वंश नाश (कथा)

#वंश_नाश ✍️जगदीश प्रसाद मण्डल
चारि बजे भोरमे फुलकुमार काका ओछाइनपर पड़ले-पड़ल औझुका दिनक गायित्री मंत्र जपैत दिन-भरिक काजकेँ सिटिया-सिटिया मनमे बैसा रहल छला। जहिना खेबो काल आ रस्तो-पेड़ा चलै काल अकासमे उड़ैत कोनो जीव—किड़ी-फतिंगी—जँ मुँहमे पड़ि गेल, तइसँ जहिना मन चिड़चिड़ा उठैए तहिना फुलकुमार काकाकेँ भेलैन। भेलैन ई जे, सभ जनिते छी जे नटुआ ले नाच, खेलौड़िया ले खेल आ जुआरी ले जूआ पसरले अछि, मुदा अप्पन जीवन तँ ओहन रहल जे हजारो सुनरीक बीच अप्पन सम्बन्ध प्रिय सुनरी केरासँ, माने केलाक जीवनी-शक्तिसँ रहल अछि। तहूमे अप्पन मिथिलांचलक केरासँ, जेकर वंश मेटा रहल अछि। आनक जे होनि मुदा अप्पन तँ जीवने मेटा रहल अछि.!
सभकियो जनै छी जे दुनियाँ सभकिछुसँ भरले अछि मुदा तइले अनेरे मन छुछुआएब से उचित नहि। तँए हजारो रंगक फलक खेती सेहो होइते अछि, मुदा तइमे फुलकुमार कक्काक मन केरे पसिन केने छैन।
दोसरो कारण अछि, ओ ई अछि जे केरा फल सीमा परक फल छी। ओना, मिथिलांचलक भूमि छी, ऐठामक प्रकृति कहियो ने समयक प्रवाह केलक जइसँ एक दिस मौसमी फलो, तीमनो-तरकारी आ अन्नो उपजैए तँ दोसर दिस बरहमसिया फल वा तीमन-तरकारी आकि फूले-पात नइ अछि सेहो बात नहियेँ अछि। किछु फल बारहो मास उपजबो करैए आ अप्पन मोसमो बनौने रहैए...। फुलकुमार काका अप्पन मनक मालिक छथिए, ओ खुदरा-खानि खेती माने भेल मौसमक संग रंग-रंगक खेती, तइ दिस आँखि उठा नइ देखलैन। आ केराकेँ फलक राजा बुझि, खेती शुरू केलैन। मनमे मिसियो भरि कुवाथ कहियो ने उठलैन जे अप्पन प्रिय जीवनदायी फलकेँ कियो भाँगेमे मिलाकऽ पीब लेत तँ पीब लिअ। ओकर अप्पन विचार छिऐ। तइले मधुबनी स्टेशनक दोख किए लगाएब। चलू समझौता करू, ने कियो दोखी छी आ ने निरदोखी, आब की करब तइपर विचार करू।
जहिना कुशल कारीगर मकान बनबैसँ पहिने अप्पन भवलोक (आत्मलोक)मे मकानक रूप-सौन्दर्य सजबै छैथ, फलक बाग-बगानी केनिहार फलक अनुकूल माने फल उपजैक अनुकूल भूमिकेँ सीमाबद्ध करैत फल-फलहरीक गाछ रोपै छैथ, ऐठाम बन विभागक कोनो दोखक चर्च नहि, जे ग्रैंड ट्रंक रोडक बगलमे औरंगजेब आमक गाछ लगबौलैन आ मिथिलांचलक रोडमे बोन-झाड़। मिथिलांचल छी, ओहिना नइ ने दुनियाँ जनैए। ऐठाम तीमन-तरकारी उपजौनिहार अप्पन खेतक आड़ि-पाटि मजगूत करैत आँगन जकाँ चिक्कन बना बासभूमि बनैबते छैथ। एतबे नइ बुझब, ऐठाम हजारो रंगक फूलो आ फूलक संग फुलो अछि, मुदा अखन तइ सभक चर्चकेँ पछुआ दियौ।
