सेहो दूटा बाइल लेलैन आ रघुनी भाय सेहो दूटा बाइल लेलैथ। अखन तक ने रघुनीए भाय हुनका सभसँ माने बंगाली भाय सभसँ किछु पुछने छेलखिन आ ने वएह सभ रघुनी भायकेँ किछु पुछलकैन। मुदा समस्तीपुरक मकै-ओरहा दुनू गोरेकेँ लग अनलकैन। एक गोरे माने एकटा बंगाली यात्री रघुनी भाय दिस घुमि बजला-

अच्छा है!”

ओना, रघुनी भाय बुझि गेल छला जे दुनू बंगाली छैथ आ अपनो बंगाले जा रहल छी तँए किछु जानकारी करब आवश्यक अछिए। ओ तँ विचारेक आदान-प्रदानसँ बेसी नीक हएत। रघुनियो भाय अपन भाषाक महतकेँ बढ़बैत बजला-

मिथिलाक मुख्य सनेस छी। ऐ इलाकामे, माने समस्तीपुर इलाकामे मकैक अनेको ढंगक भोज्य विन्यास बनैए। जइमे ओरहो एक विन्यास छी।

ओना, मैथिली भाषाकेँ ओ दुनू बंगाली नीक जकाँ जानि जाइ छला मुदा बजैमे कनी बंगलाक गन्ध आबिये जाइ छेलैन। ओहो दुनू अधखिज्जू मैथिलीमे गप-सप्प रघुनी भाइक संग करए लगला। एक बेकती मैथिली भाषा-साहित्य आ मिथिलाक्षर लिपिक जानकार सेहो छला। ओ बंगला लिपि आ मिथिलाक्षर लिपिक सम्बन्धमे सेहो बजला। किछु आगू बढ़ला पछाइत माने जखन गाड़ी सिमरिया पुल टपि गेल तखन रघुनी भाय रवीन्द्रनाथ टैगोरक साहित्य आ संगीतक चर्च उठौलैन। रवीन्द्र साहित्यक चर्च उठिते ओ बंगाली बजला-

जहिना हिन्दी साहित्यजगतमे तुलसीक रामायण आ तुलसीदासकेँ महानसँ महानतम स्थापर रामचन्द्र शुक्ल पहुँचेलैन तहिना कबीरदासक जनभाषा आ जनविचारकेँ रवीन्द्रनाथ पहुँचेलैन।

अपने तँ साहित्य आ साहित्यकारक विषयमे किछु बुझल नहि अछि तँए चुप्पे रहलौं। मुदा रघुनी भाय साहित्यक नीक जानकार छैथ तँए दुनू गोरेक बीच गप-सप्प हुअ लगलैन। किछुकालक पछाइत रघुनी भाय बजला-

हमहूँ दुनू गोरे बंगाले जा रहल छी। ओना, जीवनमे पहिल बेर जा रहल छी, तँए नीक जकाँ बुझल-गमल नहियेँ अछि। अपने कने बंगालक विषयमे किछु जानकारी दऽ दिअ जे घुमै-फिरैमे सुविधा हएत।

ओ बजला-

बंगालक चौराई तँ कम्मे अछि मुदा नमती बहुत बेसी अछि। दच्छिनमे बंगालक खाड़ीसँ लऽ कऽ उत्तरमे हिमालय तक अछि। जइसँ अनेको धारो-धुर आ जलवायु सेहो अछिए।

रघुनी भाय बजला- नोकरी-चाकरी करैक खियालसँ तँ बंगाल नहियेँ जा रहल छी, देखै-सुनैक खियालसँ जा रहल छी। ओना, रवीन्द्रबाबू आ शान्तिनिकेतनक सम्बन्धमे किछु-किछु किताबी जानकारी जरूर अछि मुदा कहियो गेल नहि छी।

शान्तिनिकेतनक नाओं सुनिते ओ, बंगाली भाय जेना फुटि पड़ला। धुरझार शान्तिनिकेतनक प्रशंसा करैत बाजए लगला। जइसँ रघुनी भाइक मनमे सेहो शान्तिनिकेतनक प्रति आकर्षण बढ़ए लगलैन। रघुनी भाय बजला-

शान्तिनिकेतन जाएब केना?”

