ढाई आखर प्रेम का
अपनी बात ****** मैं मिथिला से हूँ। आठो पहर मैथिली माहौल में गुजरता है। मैथिली से ही ऑनर्स कर रही हूँ। पठन-पाठन के अलावे हिन्दी से जुड़ाव का कोई अन्य माध्यम मेरे जीवन में अभी तक नहीं है। वाबजूद इसके मेरी पहली रचना हिन्दी में आपके समक्ष प्रस्तुत है। ऐसा क्यों ? इसकी व्याख्या मैं नहीं कर सकती। खैर... मेरे घर का माहौल काफ़ी पठन-पाठन वाला रहा है। कह सकते हैं कि विरासत के तौर पर साहित्य का संसार मिला है। मेरे बाबा श्री जगदीश प्रसाद मण्डल मैथिली साहित्य के कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। इसके अलावे लेखकों की रचनाओं को प्रकाशित होते देखना , शोधार्थियों द्वारा दादाजी व पिताजी से संपर्क साधते हुए देखना , उनके साहित्य , पांडुलिपियों व जीवन-शैली को देखना , घर में अनाजों से ज्यादा किताबों का होना इत्यादि मेरे लिए वरदान साबित हुआ। ये सब मेरे स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण का नतीजा है। बस एक कमी रही कि खुद पर विश्वास बहुत देरी से हुआ। विश्वास दिलाने में सब से पहले मैं अपनी प्यारी बहन लल्ला (तुलसी) का जिक्र करना चाहूँगी जो मेरी सबसे अच्छी सहेली है , जो मेरी हर रचना की पहली पाठिका भी है! इसी के पाठ
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