आएल आशा चलि गेल #जगदीश प्रसाद मण्डल

AAEL AASHA CHALI GEL (आएल आशा चलि गेल) 

Collection of Maithili Stories by Shri Jagdish Prasad Mandal  


प्रकाशक : पल्लवी प्रकाशन  

तुलसी भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली 

जिला- सुपौल, बिहार : 847452 


वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com 

ई-मेल : pallavi.publication.nirmali@gmail.com 

मोबाइल : 6200635563; 9931654742  


प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)

आवरण : श्रीमती पुनम मण्डल, निर्मली (सुपौल),  बिहार : 847452  


दाम : 250/- (भा.रू.) 

सर्वाधिकार © श्री जगदीश प्रसाद मण्डल 

पहिल संस्करण : 2022 


ISBN : 978-93-93135-01-8


ऐ पोथीक सर्वाधिकार सुरक्षित अछि। कॉपीराइट धारक अथवा प्रकाशक केर लिखित अनुमतिक बिना पोथीक कोनो अंशक छाया प्रति एवं रिकॉडिंग सहित इलेक्‍ट्रॉनिक अथवा यांत्रि‍क, कोनो माध्यमसँ अथवा ज्ञानक संग्रहण वा पुनर्प्रयोगक प्रणाली द्वारा कोनो रूपमे पुनरुत्पादित अथवा संचारित-प्रसारित नहि कएल जा सकैत अछि। 





कथाक सत्तैर


आएल आशा चलि गेल/07  

अकारण/15  

अछोप/25  

अप्पन बेइमानी/34  

उनटन/42  

अर्द्धांगिनी/50

बहवाँइर/57

पाक मास्टर/65 

साइंस टीचर/72

इज्जत लऽ लेलक/79

निसगर पान/85

कथा लेखन क्रम : 2014 सँ अद्यतन/91 

 







 

 

 

   

 



आएल आशा चलि गेल  

सुर्जग्रहण वा चन्द्रग्रहण छुटला पछाइत जहिना लोक नदी, सरोवर वा पोखैरमे नहाइले धरोहि लागि जाइ छैथ तहिना रूद्रपुर गाममे रामेश्वरमक दर्शन करैक विचार समाजक लोकमे जगलैन। जिनका अपना हाथमे बटखर्चा  रहैन से तँ निचेने रहला मुदा जिनका अपना हाथ-मुट्ठीमे पाइ नहि रहैन ओ ऋण-पैंच ताकए दोसरा-तेसराक घरपर जाए-आबए लगला, जइसँ रामेश्वरम जेबाक जिज्ञासा अधिकांश लोकक मनमे जगलैन। मोतीलाल सेहो मने-मन विचार कऽ लेला जे जखन समाजक अधिकांश लोक एकमुहरी भऽ रामेश्वरम जाइले तैयार भेला अछि तखन अपनो किए ने जाएब। 

असकर-दुसकरमे ने कोनो नव प्रश्न उठने मनमे अधिक विचार जगैए मुदा समूहमे तँ से नहि होइए। भेड़िया-धसान लोक भइये जाइ छैथ। जहिना अपन-अपन विचारक कान्हीनुकूल लोक केतौ बाहर जेबाकाल संगी ताकए लगै छैथ तहिना मोतीलाल अपन विचारी संगी ताकैले हीरालाल ऐठाम विदा भेला। ओना, हीरालाल आ मोतीलालक उमेरमे दस सालक तरपट छैन, मुदा एकविचारी रहने एकउमेरिया भाए-भैयारी जकाँ दुनूक बीच सम्बन्ध बनियेँ गेल छैन। हीरालालक उमेर साइठ बरख टपि एकसठममे चलि रहल छैन आ मोतीलालक एकावनमक अन्तिममे जा रहल छैन। 

दरबज्जापर बैसल हीरालाल सेहो गाम-समाजकेँ देखि मने-मन विचारि रहल छला जे आएल आशा चलि गेल.! चालीस बरख पूर्वे मनमे रोपाएल छल जे परिवारसँ निचेन होइते, माने परिवारक जवाबदेहीक काजसँ निचेन भेला पछाइत चारू धामक दर्शन करि कऽ शरीर तियाग करब, मुदा से मनेमे रहि गेल। मने-मन हीरालाल सोचिये रहल छला कि तइ बिच्चेमे मोतीलाल लगमे आबि टोकलकैन- 

“भाय, अहींकेँ कहैले एलौं हेन जे गामक लोक उनैट कऽ रामेश्वरम जा रहल अछि, अपनो दुनू भाँइ चलू।” 

मोतीलालक विचार सुनि हीरालाल मने-मन विचार करए लगला जे जखन मोतीलाल दरबज्जापर आबि कहि रहल अछि तखन की कहिऐ? जँ ‘नइ जाएब’ कहबै तँ पुछबे करत जे ‘किए ने जाएब?’ आ जँ ‘हँ’ कहबै तँ अनेरे पैंच-उधारक पेंचमे पड़ि जाएब.! हीरालालकेँ चुप देखि मोतीलाल दोहरा कऽ पुछलकैन- 

“भाय, किछु बजलौं नहि?” 

