उमेद (रचनाकार श्री जगदीश प्रसाद मण्डल)
उमेद
काल्हि शिक्षा मित्रक
बहाली छी। मने-मन साढ़े उनसैठ बर्खक मननाथ चपचपाइत जे जिनगीक उद्धार भऽ गेल। मनमे
रंग-रंगक ललिचगर विचार सभ उगैत रहइ। जइसँ जिनगीक अपेक्षा सेहो बढ़ैत रहइ। केतबो छी
तँ शिक्षा विभाग छी ने,
एते तँ अजादी छइहे जे वहालीमे उमेरक सीमा-सरहद नै छइ। आन विभाग तँ
ओहन अछि जे सभ किछु रहितो माने उपयुक्त उम्मीदवार रहितो काजे ने भेटै छइ। माने
नोकरीक उम्र समाप्त भेने नोकरीए ने हएत भलेँ काजो रहै आ केनिहारो किए ने रहए।
जँ नियमित छबो मास
नोकरी भेल आ तेकर पछाइत जँ निवृतो भऽ जाएब तैयो तँ जाबे जीब ताबे पेंशनक उमेद रहबे
करत, निचेन भऽ जाएब। निचेनेटा किए हएब, जहिना आमदनी भेने
खरचा-बरचासँ निचेन हएब, तहिना सेवा-निवृत्ति शिक्षकक अपन
मान-मरजादा सेहो तँ होइते अछि, सेहो तँ भेटबे करत। लोक ई
थोड़े बुझत जे चालीस बर्ख पहिलुका पढ़लाहा सभटा बिसैर गेल हेता, ओ कि मने हेतैन। ओ तँ यएह ने बुझत जे चालीस बर्खक अनुभवी शिक्षक छैथ।
तहूमे बीसे बर्खमे मनुखक पीढ़ी बदलै छै, पीढ़ी की मनुखक शक्लेटा
केँ बदलै छै आकि आचार-विचार, बेवहार, चालि-ढालि
सभकेँ बदलै छइ। तहूमे तेहेन समय आबि गेल अछि जे चारि-गोरेकेँ चारि साए रूपैआक बोतल
पीआ दियौ, दस घन्टाक पेट्रोल मोटर साइकिलमे दिया दियौ,
गामक के कहए जे जिला-जबाड़ घुमि प्रसंशाक पुल बान्हि देत। केतबो
सड़ल किए ने होइ, एक नम्बर निरोग सौदा बनि चकचकौआ बजारक
चौमैतपर बिकेबे करब! मननाथक मनमे उगना जकाँ उगिते ठोर पटपटाएल-
“यएह छी जिनगी!”
‘की छी जिनगी’
से तँ नै निकैल सकल, मुदा एते तँ निकलिये गेल
जे ‘यएह छी जिनगी।’
पचपन बर्ख पहिने
पिता-सोमेश्वर- मननाथकेँ संग केने, एकटा रूपैआ नेने, गामेक लोअर प्राइमरी स्कूलमे नाओं लिखा देलकैन। ओइ समय गाम-गामक अपन-अपन
हवा-पानि छेलइ। एहनो गाम छल जइमे किछु खास बेकती खानगी शिक्षक रखि अपन
धिया-पुताकेँ पढ़बै छला, मुदा दोसर लेल कोनो उपए नै छल। किछु
एहनो गाम छल जइमे जातिक बीच स्कूल छेलै, किछु एहनो छल जैठाम
समाजक सहयोग सँ शिक्षक राखल जाइ आ जेतए गर लगैन, चाहे कोनो
झमटगर गाछ होइ, आकि खढ़-खुट्टाक घर, तेतए
शिक्षण कार्य चलै छल। किछु गाम एहनो तँ छेलैहे जैठाम किछु ने छल! मुदा ओहनो तँ
छेलैहे जे जँ कियो किछुओ शिक्षा, मात्रिक वा अन्यत्रसँ पाबि
अपन खेतियो-बाड़ी करै छला आ साँझू पहर अपन परिवारक बाल-बोधकेँ सोझहामे पढ़ैबतो छला
आ दरबज्जाक देबालक खुट्टीपर रामायण, महाभारत रखितो छला आ
साँझके पढ़ितो छला। देखा-देखी बाल-बोध सीखिते अछि। जइसँ एक वातावरणक निर्माण सेहो
होइते अछि। मुदा से नहि, सोमेश्वर जइ स्कूलमे मननाथक नाओं
लिखौलैन, ओइ स्कूलक प्रति समाजक ई धारणा जे दसनामा संस्था छी,
दस गोरे मिलि चलत जइसँ दसक बाल-बच्चा पढ़त। परिवारक खर्चक बजटमे
अखैन शनिचरा भेल आगू मिडिल स्कूलमे अढ़ाइ रूपैआ, हाइ स्कूलमे
चारिसँ पाँच रूपैआ आ कौलेजमे पनरहसँ बीस रूपैआ महिना फीस लगबे करत, तइले बाल-बच्चा किए ने पढ़त। ओना, शिक्षकोकेँ ने
कोनो बोर्डक आकि युनिवर्सिटीक सर्टिफिकेट रहैन आ ने कोनो सरकारी दरमहे भेटैन। गामक
सहयोगसँ स्कूल चलैत। आने विद्यार्थी जकाँ मननाथो गामक स्कूल टपि मिडिल स्कूलमे
नाओं लिखौलक। चारि बर्खक पछाइत हाइ स्कूल पहुँचल। अखैन तकक जे सिलेवस छल तइमे
बदलाउ आएल। बदलाउ ई आएल जे तीन फैकेल्टीमे पढ़ाइ विभाजित भऽ गेल। अखनेसँ तीन