अप्पन कौलेज जीवन छोड़ला पछाइत फुलकुमार काका केराक खेती अपनबैक विचार केलैन। नीक बुझने मन सोल्होअना विचार दऽ देलकैन जे जीवन-यापनक लेल केराक खेती उत्तम छी। ओना, जेते विचार खेती करैले फुलकुमार काका केलैन तइमे एकटा विचार छुटि गेलैन। छुटि ई गेलैन जे अप्पन जे कौलेजिया ठाढ़ी कपड़ा पहिरैक बनौने छला, सएह धेने रहि गेला। ई बुझबे ने केलैन जे केराक गाछसँ पानि सेहो निकलैए, जेकर दाग कपड़ामे पड़ने कहियो ने छुटैए। ओना, ई काज फुलकुमार काकाकेँ कौलेजे जीवनसँ बुझल छेलैन जे लिखैक कलमक रोशनाईकेँ गाढ़ बनबैले केराक पानि सेहो कारगर होइए।
खेती मनमे रोपला पछाइत जखन फुलकुमार काका खेतक रकबा आ सीमा-सरहद बनबए लगला तखन मनमे फलक प्रति अनेको विचार तँ उठलैन मुदा केरा फले नहि तरकारी सेहो छी, से उठबे ने केलैन। ओना, नवतुरिया जकाँ आन देश जा कऽ तँ पढ़लैन नहि मुदा देशी शिक्षा भेटलो पछाइत फुलकुमार काका केराकेँ सोल्होअना फले-मानि लेलैन। ओना, अखन तक फुलकुमार काका गाममे जेना केराक खेती देखै छला तहिना अपनो मन मानि रहल छेलैन मुदा पछाइत, माने केरा खेती केलाक बाद, बुझलैन जे जहिना केरा बारहो मासक फल छी तहिना बारहो मासक तरकारी सेहो छी आ उद्यमीक लेल सालो भरिक उद्यमो छीहे।
अखन तक फुलकुमार काका गाछेक फल टाकेँ फल बुझै छला, जखन कि मिथिलांचलक माटि परक लत्तीओमे, अकासमे उठल गाछक फलसँ नमहर फल, जेना तरबूज, फड़ैत अछि। ओना, फुलकुमार काका फलक गाछ सभक जखन विचार करए लगला तखन आम-जामुनक गाछो आ फलोकेँ सभ दिनसँ देखैत आएल विचारपर बेसी विचारैक जरूरत नहियेँ बुझलैन मुदा केराक खेती, जहिना सौनक मेघ लटैक कऽ धरतीक ऊपर लगमे आबि जाइए तहिना हिनका मनक ऊपर आबि गेलैन। जहिना उजरल-उपटल किसान तरकारी खेतीसँ, माने साग-मुड़ैसँ अप्पन जीवन ठाढ़ करै छैथ तहिना फुलकुमार काका सालक बीच उपज दइबला फल केराक खेतीकेँ पसिन केलैन, मुदा बॉंकी समयमे, माने सालक बाँकी मासमे अप्पन बेरोजगार जीवन केना ठाढ़ रहत से फुलकुमार कक्काक मनमे उठबे ने केलैन। उठबो केना करितैन, अभ्यासो तँ अभ्यास छीहे। एक जीवन जखन दोसर जीवन धारण करए लगैए तखन दुनू जीवनक सूत्रवत मिलानो होइए आ रग्गड़घस सेहो होइते अछि।
कौलेज जीवनसँ निकलला पछातियो पठन-पाठनक समयकेँ आधा-आधी करैत फुलकुमार काका अप्पन आधा समयकेँ खेती दिस बढ़ौलैन। ओना, नव-नौतारमे काजक प्रति एते उत्साह जगिये जाइए जइसँ समयो आ काजो बेठेकान भइये जाइए। जखने समय बेठेकान भेल तखने उत्पादन (उपज)मे ह्रास औत। ई तँ भेल विचारक दुनियाँक विचार, मुदा काजक दुनियाँक तँ आरो भिन्न अछि।
ओना, समटल विचार फुलकुमार कक्काक कालैजे जीवनसँ बनि गेलैन। तइ अनुकूल अप्पन साल भरिक श्रमक समय आ समयक हरजाना, ऐठाम आमदनी समाजक स्थितिक अनुकूल, केँ मुँहमिलानी करैत अप्पन जीवन स्तर, समयानुकूल, पौलैन जइसँ मन मानि गेलैन जे किसानी जीवनक बीच केरो किसानक जीवन अछि। सालो भरिक समयक अनुकूल फुलकुमार काका सालक दिन गनि, केरा रोपैक विचार केलैन। पाँच कट्ठा खेतकेँ ठेकना खेतक चारू आड़िकेँ मजगूतीसँ, ऐठाम मजगूतीक माने रक्षा करबसँ अछि, अड़ियबैक विचार सेहो केलैन।
