अप्पन साती रमबतिया गामक चौक। भिनसुरुका आठ बजि गेल छल। नीलकण्ठ काका अपन समयानुसार चौकपर पहुँच गेल छला। ओना , चौकक चाहक दोकान तीन बजे भोरेसँ शुरू भऽ जाइए मुदा सोना-चानी , कपड़ा-लत्ताक दोकान आठ बजे खुजैए। स्कूल भलेँ दस बजे किए ने खुजए मुदा सभक सहयोगे भोरेसँ चौक तँ चलिये रहल अछि। आब कहब जे जखन चौकक चाहक दोकान तीन बजे भोरेमे खुजि जाइए तखन नीलकण्ठ काका आठ बजेमे किए जाइ छैथ ? नीलकण्ठ कक्काक अपन सोच छैन तँए अप्पन सोचानुसार चालि छैन , जइकेँ पकैड़ नीलकण्ठ काका चलि रहल छैथ। सोचानुसार चालि ई छैन जे सौंझुका ताड़ी पीबनिहारकेँ तीन बजे भोरमे चाहक तृष्णा जगै छै , तँए पहिने ओ पहुँचैए। सोझे चाहेटा पीबैले लोक थोड़े चौकपर अबैए। चाहक दोकानपर बिनु बजौल पाँचगोरेसँ गपो-सप तँ करिते अछि। तहूले ने लोक चौकपर अबैए। अधरतिया समय रहिते छै तँए दिनुका काज अखन हेबे ने करत , तखन तँ भेल जे निसचिन्तीक समय छीहे। तृष्णा तृप्तिक लेल चाह पीबिते अछि। मन शान्त भेलो पछाइत जँ लोक निसचिन्तसँ अपनो जीवन गाथा नइ गाओत तखन गाओत कखन। गामेक चौक छी , जहिना-जहिना दोकानक कड़ी बढ़ैए , तहिना-तहिना गहिंकीक आबा-जाही सेहो बढ़िते अछि। जइसँ वि
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