अभ्यन्तर (जगदीश प्रसाद मण्डलक विचारोत्तेजक गद्यांश)

 


ABHYANTAR (अभ्यन्तर)


Compilation by Dr. Umesh Mandal of Select Thoughtful passage of Shri. Jagdish Prasad Mandal  

प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली 

जिला- सुपौल, बिहार : 847452 


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प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल)  बिहार : 847452

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दाम : 200/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 

पहिल संस्करण : 2022  


ISBN : 978-93-93135-11-7


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पोथीक मादे    

‘अभ्यन्तर’ शब्दक अर्थ भीतरी, आन्तरिक, घनिष्ठ सम्बन्ध आदि होइत अछि। मुदा ऐठाम विचारोत्तेजक गद्यांश संकलनक नाओं अछि- अभ्यन्तर। संकलित गद्यांशक प्रथम संग्रह ‘हेन्डबुकसँ फेसबुक धरि’ प्रकाशित कए अनेको विद्वज्जनक प्रोत्साहन ओ आशीष पाबि उक्त विधामे द्वितीय संग्रह, ‘समस्यासँ समाधान धरि’ आ तृतीय ‘निर्विकल्प’क पुस्तकाकार प्रकाशित कए आरो उत्साहित भऽ सम्प्रति चतुर्थ संग्रहक रूपमे ‘अभ्यन्तर’ सेहो प्रकाशित भऽ अपने लोकनिक हाथमे अछि। 

उपरोक्त पोथीसभ श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक रचना-संसारसँ संकलित विचारोत्तेजक गद्यांशक संकलन छी। जे अनेको पाठकवृन्दकेँ आकर्षित केलकैन, कएटा शोधार्थी लोकैन सेहो उपयोगी पोथी हेबाक विचारसँ हमर मनोबलकेँ बढ़ौलैन। आ संगे श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक रचना कौशलसँ अवगत भऽ हुनक व्यक्तित्व ओ कृतित्वकेँ किछु विस्तारसँ जनबाक जिज्ञासा सेहो व्यक्त केलाह। 

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक जन्म 1947 इस्वीमे 5 जुलाईकेँ बेरमा गामक एकटा किसान परिवारमे भेलैन। ‘बेरमा’ मिथिलांचल अन्तर्गत मधुबनी जिलाक झंझारपुर अनुमण्डल स्थित लखनौर प्रखण्डक एक पंचायत अछि जे अपन प्रखण्डक उत्तरी-पच्छिमी कोणक अन्तमे पड़ैत अछि। ओना, बेरमा गाम तमुरिया रेलवे स्टेशनसँ तीन किलोमीटर उत्तर-पच्छिम आ एन.एच-57- चनौरागंजसँ दू किलोमीटर दच्छिन-पूबमे सेहो अछिए। 

तीन पीढ़ीसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक परिवार एकपुरुखियाह रहलैन। द्रष्टव्य अछि- “दिनांक 5-7-1947 इस्वीमे जन्म भेल। भरल-पुरल परिवार। तीन पीढ़ीसँ एक‍पुरुखियाह परिवार चलि अबै छल। जहिना बाबा तहिना पिता छला। घर लग पोखैर-इनार रहने पानिक सुविधा रहल।”  

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल जखन तीनियेँ बर्खक अवस्थामे रहैथ तँ हुनक पिताक निधन भऽ गेलैन। मण्डलजी कहै छैथ- “पिताक मृत्युक किछुओ नै यादि अछि, सिरिफ गाछीमे जरैत अछिया टा...। जखन तीन बर्खक रही। दू भाँइक भैयारीमे छह बर्खक भैया रहैथ। पिताजी करीब एक मास बीमार रहला। इलाजोक नीक बेवस्था नहि, ताबत दरभंगा अस्पताल नै बनल छेलइ। झाड़-फूकसँ लऽ कऽ जड़ी-बुटीक इलाज समाजमे चलै छल।”

श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक पिता स्व. दल्लू मण्डल अगुआएल विचारक लोक छला। “एक तँ वंशगतो आधारपर आ दोसर जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पितोक ऊपर परिवारिक-समाजिक प्रभाव पड़ल छेलैन जइसँ किछु अगुआएल विचार रहैन।”  

पाँच-छह बर्खक अवस्थामे जगदीश प्रसाद मण्डलजी लोअर प्राइमरी स्कूल (बेरमा) जाए लगला। 1956 इस्वीमे प्राइमरीसँ उत्तीर्ण भऽ 1957 इस्वीमे अपर प्राइमरी स्कूल (कछुबी) मे नाओं लिखेलैन। तेकर पछाइत  1960 इस्वीमे केजरीवाल (झंझारपुर) उच्च विद्यालयमे नाओं लिखौलैन। आवागमनक असुविधा रहने पएरे झंझारपुर जाइत-अबैत रहला। 

1965 इस्वीमे हायर सेकेण्ड्रीसँ उत्तीर्ण भेला। पहिने जनता कॉलेज- झंझारपुर, पछाइत सी.एम. कॉलेज- दरभंगामे नामांकन करौलैन। हिन्दी ओ राजनीति शास्त्र विषयसँ एम.ए. कऽ मण्डलजी अपन जीविकोपार्जन हेतु कृषि कार्यकेँ अपनौलैन। ऐ प्रसंग मण्डलजी अपन पहिल औपन्यासिक कृति- ‘मौलाइल गाछक फूल’क ‘दू शब्द’मे कहलैन अछि- “जहिया एम.ए.क विद्यार्थी रही तहिए नोकरीसँ विराग भऽ गेल। आठ बीघा जमीन रहए। खेतीसँ जीवन-यापन करैक बिसवास भऽ गेल।”  

मण्डलजीकेँ खेती-किसानी कार्यसँ लगावक कारण की? ऐ प्रश्नक उत्तरमे दू गोट महत्वपूर्ण बात सोझामे अछि। पहिल, आत्मनिर्भरताक संस्कार आ दोसर परिस्थितिजन्य। परिस्थिति ई जे जगदीश प्रसाद मण्डल जखन तीनियेँ वर्षक छला तँ हुनक पिता मरि गेलैन। ई बात लगभग 1950-51 इस्वीक छी। मुदा ई गुण रहलैन जे पितेक अमलदारीसँ दू भाँइ पिसियौत आबि परिवारमे रहए लगलखिन। (कोसीक उपद्रवसँ भागल पीसा बेरमे माने सासुरेमे रहि गेल रहथिन।) तत्काल गार्जनी हुनके दुनू भाँइपर छेलैन। मुदा ओहो लोकैन अर्थात् दुनू “पिसियौत भाए 1960 ईस्‍वीमे अपन गाम ‘हरिनाही’ चलि गेला।”  मण्डलजीक परिवार बिनु पुरुष गार्जनक भऽ गेलैन। तइ समयमे ओ अपर प्राइमरी स्कूलक छात्र रहैथ। द्रष्टव्य अछि- “दुनू भाय, श्री कुलकुल मण्डल 1954 इस्वीमे आ हम 1957 इस्वीमे गामक स्कूलसँ निकैल अपर प्राइमरी स्कूल कछुबीमे नाओं लिखौने रही। 1960 ईस्‍वीसँ परिवारक बोझ पड़ल।”  स्पष्ट अछि जे तेरहे बर्खक अवस्थासँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक लगाव पारिवारिक क्रिया-कलापसँ, खेती-बाड़ीसँ रहलैन अछि। अर्थात् उपरोक्त प्रसंगक ईहो एक महत्वपूर्ण कारण भेल। 

ओना, जगदीश प्रसाद मण्डलजीक माए (मकोवती देवी) साहसी ओ शिक्षाक घोर प्रेमी रहैथ। ओइ परिवारक रहैथ, जइ “परिवारमे मामा 1942 ईस्‍वीमे अंग्रेजक गोली खा चुकल छला।”  “अपन गहना, जमीन बेच देल बच्चाकेँ पढ़बै खातिर।”  अत: जगदीश प्रसाद मण्डलजी एम.ए.क अहर्ता सेहो प्राप्त केलैन।  

