श्री जगदीश प्रसाद मण्डलजीक साहित्यमे, लेखनमे, मैथिली साहित्यमे मिथिलाक बाढ़ि, बाइढ़, दाही, कोसी, कमलाक उपद्रव आदिक चित्र-विचार
मंगलकेँ अपन मात्रिकक एकटा बात मन पड़लैन। मात्रिक कोशिकन्हामे अछि। पूबसँ कोसी आ पच्छिमसँ कमला गामकेँ घेरने रहए। बिचला सभ धार एक-दोसरमे मिलल। ओइ गाममे बाँसक बोन। बाँसक एकटा बीट गहींरगरमे छल। खूब सहजोर बाँस रहए। चालीस-चालीस हाथक बाँस ओइमे। अगते धार फुला गेल। बाढ़ि आबि गेल। गामक सभ माल-जालक संग गाम छोड़ि कुटुमारे चलि गेल। कातिकेमे घुमि कऽ औत। एहेन परिस्थितिमे मातृभूमि केना स्वर्ग बनि सकैए! ओइ बाँसक बीटमे दस-बारह हाथ पानि लगल रहए। ओइ बीटमे दस-बारह हाथ ऊपरसँ सौंसे बीट कोंपर दऽ देलक। जे अपनो देखनहि रही...।
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