केरा रोपैसँ पहिने फुलकुमार काका अप्पन परम्परासँ अबैत खेतीक अनुकरण करैत डेग उठौलाह। ऐठाम परम्पराक माने भेल अतीतोन्मुख। भूतेपर ने वर्तमान ठाढ़ अछि। फुलकुमार कक्काक मन मानि गेलैन तँए परम्परासँ अबैत खेतीक अनुकरण केलाह।
ओना, कनियेँ-मनियेँ मनमे माने फुलकुमार काकाकेँ, ईहो उठलैन जे, जे फल सालो भरिक छी तइले सालो भरिक मौसमोक विचार करब अछि। मुदा तइ विचारमे मन बेसी ओझरैलैन नहि, किए तँ आँखिक सोझमे केराक उपज देखि रहल छला जे बाढ़ि-रौदी सहनशील फलवृक्ष छीहे। जहिना समाजक बीच किछु परजीवियो छैथ आ किछु स्वजीवी सेहो छथिए, तहिना जे जीवन धारक दू सीमाक महार छी, दुनू एक-दोसराक अनुकूलो होइए आ प्रतिकूलो तँ होइते अछि। जँ से नहि अछि तँ गंगा नदीक उत्तरवरिया महार सिमरिया घाट उद्धार करता छी, तँ दच्छिनवरिया मगहर घाट छी, जैठाम प्राण छुटने दुनियाँमे केतौ ने बास हएत। खाएर घाट-बाटक बात छोड़ू।
बारहो मासक फलो आ फसिलो देखि फुलकुमार काका ओहिना मनमे विचारलैन जहिना गामकेँ एक समाज बुझि कियो विचार करै छैथ। गामक बीच जखन फुलकुमार काका केराक विचार करए लगला तखन मनसँ हेरा गेलैन जे केराक गाछकेँ आमक गाछ जकाँ गाछ मानल जाए आकि फलनुमा लत्ती जकाँ? लेकिन मनमे बेसी घमर्थन नइ केलैन। ओना, ईहो प्रश्न आगूमे छेलैन्हे जे जखन केरा फलो छी आ तरकारियो छी तखन कोन केरा पाकल नीक होइए आ कोन केरा डलना तरकारीमे शूट करैए? भाय, तड़ुआ-तरकारी ने मरजादक भोजसँ उठि गेल मुदा डलना तरकारी तँ अछिए। केरा फल छी कि तरकारी तेकरा छोड़ू। बेर-बेगरतामे कोनो केरा तरकारियो आ फलो तँ छीहे।
सभक आशा छोड़ि फुलकुमार काका केराक पौंच क भाँजमे गाम दिस विदा भेला। पहिल भेँट महालक्ष्मीसँ भेलैन। ऐठाम हम राजलक्ष्मी-महालक्ष्मीक चर्च नइ करै छी, केराक एकटा किस्मक चर्च करै छी जे मध्यम अकारक होइए। खेबामे कर्पूरक सुआद अबै छइ। महालक्ष्मीक पछाइत छोट-छोट लक्ष्मी देखि ओहिना फुलकुमार काका अचरजित भेला जहिना गंगा-ब्रह्मपुत्र नदीक बीचक मैदानक बासी जँ जापान देशक भुमकममे पड़ता तँ अनेरे ने बुझि जेता जे दुनियाँमे सभ रंगक देशो आ लोको अछि।
दर्जनो किस्मक केराक खेती अदौसँ होइत आबि रहल अछि। जेना चम्पा, बसराइ, पूबन, रसथाली, कर्पूरबल्ली, मालभोग, गौड़िया, नेन्डोन, लाल बेलपी, पंचानन्दन, झुरकुटिया, वंशीवट, मरीचमान, दूधी, भोस, बतीसा, कोठिया, दूधभुंगर, अनुपान इत्यादि।