श्री जगदीश प्रसाद मण्डल संवेदनशील व्यक्ति छैथ। हिनकापर पिताजीक प्रभाव सेहो छैन। स्वतंत्रता संग्रामक समयमे सामाजिक-आर्थिक स्थितिसँ उपजल विडम्बनाक प्रति साकांक्ष आ मंथनक प्रवृतिक व्यक्ति छैथ। 1947 इस्वीमे स्वतंत्र भेल भारत मुदा ई स्वतंत्रता आधा स्वतंत्रता अछि- ई विचार हिनका छात्र जीवनहिसँ उद्वेलित करैत रहलैन अछि। समाजक स्थितिपर हिनकर मन सदैव उद्वेलित होइत रहलैन। “सामन्ती सोच आ सामन्त मजगूत छल, जइसँ आम-अवामक बीच आक्रोश पनपए लगलै। राजा-रजबारे जकाँ शासन पद्धति चलए लगल।”  ..खेतमे काज करैबला बोनिहारोक स्थिति बद-सँ-बदत्तर छल। समस्यासँ ग्रसित राज्य सभ छलैहे तेँ भूदान आन्दोलन सेहो उधियाएल।”  

समस्याक प्रति सजग व्यक्तित्व जगदीश प्रसाद मण्डलपर सामाजिक अवस्थाक प्रभाव पड़लैन आ 1967 इस्वीक चुनावी दौड़मे जनवरी 1967मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टीक सदस्यता ग्रहण केलाह। 1967 इस्वीमे कामरेड भोगेन्द्र झा संसद सदस्य भेला पछाइत हुनकर पहिल आम सभा सकरीमे भेल छल जइमे पन्द्रह-बीस व्यक्तिक संग लाल झण्डा लऽ जगदीश प्रसाद मण्डलजी सेहो गेल छला। “अढ़ाइ-तीन घन्टाक पछाइत सभा विसर्जन भेल। सभामे भाग लेनिहार चारूकातक लोक चलि गेला। ..स्टेशनेपर भोगेन्द्रजीसँ पहिल भेँट भेलैन।”  ई क्रम मण्डलजीक कम्युनिस्ट पार्टीसँ लगावक पहिल सोपान अछि। मण्डलजी ओहिना कम्युनिस्ट दिस अग्रसर नहि भेला। एकरा पाछू समाजक दीर्घ समस्या सभ छेलैन जेकर क्रमवार परिचय निम्न तरहेँ अछि। 

सृजनकर्त्ता संवेदनशील होइ छैथ। ओ केतेको तरहेँ अनुभव करै छैथ- ‘पोथीसँ’, ‘प्रकृतिसँ’, ‘समाजसँ’ आ ‘समाज-देशसँ उठैत समस्यासँ’, सुरुजक सौन्दर्य आ तापक अनुभव सभ व्यक्ति करैत अछि। मण्डलजी समस्याकेँ नीक जकाँ अनुभव केलैन आ ओइ समस्यासँ प्रेरित होइत रहला। यएह प्रेरणा हिनक धरोहर बनलैन। 

किसानक समस्या- बाढ़िक समस्यासँ किसान त्रस्त होइ छल। ऊचगर जमीनपर बसब आ खेती लेल जंगल-झाड़केँ साफ कऽ उपजाऊ जमीन बनाएब किसानक लेल अनिवार्य कार्य छल। बाढ़िसँ गामक गामकेँ घेरा जाएब आ फसलक बर्बादीसँ उपजल कष्टसँ परित्राणक आकांक्षा जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ जोर मारैत रहलैन। “मधुबनी जिलाक सीमा-कातमे हरिनाहियो आ हर्ड़ियो गाम बसल अछि। तइ बीचमे एकटा मरना धार अछि जे हरिनाहियो आ हर्ड़ीओ दुनू गामकेँ उपटौने छल।”  


चुनावमे धान्धली- स्वतंत्रता प्राप्तिक पछाइत सत्तापर कब्जा कऽ सुख-भोगक प्रवृत्तिक उदय भेल। तइले चुनावमे धान्धली पसरल- “चुनावमे जिला भरिक बूथपर खूब धाँधली भेल। ओना, जहिना खूब धाँधली भेल तहिना गामे-गाम मारियो-पीट खूब भेल आ केसो-मोकदमा खूब बढ़ल।”  ..पूर्व बिहार सरकारक छह गोट मंत्रीक विरूद्ध अय्यर साहेब रिपोर्ट देने छला। करोड़ोक लूट साबित भेल छल। द्रष्टव्य अछि हुनक शब्दमे- “बैद्यनाथ राम ‘अय्यर’, सुप्रीम कोर्टक जज छला। दक्षिणक छैथ। करीब पनचानबे-छियानबे बर्खक छैथ। जीविते छैथ। पूर्व बिहार सरकारक छहटा मंत्रीक विरूद्ध अपन जाँच रिपोर्ट दऽ देलखिन। करोड़ोक लूट साबित कऽ देने रहथिन।”  सामन्ती प्रथा टुटि रहल छल। देशमे लोक सभा आ विधान सभाक चुनाव लाठी हाथे शुरू भेल। जेकरा जतेक हँसेड़ी ओकर जीत निश्चित होइत रहए। दलित आ कमजोर वर्गकेँ भोँट खसबैये ने देल जाइ छल। मालिकक हुकुम ईश्वरक हुकुम मानल जाइ छल। एतबहि नहि, गिनतीमे धान्धली होइत रहल- “बहुमत अल्पमतमे नामो बदैल देल जाइ छल।”  

ऐ प्रकारेँ देशमे राजनीतिक पराभव भेल। अइमे स्वार्थ आ जाति भेद मुख्य आधार बनल। विशेष रूपसँ सामन्तवादी प्रथाक नव रूप सोझाँ आएल।  


खेतीसँ लगाव- 1960 इस्वीमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी खेती दिस अग्रसर भेला। हिनकर अधिकतर कथा, उपन्यास, नाटक, एकांकी तथा पद्य-रचनामे सेहो प्रकृति प्रदत्त पानि, रौद, मेघ, बाढ़ि आ गाछ-बिरीक्षक वर्णन अछि। कुशल ज्ञानवेता सदृश समस्त प्राकृतिक उपादानक वर्णन ओकर लाभ-हानि सभ किछु हिनका रचनामे अछि। कोन मासमे कोन फसल हएत। जौं फसल बाढ़िमे भाँसि गेल तइ बीचमे कोन फड़ कोन जड़िमे भेटत, जेकरा खाकऽ जीवन निर्वाह हएत, एकर पूर्ण ज्ञान मण्डलजीकेँ छैन। खेतीसँ जीवनमे केना परिवर्तन होएत आ कोन फसिल नगदी हएत आ कोन पारम्परिक, तेकर विशद् वर्णन हिनक रचना सभमे छैन। हिनकर ई ज्ञान अनुभवसँ उपजल अछि। हिनक सम्पर्क कामरेड भोगेन्द्र झासँ रहैन। हुनकर विविध देश-विदेशक ज्ञानसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजी लाभान्वित भेला- “जगदीश प्रसाद मण्डल खेतीसँ थोड़-बहुत जुड़ि गेल रहैथ। मिरचाइ, भट्टा, कोबी, अल्लू इत्यादि खेती शुरू केलैन। धान, मरूआ, रब्‍बी-राइक खेती जने हाथे हुअ लगलैन।”  ..भोगेन्द्रजीक सम्पर्कमे एला पछाइत जगदीश प्रसाद मण्डलजीक खेतीक प्रति आरो जिज्ञासा तेज भेलैन। तेज ऐ दुआरे भेलैन जे जर्मनी, जापानक खेतीक बात ओ मनमे बैसा देलखिन। हिसाब जोड़ैथ तँ दस कट्ठा खेत एक परिवारक (पाँच गोरे) लेल बेसीए‍ बुझि पड़ैन।  एक तँ अपन हाथक पूजी खेत, दोसर जखन राजनीतिसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजी जुड़ि गेलैथ तखन तँ काजो बढ़ि गेलैन। ..पूसा मेलासँ खेती-बाड़ीक किताब कीनि-कीनि आनए लगला। तैसंग किसानक जे कार्यक्रम होइ तइमे सेहो जाए-आबए लगला।”  विस्तृत अनुभवक उपयोग कऽ मण्डलजी खेती करए लगला। 