दिशाक बाट फुटत। अपनाकेँ मननाथ तौललक तँ बुझि पड़लै जे सभसँ नीक आर्टे फैकेल्टी
अछि। ओना, आर्टकेँ कला कहल जाइ छै, जेकर
असीम अर्थ अछि। मुदा से नहि, जिनगी जीबैक कला। आर्ट रखैक
पाछू मननाथक विचार रहै जे साइंस पढ़ला पछाइत गाम-घर छोड़ि बाहर नोकरी करए जाए पड़त,
डॉक्टरक जरूरत जहिना अस्पतालमे तहिना अस्पताल गाममे नहि, नगर-महानगरमे। तहिना इंजीनियरोक स्थिति अछिए। कौमर्सो तहिना, शहर-बजारक पढ़ाइ छी, तइसँ नीक जे समान्य शिक्षा
पाबि कोनो विद्यालयमे नोकरी करब। मुदा ई नै बुझि पेलक जे विद्यालयमे शिक्षकक केते
खगतो छइ। बलजोरी थोड़े लोक जा कऽ पढ़बए लगत। जइक चलैत बी.ए. केला पछाइत मननाथ
बेरोजगार बनि गेल। ने खेती-गिरहस्ती करै-जोकर अपनाकेँ बुझै आ ने केतौ नोकरी भेलइ।
खेती-गिरहस्ती तँ बिनु पढ़ल-लिखलक काज भेल, से केना करैत।
मुदा सोलहन्नी बैसबो केना करैत। दू बर्ख तक घरपर बैसला पछाइत एकटा गौंआँक संग
मननाथ कोलकाता गेल। ओतौ तहिना, मनसूबा बान्हि गेल रहए जे
कोनो ऑफिस आकि आने ठाम लिखा-पढ़ीक काज करब मुदा से भेल नहि। जेकरा संग गेल रहए ओ
बड़ा-बजारमे ठेला चलबैत। ओना, पेशा अपन स्वतंत्र रहै मुदा
चिन्हा-परिचए कोनो ऑफिस आकि कोनो कारखानादारसँ नै रहने मननाथकेँ काजक कोनो जोगाड़
नै लगा सकल।
पनरह दिन बैसला पछाइत
मननाथक मनमे गाम घुमि जाएब उठलै। मुदा अनेको प्रश्न मनकेँ घेरि लेलकै। प्रश्न ई जे
गामोमे तँ अहिना गोबर-माटि जकाँ पड़ले रहै छी, फेर होइ जे गाममे कमसँ कम अपन
खेत-पथार रहने खाइ-पीबैक जोगाड़ तँ अपन ऐछे, मुदा ऐठाम अनका
सिरे केते दिन रहब। फेर होइ जे मनुख छी, दूटा हाथ अछि दूटा
पएर अछि, तखन कोन काज एहेन अछि जे नइ कऽ सकै छी। अनेरे देह
खसौने छी। देह कि खसौने छी जे लोके तेहेन अछि जे अनेरे कीचारत जे जे काज बिनु
पढ़नौं लोक करैए तइले एतै पढ़ैक कोन काज छइ। अनेरे एते खरचो आ एते समैयो लोक किए
गमौत। मुदा गामो जे जाएब से गाड़ीक माशूल आ बटखरचो तँ अपना नहियेँ अछि। एक तँ
वेचारा राधेश्याम अबैकाल संगे नेने आएल, अपना डेरापर रखि
पनरह दिनसँ खुएबो-पीएबो करैए, तैपर सँ घुमतियोक खर्च केना
मँगबै। ऐठामक बोली-वाणी, चालि-ढालि नै बुझै छी जे असगरो
घुमि-घुमि नोकरी ताकब। दोसर, जे संगे अनलक ओकरा ठेलाबला
छोड़ि दोसर चिन्हारए नै छै जे केतौ गर धराएत।
चिन्तित बैसल मननाथ
मने-मन विचार करैत रहए जे आब की करब? दिनक एगारह बजैत। दिनुका भानस करै
दुआरे राधेश्याम तीसीक बोरा कारखानामे पहुँचा, लफड़ल डेरा
आएल तँ मननाथकेँ चिन्तित बैसल देखलक। देखते राधेश्याम बाजल-
“समैयेपर आबि
गेलौं। अखैन नहाएब नहि, पहिने हाथ-पएर धोइ, बरतन-बासन अखारि चाह बनबै छी। चाह पीब भानस करब। मनो असकताएल अछि।”
राधेश्याम बजबो कएल आ
बरतन नेने रोड परहक टंकी दिस विदाहो भेल। मननाथकेँ मनमे उठलै जे राधेश्यामकेँ कहि
दिऐ जे आब ऐठाम नै रहब,
चलि जाएब। मुदा लगले भेलै जे अखैन वेचारा रौदमे तबधल आएल अछि,
कोनो कि अगुताइ अछि, पछाइते कहबै। बरतन-बासन
अखारि, चुल्हि पजारि राधेश्याम चाह बनौलक। चाह बना दुनू गोरे
पीबए लगल। दू घोंट पीला पछाइत राधेश्याम बाजल-
“बौआ, मन लगैए की नहि।”
मननाथ बाजल-
“गौंआँ-घरूआ जँ
दुनियाँक कोनो कोणमे एकठाम रहत तँ ओ गामे जकाँ भेल, तखन नीक
किए ने लगत। सभ दिन पनरहो-बीसो गौंआँ एकठाम बैस हब-गब, हँसी-मजाक
कैरते छी, तखन गाम आ एतएमे अन्तरे की भेल?”