हीरालाल बजला- 

“मोतीलाल, मनमे अपनो विचार छल जे जखन परिवारसँ निचेन हएब तँ चारूधामक तीर्थ जरूर करब, मुदा..।”

मोतीलाल बजला- 

“की मुदा, भाय?” 

अपन मनक दाबल विचारकेँ खोलैत हीरालाल बजला- 

“मोती, एक तँ ओहुना केकरो लग झूठ नहि बजै छी, तूँ तँ सहजे छोट भाए सदृश छह, तोरे केना झूठ कहबह।” 

मोतीलाल पुछलकैन- “से की भाय?” 

हीरालाल बजला- “आइ ने देखै छहक जे समाजक अधिकांश लोक एकमुहरी भऽ रामेश्वरमक दर्शन करैक विचार केलैन अछि मुदा अपना मनमे आइसँ चालीस बरख पूर्वे रोपि नेने रही जे अखन परिवारकेँ सम्हारि असथिर करब जीवनक सभसँ महत्वपूर्ण काज अछि। जखन परिवार असथिर भऽ चैनसँ चलए लगत तखन तीर्थ-वर्त करब।” 

ओना, हीरालाल अपन पेटक सभ विचार बाजि गेला मुदा मोतीलाल से बुझबे ने केलैन। बजला- 

“भाय, नीक जकाँ नहि बुझि पेलौं?”

हीरालाल बजला- 

“मोती, आइसँ चालीस बरख पूर्व, जहिया अपन दुरागमन भेल आ पत्नी घर एली, तही दिनक विचार छी। जाबे तक दुरागमन नहि भेल छल आ माए-बाबू सेहो जीबै छला ताबे तक हुनके परिवार बुझै छेलिऐन। मुदा जखन दुरागमन भेल आ पत्नी घर एली तखन परिवारक बीच नव परिवारक उदय ओहिना भेल जहिना बाँस, खरही वा केराक बीटमे नव गाछक जन्म भेने होइए।” 

अपना जनैत हीरालाल अपन जीवनक सत्यवृत्तिकेँ मोतीलालक सोझामे रखलैन, मुदा समाजक बीच जे अखन तकक वैचारिक परिवेश रहल अछि ओ तँ यएह ने रहल अछि जे जाबे तक परिवारमे माता-पिता जीबैत रहै छैथ ताबे तक पत्नीक कोन बात जे धियो-पुतो भेला पछातियो लोक अपन परिवार नहि बुझि माते-पिताक परिवार बुझै छैथ, तहिना मोतीलाल सेहो बुझलैन। तँए परिवारक बीच नव परिवारक सृजन केना होइए तइ दिस मोतीलालक नजैर गेबे ने केलैन। बजला- 

“भाय, एहेन कि अहींटाकेँ भेल अछि आकि सभकेँ होइए।” 

मोतीलालकेँ अपन विचारानुकूल बनबैक खियालसँ हीरालाल बजला। जहिना कोनो रचनाकार वा संगीतकार अपन पैछला विचार वा धुन (लय) केँ ऐगला विचार वा लयकेँ जोड़ैकाल विचारवद्ध वा लयवद्ध होइ छैथ तहिना हीरालाल मोतीलालक विचारकेँ विचारवद्ध करैत बजला- 

“मोती! तोहींटा नहि, अपनो देखबो करै छी आ बुझितो तँ छीहे जे माता-पिताक अमलदारीमे परिवारक जवाबदेह बेटा नहि माइये-बाप होइ छैथ, मुदा जखन परिवारक सृजन होइए, माने पति-पत्नीक गठन होइए, तखन तँ बेटो जवाबदेह बनियेँ जाइए किने।” 

अपना जनैत हीरालाल परिवार-सृजनक पहिल सूत्र बाजल छला, मुदा से सूत्र मोतीलालक मनमे घर करबे ने केलकैन। सरपट चालिक दौड़ दौड़ैत मोतीलाल पुन: अपनहि धुनिमे बजला-  

“भाय, एहेन कि अहींटाकेँ भेल अछि आकि सभकेँ होइ छै।” 

