बगवार
पोथीक मादे
ई जिनगी जँ समुद्र छी तँ
एकर गहराइ की छी? एकर गहराइ पैरुख छी, जेकर अन्दाज लगेनाइ बड़ कठिन
होइत अछि। की महाबली भीम हनुमानजीक शक्तिक अन्दाज लगा सकला? भीम
तँ सिरिफ एकटा बुढ़ बानर आ तागतहीन बानर हनुमानकेँ बुझै छेलैन, मुदा हुनक नाँगैरोकेँ रस्तापर सँ ने हटा सकला।
तहिना ऐ समुद्रक सतह
प्रत्यक्ष जिनगी छी,
जेतए बेकती अपन जीवनक गतिविधिमे लागल रहैत अछि अथवा अपन जीवन-यापन
करैत अछि। ई एकटा रंगशाला जकाँ अछि। ऐठाम जीवनमूल्यक नाटक खेलल जाइत अछि जे कर्मक
सम्वादपर रचल रहैत अछि आ बेकती अपन-अपन भूमिकामे रहैत अछि। कर्म, कर्त्तव्य आ पाठ ओकरा बसक चीज तँ छी, परंच फल परिणाम
आ रिजल्ट ओकरा बसक बाहरक चीज छी। फल देनिहार वा तँ निदेशक छी वा दर्शक-दीर्घा।
मुदा जेहेन पाठक प्रस्तुतीकरण होइत अछि, तेहने फल भेटैत अछि।
अंगरेजीमे एगो कहावत अछि- ‘As you sow, So you reap’ गीताक श्लोक: ‘कर्मन्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’।
तहिना ऐ समुद्रक
लहर-ज्वार आ भाटा बेकतीक संघर्ष आ परीक्षाक प्रतीक छी। बिनु संघर्षे कियो आगाँ नइ
बढ़ि सकैत अछि। उन्नति,
विकास आ तरक्की लेल ज्वार आ भाटाक प्रहार सहए पड़त, धैर्य राखए पड़त, किएक तँ ‘संघर्ष’
जिनगी छी।
तँए, कहए चाहै छी जे
ऐमे जँ पछुआएब, अर्थात् कर्मक प्रधानता नहि देब तँ सभ किछुमे
पाछू पड़ि जाएब, तरक्की नइ हएत आ मुहेँभरे खसबो करब। ध्यान
देल जाउ-
“नाह धारमे ठाढ़
भेल अछि
कर्मक लिअ पतवार
माया-तृष्णाकेँ तटपर
छोड़ू
नाह लाउ अइ पार।”
समुद्रक लहरमे दू तरहक
वेग होइत अछि। एक ऊपर दिस जाइत अछि जे ज्वार भेल आ दोसर निच्चाँ दिस अबैत अछि
जेकरा भाटा कहल जाइए। ‘ज्वार’ बेकतीक प्रगतिक संकेत छी आ ‘भाटा’ अवनतिक। हम ई कहए चाहै छी जे जिनगीमे संघर्ष
सुनिश्चित अछि आ बिना संघर्षसँ निखार नइ आबि सकत, जेना सोना
धातु बेसी तखने चमकैत अछि आकि लौकैत अछि जखन ओकरा आगिमे धिपाएल-तपाएल जाइत अछि।
तँए, संघर्षकेँ स्वीकार करब अर्थात् दुखमे धीरज राखब
बुद्धिमता भेल। की भारतरत्न, संविधान शिल्पी डॉ. भीमराव अम्बेदकरक
संघर्षकेँ हम बिसैर सकै छी?
द्रष्टव्य अछि-
“दलितक बेटा
गरीब-अछूत
ओकरा नइ छल स्कूलमे छूट
सदिखन ओकर अपमान होइ छल
स्कूलक बाहरेमे बैसाबै
छल।
अपमानक विष पीब जीबैत छल
बुझियौ नित्य घुटि-घुटि
मरैत छल
मुदा तपल दिमाग छेलै तेज
भारतसँ चलि गेल ओ विदेश।
विदेशसँ अनलैन ओ डिग्री
नअ भाषामे उत्कृष्ट
डिग्री
भेला ओ भारतक
संविधान-शिल्पी
संघर्षसँ केलैन देश-भक्ति।”
तहिना माए सावित्री
ज्योतिबा फूले सेहो जीबट बान्हि बालिका-शिक्षाक बीजारोपण केलखिन, जेतए समाज
बालिका-शिक्षाकेँ अभिशाप बुझै छल, तैठाम पूज्यनीया ई माए
ओकरा वरदान सावित केलखिन। जेना-
“बालिका-शिक्षा अभिशाप
छी
समाजमे आनत प्रलयकाल
नारी जँ पढ़ि-लिखि लेत
तँ
धर्मक आएत विनाशकाल।”
ई समाजमे अन्धविश्वास
पसरल छल। आकि पण्डित,
धर्मगुरुक चलाकी छल? जे छल। मुदा माता
सावित्री फूले संकल्पित भऽ कऽ शिक्षाक इजोत बाड़ैत गेली आ भारतक प्रथम महिला शिक्षिकाक
उपाधिसँ सम्मानित भेली।
समाजक, मानवक आ इंसानक
व्यथा-कथा देखि आ लोकक करुण-कलवित मनोदशा देखि जैठाम लोक परिस्थितिसँ डेराए जाइत
अछि आ संघर्ष केनाइकेँ छोड़ि दैत अछि, अथवा बेसी सुविधा पाबि
कनकक निशामे स्वयं परिस्थितिक जाल बुनि लैत अछि आ ओइमे फड़फड़ाए लगैत अछि, ओमहर रंगल नढ़िया बनि लोक ओकरा नोचए लगैत अछि। यौ भाय, केकरो जिनगी देबए ने चाहै छिऐ, तँ किएक ओकर जिनगी
लिअ चाहै छिऐ?
