जगदीश प्रसाद मण्डल, मैथिली साहित्य
सतासी इस्वीक बाढ़ि, जइमे कोसी आ कमला दुनू धारक बान्ह-छहर अनेकोठाम टुटि गेल। ऐठाम ई बुझू जे कोसीक बान्ह छी आ कमलाक छहर। भलेँ दुनू धारे किए ने छी। ओइ बाढ़िमे पानिक ठहराव एहेन भऽ गेल जे गाम समुद्रनुमा भऽ गेल। महीनो भरि माने तीन माससँ छह मास धरि पानि उतरैमे लागि गेल, माने धरती जगैमे लागि गेल। जहिना साइबेरियाक खेतसँ बरफ उतरैमे तीन माससँ नअ मास तक लगैए तहिना। जैठाम लोकक जीवने अस्त-व्यस्त भऽ गेल, तैठाम आनक कोन चर्च। आमक गाछी-कलमसँ भरल सीतापुर गाम जे साल बीतैत-बीतैत माने बाढ़िक पानिकेँ सुखैत-सुखैत, वृक्ष विहीन भऽ गेल। सीतापुरक गाछी-कलम सोल्होअना सुखि गेल। केतौ-केतौ बाँसक बीट जीवित रहल, जे गाछक ओ रूप बना ठाढ़ रहल जइमे फल-फूलक दरस नहि। बाढ़ि एलापर अधिकांश लोकक मुहेँ यएह निकललैन जे कोसी-कमलाक बाढ़ि छी, बुझले अछि जे अपना मिथिलामे बेटी-पहुनाइ अढ़ाइ दिनक होइए। तहिना ने कोसीयो-कमला—दुनू बहिन—पहुनाइ करती। अढ़ाइ दिनक पछाइत जेबे करती, तइले लोक परेशान किए हएत। मनक धैर्य तँ बन्हल रहल मुदा जइ गाममे पचास-सँ-साठि प्रतिशत भीतघर छल बाँकी टटघर। पाँच साए परिवारक गाममे मात्र पनरहटा ईंटा घर छल। गाममे बाढ़ि प्रवे...