ओ बजला-

ई गाड़ी माने जइमे चढ़ल छी, हाबड़ा पहुँचा देत। बंगालक दूटा जक्शन एहेन अछि, हाबड़ा आ सियालदह, जैठामसँ बंगालक सभ जगहक लोकल गाड़ी भेटैए। हाबड़ासँ अनेको गाड़ी शान्तिनिकेतनक अछि।

रघुनी भाय बजला-

हाबड़ा शान्तिनिकेतनक बीच केतौ दोसर गाड़ी नइ ने बदलए पड़ै छै?”

ओ बजला-

बीचमे केतौ ने गाड़ी बदलए पड़त। चारि-पाँच घन्टाक रस्ता अछि। सोझहे हाबड़ासँ शान्तिनिकेतन पहुँच जाएब।

बारह बजे रातिमे हाबड़ा स्टेशन पहुँचलौं। ओना, लोकक आवाजाही तेतेक जे राति बुझिये ने पेब रहल छेलौं मुदा घड़ीमे बारह बाजि रहल छल। स्टेशनेक प्लेटफार्मपर दुनू गोरे जाजीम बिछा सुति रहलौं। चारि बजे भोरे उठि अपन नित्य-कर्मसँ निवृति होइत चाह पीलौं। छह बाजि गेल। गाड़ीक टिकट लेलौं। साढ़े छह बजेमे शान्तिनिकेतनक गाड़ी खुजत। गाड़ीमे बैसलौं। गाड़ीमे बैसते रघुनी भाय शान्तिनिकेतनक विषयमे जानकारी दिअ लगला। ओना, आनो-आन बहुत यात्री शान्तिनिकेतन जाइ छला जइमे किछु देखनिहारो छला आ किछुकेँ अपन घरो छेलैन आ किछु कारोबारियो छला।

साढ़े बारह बजे गाड़ी शान्तिनिकेतन पहुँचल। दुनू गोरे प्लेटफार्मेपर नहेलौं, नहेला पछाइत रोडेपर माने फुटपाथेक दोकानमे जा कऽ खेलौं। सचमुच बुझि पड़ल जे बंगालक होटल अपना ऐठामक होटलसँ सस्ता अछि। छबे रूपैआमे दुनू गोरे भरि पेट खेलौं। ओना, खेनाइ-खेला पछाइत अपन मन असविस करए लगल मुदा रघुनी भाय कहला जे जखन देखै-सुनैले आएल छी, तखन जँ अरामेक पाछू समय लगाएब से नीक नहि। एक गोरेकेँ रघुनी भाय पुछि शान्तिनिकेतनक जानकारी लेलैन। दुनू गोरे विदा भेलौं।

रवीन्द्रबाबूक बनौल शान्तिनिकेतन आ रेलबे स्टेशनक बीच आदिवासी सबहक घर। ओना, देखैमे ओ सभ कारी छल मुदा जेहने सोझ-सपट विचारसँ तेहने बेवहारसँ सेहो छल। दुनू गोरे शान्तिनिकेतनक विश्वभारती महाविद्यालयकेँ फरिक्केसँ देखलौं तँ बुझि पड़ल जे सचमुच हम सभ शान्तिवनक शान्तनिकेतनमे पहुँच गेल छी। आगू बढ़लौं तँ एकटा चिन्हार चेहरा आगूमे देखि पड़ला। हम तँ हुनकापर धियान नहि देलिऐन मुदा रघुनी भाय टकटकी लगा हुनका देखए लगलखिन। ओहो रघुनी भायकेँ निग्हारि बजला-

अहाँ सभ मैथिल छी?”

मैथिली भाषा तीनू गोरेक बीच सम्बन्ध बढ़ौलक।  रघुनी भाय कहलकैन- “हँ.!”  