जातिवादी प्रथा- जगदीश प्रसाद मण्डलजी समरस समाजक समर्थक छैथ। हिनक रचनामे जातिगत विद्वैष नहि देखल जा सकैए। सभक प्रति नम्र आ आदरपूर्ण व्यवहार देखल जा सकैए। तखन तँ पूर्वसँ जकड़ियाएल समाज अछि। एकाएक मलेरिया-रोग जकाँ दवाइसँ भगौल नहि जा सकैए। हिनक रचनामे जातिगत स्वार्थक आकलन अछि। ऐ वर्णनसँ जगदीश प्रसाद मण्डलजी समाजकेँ सावधान करै छैथ। ओतइ टुटैत जाति-प्रथाक समर्थन सेहो करै छैथ- 

“जगदीश प्रसाद मण्डलजी सभ विचार केलैन जे समाजक उत्‍थानमे जातिक कट्टरपन बाधा छी। ओना, जौं जातिक बीच कथा-कुटुमैती होइत अछि तँ ओ दू समाजक बीचक प्रश्न बनि जाइत अछि। मुदा समाजक बीच जातिक छूआ-छूत बहुत नमहर खाधि बनबैए...। 

तँए महिनामे एकबेर बैसार करब आ ओ करब टोले-टोल घुमि-घुमि, ई सबहक विचार भेलैन। बैसारमे कोनो बेसी जोगारक प्रश्न नहि, मुदा टोलबैयाक विचारसँ, जौं ओ सभ खाइ-पीबैक बेवस्था करैथ तँ सेहो बढ़ियाँ, सभ खाएब, ई सबहक विचार भेलैन।”  ई विचार समरसता आ जाति प्रथाकेँ तोड़बाक हेतु एकगोट सुलभ तरीका खोजलैन जे मण्डलजीक समरस विचारक द्योतक अछि। 


बटेदारी प्रथा- पुरातन कालसँ जमीन्दार गरीब लोककेँ जमीन बटाइपर दैत रहल अछि। जमीन्दारक ओइ जमीनपर खेती करत बटेदार। ऊपजामे बाटल जाएत। उपजा बाँटक भिन्न-भिन्न प्रथा। जमीन्दारक शोषण कायम रहल। समाजमे ई भावना उठए लगल रहैक जे ‘कमाइबला खाएत’ मुदा जमीन्दारक शोषणसँ आहत बटाइदारमे रसे-रसे विद्रोहक भावना उठल, जेकरा दबबैले लठैत हँसेड़ीक प्रचलन चलल। ‘जेकर लाठी तेकर भैंस’, ऐ तथ्यकेँ श्री जगदीश प्रसाद मण्डल ऐ रूपेँ वर्णन केने छैथ- “हल्ला सुनिते-देरी जे जेत्तै रहए से तत्तैसँ लाठी लऽ कऽ दौगल। टोल आ दोकानक बिच्चेमे मारि फँसि गेल। जबरदस मारि भेल। केते गोरेकेँ कान-कपार फुटल। केस-फौदारी आ जहलक भय समाप्त भऽ गेल छेलइ। एकतीस दिनक भीतर अट्ठाइसो मुदालहक जमानत भऽ गेलैन। जमानतक पछाइत जमीनक दखल-दिहानी शुरू भेल। गड़बड़ भऽ गेल रहै जे, जे असल बटेदार रहै ओ केस नै केलक आ जे बटेदार नै रहै ओ केस केलक।”  बटाइदारी कानूनक पछातियो समाजमे ई प्रथा रहल जे अवसानक करीब-करीब पहुँचि चुकल अछि। छूआछूत सेहो समाप्त भऽ चुकल अछि। सुलभ शौचालयमे सभ वर्णक लोक काज करैत अछि। स्वरूचि भोजनमे परसयबलाकेँ जाति नहि पुछल जा रहल अछि। 


भूदान आन्दोलन- विनोबा भावेक द्वारा चलाओल आन्दोलन सामन्तक कौर भऽ गेल रहए। जेकरा पाइ-जमीन रहैक ओकरो भूदानक जमीन दिअ लगलय। घूसक कुप्रथा लागू भऽ गेल रहैक। जगदीश प्रसाद मण्डलजी ऐ कुप्रथाकेँ अपना सोझमे देखने छैथ। हिनकापर एकरहु प्रभाव पड़लैन- “भूदानी आन्दोलन अपन स्वरूप बिगाड़ि पाइक अड्डा बनि गेल, जइसँ मामला आरो ओझरा गेल। ओझरा ई गेल जे एक्के जमीनक पर्चा तीन-तीन गोरेकेँ भेटल। जइसँ जमीनबलाक झगड़ा जमीन लेनिहारोक बीच फँसि गेल।”  

भ्रमण एक अनुभव- जगदीश प्रसाद मण्डलजीक बेसी जिनगी गामे-घरमे बीतल छैन। एकर नीक लाभ ई भेलैन जे हिनक अनुभूति-अनुभवक संसार पैघ छैन। कोन पाबैन कहिया हएत, कोन मासमे कोन फसल लगौल जाएत, कोन गाछक की उपयोगिता छै, कोन गाछक रोगक की उपाय होएत आदिक संग गाम-घरक दंगा-फसाद, जमीनक झंझटि-विवाद इत्यादि हिनक अनुभावात्मक संसार छैन, जेकर क्षेत्रफल बहुत पैघ छैन। एकदिन मण्डलजीक मनमे एलैन जे कोन राज्य कतय अछि? ऐ हेतु ओ एटलस बहार कऽ ताकए लगला। अइसँ हिनका मनमे भ्रमणक इच्छा जगलैन आ बहरा गेला भ्रमणक हेतु। हैदरावाद, त्रिपुरा, अगरतला, असम आ बंगालक भ्रमण केलैन। भ्रमणेटा नहि केलैन बल्कि ओतुक्का संस्कृति, भाषा, परिवेश, लोकरंग इत्यादिकेँ सेहो एक जिज्ञासु सृजनकर्त्ताक रूपमे दर्शन केलैन। 

“असामक उत्तर-पूबसँ लऽ कऽ दच्छिन धरि मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, अरूणाचल, नागालैंड राज्य अछि। ट्रेनक रस्ता थोड़ेक आगू धरि अछि। ऐठामक मुख्य सवारी बस-ट्रक छी। जंगल-पहाड़सँ भरल इलाका। हजारो किस्मक गाछ-बिरीछ। उपजाऊ जमीन कम। ओना, जैठाम रंग-रंगक गाछ-बिरीछ अछि तैठाम खाइबला फल सेहो हेबे करतै। ठढ़िया साग बाध-बोनक घास जकाँ उपजल।” 

“पूर्वांचल (असाम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरूणाचल, नागालैंड आ सिक्कि‍म) मिला अपने-आपमे एक देश छी। जंगल, पहाड़, झील, नदी घाटीक समूह। भाषाक दृष्टिसँ सेहो बहुभाषी अछि। अपन-अपन क्षेत्रक भाषा सेहो छइ। मोटा-मोटी बंगला, अंगरेजी, हिन्दी, खासी, गारो, ककवार्क, मणिपुरी, मिजो, आओ, कोंयक, अंगामी, सेमा, लोथा, मोंपा, अका मिजू, शर्दुकमेन, निशि, अपतनी, हिलमिदि, तगिन, अदी, इदु, दिगारू, मिजिखम्री, सिंगफू, तंगला, नोक्टे, वांचू, लोपचा, भोटिया, नेपाली लिंबू इत्यादि।”  

ऐ प्रकारेँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ आन-आन क्षेत्रक भौगोलिक, सामाजिक, आचार व्यवहार आ प्राकृतिक रूपकेँ दर्शन भेलैन। 

मण्डलजीकेँ अपन पैघ अनुभवसँ अप्रत्यक्ष रूपेँ कम्युनिस्टक आकर्षण बढ़ैत गेलैन। वस्तुत: क्रिया रूपमे जखन अएला तँ पार्टीक मिटिंग, कार्यक्रममे सम्मिलित होइत रहला। गाम-घरमे जमीनक विवादसँ लऽ कऽ आनो-आन केतेको तरहक सामाजिक मुद्दासँ सम्बन्धित केस-मोकदमा लड़ला। केतेको बेर जहलक यात्रा करए पड़लैन। “1999 ई. अबैत-अबैत आशा-निराशाक बीच संक्रमणक स्थिति बनए लगलैन। 1998 ई.मे दफा 307क केसमे सजाए भऽ गेल रहैन। हाइ कोर्टमे अपील होइमे 20-25 दिन लागि गेलैन। तइ समयमे रामपट्टी जेलमे रहैथ। मने-मन आश्चर्य होनि जे बिना किछु केनौं जहलमे छैथ। तहियो आ अखनो मन नै मानि रहल छेलैन‍ जे कोनो गलती हुनकासँ भेल हुअए। खाएर, अपील भेल, जमानत भेलैन।” 

