श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे, लेखनमे, मैथिली साहित्यमे मिथिलाक बाढ़ि, बाइढ़, दाही, कोसी, कमलाक उपद्रव आदिक चित्र-विचार

तेरह-चौदह बर्खक बच्चाकेँ केना शुभ-अशुभ दुनू बात कहबै जे बौआ बाढ़िक पनरह दिन ओहन भेल जे मनक बिसवास समापते जकाँ भऽ गेल रहए जे बाढ़िक उगरासक पछाइत परिवारक सभ जीवित बँचल रहब कि नहि। केना कहबै जे भुमकममे घरे देहपर खसि पड़ल रहए। अपन सोग-पीड़ा किए अनेरे पोताकेँ पाबैनक दिन कहबै। 
मुदा लगले मन हूमरलैन, हूमरलैन ई जे जँ अपन सोग-पीड़ा नै कहबै तखन ओ वंशक वंशावलीक जे सोझ रस्ता बनल आबि रहल अछि ओइमे कटारियो बनत किने! देहसँ श्रम करैबला वंश श्रमक चोरि जान-अनजानमे कइये रहल अछि जइसँ जिनगीक धारा बदैल रहल छै, तेहेन स्थितिमे ओहनो तँ असंख्‍य लोक छैथे जे अपन पुरुखाक जीवन-धारक बीच अपन धार मिलबैत ऐगला पीढ़ी लेल सत्यम् शिवम् सुन्‍दरम्-क धार फोड़ि आगू धकेले रहल छैथ। मुदा कोनो बातो विचारैक तँ जगहो होइते छै, ऐठाम दूधमुहाँ बच्चाकेँ की कहबै, केते कहबै? पोखैर-इनारक पानि जकाँ जीतलाल बाबाक मन रसे-रसे थीर हुअए लगलैन। नीक जकाँ मनकेँ थीर करैत थारी-बाटीक पानि जकाँ जखन थीर बुझि पड़लैन तखन बजला-
“बौआ, पाबैनक ओरियानक की सभ विचार करै छह?”
#जेपीएम_गद्य#गामक_शकल_सूरत 



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