मोतीलालक विचारकेँ अधडरेरपर सँ काटैत नहि बल्कि लवान करैत, माने मोड़ैत, हीरालाल बजला- 

“हँ, से तँ सभकेँ होइए.! मुदा बेकती-बेकतीक विचारमे सेहो अन्तर होइते अछि। जेकर जेहेन विचार रहल से तेहेन बुझबो करैए आ ओहने जीवनो बनैबते अछि।” 

ओना, मोतीलालक मनमे रामेश्वरम जेबाक विचार नाचिये रहल छेलैन कि बिच्चेमे हीरालाल अपन जीवनक विचारक चर्च शुरू कऽ देलैन। मुदा से मोतीलालक मनकेँ नीक जकाँ छुबिये ने रहल छेलैन, जइसँ उखड़ल-उखड़ल सन मन मोतीलालक छेलैन्हे। अपन विचारकेँ पुन: अगुअबैत मोतीलाल बजला- 

“भाय.! परिवार छी ने, ने दूटा परिवार एकरंग होइए आ ने बिना दू-परिवारकेँ एकसंग चलने कल्याणे होइए।” 

हीरालाल बजला- 

“हँ से तँ नहियेँ होइए।”

हीरालालक विचारक सह पेबिते मोतीलाल बजला- “अही दुआरे ने एलौं हेन। जखन आनो-आनो परिवारक संग तीर्थ-वर्त करैत चलब तखने ने एक-दोसरमे जीवनक संकल्प-सूत्र सेहो मजगूत होइत जाएत आ एक-दोसरपर बिसवास सेहो बढ़ैत चलत।” 

हीरालाल बजला- 

“हँ, से तँ होइते अछि।” 

हीरालालक विचारक सह देखि मोतीलाल बजला- 

“भाय, लग-पासक स्थान (धर्मस्थान) मे लोक असगरो-दुसगर जाइ-अबैए, मुदा रामेश्वरम तँ से नहि छी। देशक दच्छिनवरिया छोरपर स्थापित अछि, जैठाम पहुँचैले हजारो किलोमीटरक रास्ता तय करए पड़ैए।” 

हीरालाल बजला- 

“हँ, से तँ तय करैये पड़ैए।” 

‘करैये पड़ैए’ सुनिते जहिना साधारणो हवाक सिहकी पेब गाछसँ पाकल आम धब-धब खसैए तहिना मोतीलालक पेटक विचार धब-दे खसलैन- 

“भाय, लग-पासक धर्मस्थानो ओहने होइए जेहेन नीक-सँ-नीक विचार बेकतीगत होइए, मुदा दूरक स्थानो तँ ओहन होइते अछि जेहेन समूहक बीच सामूहिक काज होइए।” 

हीरालाल बजला- 

“हँ, से तँ होइते अछि।” 

हीरालालक सहीट विचार सुनि मोतीलाल बजला- 

“भाय, जेतए जे होइए से तेतए होउ। जानए जअ आ जानए जत्ता। मुदा अपना दुनू भैयारीमे से नहि अछि, जहिना एक-दोसरक सुख-दुखकेँ दुनू भाँइ एक बुझै छी तहिना ने जीवन-यात्रामे सेहो एकसंग रहबे करब। एकरंग परिवार रहने जहिना अहाँक परिवार अछि तहिना ने अपनो अछि। तँए जँ कोनो नीक-बेजाए काजक यात्रा रहत तँ दुनू भाँइ विचारिये कऽ ने करब।” 

हीरालाल बजला- 

“एकरा के काटत।” 

अपन अकाट्य विचार सुनि मोतीलालक मन दहैल गेलैन। बजला- 

“भाय, जखन समाजक अधिकांश लोक एकमुहरी भऽ तीर्थ करए जा रहला अछि तखन अपनो दुनू भाँइ किए ने चली।” 

मोतीलालक विचार सुनि हीरालाल बजला- 

“समाजक लोक तँ लोके छैथ, सदिकाल भेड़िया-धसानक बाट पकैड़ चलिते छैथ। मुदा अपनो सभ जँ ओहिना चलब तखन भेड़िया-धसान लोकसँ अन्तरे की भेल। अपन बीतल दिनक विचार पहिने सुनि लएह, पछाइत विचारकेँ सूहकारि आगूक विचार करब।” 

मोतीलाल बजला- 

“भाय, काज छोड़ि माने परिवारक काज, मात्र देवस्थानक विचार करए आएल छेलौं तँए समय कम अछि, अगुताएल छी।” 