जगदीश प्रसाद मण्डलजी अपन आस-पासमे होइत तमाम घटना, यथा- प्राकृतिक घटना, समय परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन, राजनैतिक परिवर्तन, लोक मानसक परिवर्तनकेँ साकांक्ष भऽ सर्वेक्षण करैत रहला, एकरहि परिणाम अछि जे हिनक रचनामे सभ कथुक दर्शन होइत अछि। 

जगदीश प्रसाद मण्डलजीकेँ नव काल्हि‍ देखैक इच्छा शुरूहेसँ रहलैन। से ओहिना नहि, केलाक पछाइत आरो मजगूत भेलैन। ऐ प्रसंगमे श्री गजेन्द्र ठाकुर लिखित हिनक वायोग्राफीमे आएल अछि- “जेतए परिवारमे साधारण शिक्षाक आगमन भेल छेलैन। तैठाम मण्डलजी एम.ए. तक पढ़लैन। परिवारे नहि, गामेमे पहिल एम.ए. भेला। ओना, पैछला पीढ़ीमे संस्कृतक माध्यमसँ एक-पर-एक विद्वान बेरमामे भेला मुदा जेनरलमे जगदीश प्रसाद मण्डलेटा रहैथ। ..दोसर उदाहरण- बोरिंग-करौने खेतियोमे किछु नवता आबि गेल छेलै गाममे। दुनू रंगक खेती करै छला मण्डलजी। दुनू रंगक सँ मतलब- अन्नो आ नगदियोक। नगदी खेतीमे तरकारी आ फलक खेती सेहो करए लगला। ओना, जइ रूपे करए चाहै छला ओइ रूपे नै होइक कारण छल, किछु समैयोक अभाव आ किछु उपद्रवो। खेतीक एहेन उजाड़ि होइत रहैन जे जौं मारि-झगड़ा करए लगितैथ तँ दिनमे तीन बेर होइतैन। पैघ समस्याक आगू छोट गौण पड़ि जाइ छइ। मुदा मन तोड़ैक तँ अस्त्र भेबे कएल। उपद्रवो चाहे जेतए हउ मुदा मनकेँ प्रभावित तँ करिते अछि। तहूमे खेतीक उजाड़ि जइमे मेहनत आ पूजीक संग समैयक क्षति सेहो होइत।”  

हजारो बर्खक गाछ किछु-ने-किछु अपनामे नवीनता अनिते रहैए। चाहे नव टुसा हउ आकि नव मुड़ी आकि नव पात आकि नव कलश। मण्डलजी पहिने विपुल अनुभव प्राप्त केलाक पछाइत लेखन दिस अग्रसर भेला। 

साहित्यक प्रति हिनक दृष्टिकोण जे छैन ओ द्रष्टव्य अछि- “मैथिली साहित्य जगत समाजसँ एते दूर हटि गेल अछि जे जोड़ब असान नै अछि। ओना, ई सिरिफ मैथिलीए-मे नहि, आनो-आन साहित्यमे भरपूर अछिए। जेना- कबीर दासक चर्च मैथिली साहित्यमे कम अछि मुदा कबीर दासक जे जिनगीक (जीवन पद्धति) इतिहास प्रस्तुत कएल गेल अछि ओ विवेकपूर्ण जकाँ नै अछि। विवेकपूर्ण नै हेबाक कारणेँ कबीर दर्शन समाजसँ हटि गेल अछि। जेहो सभ दर्शनक प्रचार-प्रसार कऽ रहल छैथ ओहो सभ या तँ अपनो गुमराहे छैथ, नहि तँ लाथी छैथ, जे गुमराह केने छैथ। 

तहिना तुलसी दास ‘गोस्‍वामी’ कहबै छैथ, मुदा केतेक गाए पोसने छला? जरूरत अछि युगानुसार साहित्यक निर्माण करब। 

तहिना जाधैर मैथिलियो साहित्य समाजक वस्तु (समाजक साहित्य) नै बनत ताधैर के केकरा की कहै छिऐ से भाँज थोड़े लगत। तँए शुभेक्षु साहित्यकारक दायित्व बनैए जे एक आँखि समाजपर रखि दोसर आँखि जखन कागत-कलमपर रखता तखन मैथिली साहित्ये नहि मिथिलाक कल्याण हएत। राज्यक अर्थ जौं राजधानीक एकटा कार्यालयसँ लइ छी तँए मिथिलाक समाज छुटि जाइए। मिथिलाक समाजिक पद्धति वैदिक पद्धतिसँ आगू बढ़त तखने सर्वांगी‍न विकास हएत।”  

2000 इस्वी धरि जगदीश प्रसाद मण्डलजी समाज सेवामे संलग्न रहला। रूढ़ि एवम् सामन्ती व्यवहारक खिलाफ लड़ाइ लड़ैत रहला, केस-मोकदमा, जहल यात्रादिमे हिनक लगभग चारि दसक समय बीति गेलैन, पछाइत साहित्य लेखनमे एला। द्रष्टव्य अछि- “पैंतीस साल धरि समाज सेवा केला पछाइत अपन हहरैत शरीर देखि किछु लिखै-पढ़ैक विचार जगल।” 

 श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक पहिल रचना औपन्यासिक कृति ‘मौलाइल गाछक फूल’ छिऐन जे 2004 ईस्‍वीमे लिखला। 2008 इस्वी धरिक अवधिमे पाँच गोट उपन्यास, एक नाटक तथा किछु कथादि लिखि चुकल छला। मुदा कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे एक्को गोट रचना प्रकाशित नहि भेल रहैन। तथापि हिनक कलम, लिखबाक क्रम जारी रहलैन- प्रस्तुत अछि ऐ प्रसंगमे हुनकहि लिखल बात- “मौलाइल गाछक फूल 2004 ईस्‍वीमे लिखल पहिल उपन्यास छी। अखन धरि पाँचटा उपन्यास आ किछु कथा, लघुकथा, नाटक सभ अछि। छपबैक जे मजबूरी बहुतो रचनाकारकेँ छैन‍ से हमरो रहल। मुदा तइसँ लिखैक क्रम नै टुटल। ‘भैंटक लावा’ कथा सेहो दू-हजार चारिक पहिल कथा छी।”    

8 नवम्बर 2008 मे मिथिलाक प्रसिद्ध ‘सगर राति दीप जरय’क 64म कथागोष्ठी डॉ. अशोक अविचलक संयोजकत्वमे हुनक गाम- रहुआ संग्राम (मधेपुर)मे आयोजित भेल छल जइमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी उपस्थित भऽ ‘भैंटक लावा’ कथा केर पाठ केलैन। ऐ गोष्ठीमे भाग लेबाक आग्रह डॉ. तारानंद ‘वियोगी’ केने रहैन। ओना, सगर राति दीप जरयक गोष्ठीमे भाग लेबए लेल आयोजक/संयोजकक हकार अनिवार्य नहि होइत अछि। कोनहुँ माध्यमसँ पता चलल वएह भेल हकार। ‘वियोगीजी’सँ जगदीश प्रसाद मण्डलक पहिल भेँट 2008 इस्वीमे मधुबनीमे भेल छेलैन। 

साहित्य क्षेत्रमे जगदीश प्रसाद मण्डलजीक पहिल मञ्च रहुआ संग्राम 64 सगर राति दीप जरय कथागोष्ठीकेँ कहल जा सकैए। जैठामसँ हुनक रचना सार्वजनिक हएब शुरू भेल। ओना, पहिने बेरमा पंचायत आ रहुआ संग्राम, दुनू मधेपुर ब्लौकक अन्तर्गत पड़ै छल। जे कि जगदीश प्रसाद मण्डलजीक कर्म क्षेत्र रहल छैन। समर्पित समाजसेवीक क्रिया-कलाप रहल छैन। 8.11.2008 लक्ष्मीनाथ गोसाँइक स्थानमे कार्यक्रम भेल छल। ओना, केतेक बेर राजनीतिक मञ्चपर रहुआमे बाजि चुकल छला, कर्म क्षेत्र छेलैन तँए कथा वचैमे संकोच नइ भेलैन।   