अही सभ परिपेक्ष्यमे
प्रस्तुत पोथी ‘बगवार’ लिखैक खगता अपना बुझि पड़ल। मानवीय
कल्यानार्थ पद्यमे लिखैक कारण ई जे पद्यक पाँति बेसी देर धरि मोन रहैत अछि। ऐ
मैथिली पोथीमे नायक जगूजीक अति संघर्षक कथा, जीवन चरित्र आ
मानवीय सेवाक दर्शन भेटत।
‘बगवार’ मैथिलीमे अप्पन पहिल कृति छी। ऐसँ पूर्व श्लाधनीय सम्मानित आ महा मानव
आरणीय श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक मैथिलीमे लिखल ‘पंगु’
उपन्यास आ ‘जगदीश प्रसाद मण्डल एक बायोग्राफी’,
लेखक गजेन्द्र ठाकुर, ई दुनू पोथीक हिन्दीमे
रूपान्तरण केने छी। ओ ऐ दुआरे जे मैथिली शिल्पी आ मिथिला विकास पुरुष आरणीय श्री
जगदीश प्रसाद मण्डलजीक प्रेरणासँ हमहूँ हिनके अनुसरण करैत लिखैक प्रयास करै छी।
एतबे नहि, बीच-बीचमे हमरा पल्लवी प्रकाशन, निर्मलीक परिवारक आ डॉ. उमेश मण्डलजीक सहयोग आ सहानुभूति भेटैत रहल अछि
जइसँ लेखन क्षमतामे आरो निखार अबैत गेल। हम हिनका सभकेँ धन्यवाद दइ छिऐन। विशेष
रूपमे आमुख लिखिकऽ हमर ऐ पोथीकेँ सम्मानित केनिहार आ अइकेँ लेल अप्पन कीमती समय
देनिहार, किएक तँ आजुक दौरमे समय मुश्किलसँ निकलैत अछि, आरणीय सम्पादक-साहित्यकार गजेन्द्र ठाकुरजी एवम् आरणीय दुर्गानन्द
मण्डलजीकेँ धन्यवाद दइ छिऐन।
‘बगवार’केँ
उपवन जकाँ सजौनिहारक सूची तँ नमहर अछि मुदा हम किछु साहित्यकार, रचनाकार आ समीक्षकक नाओं लइ छी- चर्चित समीक्षक लालदेव कामत, प्रसिद्ध कथाकार नन्द विलास राय, लेखक-समीक्षक दुर्गानन्द
मण्डल, दिव्य सलाहकार आ लेखक डॉ. उमेश मण्डल, समाज-सेवी आ पत्नी पदमावती देवी, छठि पावनिक
कुरना-कोसियाक चित्रित करैमे सहभागी स्नातक छात्रा- ज्योति कुमारी, रचनाकार श्री रामविलास साहु।
सुधि पाठकगण, सज्जनवृन्द आ
समीक्षक मित्र, अहाँ सभसँ अपेक्षा अछि आ अनुग्रह करैत कहै छी
जे उक्त पोथी ‘बगवार’केँ पढ़ि
अपनेलोकनि चिन्तन-मनन करब आ बेसी-सँ-बेसी अपन सुझाव पठेबाक कृपा करब। अपनेसभक
सुझावकेँ हम शिरोधार्य करब।
भाषा आ साहित्य वर्तनी, वाक्य, वाच्य, रस आ अलंकार आदिसँ लिखल जाइत अछि एवम् जे भाव-विचारसँ
सन्हाएल रहैत अछि, अत: ऐबीच भूल-चूक स्वाभाविके अछि, तँए क्षमायाचनाक संग कहए चाहै छी जे अहाँसभक सिनेह भेटैत रहत तँ हम पुन:
पुन: उपस्थित होइत रहब।
- रामेश्वर प्रसाद मण्डल
BAGWAR
A Maithili Verse Novel by Sh. Rameshwar Prasad Mandal
ISBN: 978-93-93135-50-6
सर्वाधिकार: © लेखक (श्री रामेश्वर प्रसाद मण्डल)
प्रथम संस्करण: 2023
दाम: 350/- (भा.रू.)
प्रकाशक: पल्लवी प्रकाशन
तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली
जिला- सुपौल, बिहार : 847452
मुद्रक: पल्लवी प्रकाशन (मानव आर्ट)
वेबसाइट: http://pallavipublication.blogspot.com
ई-मेल: pallavi.publication.nirmali@gmail.com
मोबाइल: 6200635563; 9931654742
फोण्ट सोर्स: https://fonts.google.com/,
https://github.com/virtualvinodh/aksharamukha-fonts
आवरण: श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल), बिहार : 847452
अक्षर संयोजन: डॉ. उमेश मण्डल
ऐ पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। कॉपीराइट धारक केर लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवं रिकॉडिंग सहित इलेक्ट्रॉनिक अथवा यांत्रिक, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि।
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