हीरालाल बजला- 

“बेसी नहि मात्र एक्केटा विचार अछि, लगले कहि दइ छिअ।” 

हीरालालक विचार सुनि मोतीलाल चुपे रहला, मुदा नजैर उठा हीरालालक नजैरपर जरूर देलैन। 

हीरालाल बजला- 

“रामेश्वरमेटा नहि, देशक चारू धाम–रामेश्वरम, जगरनाथ, द्वारिका आ अमरनाथ–क दर्शन करबक विचार अपनो मनमे रोपने छेलौं, मुदा धीरे-धीरे बाल-बच्चा भेने सेहो आ माता-पिताक आयु बढ़ने सेहो, परिवारक भारक बोझ बढ़िते गेल, जइसँ चारूधामक दर्शनक विचार तर पड़ैत गेल। अखन तक देखिते छहक, माता-पिताक पार लगबैत दूटा बेटोकेँ पढ़ेलौं-लिखेलौं, बिआह-दान केलौं आ चारिटा बेटीक बिआह-दान सेहो करबे केलौं।”

‘चारिटा बेटीक बिआह-दान’ सुनि मोतीलालक नजैर अप्पन दुनू बेटीपर पड़लैन। बजला- 

“भाय, तेहेन दुरुह परिवेश समाज बना लेलैन अछि जे गंगो असनानसँ भारी बेटीक बिआह-दान भऽ गेल अछि।” 

भारी-सँ-भारी काज किए ने हुअए, जेकरा करैकाल कठिन-सँ-कठिन परिस्थितिक सामना किए ने करए पड़ए, मुदा काज भेला पछाइत मन जहिना समगम भऽ जाइए तहिना हीरालालकेँ भऽ गेल छेलैन, मुदा मोतीलालकेँ तँ से नहि भेल छेलैन तँए नजैर निच्चाँ खसि रहल छेलैन, जेकरा देख-सुनि बोल-भरोस दैत हीरालाल बजला- 

“मोतीलाल, पारिवारिक जीवन जँ शान्त-चित्तसँ निमाहि ली, तँ ओ गंगोअसनानसँ पैघ काज भेबे कएल किने।” 

हीरालालक विचारक वाण जेना मोतीलालक हृदयकेँ छेद देलकैन तहिना तिलमिलाइत बजला- 

“भाय, परिवारक विचार छोड़ू। जइ काजे आएल छी तैपर विचार करू।” 

हीरालाल बजला- 

“मोती, अखन अपने साइठ बरख टपि एकसठममे प्रवेश केलौं अछि। तैबीच मातो-पिताक पार-घार लगेलौं आ बेटा-बेटीक सेहो पार-घाट लगेबे केलौं। जइसँ परिवारक भारसँ मुक्त भइये गेल छी, तँए आब अपनो मनमे अछि जे शेष जिनगी किए ने धर्म-कर्ममे बिताबी, मुदा..?” 

‘मुदा’ सुनिकऽ तँ नहि मुदा हीरालालक जीवन देखि मोतीलाल बजला- 

“भाय, अहाँक जीवनक हिसाबे अपने बीच मझधारमे पड़ल छीहे, तैठाम रामेश्वरमक दर्शन करब जरूरी आकि बेटीक बिआह-दान पार लगाएब?” 

मोतीलालक विचार सुनि हीरालाल बुझि गेला जे जइ मने मोतीलाल आएल छल से आब आगू-पाछू हुअ लगलै। हीरालाल बजला- 

“मोती, सभ दिन मनमे छल जे चारूधामक यात्रा करी मुदा दूरक यात्रा रहने बेसी ओरियानो-बातक खगता छऽले। एक तँ ट्रेनक सफर हएत जइमे समैयक संग खर्चो-बर्च हेबे करैत। मुदा जखन साइठ बर्खक उम्रसँ बेसीबलाकेँ गाड़ीक भाड़ामे सुविधा भेटल तखन मन आरो हलैस गेल जे परिवारक निमरजना भेला पछाइत चारू धामक दर्शन सेहो हेबे करत। मुदा गाड़ीक भाड़ामे जेतेक छूट भेल तइसँ बेसी बढ़िये गेल, माने सुविधा समाप्त भऽ गेल, आब नइ जा सकब। ओना तीर्थ-वर्तक नामपर पैंच-पालट सेहो समाजमे भेटते अछि, मुदा जखन कर्जे लऽ कर्ज चुकाएब तखन कर्जासँ छुटकारा केना भेटत।” 

मोतीलाल बजला- 

“हँ, से तँ नहियेँ भेटत।” 

 

शब्द संख्या : 1478, तिथि : 15 मई 2022




 

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