2008 इस्वीसँ पूर्व जगदीश प्रसाद मण्डलजीक एक्को गोट रचना सार्वजनिक नहि भेल छेलैन। कोनहुँ पत्र-पत्रिकादिमे प्रकाशित नहि भेल छेलैन। पहिल रचना ‘घर बाहर- पटना’सँ प्रकाशित भेलैन। जइ कथाक पाठ रहुआ संग्राममे केने छला, खूब प्रशंसा भेल छेलैन। ऐ प्रसंग मण्डलजीक वानगी निम्नांकित अछि- 

“डॉ. रामानन्द झा ‘रमण’जी ओ कथा मांगि लेलैन। किछुए मासक उपरान्त ‘घर बाहर’ पत्रिकामे प्रकाशित केलैन। सिद्ध पुरुषक स्थानमे प्रतिष्ठा भेटल। डायरी-कलम भेटल। गमछा-पाग भेटल। लक्ष्मीनाथ गोसाँइक मुर्ति सेहो भेटल।”   

घर-बाहरमे एक आर रचना (कथा) प्रकाशित भेलैन। पछाइत ‘मिथिला दर्शन- कोलकाता’मे ‘चुनवाली’ नामक कथा प्रकाशित भेलैन। चुनवाली, भैंटक लावा आ बिसाँढ़, कथा प्रकाशित होइते ‘विदेह’क सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरजीसँ सम्पर्क भेलैन। तेकर बाद मण्डलजीक रचना सभ पुस्तकाकार रूपमे प्रकाशित हुअ लगलैन। ऐ सन्दर्भमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी ‘अप्पन बात’मे लिखलैन अछि- “घर बाहरमे भैंटक लावा आ बिसाँढ़ छपल आ फेर मिथिला दर्शनमे ‘चुनवाली’ कथा पढ़िते अनेको बधाइ फोन आएल जेना- पञ्जीकार विद्यानन्द झाजीक। एकटा महत्वपूर्ण फोन श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक रहल। हिनकर फोन सुनिते जिनगीक ओहन चौबट्टी टपि गेलौं जे चौबीस घन्टाक खुशी मनमे आबि गेल।”  

2009 सँ 2013 इस्वीक बीच जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 27 गोट पोथी श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेल छैन। जइमे हिनका एक्कहु पाइ प्रकाशनक हेतु खर्च नहि देबए पड़लैन। ई चीज स्पष्ट होइत अछि दू ठामसँ, पहिल जे लेखक स्वयं अपन ‘तरेगन’ पोथीक ‘मनमनियाँ’मे लिखने छैथ- “समय-समयपर गजेन्द्रजी (श्री गजेन्द्र ठाकुर, मेंहथ)क आग्रह आ सुझाव आ संगहि श्रुति प्रकाशनक श्री नागेन्द्र कुमार झा आ श्रीमती नीतू कुमारीक भरपुर सहयोग भेटलासँ लिखैक नव उत्साहो आ आशो मनकेँ सक्कत बना देने अछि।”   

आ दोसर- ‘अंशु’ समालोचनाक पोथीमे श्री शिव कुमार झा टिल्लू लिखने छैथ- “जगदीश प्रसाद मण्डलजीक लघुकथा ‘बिसाँढ़’ आ ‘भैंटक लावा’ घर-बाहरमे आ ‘चुनवाली’ मिथिला दर्शनमे प्रकाशित होइते मैथिली पत्रिकाक सम्पादक मण्‍डलक संग-संग प्रबुद्ध पाठकक मध्य हड़होरि मचि गेल। ‘पहिने आउ आ पहिने पाउ’क आधारपर विदेहक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुर हिनक रचना सभकेँ अपन पत्रिकामे छपबए लेल हथिया लेलनि। ऐ‍ प्रकारक शब्‍दक प्रयोग करबाक हमर तात्‍पर्य अछि जे जगदीशजी कोनो नव रचनाकार नै छथि, तिरसठि बर्खक माँजल साहित्यकार छथि, मुदा हिनक रचनाक प्रदर्शन नै भेल छल। समग्र रचना-संसार हिनक पुत्र श्री उमेश मण्‍डलजीक कम्‍प्‍यूटरमे ओझराएल छल किएक तँ छपबैले कैंचा केतएसँ आएत?”   

ऐ तरहेँ जगदीश प्रसाद मण्डलजीक आगमन मैथिली साहित्यक दुनियाँमे होइ छैन। बिनु पाइक अर्थात् बिनु खर्चेक पोथी प्रकाशन मैथिली साहित्यमे नव उदाहरण छल। जगदीश प्रसाद मण्डलजीक 27 गोट पोथी एकसंग श्रुति प्रकाशन, दिल्लीसँ प्रकाशित भेलैन। वर्तमानमे ओही तरहेँ पोथीसभक प्रकाशन पल्लवी प्रकाशन, निर्मलीसँ भऽ रहलैन अछि।

प्रस्तुत अछि मण्डलजीक रचना संसार- लघु कथा संग्रह- 01. गामक जिनगी, 02. अर्द्धांगिनी, 03. सतभैंया पोखैर, 04. गामक शकल-सूरत, 05. अपन मन अपन धन, 06. समरथाइक भूत, 07. अप्‍पन-बीरान, 08. बाल गोपाल, 09. भकमोड़, 10. उलबा चाउर, 11. पतझाड़, 12. गढ़ैनगर हाथ, 13. लजबि‍जी, 14. उकड़ू समय, 15. मधुमाछी, 16. पसेनाक धरम, 17. गुड़ा-खुद्दीक रोटी, 18. फलहार, 19. खसैत गाछ, 20. एगच्छा आमक गाछ, 21. शुभचिन्तक, 22. गाछपर सँ खसला, 23. डभियाएल गाम, 24. गुलेती दास, 25. मुड़ियाएल घर, 26. बीरांगना, 27. स्मृति शेष, 28. बेटीक पैरुख, 29. क्रान्तियोग, 30. त्रिकालदर्शी, 31. पैंतीस साल पछुआ गेलौं, 32. दोहरी हाक, 33. सुभिमानी जिनगी, 34. देखल दिन, 35. गपक पियाहुल लोक, 36. दिवालीक दीप, 37. अप्पन गाम, 38. खिलतोड़ भूमि, 39. चितवनक शिकार, 40. चौरस खेतक चौरस उपज, 41. समयसँ पहिने चेत किसान, 42. भौक, 43. गामक आशा टुटि गेल, 44. पसेनाक मोल, 45. कृषियोग, 46. हारल चेहरा जीतल रूप, 47. रहै जोकर परिवार, 48. कर्ताक रंग कर्मक संग, 49. गामक सूरत बदैल गेल, 50. अन्तिम परीक्षा, 51. घरक खर्च, 52. नीक ठकान ठकेलौं, 53. जीवनक कर्म जीवनक मर्म, 54. तरेगन, 55. बजन्ता-बुझन्ता, 56. शंभुदास, 57. रटनी खढ़, 58. संचरण, 59. भरि मन काज, 60. आएल आशा चलि गेल, 61. जीवन दान तथा 62. अप्पन साती।

कविता संग्रह- 1. इन्द्रधनुषी अकास, 2. राति-दिन, 3. तीन जेठ एगारहम माघ, 4. सरिता, 5. गीतांजलि, 6. सुखाएल पोखरि‍क जाइठ, 7. सतबेध, 8. चुनौती, 9. रहसा चौरी, 10. कामधेनु, 11. मन मथन, 12. अकास गंगा। 

नाटक- 01. मिथिलाक बेटी, 02. कम्प्रोमाइज, 03. झमेलिया बिआह, 04. रत्नाकर डकैत, 05. स्वयंवर। 

एकांकी संचयन- 13. पंचवटी।

एकांकी- 01. कल्याणी, 02. सतमाए, 03. समझौता, 04. तामक तमघैल, 05. बीरांगना। 

उपन्यास- 01. मौलाइल गाछक फूल, 02. उत्थान-पतन, 03. जिनगीक जीत, 04. जीवन-मरण, 05. जीवन संघर्ष, 06. नै धाड़ैए, 07. बड़की बहिन, 08. भादवक आठ अन्हार, 09. सधवा-विधवा, 10. ठूठ गाछ, 11. इज्जत गमा इज्जत बँचेलौं, 12. लहसन, 13. पंगु, 14. आमक गाछी, 15. सुचिता, 16. मोड़पर, 17. संकल्प, 18. अन्तिम क्षण, 19. कुण्ठा। 