बजैक वेगमे मननाथ
बाजि गेल मुदा लगले मनमे उठलै, बैस कऽ समय बिताएब आ काजमे समय लगा बिताएब एके भेल?
काजमे आकर्षण-विकर्षण दुनू छइ। जे मनकेँ अपना दिस खिंचबो करै छै,
आ ठेलबो करै छइ। जइसँ मन लगबो करै छै आ उचटबो करै छइ। मुदा ऐठाम तँ
हमरा-ले विचित्र स्थिति अछि। अपने जैठाम जा काजक गर लगाएब तैठाम भाषाक दूरी अछि। तहूमे
तेहेन एकचलिया लोक अछि जे जेहने बोली-वाणी तेहने चालि-ढालि। दुनूक अनाड़ी छी,
जेकरा संग आएल छी ओ तँ हमरोसँ बेसी अनाड़ी अछि, ओ की बुझत जे कोन काज करैबला छी। चाह पीविते राधेश्याम बाजल-
“भानसमे की
देरी लागत। बारह बजेसँ पहिने खा-पी निचेन भऽ जाएब।”
मननाथक मनक बेथा जेना
उमड़ि पड़लै। बाजल-
“राधेश्याम
भैया, गौंआँ रहैत अहाँ बहुत केलौं। मन नै लगैए, काल्हि चलि जाएब।”
मननाथक बात राधेश्याम
नीक जकाँ नै बुझि पेलक। बुझियो केना पबैत। बाजल-
“किए?”
बिना किछु लाथ केने
मननाथ बाजल-
“काज करैले आएल
छेलौं सएह ने भऽ पाबि रहल अछि, तखन रहबो केना करब।”
राधेश्याम भानसो करैत
रहए आ मने-मन मननाथक प्रश्नपर विचारो करए लगल। ठेकनौलक तँ नजैरपर अठारहो गौंआँ
ठेलाबला पड़लै। सभ अपन-अपन भानस अपने करैत अछि। चारि-पाँच गोरे जे बेटाकेँ पढ़बैले
रखने अछि ओकरा तँ आरो बेसी परेशानी होइ छइ। जँ अठारहो गोरेक भानसोक भार आ
चारू-पाँचो विद्यार्थीकेँ पढ़बैयोक भार भऽ जाइ तँ दुनू काज हएत। मननाथकेँ काजो भेट
जाएत आ हमरो सबहक जिनगी बन्हा जाएत। केता दिन अपनो भुज्जा-भर्ड़ी फाँकि कऽ रहै
छी।
बाजल-
“मननाथ बौआ,
हमर विचार पसीन हएत?”
“की?”
“जखन काज करए
एलौं तखन काज तँ अपने ठाढ़ कऽ लेब। अठारह गोरे गौंआँ छी। बेठेकान खाइ-पीबैक अछि।
अहाँ अठारहो गोरेक भानसक भार उठा लिअ। अपनो खाएब आ दू पाइ बँचियो जाएत।”
मननाथक मनमे उठल, भनसियाक काज!
मुदा लगले बदैल गेल। बदैल ई गेल जे गामोमे जे भोज-काज होइ छै तइमे भानसो कैरते छी
आ परैस कऽ सेहो खुऐबते छी। तखन..? मन मानि गेलइ। बाजल-
“हँ करब।”
‘करब’ सुनि मान-सम्मान बढ़बैत राधेश्याम मननाथकेँ कहलक-
“चारि-पाँचटा
बच्चो गामेक छी। ऐठाम पढ़ैए, अनकासँ जे टीशन पढ़ैए से
अहींसँ ने किए पढ़त। गामक जँ चारियो-पाँचटा अपन पढ़ौल भऽ जाएत तँ ओ कि गामक सेवा
नै भेल। सेवे किए, ओ तँ कुलपूज सेवा भेल!”