सातम-आठम दशकमे खेतीमे उजाहि आएल। ‘जय जवान, जय किसान’क नारा अकासमे उठल। केराक खेती सेहो बढ़ौल गेल। बौना किस्मक सिंगापुरी कहि केराक नव किस्मक आगमन भेल। नव खेती एने नव जिज्ञासा किसानक बीच जगबे केलैन। परम्परासँ अबैत खेती जे मिथिलाक जलवायुक अनुकूल छल, ओकरा कुभेला भेलइ। माने अपन खेतीकेँ छोड़ि, बौना किस्मक खेती किसान अपनौलैन। नव किस्मक केरा देखि अधिकांश किसान अपन किसानी समय केराक खेतमे बीतबए लगला। फुलकुमार काका तँ सहजहि केरे खेतीकेँ अपन जीवनक आधार बनौनहि छैथ।
देखिते-सुनिते साल बित गेल। तैबीच केते गोरेक केरा फुटियो गेलैन। जहिना 1947 इस्वीक स्वतंत्रताक समयोमे आ तइसँ किछु साल पूर्वोसँ स्वतंत्र देशक सुखकेँ केते गोरे मने-मन महादेवक बुट्टी जकाँ, माने भाँग जकाँ अपन-अपन लोटा-गिलासमे घोरि रहल छला, तहिना ऐठामक किसानक मनमे सेहो भेलैन।
समाजक बीच तुलनात्मक दृष्टिसँ प्रश्न उठल। अनुभवी किसान सुमन्त भाय छथिए। ओना, फुलकुमार काका जे बुझैत होथि मुदा सुमन्त भाय अपनासँ एक श्रेणी ऊपर फुलकुमार काकाकेँ मानिते छैथ। एक श्रेणीक माने भेल फुलकुमार काका ‘काका’ भेला आ सुमन्त भाय ‘भाय’ भेला माने एकतुरिया। जहिना फुलकुमार काका किसानी जीवन धेने छैथ तहिना सुमन्त भाय सेहो धारण केनहि छैथ। दुनू गोरेक घर तँ दू टोलमे छैन, दू टोलक माने ऐठाम भौगौलिक नहि, दू जाइतिक बुझब। दुनू गोरेक सम्बन्ध जहिया केरा खेती शुरू केलैन तहियेसँ छैन। एकर माने ई नइ बुझब जे दुनू गोरेक जन्मो एक्के दिन भेलैन आ एक्के रंग खेती-पथारी करैक संगी सेहो छैथ। बीस बर्खक दूरी दुनू गोरेक बीच छैन। माने, फुलकुमार काका सुमन्त भायसँ बीस बरख जेठ छैथ। ओना, अपनासभ जेठक माने उम्रक जेठाइ मानै छी, मुदा प्रवाहित होइत प्रकृतिक गति एक धाराकेँ दोसर धारामे मिलैबतो अछि आ हटैबतो तँ अछिए। ओही मोड़ परक धारामे फुलकुमारे कक्काक देखा-देखी करैत सुमन्त भाय सेहो अपन जीवन किसानीए बनौने छैथ।
गाम-गामक माटि-पानिमे अन्तर अछिए। जहिना माटि-पानिमे अन्तर अछि तहिना ने ओकर उपजो-बाड़ीमे अन्तर हेबे करत। आ जहिना उपजा-बाड़ीमे अन्तर औत तहिना शकल-सूरतसँ जाइतिक भिन्नता सेहो हेबे करत किने। जँ से नहि हएत तँ ‘राहड़िक दालि’ आ ‘खेसारी दालि’मे अन्तर किए हएत? दुनू तँ एक्के माटि-पानिक उपज छी। जहिना दुनू गोरे, माने फुलकुमार काका आ सुमन्त भाय, एक कर्मक जीवन बनौने छैथ तहिना एक बात-विचारक सेहो छैथ।
देखा-देखी आ सीखा-सीखीमे दस बरख, बीस बरख निकैलिये जाइए, भलेँ अहाँक जीवने किए ने एक हिस्सा चलि जाए। माने जीवनक चारि अवस्थामे एक अवस्था।
जीवनक तेसर अवस्थामे एला पछाइत फुलकुमारो काका आ सुमन्तो भाय अपन पैछला जीवनकेँ सुमिरन करैत बेरुका चारि बजेमे, जाड़क, गरमीक छह बजे, चाह पीब, दरबज्जापर बैस, नेंगरा गुरुजीक सिखौल ‘सैंया-निनानबे’क उनटा गिनती जकाँ अपन-अपन जिनगीक गिनती शुरू करैक विचार केलैन। सुमन्त भाय बजला- “काका, पानोक इज्जत आब नइ रहल, मुदा अनका जे होउ अपना दुनू गोरेक लेल तँ अछिए।”