प्रबन्ध-निबन्ध-समालोचना- 01. पयस्विनी। 

‘सगर राति दीप जरय’ मैथिली कथा-साहित्य गोष्ठीमे जगदीश प्रसाद मण्डलजी नियमित रूपसँ उपस्थित होइत रहला हेँ। 81म कथागोष्ठी श्री ओम प्रकाश झाक संयोजकत्वमे देवघर (झारखण्ड)मे आयोजित भेल छल। जेकर अध्यक्षता श्री जगदीश प्रसाद मण्डल ओ मञ्च संचालन श्री गजेन्द्र ठाकुर केने छला। श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक उक्त अध्यक्षीय उद्बोधन यथावत निम्नांकित अछि- 

“उदय-प्रलय शाश्वत सत् जहिना छै तहिना जिनगियो आ जिनगीक किरिया-कलाप सेहो छइ। मैथिली साहित्याकाशमे बीसम शताब्‍दीक आठम दशक ओहने ऊर्जावान साहित्यकारक टोली छल जेहेन बरसातक पछाइत‍‍ ओस-पाला, गर्दा-धूरासँ स्वच्छ  वायुमण्डलक संग अकास रहैए। एक संग हरिमोहन बाबू (हरिमोहन झा), तंतर बाबू (तंत्रनाथ झा), मधुपजी (काशीकान्त  मिश्र ‘मधूप’), किरणजी (काञ्चीनाथ किरण), मणिपद्मजी (ब्रज किशोर वर्मा ‘मणिपद्म’), शेखरजी (शुधांशु शेखर चौधरी), योगाबाबू (योगानन्द झा), राघवाचार्यजी, (बोध नारायण झा), बहेड़जी (राधाकृष्ण झा ‘बहेड़’) आ राधाकृष्ण चौधरीजी सन मैथिली साहित्यकाशमे दुनियाँक सभ दिशा देखनिहार छला। दार्शनिक रहितो हरिमोहन बाबूकेँ मैथिली साहित्य हास्यसँ आगू नै बढ़ए देलकैन! एकैसम शदीक मांग अछि जे हुनक समीक्षा मिथिलाक चिन्तनधारा, अध्‍यात्म दर्शनक कसौटीपर हुअए। तहिना राधाकृष्णजीक इतिहासक मूल तत्त्वक सेहो। चौधरीजीक इतिहास समाजमे पाठकक बीच एक नब सोच आ नब दृष्टि दैत अछि तँए ओइ दृष्टिसँ हुनका देखल जाए। भऽ सकैए किछु पोथी हाथ नै पड़ल होइन‍, मुदा इतिहासो तँ इतिहासे छी। जे अखन‍ तक राजा-रजबारासँ आगू नै बढ़ल अछि, तैठाम इतिहासक पूर्णता देखब उचित नहि। दुर्भाग्य रहल अछि जे अखन‍ धरिक इतिहास सामाजिक ताना-बानाकेँ नीक जकाँ नै ताकि सकल अछि। अखनो मिथिलाक खान-पान आ घर-दुआर अपन आदिम स्वरूपकेँ बँचौने अछि। मात्र देखैक नजैरक जरूरत अछि। जे मधुपजी पोरो सागकेँ देखि सकै छैथ ओ साग खेनिहारकेँ नै देखि पबितैथ? रहस्यमय अछि। किरणजी तँ सहजे मैथिलीक किरणे छला‍। कठही पैडिलक साइकिलपर शतरंजी चौपेतले रहै छेलैन‍। शरदक चान जकाँ चमकैत सोभाव। मात्र चाहपर अभ्‍यागती! बीचमे एकटा प्रश्न उठैए, ओहन टोली आइ किए ने? साहित्यजगतमे जागरण छल, समाजक बीच जिज्ञासा छल जे कि साहित्य हमरो छी। किरणजीक स्‍पष्ट कहब छेलैन‍, जहिना बजै छी तहिना लिखू, जहिना समाजकेँ देखै छिऐ तेहने विषय बनाउ, वएह भेल साहित्य। जेहने विचार किरणजीक रहैन‍ तेहने विचार राहुल सांकृत्यायनजीक सेहो रहैन‍। हुनको कहब छैन‍‍ अपन बात आन आ आनक बात अपने नीक जकाँ बुझि जाइ, वएह भेल ओइ भाषाक व्याकरण। भाषाक धाराक अंग भेल शब्‍द। भाषाक धारा ओइसँ वृहत अछि। आन भाषा केना आन भाषामे प्रवेश करैए ओ अलग प्रक्रि‍या भेल। मणिपद्मजी, सचमुच साहित्यक मर्म बुझनिहार मणिपद्म भेला। ओना अपनो जिनगीक अनुभव आ दरभंगा जिलाक पुबरिया हिस्‍साक अखनो की गति अछि ओइ अनुकूल हुनक सृजन छैन‍‍। बेछप साहित्यकार। एकभग्‍गू कविए मात्र नै छला, लोकगाथाक मर्म बुझनिहारो छला। आठम दशक उर्वर होइक कारण यएह सभ छला। जहिना आठम दशकक उर्वरता छल तहिना नअम दशक उसराह बनैत गेल, बनियेँ गेल। मुदा तैयो साहित्यक धार बहिते रहल अछि। एकटा बात आरो, आठम दशक ओहन रहल, जइमे गाम-गाममे हेराएल-भुतिआएल किछु साहित्यकार सेहो भेटला। मुदा अखनो बहुत हेराएल छैथ। किछु हेराएलो गेला। 


सगर राति दीप जरय, कथा गोष्ठीक आयोजनक अवधारणाक जन्म किरणजीक जयन्‍तीक अवसरपर लोहना (धर्मपुर)मे एकत्रित साहित्यकारक बीच भेल। मुदा साकार भेल प्रभास कुमार चौधरीजीक माध्यमसँ। एकटा बात बीचमे, किरणजी सन खोद-बेद केनिहारक जयन्तीक अवसर‍, दोसर प्रभासजीक स्थापना। जिनक बेछप जिनगी, बेछप सोच, बेछप सृजन, बेछप नजैर‍..। असीम जिज्ञासाक सम्‍वेदना रग-रगमे रमल छेलैन‍। जेकर परिचय जीवन्त रचना अखनो दाइए रहल छैन‍‍। 

साहित्यकारक बीच सहमत बनल जे जहिना पंजाबी सहित्यमे ‘दीवा जले सारी रात’ कथा गोष्ठी भरि रातिक होइए, तहिना मैथिलियोमे हुअए। नब उत्‍साह नब जिज्ञासाक संग प्रभास भाय डेग उठौलैन‍। मनमे छेलैन‍ जे साहित्‍यि‍क धारा समाजक संग चलए। मुदा किछुए साल पछाइत‍‍ मरि गेला। 

पहिल कथा गोष्ठीक आयोजन मुजफ्फरपुरमे भेल। ओतए प्रभासजी नोकरी करै छला। रेणुजीक अध्यक्षतामे गोष्ठी भेल। रेणुजी सेहो समाजकेँ निष्पक्ष ढंगसँ देखै छला। तइ दिनसँ अखन‍ धरिक कथा गोष्ठी मैथिली साहित्यक धरोहर छी, पूजी छी। एक तँ कथा गोष्ठी, दोसर साहित्यक मुख्य विधा, तँए पहिल सन्तानो कहल जा सकैए। 

पहिल कथा गोष्ठी जनवरी 1990 इस्वीमे भेल। पहिल गोष्ठीमे कथापाठ केने रहैथ‍, रमेशजी- ‘थाक’, श्रीनिवासजी (शिव शंकर श्रीनिवास)- ‘वसातमे बहैत लोक’, विभूति आनन्दजी- ‘अन्यपुरुष’, अशोकजी- ‘पिशाच’, सियाराम सरसजी- ‘ओहि साँझक नाम’, प्रभासजी- ‘खूनी’, रविन्द्र कुमार चौधरीजी सेहो कथा पाठ केलैन‍। तैबीच डॉ. नन्द किशोर जे एल.एस. कौलेजक नीक शिक्षक, हिन्दीमे कथा पाठ केलैन‍। मुदा दुर्भाग्य ईहो जे ओ मैथिलीभाषी रहितो हिन्दीमे पाठ केलैन‍। समीक्षको छैथ। कथाक समीक्षक रूपमे कथाकारक संग रामानन्द झा ‘रमण’जी, भीम भाय (भीमनाथ झा), मोहन भारद्वाजजी, जीवकान्त, कथा पाठ जीवकान्त केलैन‍ कि नहि से जनतबमे नइ अछि। इत्यादि समीक्षकक संग किछु दर्शको रहबे करैथ‍। 