दोहरी काज देख मननाथक
मन मानि गेल जे अखैन किछु दिन रहैक पहिने जोगाड़ करी, तखन आगू बुझल
जेतइ। चिन्हो-परिचए बढ़त आ किछु-किछु ऐठामक बोलियो-वाणी आ चालियो-ढालि सीखि लेब।
केतौ पहिने लोक ओइठाम रहै-जोकर अपनाकेँ बना लेत तखन ने रहि पौत।
मननाथ दुधा-वैष्णव।
ने कण्ठी गरदेनमे नेने आ ने माछ खाइत। गामक लोकक देखा-देखी अपनाकेँ वैष्णव मानि
नेने। बिहारक जलवायु आ बंगालक संग पुर्वांचलक जलवायुमे अन्तर छइ। तँए बिहारक जिनगी
आ बंगालक जिनगीमे सेहो अन्तर छइ। छह मास जाइत-जाइत मननाथ बेमार पड़ि गेल, गाम चलि आएल।
मननाथ जइ समय आइ.ए.
पास केलक तही समय प्रतिमाक संग बिआह भऽ गेलइ। ओना, नगदी दान-दहेज मननाथक पिता नै
लेलखिन मुदा परिवार ठाढ़ हेबाक सभ कथू लेबे केलखिन- बरतन-बासन, लत्ता-कपड़ा, कुरसी-पलंग इत्यादि-इत्यादि। प्रतिमाक
पिता रामायणिक प्रेमी, संग-संग हाइ स्कूलक शिक्षक सेहो
रहथिन। जहिना किलासमे बिआहक दान-दहेजक विरोधमे पढ़ाबथिन तहिना जनकपुरमे भेटल
रामकेँ बिआहमे सुन्नर नगर, सुन्नर बाड़ी-फुलवारी, सुन्नर भवन, सुन्नर भोजन, सुन्नर
विदाइ इत्यादि अपनो मनमे घर केनहि रहैन, तँए नगदक विरोधमे
रहितो वस्तु-जात, पढ़ै-लिखैक खर्च धरिक पक्षमे सेहो
पढ़ाबथिन। ओना, से सभ अपन बेटीक बिआहमे दइक विचारो रहबे
करैन।
गामक मिडिल स्कूल तक
प्रतिमा पढ़ने, तँए थोड़-थाड़ हिसाबो-बारी आ पढ़बो-लिखब भइये गेल रहइ। जहिना सभ
मिथिलांगना सुयोग, सुशील संगीक कामना करैए तहिना प्रतिमोक
मनमे रहबे करइ। जइसँ सभ दिन भोरे सुति-उठि फुलडालीमे फूल लोढ़ि, अँगना-घर बहारबासँ चुल्हि-चिनमार नीपै, भानस करैक सभ
जोगाड़ करैत, नहा कऽ भगवतीक आसन नीप फूल चढ़ा कर-जोरि
असीरवाद पाबि जिनगीक लीलामे लगि जाइ छलि। कौलेजक बरक संग बिआह हएत, सुनि प्रतिमा मने-मन भगवतीकेँ गोर लगलैन। मनकमना पुरबैक सुन्नर संगी
देलौं।
बी.ए. अबैत-अबैत
मननाथकेँ दुरागमन भेल। जाधैर कौलेजमे पढ़ै छल ताधैर अपनो मनमे नीक-नीक विचार उठिते
छेलै, जइसँ नीक जिनगीक उमेद रहबे करइ। पति-पत्नीक बीच घन्टो अपनो भविसक रंगीन
फुलवारीक बीच विचरण करैक समय भेटते छल। प्रतिमाक आशाक ज्योति भिनसुरका सुर्जक
रोशनी जकाँ प्रखरे होइत गेलै, बढ़ैत गेलइ।
कौलेज छोड़ला पछाइत
जखन मननाथकेँ नोकरी नै भेल तखन जहिना अपन मन मननाथक डोलए लगल तहिना प्रतिमाक सेहो
सिहैर-सिहैर सिहरए लगल। जिनगीक आशामे गिरानी आबए लगल। जइ दिन मननाथ नोकरी करैक
खियालसँ राधेश्यामक संग कोलकाता विदा भेल, तइ दिन बेर-बेर केता-बेर प्रतिमा
मननाथक चेहराकेँ निहारि-निहारि देखलक। कखनो बुझि पड़ै सौन केना बीतत तँ कखनो बुझि
पड़ै जे कमासुत संगी भेटने दुनियाँक कोन सुखक कमी रहत। मुदा बैसारी जिनगीक भारसँ
दबल जहिना मननाथ तहिना प्रतिमा। केतेक जरूरत काजक अभावमे हूसि गेल। जरूरतो तँ
जरूरत छी, केतौ जिनगीक तरहत्थीक जरूरत तँ केतौ जिनगीक उलफी
जरूरत सेहो अछिए। मुदा से नै प्रतिमाकेँ जिनगीक तरहत्थीक खगता खगलैन। जइसँ जिनगीक
वृक्षमे बेर-बेर झाँट-पानिक झटका सहए पड़ल रहैन। तँए उवाउ सेहो भइये गेल रहैथ। जखन
मननाथ कोलकातासँ बेमार भऽ घुमि गाम आएल तइ समय सोमेश्वर दुनू परानी जीविते रहथिन।
एकटा संतान मननाथोकेँ भऽ गेल रहइ। ओना, अपन घटैत जिनगी आ
बेटाक चढ़ैत अपाहिज जिनगी देख दुनू परानी सोमेश्वर चिन्तित भइये गेल छला मुदा
अपनो जीबैक आशा लोककेँ प्रबल होइते छै, तँए बेथाएलो मने अपन
घर-गिरहस्तीकेँ सम्हारि चलैबते छैथ। सुखाएल देह मुरझाएल मन मननाथक देख परिवारक सभ,
माता-पितासँ लऽ कऽ पत्नी धरि, चिन्तित भऽ
गेली। जहिना कोनो गाछक पहिल डारि सुखलापर चाहे रोगेलापर गाछक चुहचुही कमए लगै छै,
तहिना प्रतिमाक चुहचुहीमे सेहो कमी आबि गेल। तहिना मतो-पिता अपन
अगुआइत परिवारक खसैत रूप देखैथ, मुदा उपए?
