घरक खर्च, कथाकार जगदीश प्रसाद मण्डल
सात-आठ बर्खसँ रतनेसर काकाकेँ दुनू बापूतक बीच गुमा-गुमी चलैत आबि रहल छैन। आने परिवार जकाँ , जेना समाजक बीच परिवारक रूप-रेखा बनलो अछि बनियोँ तँ रहले अछि। दुनू बापूतक बीच परिवेशक अनुकूलता सोभाविके अछि। तही अनुकूल रतनेसर काका आ जुगुतलालक बीच सेहो चलिये आबि रहल छैन। अपन-अपन विचारो आ परिवेशोक प्रभाव पड़ने दुनू बापूतक बीच गुमा-गुमी सोभाविक प्रक्रिया छीहे। कहब केना छी ? परिवारक संचालन कर्ताक रूपमे रतनेसर काका छैथ जखन कि जुगुतलालकेँ सात-आठ बर्ख कौलेजसँ पढ़ाइ समाप्त केला भेल अछि ? जखन जुगुतलाल हाले-सालमे कौलेजसँ आएल छल तखन जएह जीवन कौलेज अवस्थामे छेलै , माने परिवारसँ निफिकीर जीवन , ओ पढ़ाइ समाप्त केलाक पछातियो जुगुतलालमे ओहिना छल जहिना पढ़ाइक समय छेलइ। रतनेसर काका ऐ ताकमे छला जे नव उमेरक जुगुतलाल अछि तहूमे कौलेजसँ पढ़ि कऽ आएल अछि ओ तँ अपन जीवन अपने निरधारित करैत ने जीवन निरधारण करत आकि हमरा कहलासँ हेतइ। तहूमे देखते छी जे विचार भेद , सम्बन्धक कमीक स्वर आ अधिकार भेद केते उजागर भऽ गेल अछि। सभ अपनाकेँ अठारह बर्ख पुरिते वा चोरा-नुकाकऽ चौदहो-पनरह बर्खक अवस्थाकेँ अठारह बर्ख बना अपन अधिकारकेँ प्रयोग करै...