तेसर कथा गोष्ठीसँ पोथीक लोकार्पण शुरू भेल, जे बढ़ैत-बढ़ैत दरभंगा गोष्ठी शीर्षपर पहुँच गेल। एक संग पैंतीस-चालिसटा पोथीक लोकार्पण! निर्मली कथा गोष्ठीसँ पूर्ब धरि शीर्षपर रहल। निर्मली गोष्ठीमे पैंतालि‍स-पचासटा पोथीक लोकार्पण भेल। कथा गोष्ठीसँ कथाधारामे एक गति आएल, नब-नब रचनाकारक प्रवेश गोष्ठीमे होइत रहल, गोष्ठी आगू बढ़ैत रहल। मुदा गोष्ठीक बीच एकरूपता नै रहल, केतौ एहेन आयोजन भेल जे साँझसँ भोर भेलो पछाइत‍‍ कथाकारक कथा रहि जाइ छैन‍‍ तँ केतौ अधरतियेमे बेवस्थापक चाह-पान समेट‍ लइ छैथ, खाएर जे भेल। साहित्य गोष्ठी साहित्यकारक मञ्च छी। जइ मञ्चपर सभकेँ अपन विचार रखैक हक छैन‍‍। जखन‍ सभ कियो मिथिलाक विकास चाहै छी तखन‍ मत-मतान्तर किए? कथा गोष्ठीक संग कथा-विचार मंचोक तँ जरूरत‍ ऐछे। लिखैक मानदण्ड, समीक्षाक मानदण्ड के बनौत? समयानुकूल दृष्टिये तँ समसामयिके ने जिम्मा भेल। समसामयिक रचनाकारक रचनाकेँ स्‍तरानुसार सिलेबसमे स्थान आवश्यक अछि। 

दुनियाँमे पैघ-पैघ शिक्षण संस्थान जनसहयोगसँ चलि रहल अछि, की अपना ऐठाम नै चलि सकैए? एकटा विश्वविद्यालय अछि, रेडियो स्‍टेशन अछि, ओ केना नीक जकाँ बढ़ि सकए, सबहक जिम्मा भेल। एकटा विश्वविद्यालय अछि, जे सोलहन्नी सरकार दिस तकैए, तहूमे लूटिक बाढ़ि छइहे, तइसँ केते आशा कएल जा सकैए। मिथिलामे पाइबला शिक्षण प्रेमी नै छैथ, सेहो बात नै अछि। गजेन्द्रजीक (गजेन्द्र ठाकुर) सम्पादनमे नागेन्द्रजीक (नागेन्द्र झा, श्रुति प्रकाशन) सहयोगसँ केते पोथी प्रकाशित भेल अछि ओ अपने-आपमे एकटा उदाहरण अछि। ओना बेकतीगत रूपमे गजेन्द्रजीकेँ केना बिसरल जाए जे टैगोर पुरस्कारमे एँड़ी-चोटी एक केने छैथ। कोंचिन जाइ काल पटना एयरपोर्टपर अपन गाड़ीसँ पहुँचा सभ किछु देखा-सुना दुर्गानन्द मण्डलक संग विदा केलैन‍। स्‍पष्ट सोच छैन‍‍ जे आर्थिक दृष्टिये कमजोर रचनाकार लोकनिक रचना प्रकाशित करब। से करबो केलैन‍ आ करितो छैथ। 


अन्तमे, बेवस्थापक ओम बाबू (ओम प्रकाश झा) निर्मली गोष्ठीमे अपन गजल संग्रह नेने लोकार्पण करबए पहुँचला। ओना किछ-किछ पहिनौंसँ बुझल छल मुदा चेहरा देखि झुझुआ गेलौं। किछु करैक जिज्ञासा तँ मनमे छैन्‍हे। ऐगला बात आगू, अखन‍ तँ अशे धरि। अन्तमे, अन्हरा-अन्हरी माए-बापकेँ कन्‍हेठ जहिना श्रवणकुमार चारू धाम देखबए विदा भेला तही आशाक संग अपन दू शब्‍दमे विराम लगबै छी। धन्यवाद! जय मैथिली।” 

‘सगर राति दीप जरय’क शतांक आयोजनक अवसरिपर सेहो श्री जगदीश प्रसाद मण्डलक वक्तव्य महत्वपूर्ण रहल छैन। उक्त कथागोष्ठी निर्मली (सुपौल) मे दिनांक 22 दिसम्बर 2018क आयोजित भेल छल। जइमे सगर ‘राति दीप जरय’क मादे ‘शुभकामना’ व्यक्त केने छला। प्रस्तुत शुभकामनाकेँ रेकॉडिग कऽ लिपिबद्ध कएल यथावत रूप निम्नांकित अछि- 

“आइ अध्यक्ष वा अन्य पदाधिकारीक चुनाव तँ नहियेँ भेल। ई नीक बात, तँए अध्यक्षजीक सम्बोधन केना करी, तखन विद्वज्जन...।  

आइ सौमा कार्यक्रमकेँ पाबैन हम-सभ मना रहल छी और ऐ पाबैनकेँ कोनो कार्यक्रम–जे साहित्यिक कार्यक्रम होइ वा राजनीतिक कार्यक्रम होइ–भार लेनिहारमे जखन ई भावना आबि जाइ छैन जे कार्यक्रम अप्पन छी, जँ केतौ त्रुटियो भऽ रहल हेन तँ ओकरा अनठबैत, कार्यक्रमकेँ अधिक-सँ-अधिक सफल केना बनाबी, नीक-सँ-नीक केना बनाबी..; ई औझुका कार्यक्रमक स्पष्ट प्रमाण अछि। जे सबहक जिज्ञासा एहेन रहलैन जे कार्यक्रम सफल हुअए...! 


ऐठाम पैघ-पैघ बहुत लोक सभ छैथ, पैघ-पैघ माने साहित्यिक क्षेत्रमे, साहित्यिक काज केनिहारक क्षेत्रमे...। आइ भाषाक दृष्टिकोणसँ अहाँ कहबै जे कि मैथिलीकेँ की जान छै? तँ एक्केटा शब्द हम कहब जे अंगरेजी डिक्सनरी लिअ और अहाँ मैथिलीमे, डिक्सनरी नइए जँ कियो लिखनौं छैथ तँ प्रकाशित जकाँ नइ भेल छै, भऽ सकै छै जँ गोटे-आधे प्रकाशित भाइयो गेल होइ तँ, हम नइ देखलिऐ हेन। जे एकटा, जैठाम एकटा शब्द अंगरेजीमे छै तैठाम मैथिलीमे अहाँकेँ दर्जनो शब्द ओइ शब्दक छइ! एतेक समृद्ध भाषा मैथिली अछि। जनभाषा छिऐ। और ई धरतीसँ ऐ भाषाक जन्म भऽ रहलै हेन, आ हेतइ, आगूओ हेतइ। भाषाक जन्म और भाषाक विकास अवरूद्ध नै कहियो हेतै, ओ समयक अनुकूल परिवर्तित होइत चल जेतइ! और बढ़ैत जेतइ...!   


तँए भाषा कमजोर नइए। हँ, साहित्यक क्षेत्रमे भलेँ कहबै जे रचना हमरा सबहक कम अछि। और रचनो जे अछि ओइमे सभ विधापर...। समाजकेँ..। आइ, हम सभ अतीत दिस कनी बेसी बढ़ि जाइ छी, जे रचनाकारमे हमरा कनीक दोष बुझाइए। ई बात जरूर जे ओ इतिहास छी, ओ पुराण छी, ओ परम्परा छी..! मुदा ओकरा ओइ दायरामे राखए पड़तै। ओकरा अगर आइ हम वर्तमान वा भविसकेँ नजैरमे राखि कऽ जँ मनुखकेँ देखबै तँ ओ कल्याणकारी नइ हेतइ। कल्याणकारी लेल दुनू दिस देखए पड़त। ओइसँ अहाँकेँ सीख लिअ पड़त- अतीतसँ, मुदा ओकरे पूजा-पाठमे उतारि देबै, ओकरे हम भविस बनाकऽ ओही दिशामे बढ़ि जेबै तखन साहित्य अवरूद्ध भऽ जेतइ। 

औझुका जे कार्यक्रम देखलौं हेन जइमे ठीके शिवकुमार बाबू कहलैन हेन जे “किछु गोरे ग्रूप बना कऽ..!” 