एक तँ ओहुना
पूर्वांचलक पाइनो आ हवोसँ नीक मिथिलांचलक अछि। तैपर पथ-परहेज, दवाइ-दारू
भेने मननाथ निरोग भऽ गेल। छह मास बीतैत-बीतैत मननाथ पूर्ण स्वस्थ भऽ गेल। काजक
आशमे जखन मननाथ हिया कऽ देखलक तँ बुझि पड़लै जे परोपट्टामे केतौ कल-कारखाना ऐछे नै
जैठाम जा नोकरी करब। गाम-घरमे जे स्कूल अछि ओ तँ अपने-अपने परिवार धरि समटा गेल
अछि तखन करबे की करब। खेती-बाड़ीक ओ दशा अछि जे त्रेता जुगमे जनक तीनि-बित्ता हर
जोतलैन तहीसँ अखनो खेती होइते अछि। ने अपना हाथमे कोनो जुगानुकूल औजार अछि आ ने
खेतीक साधन, बाढ़ि-रौदीक रक्षा संग खाद-पानि-बीआक अछि! तखन?
तैपर जँ कोदारि-खुरपी हाथमे लेब तँ गामक लोक अनेरे कीचारत जे देखियौ
फल्लाँक तकदीर...।
रंग-रंगक चोट पाबि
मननाथक मन सकतए लगल। सकताइत विचार भेलै जे पूर्वांचलक पानि अनुकूल नै भेल, पच्छिमक
यात्रा करब। पच्छिम दिस हियबैए लगल तँ दूरक एकटा सम्बन्धी राजस्थान सीमेंट
कारखानामे काज करैत। नमहर कारखाना, सए-पचास आदमी सदैत काल
छुट्टीपर गाम जाइते अछि, जइसँ उट्ठा काज रहिते छइ।
पिसियौतक-पिसियौत
भाइक संग मननाथ राजस्थान गेल। मार्च मास रहने एक मास काज केलक। सीमेंट कारखाना काज
करै बलाकेँ सीमेंट-खौक बनाइए दइ छइ। मटिखौक इलाका तँ छी नहि, जे खलियो पएर
आकि हल्लुको-फल्लुक चप्पल-जूतासँ काज चला लेब आकि लत्ते-कपड़ासँ काज चला लेब।
तँए ओहन नै बनब तँ काज नै कऽ सकै छी। पहिल मासक दरमाहासँ मननाथ अपन लत्ता-कपड़ा,
जूता-चप्पल इत्यादि पहिरेबा वस्तु कीनलक। मुदा दोसर मास अप्रील
अबैत-अबैत रौदक गरमी बरदाससँ बाहर हुअ लगलै। जहिना एक दिस रौदक झड़की तहिना दोसर
दिस पानिक मरकी अछिए। बीतैत मई मननाथ बेमार पड़ि गेल। ओना, मननाथ
उट्ठा काज करैत रहए, स्थायी नोकरी नै भेल रहइ। मुदा बेमारीक
नाओंपर संगी-साथीक कहला-सुनला पछाइत गाड़ीक खर्च कारखानासँ भेटलै, टिकट कटा गाड़ी पकैड़ मननाथ गाम चलि आएल।
दुनू परानी सोमेश्वर
पचास बर्ख टपि चुकल छला। जिनगी भरि कमाएल-खटाएल देह रहितो, मनक क्लेश आ
पेट-पूजाक अभाव रहने अस्सी बर्खसँ ऊपरक झखड़ल बगए बनि गेल छेलैन। व्यायामो तँ
भरले पेटक ने नीक होइ छइ। ओना, जेते काज दुनू परानी सोमेश्वर
करै छला तइमे कटौती नै केलैन, करबो केना करितैथ चारि-पाँच
बीघाबला किसान (आजुक किसान नै) आँखिक सोझामे खेतकेँ परती होइत केना देखतैथ। मशीन
भेने एते तँ लाभ भेबे कएल अछि जे कम आँट-पेटक बाड़ी-झाड़ीमे भाँगे-धथूर बेसी उपजए
लगल अछि। ओना, तेकर दोसरो कारण अछि जे करताइते गाम छोड़ि
देने छैथ, मुदा जैठाम छोट किसानक खेत जोत-कोर करैक आ उपजबैक
प्रश्न अछि, तैठाम जँ बीघा जोतै बला औजार चलि आबए तखन ओइसँ
काज केना चलत। मुदा जे से। सोमेश्वर सेहो तहिना अपन गिरहस्तीकेँ छोट केलैन। छोट ई
केलैन जे जइ खेतमे नियमित उपजा लेल नियमित काज करए पड़ैन, जे
