KOSIK KACHHER
ISBN : 978-93-87675-54-4ISBN :
दाम : 200/-
© श्री राम विलास साहु
दोसर
संस्करण :
2018
प्रकाशक
: पल्लवी प्रकाशन
तुलसी
भवन, जे.एल.नेहरू मार्ग, वार्ड नं. 06, निर्मली, जिला- सुपौल,
बिहार
: 847452
वेबसाइट : http://pallavipublication.blogspot.com
मोबाइल : 8539043668,
9931654742
प्रिन्ट : मानव आर्ट, निर्मली (सुपौल)
आवरण : दी साहु प्रिन्टिग प्रेस.
निर्मली (सुपौल) पिन : 847452
KOSIK
KACHHER
Maithili Poems and Songs by Sh. Ram Bilas Sahu.
ऐ पोथीक
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दू
शब्द-
‘कोसीक कछेर’
संग्रहमे शीर्षक अछि- हम किछ नै कहै छी। वास्तवमे राम विलास साहुजी किछु नहि कहए
चाहै छैथ मुदा चुप्पी साधि कऽ रहियो नहियेँ सकै छैथ तँए विवशतावश हिनक कलमसँ ‘लोकतंत्रक खून’, ‘बेटी बलाए’, ‘मनक आगि’, ‘की कहब दोख’ सन कविता नि:सृत भऽ जाइ छैन। व्यवस्थाक
प्रति फुटैत आक्रोश ऐ पाँतिमे देखल जा सकैत अछि-
“ई केकर दोख छी से कहत के
के बनौलक एहेन बेवस्था
सभकेँ नै अछि जीबैक आस्था...।”
यथार्थताक कारणे बिम्बक
संप्रेषणमे कोनो अवगुंठन नहि अछि। मिथिलाक रहन-सहन, धर्म-दर्शन, आर्थिक, सामाजिक, राजनीति आ
नैतिक स्थिति सभ हिनका पद्यमे स्पष्ट रूपे आएल अछि।
अपन विषय-वस्तु, शब्द आ
संवेदनाक कारणे पद्यमे सहजहिं उत्कृष्टता आबि गेल अछि।
राजदेव मण्डल
मजदुर दिवस- 2017
कोसीक कछेरमे जन्म, जन्महिसँ
कोसीक कछेरमे रहैत, सुख-दुख भोगैत,
खसैत-पड़ैत ठाढ़ होइत कवि राम विलास साहुजी ऐ पोथीक मादे उपस्थित छैथ। किसानी
जिनगी। कहियो दाही कहियो रौदीकेँ भोगैत जे किछु अनुभव केलाह कलमबद्ध करबाक प्रयास
केलाह अछि।
हिनक कवितामे भाव-भाषाक विखरल
रूप विद्यमान छैन। केतौ भाव, केतौ भाषा, केतौ ताल, केतौ बेताल.., परंच मनुखक जीजिविषाकेँ रखबाक प्रयास
करैत रहला अछि। ऐ संग्रहमे केतौ कृषि, राष्ट्र, मौसम तथा केतौ ऋृतुक विविध सोपानक वर्णन अछि तँ केतौ जिनगीक जोंक जे
मानवताकेँ जकड़ने अछि तेकर वर्णन सेहो अछि।
जिनगीक ऊँच-नीच जमीनपर पएर
दैत चलए-बला बेकतीक जे हाल होइ छै वएह ऐ पोथीमे सेहो देखना जाएत। कविक संग जेतेक
शब्द शक्ति, जेतऽ केर शब्द भण्डार रहैत छै ताहि अनुरूप हुनक रचना संसार होइत छइ।
राम विलासजी शुद्ध कोसीक कछेरक वासी छैथ तँए हिनका रचनामे कोसीक कछेरक खाँटी
मैथिली अपन रूप लऽ आएल अछि।