मुदा नहि.., आइ जहिना एकठाम सभकियो एक विचारसँ, एक समस्याकेँ मानि कऽ, जे मैथिलीक कल्याणक सबाल अछि ऐ बिन्दुपर अगर जँ हम एकजुट भऽ अहिना आगू बढ़ैत रहब तँ मैथिलीक विकास, जे चाहै छिऐ, विकास तँ भाइये रहलै हेन आ हेबै करतै, ओ तँ विकासक एक प्रक्रिया छिऐ, ओ तँ समयक मांग छिऐ, ओ रूकतै नहि, भलेँ ओ मनथर गतिसँ होइ वा द्रूत गतिसँ होइ, तँए चाहब जे अधिक-सँ-अधिक कार्यक्रम अहाँक साहित्यमे हुअए, अधिक-सँ-अधिक हमसभ एकठाम भऽ कऽ अपन विचारक जे ‘आदान-प्रदान’ अछि ओ करैत रही। किए? आइ, मानि लिअ जे अहूँ नीक चाहि रहलिऐ हेन जे मैथिलीक कल्याण होइ, हमहूँ चाहि रहलिऐ हेन जे मैथिलीक कल्याण होइ, तखन मतभेद केतए? फेर मतभेद केतए भऽ जाइए? सभ दृष्टिकोणमे...।  ऐठाम जे इतिहास रहलै हेन, इतिहासे नहि रहलै हेन, जेकरा ‘वैदिक बात’ कहै छिऐ वा ‘शास्त्रीय बात’ कहै छिऐ ओहीमे दू दिशा भऽ गेलिऐ! सभठाम..! 

आब, जेना ऐठाम ब्रह्मेक विषयमे लिअ, कियो अद्वैत मानलैन, कियो द्वैत मानलैन, कियो द्वैताद्वैत मानलैन, कियो विशिष्टाद्वैत मानलैन...। ढेर तरहक विचार, ढेर तरहक विचारक जरूरत और ढेर तरहक मतवाद जे छै जे उठि कऽ ठाढ़ भऽ गेल। तँए ई सभ अलग बिन्दु अछि। मुदा मैथिली, जे अपना सबहक भाषा छी, अपना सबहक साहित्य छी, ई केकर छिऐ, केकरा-ले छिऐ? ऐ चीजकेँ नजैरमे राखि हम सभ मैथिलीकेँ दशा-दिशा दिऐ। और मैथिलीक प्रगतिक माने मैथिलीक भाषा कि मैथिली साहित्यक प्रगति नहि होइ छै, मिथिला समाजक होइ छै, हमर-अहाँक होइ छइ। ई कल्याणकारी बात एकरे भीतरमे छिपल छै, ऐपर हम सभ नजैर राखी और अहिना कार्यक्रम अनवरत चलैत रहए। 

और दिलीपोजीकेँ हम आग्रह करबैन जे सघन कार्यक्रमक दिशामे.., अहाँ जेनरल हकार दियौ कोनो कार्यक्रम होइ, हम जेनरल हकार दिऐ कोनो कार्यक्रममे, अहिना जे कियो छैथ, कमल बाबू छैथ। सभ कियो कार्यक्रम कऽ रहला हेन। नारायण बाबू छैथ, ईहो बहुत सक्रिय लोक छैथ, आ बहुत कार्यक्रम कऽ रहला हेन। सभकियो एकदम समान दृष्टिसँ, जेनरल दृष्टिकेँ अपनाकऽ जे सबहक कार्यक्रम छी, सबहक चीज छी, हम सभ एकठाम बैसी। कियो आबैथ, कियो नइ आबैथ अइमे तँ बहुत तरहक बात होइ छइ। केते गोरेकेँ कए तरहक समस्या भऽ जाइ छैन, कए तरहक समस्या उपस्थित भऽ जाइ छैन। एकर माने ई नइ हेबाक चाही जे एह! फल्लाँ रूसि रहला तँए फल्लाँ नइ एला..। नइ गलत बात! ई बात नइ हेबाक चाही। हम सभ एकजुट भऽ कऽ अहिना जहिना मैथिली भाषा और साहित्यक झण्डा उठा कऽ आइ सौमा कार्यक्रम कऽ रहलिऐ हेन तहिना उठा कऽ फेर हम सभ ऐगला सौ केर बाद जे कार्यक्रम छै, और अनेको जे कार्यक्रम छै, ओइ सभमे अहिना सक्रिय बनल रही और अहिना कार्यक्रम चलैत रहए...। 

औझुका कार्यक्रमकेँ जे सफल बनेबाक लेल विद्वज्जन एकठाम भऽ सौमा पाबैन मना रहल छैथ ऐ लेल हम बहुत खुशी छी और चाहब जे अहिना हमरा सबहक अनवरत गाड़ी चलैत रहए। अही आशाक संग हम अपन विचारमे विराम दइ छी।” 

जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्य सेवा लेल समय-समयपर सम्मान/पुरस्कार सेहो भेटैत रहलैन अछि। यथा- विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा ‘गामक जिनगी’ लघु कथा संग्रह लेल ‘विदेह सम्मान- 2011’, ‘गामक जिनगी व समग्र योगदान हेतु साहित्य अकादेमी द्वारा- ‘टैगोर लिटिरेचर एवार्ड- 2011’, मिथिला मैथिलीक उन्नयन लेल साक्षर दरभंगा द्वारा- ‘वैदेह सम्‍मान- 2012’, विदेह सम्पादक मण्डल द्वारा ‘नै धारैए’ उपन्यास लेल ‘विदेह बाल साहित्य पुरस्कार- 2014’, साहित्यमे समग्र योदान लेल एस.एन.एस. ग्लोबल सेमिनरी द्वारा ‘कौशिकी साहित्य सम्मान- 2015’, मिथिला-मैथिलीक विकास लेल सतत क्रियाशील रहबाक हेतु अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा- ‘वैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ सम्मान- 2016’, रचना धर्मिताक क्षेत्रमे अमूल्य योगदान हेतु ज्योत्स्ना-मण्डल द्वारा- ‘कौमुदी सम्मान- 2017’, मिथिला-मैथिलीक संग अन्य उत्कृष्ट सेवा लेल अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा ‘स्व. बाबू साहेव चौधरी सम्मान- 2018’, चेतना समिति, पटनाक प्रसिद्ध ‘यात्री चेतना पुरस्कार- 2020’, मैथिली साहित्यक अहर्निश सेवा आ सृजन हेतु मिथिला सांस्कृतिक समन्वय समिति, गुवाहाटी-असम द्वारा ‘राजकमल चौधरी साहित्य सम्मान- 2020’, भारत सरकार द्वारा ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार- 2021’ तथा साहित्य ओ संस्कृतिमे महत्वपूर्ण अवदान लेल अमर शहीद रामफल मंडल विचार मञ्च द्वारा ‘अमर शहीद रामफल मंडल राष्ट्रीय पुरस्कार- 2022’ 

अन्तमे, हम समस्त विद्वज्जनक प्रति सदा अभारी रहबाक विचार व्यक्त कऽ रहल छी, जनिक प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पाबि ऐ कार्यकेँ कऽ सकलौं अछि। संगे, आदरणीय प्रो. धीरेन्द्र कुमार, श्री राजदेव मण्डल, श्री नन्द विलास राय, श्री रामविलास साहु आ श्री दुर्गानन्द मण्डलजी केँ केना बिसैर सकबैन जे डेग-डेगपर संगे रहै छैथ। पल्लवी, तुलसी, मानू आ पत्नी-पूनम-दे की कही, हिनकहि सबहक सहयोगे हमरा द्वारा कोनो कार्य सम्भव भऽ पबैत अछि। 

जय मैथिली.. जय साहित्य.. आजुक जीवन आजुक साहित्य.! ■


-उमेश मण्डल

तुलसी भवन, निर्मली 

सुपौल


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