श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे, लेखनमे बाढ़ि, बाइढ़, दाही, कोसी, कमलाक उपद्रव आदिक चित्र-विचार

बाढ़ि-रौदी एकैसम शताब्‍दीक ऊपज नहि, अदौसँ रहल अछि। भलेँ कहि सकै छी जे धार-धुरक बान्‍ह-छान्‍ह दुआरे हुअ लगल अछि, भऽ सकै छै, केतौ-होइत हेतै, मुदा प्रश्न धारेक पानिक नहि अछि, तहिना रौदियो रहल अछि। धारोक कटनी-खोंटनी कम नहि अछि। मिथिलांचलकेँ कोसी-कमला तेखार कऽ देने अछि। प्रश्न अछि बाढ़िक जड़ि। पहाड़ी धार छी, जे दुब्‍बरसँ धोधिगर धरि अछि। पानिक एक साधन भेल, दोसर बरखा भेल। ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि जे पनरह-पनरह दिनक ओरियान पहिनहिसँ कऽ कऽ पूर्वज रखै छला। हथिया मात्र एक नहि जेकरा बरखा ऋृतुक अन्तिम नक्षत्र कहि टारि देब। पनरह-पनरह दिन लधले रहै छल। ओना, बरखाक कोनो ठेकान नहि, माघोमे पाथर खसि उपजल उपजाकेँ नास करैत रहल अछि। अन्तिमक जन्‍म ताधैर‍‍ नै होइत जाधैर‍‍ आदि नै होइत, बरखा ऋृतुक आदि आद्रा छी। तँए ‘आदि आद्रा अन्‍त हस्त’ ई भेल बरखाक आँट-पेट। पूर्वज सभ स्‍पष्ट विचार देने छैथ जे बरखाक कोनो बिसवास नहि जे केते हएत। 1971 ई.मे बंगला देशक लड़ाइक लगभग सालो भरि बरखा होइते रहल, ओहन-ओहन बरखा होइत रहल अछि जइमे साएक-साए घर खसैत रहल अछि। घरमे दबल बाल-वृद्ध, माल-जाल, धन-सम्‍पैत इत्यादि नष्ट होइत रहल अछि मुदा तैयो ब्‍लौटिंग पेपर जकाँ सभ किछुकेँ सोंखि ऐठामक किसान जीबैक बाट धेने आबि रहल अछि। दुनियाँमे ने साधकक कमी अछि आ ने साधना भूमिक, मुदा मिथिलांचल श्रेष्ठ किए? केतौ जाड़क साधना तँ केतौ तापक तप तपि तपस्या करैत, तँ केतौ पानिक तपस्या सौभरी ऋृषि‍ बनि करैत। मुदा तैयो मिथिलांचल साधनाक फुलवाड़ी लगा रखने अछि जइ फुलवाड़ीक फूल मैथिलानी सीता सजबैत रहली अछि। ने मिथिलाक भूमि बदलल, आ ने बदलल ऋृतु ऋृतुराज, बदैल‍‍ रहल अछि खाली बोतलक रस। घरक समस्या कहाँ? समस्या तँ तखन उठैत जखन रहैक घरसँ घर-भाड़ा असुलैक विचार जगैत। गाछक निच्चाँ सात हाथ, नौ हाथक घरमे जीवन-यापन कऽ वेद-पुराण सिरजलैन‍। की दुनियाँक देख‍‍निहार मिथिलांचल छोड़ि देख रहला अछि? जँ से नहि तँ समस्याकेँ कोन रूपे देखलैन‍? यएह ने सरकारी योजना जहिना कागतपर औषधालय बना साले-साल मरम्मतक नाओंपर योजना लूटाइत रहअ आ पान सालक बाद माटिपर खसा मलबा हटबैक खर्च होइत रहअ।
#'कर्ज' कथासँ... किछु अंश








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