श्रमक बाहुल्यतासँ पूर्ति होइत अछि, तैठाम ओहेन-ओहेन फसिलक
खेती करए लगला जे खेत तँ अबादल जानि मुदा उपजामे ह्रास होइत गेलैन। सएह सोमेश्वरक
परिवारमे एक दिस भेलैन तँ दोसर दिस परिवार बढ़ि गेलैन। शिक्षकक बेटी थिकीह,
ओ केना खुरपी-कोदारिसँ भूमि छेदन करथिन! पिताक वचन ओहिना कन्हेठने
छैथ। ओना, ईहो कन्हेठने छैथ जे मनुखक औरुदा साए बर्खक छइ।
मनुख हट्ठा-कट्ठा साए बर्ख जीबैत अछि, जे तइसँ बेसी जील तँ
भाग्यशाली भेल नै जँ तइसँ कम जील तँ भाग्यहीन भेल। तेतबे नहि, प्रश्न अछि साए बर्खक जिनगी? महान-वेत्ता सभ
श्रीमुखसँ साए बर्खक जिनगीक प्रशंसाक पुल बना दइ छैथ, मुदा
साए बर्ख प्राप्त केना हएत, तइकालमे लबनचूस चोभए लगै छैथ।
एहेन होइ छै जे लिखतनसँ बेसियो आ कमो बखतन होइ छै, तँए
छूटियो सकैए, आ केतौ बेसियाइयो सकैए। मुदा बेसियाइयोक तँ
दुनू कारण छै, एक मोट वस्तुकेँ पीसि कऽ मेही बनाएब आ दोसर
आन-आन आनि असलकेँ घुसका देब। साँझ-भिनसर जँ धियान करै छी तँ किए कोनो मंत्रक
मात्राक छूट-बढ़ हएत। ओ तँ मन रखैक मंत्र छी, जखने मनसँ
घुसकत तखने काजे घुसैक जाएत। मुदा से सभ सोमेश्वरकेँ नै भेलैन, देखा-देखी दुनियाँ चलै छै कोनो कि हमहीं एहेन छी जेकर बेटा बिमार पड़ल आ
दोसरकेँ नै पड़ल, घनेरो लोकक जवान बेटा रोगाएलो छै आ मरबो
कएल, केना छातीपर अढ़ैया रखि सबुर केने अछि। जाबे आँखि तकै
छी, हाथ-पएर चलै-फिड़ै-जोकर अछि, दुनियाँ-ले
नै अपना-ले करैत रहब...।
भाय, प्रश्न एकटा
फेर जगि गेल। ओ जगल जे ‘अपना-ले?’ बेकतीवादी
विचार भेल, स्वार्थी विचार भेल। मुदा एकर ईहो अर्थ तँ होइते
अछि जे जखने मनुख अपन विचारकेँ कर्म रूपमे उतारए लगैए तखने अपन हाथ-पएरकेँ ओइ
दिसामे लगौल जाइ छै जहिना घरसँ निकैल कियो दुआर-दरबज्जा गाम-समाज टपि देस-कोस टपि
दुनियाँ टपैए, ओ कर्म तँ बेकतीगते सम्भव अछि। बिनु जिम्माक
बेकतीगत जिनगीए की? मनमे जेहेन विचार तइ अनुकूल अपन-अपन रस्ता
बनबैक अछि। प्रश्न अछि मनुख बनि एलौं, मनुखक बीच बास हुअए,
हँसैत-खेलैत जिनगीक समरपन करैत गुदस हुअए। दुनू परानी सोमेश्वर
मननाथक सेवामे जुटि गेला।
भदबरिया पीअर-ढूसि
बेंग जकाँ मननाथकेँ देखते प्रतिमाक मन उड़ि गेलइ। जहिना अकासमे उड़ैत टिकुली
रंग-रंगक खाद-अखाद वस्तु धरतीपर देख-देख- अपन उपयोगी वस्तुकेँ से चाहे खइक होउ
आकि बैसैक- निहारि-निहारि चैनक साँस लइत नचैए तहिना प्रतिमोकेँ भेल। एक-दिस वृद्ध
सासु-ससुरक थोड़ दिनक आश,
तँ दोसर दिस पतिक हरण भेने अपन वैधव्य-जिनगी! तँ तेसर दिस कोरैला
साल भरिक चिल्काक जिनगी। मन विचलित भऽ गेलइ। ओना, परिवारिक
सम्बन्धमे बेकती घरक कोठरी जकाँ अछि, मुदा किछु एहनो तँ ऐछे
जे अधिक दिनक टिकाउ अछि। वएह नष्ट भऽ रहल अछि! नइ, माए-बाप
बहुत रास गहना बेर-बिपैत-ले देने छैथ, कोन दिन-ले राखब। जखन
जिनगीए नहि, जखन सोहागे नै तखन सिहिन्ता कथीक आ सौख केकर?