विविध भाव भूमिमे विचरण करैत
काश-पटेरक जंगल केर बीचो-बीच रस्ता बनबैत समग्र रचनामे हिनक प्रयास सदिखन रचना
धर्मकेँ जिवित रखबाक प्रतीत होइत अछि। ‘कोसीक कछेर’, ‘अग्निपथ’, ‘आगिए-आगि’ तथा ‘मनक आगि’ शीर्षक कवितामे
जे आगि अछि ओ पसरैत नहि बल्कि नहु-नहु जरबैत अछि।
‘किए छुबाइ छी’, ‘अन्हारे-अन्हार’ तथा ‘हम
गरीब’ शीर्षक कवितामे कवि समाजिक बिडम्बनाकेँ देखेबाक सुन्दर
प्रयास केलैन अछि।
किछु गीतात्मक पद्य जेना ‘चरण पूजब’, ‘भजन’, ‘भगवतीक गीत’ आदिमे भक्ति भावकेँ समाहित करबाक नीक
प्रयास छैन।
काव्य रचनामे पूर्व आचार्यगण
जे किछु सूत्र निर्धारित केने छैथ- रस, गुण, दोष, अलंकार, छन्द आदि ओ ऐ संग्रहमे जइ रूपे आएल अछि ओ
सबहक सोझहेमे अछि।
अन्तमे, रचनाकार भाषा-शिल्पक
संग अर्थ आ भावक समन्वय करबाक जे प्रयास केलैन अछि ताहि लेल हम धन्यवाद दइ छिऐन।
डॉ. शिव कुमार प्रसाद
एसोसिएट प्रोफेसर एवं
अध्यक्ष,
हिन्दी विभाग-
हरि प्रसाद साह
महाविद्यालय,
निर्मली (सुपौल)
काव्य
क्रम-
कर्म बिनु जग सूना/14
रौदी/15
सिम्मरक फूल/16
ओलंपिक/17
मेघक बरियाती/18
पुसक राति/19
केना कहब भारत महान/21
जीअब केना/22
मनक आगि/23
मिथिलाक पियास/24
किए छुबाइ छी/26
सुखल खेत आ भूखल पेट/27
के बँचेतौ तोहर जान/28
आगिए आगि/30
दू नजैर/31
नदी/32
मिथिलाक लाल/34
किसानक दुख/35
ऊँच नजैर/37
नीन टुटि गेल/38
वसन्त वहारक गीत/39
ऋृतुराज वसन्त/40
ई केकर दोख/41
भारतक शान/44
गरीबक दुख/46
की कहब दोख/48
सौन-भादो/49
मधुरस/50
फॉगुक रंग/51
स्वर्गक खोज/53
कर्महीन/54
बरियाती/55
मनक पियास/56
जरल तकदीर/58
प्रीत वियोग/59
दोष-निर्दोष/60
अन्हारे-अन्हार/61
नदीक धारा/63
धन जुआनी बाढ़िक पानि/64
छिपकनाहि जिनगी/65
बेटी बलाए/67
दिलक दरद/68
उत्तम अन्न/69
बदलल नजैर/70
मिथिलाक अपमान/71
जागु इंसान/73
जीवन पथ/74
चंचल मन/75
माघक जाड़/76
कोसीक इतिहास/78
मुक्ति/80
अनमोल जिनगी/81
मिथिलाक गुमान/82
हम किछ नै कहै छी/83
हमर टोल/84
खेतीक काज/86
मोह-माया/87
सतघटिया बाट/88
मिथिला महान पावन धाम/90
चरण पूजब/91
भजन/93
धधकैत धरती/93
अग्निपथ/94
किसान/96
दिन भेल बाम/97
नशा/98
भगवतीक गीत/99
केहेन मिथिला/100
दीन-हीन/101
हम गरीब/102
किरानीक किरदानी/104
फूलक लचारी/105
लोकतंत्रक खून/106
सपना/107
बटैया खेती/109
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