फुलाएल मन फुलकुमार काकाकेँ रहबे करैन, बजला- “सुमन्त, अपन हारल आ बौहुक मारल कियो थोड़े बजैए। कियो गबैए ‘पान खाये सैंया हमार/मुँह लाले-लाल..।’ तँ कियो गबैए ‘दारीमक दाना जकाँ/ दाँत लाले-लाल..।’।”
तँए कहब जे सभ एकमुँहरीए छैथ, सेहो बात नहियेँ अछि। कियो कहता ‘पान खेलासँ मुँहक दाँत खराब होइए’, तँ कियो कहता ‘पानक मेजन जरदा खेलासँ केंसर होइए’। खाएर जे हुअए., अपना बरदकेँ जेना नाथब, नाथू। अहूँक हिस्सा तँ दुनियाँमे अछिए।
सुमन्त भाय बजला- “काका, खंजन चलल बाझक चाइल तँ अपनो चाइल बिसैर जान गमौलक।”
ओना, बुझल बात अछिए जे गीत आ कहबी-कविताक माने लोक अपना-अपना मने लगैबिते छैथ, तहूमे फुलकुमार काकाकेँ बुझल रहबे करैन जे अप्पन जे शास्त्र-पुराण अछि, जेकरा अपना सभ सिलेवसक किताबसँ ऊपर बुझै छी, तेकर शब्द आ शब्दक अर्थ आ अर्थक भावार्थ भिन्न अछि, तँए विचारकेँ छिपबैत फुलकुमार काका बजला- “से की सुमन्त?”
अप्पन बड़प्पन देखि सुमन्त भाय मने-मन पौरुकी जकाँ दू-चारि बेर घुटैक लेलैन आ हीय खोलि बजला-
“काका, अपना सभ अपने टा नाश नइ भेलौं, भगवानक देल एक फलक वंशक नाश सेहो मिथिलांचलमे केलिऐ।”
सुमन्त भाइक विचारक भावार्थ फुलकुमार काका बुझि रहल छला, मुदा तेल लगौल पीछराह देह जकाँ पीछराह विचार भइये गेल छैन, विचारकेँ समटैत फुलकुमार काका बजला-
“सुमन्त, तोरा-हमरामे कोनो अन्तर अछि जे मुँह झाँपिकऽ बजै छह। मुँह खोलिकऽ बाजह।”
फुलकुमार कक्काक विचारसँ जेना सुमन्त भायकेँ सह भेटलैन तहिना बजला- “काका, अपनासभक केराक खेती चल गेल.!”
सुमन्त भाइक विचार सुनि फुलकुमार काकाकेँ सेहो जेना मनमे ठहकलैन। केरा सन अमृत फल, अपना ऐठामसँ मेटा रहल अछि.!
केराक खेती मिथिलांचलमे आइये नहि, अदौसँ होइत आबि रहल अछि। सभ जनै छी जे अपना ऐठाम तीनटा मौसम स्पष्ट अछि, जाड़, गरमी आ बरसात, तैठाम जँ आन देशसँ कोनो बीज अबैए तँ ओकरा पहिने देखए पड़त ने जे कोन मौसमक अनुकूल अछि, केहेन फल हएत।
मने-मन फुलकुमार काका तर्क-वितर्क कऽ रहल छला तँए मुँहक परदा लागल रहैन। मुदा सुमन्त भायकेँ कोसी धारक बाढ़िक हिलकोर जकाँ बजैले मन औंढ़ मारैत रहैन। नइ रहल गेलैन, दोहराकऽ बजला-
“अप्पन केराक वंश नाश भऽ गेल.!”
विचारकेँ टारैत फुलकुमार काका बजला-
“अहिना सभ दिन होइत आबि रहल अछि, आइयो होइए आ आगूओ हेबे करत।”
फुलकुमार कक्काक विचार सुनि सुमन्त भाय बजला-
“नीक-बेजाए सभ दिन होइत आबि रहल अछि काका, मुदा तेकरा तँ अरबा-उसना चाउर जकाँ निरखए-परखए पड़त किने?”
फुलकुमार काका अवाक् भऽ रहि गेला। मुहसँ बोलो केना निकैलतैन। अपनो तँ ओही जीवनक हारलमे ने अपनाकेँ देखि रहला अछि।

शब्द संख्या : 1986, तिथि : 06 अगस्त 2023 


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