तखन गहना-जेबर पहिरबे के करत? प्रतिमाक मनमे
पतिक जिनगीक प्रति उत्साह जगल। रोगक इलाज छै, समस्याक समाधान
छइ। जेना पतिक राग प्रतिमाक रग-रगमे रमि गेलैन...। सासु लग जा बजली-
“माँ, बाबूजीकेँ कहथुन, पाइ-कौड़ीक चिन्तानै करैथ, गहना दइ छिऐन, डॉक्टर लगबैले कहथुन।”
ओना, प्रतिमा
ससुरसँ छिपा बजली, मुदा मनमे रहैन जे बेर- बिपैतमे जँ
एक-दोसरक सहारा नै बनत तँ ओ दबा जाएत। तँए जोरसँ बाजल छेली। जे बात सोमेश्वर सेहो
सुनलैन। पुतोहुक बात सुनबए बुड़हा लग पहुँच बजली-
“पुतोहुक विचार
सुनलौं किने?”
“हँ।”
‘हँ’ कहि सोमेश्वर मुस्कुरेला। केहनो बिपैत किए ने हुअए जँ ओकर प्रतिकारक उपए
होइए तँ चिन्ता हटिते छइ। सोमेश्वर पत्नीकेँ कहलैन-
“माए-बापक देल
जिनगी-ले छैन, ई ताधैर हमर छी जाधैर जीबै छी। अपनो बाप-दादाक
देल बहुत अछि। जँ दवाइसँ छुटतै तँ मननाथोकेँ छुटतै।”
मननाथक इलाज शुरू
भेल। दू मासक पछाइत पूर्ण स्वस्थ भेल। स्वस्थ भेला पछाइत सबहक सहमैत भेलैन जे
मननाथ अपने खेती-पथारी करत। तकदीरमे परदेश नै लिखल छइ। विधाताक रेख कियो थोड़े
मेटा सकैए।
गाममे रहि मननाथ घरक
काजमे हाथ बटबए लगल। मुदा पढ़ल-लिखल रहलो पछाइत नै बुझि सकल जे किसान परिवार केहेन
होइ। कटबी होइ आकि सौंस। सौंसक माने भेल जे परिवारमे सालो भरिक भोजन-विन्यास
परिवारक हाथ अबौ। माने ई जे अन्नक खेती बारहो मास लगौलो जाए आ काटलो जाए। जेना
जगरनाथमे छइ। नव अन्नक भोजन पवित्रो मानल जाइए। ओना, किछु एहनो अन्न अछि जे जेते
पुरान होइए तइमे तेते घीए जकाँ गुण बढ़ै छै, मुदा से नहि,
आर्थिक दृष्टिसँ। भोजनक भीतर दूध, तरकारी,
फल इत्यादि सेहो अबै छइ। बारहो मास दूधक पूर्ति तखने हएत जखन कमसँ
कम दूटा महींस आकि दूटा गाए रहए, तहिना तरकारीक सेहो अछि,
सालो भरिक तरकारीक पूर्ति तखने हएत जखन तीनू मौसमक माने जाड़,
गरमी आ बरसातक अनुकूल खेती हएत। तहिना फलोक अछि। बारहो मास जे
समयानुकूल फल लगौला पछाइते फलक पूर्ति भऽ सकैए। जखन एहेन ढर्ड़ा किसान परिवार
पकड़त तखन सम्पन्नता औत, जखन सम्पन्नता औत, तखन समृद्धता औत, यएह भेल सौंस परिवार। एहेन परिवार
सोमेश्वरक नै छेलैन। कटबी खेती आ कटबइ उपजा छेलैन जइसँ तीमन-तरकारीक कोन बात जे
अन्नोक बेसाह लगिते छेलैन। ओना, चारि-पाँच बीघा पाँच आदमीक
परिवार-ले परियाप्त भेल मुदा से नहि। समैयक संग परिवार उगैत-डुमैत चलैत रहल,
चलैत रहल।
तीस बर्खक पछाइत
मननाथ मतो-पिताक श्राद्ध आ पाँचो बालो-बच्चाक बिआह-दानसँ निवृत भेल। ओना, शिक्षा-बेवस्था
एहेन भऽ गेल अछि जे पढ़ब-बिनु-पढ़ब बराबरे। मुदा परिवारमे सरस्वती एने, नीक जकाँ तँ नै मुदा पाँचो बेटा-बेटी पढ़ल-लिखल तँ छैन्हे।
गाम-गामक स्कूलमे
शिक्षा मित्रक बहाली हएत। साल भरि पहिनेसँ लोक कागत-पत्तर कीनै-बेसाहैक संग स्कूल, कौलेज,
युनिवर्सिटी, पोस्ट-ऑफिस इत्यादिक ताक-हेर
करए लगल। ब्लौकसँ गाम-धरिक लोकक हाथे बहाली हएत। वेपारीक नक्शा तैयार भेल।
पढ़ल-लिखल नौ-जवानक कमी ऐछे नहि। जैठाम लेबाल रहत तैठाम जँ वेपारी नै कमाएल तँ ओ
अनेरे कौमर्स पढ़लक किए? दुनू परानी मननाथक मनमे सुतल सपना
जगि गेल। जगि गेल जे ई तँ हाथक काज भेल, सभ सपनाक पूर्ति भऽ
जाएत। चालिस हजार रूपैए कट्ठा जमीन अढ़ाइ कट्ठा बेच लेब ओतबेमे हाथक-हाथ कागज भेट
जाएत। सएह भेल।
काल्हि दस बजेसँ
बहालीक प्रक्रिया शुरू हएत। सभ काज केला पछाइत, सौंझुका बैसार मे मननाथ चाहक घोंट लैत
बाजल-
“आइ भरोस भेल
जे भरि जिनगीक हेराएल ठौरपर आबि गेलौं!”