हँसुनिते जेना हुनका बिसवास बढ़ि गेलैन, बजला-

अहाँकेँ कने-मने चिन्है छी..!”

रघुनी भाय बजला- अहूँकेँ कने-मने चीन्हि रहल छी मुदा नीक जकाँ मन नहि पड़ि रहल रहलौं हेन।

ओ बेकती बजला-

पहिने चाहक दोकानपर चलू, चाहो पीब आ परिचय-पात सेहो करब।

सएह भेल। तीनू गोरे चाहक दोकानमे गेलौं। चाहक कप हाथमे लइते ओ बजला-

अहाँक घर चैनपुर छी?”

रघुनी भाय बजला-

हँ।

हँ सुनिते मुस्कियाइत ओ बजला-

हमर नाओं शान्तिनाथ छी। हमरो घर चैनपुरे छी। आइसँ तीस बरख पूर्व हम परिवारक झड़-झमेलसँ आजीज भऽ गामसँ पड़ा गेलौं। अपन बपौतीक सभ सम्पैत हुनके सभकेँ माने भाइये सभकेँ छोड़ि देलिऐन। आ ऐठाम आबि विश्वभारतीक कार्यालयमे नोकरी शुरू केलौं। ओना, सोझे ऐठाम नहि पहुँच गेलौं। एकटा बंगाली शिक्षकक संग कलकत्तासँ एलौं। नमहर इतिहास अछि। ओ अखन नहि कहब।

चाह पीलाक पछाइत शान्तिनाथ अपन कार्यालय पहुँचला। हमहूँ दुनू गोरे संगे रहिऐन। कार्यालयमे बड़ाबाबूसँ कहि हमरा दुनू गोरेकेँ घुमबए-फिरबए लगला। नमगर-चौड़गर विश्वभारतीक आँट-पेट, तँए घुमैत-फिरैत साँझक सात बाजि गेल। पछाइत संगे शान्तिनाथ अपन डेरापर अनलैन।

चारिटा बाल-बच्चाक संग दुनू परानी शान्तिनाथ रहै छैथ। अपन गाम-समाजकेँ लंका–रावणक लंका–सदृश मानि शान्तिनाथ बजला-

बौआ रघुनी, रावणक-लंकोसँ बदत्तर अपन समाज अछि। केकरो कियो शान्तिसँ जीबए नहि दिअ चाहैए। जहियासँ ऐठाम एलौं तहियासँ बिलकुल शान्तिसँ जी रहल छी।

रघुनी भाय बजला-

अपनो गाम तँ मिथिलेक गाम छी ने?”

शान्तिनाथ बजला- हँ, से मानै छी! मुदा जे बेवहार पक्ष अपना गामक अछि, ओ तँ..?”

विचारकेँ आगू नहि बढ़बैत रघुनी भाय बजला-

हमहूँ दुनू भैयारी देखै-सुनैक खियालसँ आएल छी।

शान्तिनाथ बजला- शान्तिनिकेतन तँ देखिये लेलिऐ, काल्हि सुन्दरवन सेहो देखा देब।

qशब्द संख्या : 2297, तिथि : 15 अप्रैल 2020


RAHAI JOKAR PARIWAR

Collection of Maithili Stories by Shri Jagdish Prasad Mandal  

ISBN: 978-93-88811-54-5

दाम: 251/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार: © लेखक (श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)  

दोसर संस्करण: 2023 (पहिल संस्करण:  2020) 

प्रकाशक: पल्लवी प्रकाशन 

तुलसी भवन, जे.एल. नेहरू मार्ग, वार्ड नं.: 06, निर्मली

जिला- सुपौल, बिहार : 847452

मुद्रक: पल्लवी प्रकाशन (मानव आर्ट)

वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल: 6200635563; 9931654742 

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आवरण: श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल), बिहार : 847452

अक्षर संयोजन: डॉ. उमेश मण्डल 

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