मुदा मननाथ ई नै बुझि
पेलक जे दिनुका हेराएल साँझमे एलौं आकि रतुका हेराएल भोरमे।
ओना, प्रतिमाक
चढ़ैत-उतरैत जिनगीमे पतिक बात सुनि कोनो बेसी हलचल नै भेल मुदा किछु कम्पन्न तँ
भइये गेल। हलचल ऐ दुआरे नै भेल जे सन्तानक पूर्वक जे मनोरथ छेलैन, ओ छौर बनि आकसमे उड़ि गेलैन। सन्तानक पछातिक मनोरथ खसैत-पड़ैत थकथका गेल
छेलैन। जिनगीक चारिम अवस्थाक लग-झकमे पहुँच गेल छेली। अपन सभ मनोरथ परिवारमे
छिड़िया-बितिया गेल छेलैन, मुदा तैयो आशक साँस तँ भेटबे
केलैन। आशक साँस ई जे एको दिनक शिक्षकक नोकरी तँ जीवन पारे हएब भेल। से दिन आबि
गेल। बिहुसैत प्रतिमा बजली-
“निश्तुकी काज
हएत किने?”
मननाथ-
“ओना, अहाँ आन थोड़े छी जे मनक बात छिपाएब...।”
बहालीक चिट्ठी देखबैत
पुन: बाजल-
“कोनो कि कच्चा
खेलाड़ी छी जे पैसा फेकि देब काज पछुआ लेब। एक हाथसँ देलिऐ, दोसर
हाथसँ लेलिऐ।”
जिज्ञासा करैत
प्रतिमा बजली-
“कहाँदन काल्हि
इन्टरभ्यू हेतइ?”
मननाथ-
“ओ सभ देखैआ
हेतइ।”
पतिक उत्तर पाबि
प्रतिमा थकमका गेली। थकमका ई गेली जे एक दिस देखौआ कहै छैथ आ दोसर दिस चिट्ठी सेहो
देखए दइ छैथ! परीक्षा ने चोरूका होइए मुदा इन्टरभ्यू तँ देखौआ होइते छै भलेँ
मुँह देख मुंगबा किए ने। तखन कहलैन की..? बाजल-
“अखुनका लोकक
केते बिसवास करै छी, बैंकमे रूपैआ नइ रहनौं चेक पठा दइए। जँ
अहाँ सन-सन दसटा मोकिरकेँ झगड़ा लगा दिअए तखन की करबै? एक तँ
जिनगी भरि मारि खेलौं तैपर जँ मरैयोकाल घीचे-तीड़ीमे चलि जाएत तखन बाड़ीमे गेन्हारी
साग उपजा कऽ केना खाएब?”
पत्नीक बात मननाथक
मनकेँ पीड़ीत बनौलक आकि प्रीत ओ मननाथ जानए। मुदा उगैत काज डुमैत काजक विचारो स्थल
तँ यएह छी। कौल्हुका काज पहिने सम्हारि पछाइत नव काजमे हाथ लगौल जाए आकि..? जँ बहुत बेसी
नवका काज मनमे उतफाल मचौत तँ ओ अपने सूत्रवद्ध भऽ आगूमे खसत।
ओना, होइतो अहिना
छै जे सुखाएल आ दुखाएल मनक उपजोमे किछु अन्तर आबिये जाइ छै, मुदा
जेतए सुखाइन-दुखाइन सहोदरा बहिन जकाँ अपन-अपन मनक बात बाजत तखन अनेरे ने दुनू बहिन
बहीना बनि बहनोइक सृजन सेहो करत। मुदा जे से...। सभ गोटी लाल देख मननाथक मन ललिया
तँ गेलै रहइ। जँ से नै रहै तँ छबे मासक पाँच हजार नोकरी छै, कुल
तीस हजार भेल। तहूमे जैठाम दरमहेक ठेकान नै तैठाम पेंशन केना जन्मत। तइले लाख
रूपैआक खेत बेच मननाथ सचमुच मने-मन खुशी अछि जे पढ़ैक उदेस साफल भेल। मुदा मनमे
बच्चेसँ अँकुरल छेलै जे शिक्षक बनब। खाएर, जाइज-नजाइज जे भेल
मुदा मनक एकटा मनोरथ तँ पूर भेबे कएल।
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तिथि : 31 दिसम्बर
2014, शब्द संख्या : 3643
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